किस -किस को बताऊं? कि मैंने छोडा़ तुमको।मजबूर किया, तुम्हीं ने मुझको
तड़प रही ,विरह बेला में,ब्याह कर,आई जो वधूटी।गये प्रियवर,समर में उसके,जिसकी अभी,मेंहदी भी न छूटी।अभी तो ,हुआ था ह्रदय उल्लसित,अभी तो,मन गगन पर,छाये थेस्वप्न घन।होना था अभी ही,उनका गमन?होना था ,उमंग उल
"सिंदुर''ब्रह्मरंध नियंत्रण सिंदूर कापारा करता है।सुहागन का जीवनतनाव मुक्त करता है।।अनिद्रा मुक्त कर श्नायु तंत्र कोचैतन्य रखता है।।🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩परंपरा, धर्म जब ताखे पर रख डालाब्रह्मरंध्र का क्या दे फिर मित्र हवालानींद गई-सुख-चैन गया- झेलें तुर्राचित्त चंचल- स्वप्नों की हलचल 🌊🌊🌊🌊🌊🌊
🔥🔥 बेबात जलन 🔥🔥ब्याह किये मुझसे,माँ-बाप के संग बैठ समय-जाया करते हो!माना आँचल पाया माँ का,मुझको अवहेलित तुम करते हो!!पिता ने पढ़ा-लिखा जॉब दिलाया,माँ को सैलरी भी देते हो!मेरी भी कुछ हैं जरुरते,मायके भी जाने नहीं मुझे देते हो!!माँ ने खीर जली बना लाई,चाट कर- कटोरी साफ करते हो!मैंने रोटी चुपड़ दाल सं
❓❓नारी प्रतारण❓❓दूध का कर्ज चुकाने वालों कोइतिहास के पन्नों में लिखा देखा हैपित्रिभक्त दैत्यगुरु परशुराम को- 'मातृहंता' होते भी देखा हैभुमिगत् होती सीता कोमर्यादा पुरुषोत्तम तक ने देखा हैभयाक्रांत बहन सुभद्रा पाषाण बनी, सहोदरा-मेला भी देखा हैभारत माँ की बेटियों को देश हेतु विधवा बनते युगों से देखा ह
बेटीबेटे से बाप का बटवारायुगों से होता चला आया है!माँ को बाप से विलगा- शपीड़ा तक भी बटवाया है!!उसर कोख का ताना लेकोर्ट का चक्कर मर्द लगता है!कपाल क्रिया कर वहआधे का हक सहज पा जाता है!!बेटी सिंदूर लगवाएक साड़ी में लिपट साथ हो लेती है!माँ-बाप का दु:ख सुनते हींवह दौड़ी चली आती है!!मरने पर वह साथ न हो
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩बेटा बचाओ- बेटी बहु बन कहीं जा घर बसाएगी!जो बहु बन आए वह क्या (?) ''बेटी'' बन पाएगी!!सुसंस्कार वरण कर पिया का घर-संसार बसाएगी!उच्च घर में जा कर वह निखरेगी वा सकुचाएगी!!विदा करते तो शुभ कहते पुरोहित् अभिवावक हैं!माँ-बाप का हुनर समेटे, वही बनती बड़भागिन है!!बेटा पास बैठ
🌺 🌻 🌹🌷🌹 🌻 🌺गदा - अग्निवाण - सुदर्शन चक्र -ब्रह्मास्त्र अवतारों ने बहुत चलाया🌺🌸🌻🌹🌹🌻🌸🌺लाखों शवों से 'कुरुक्षेत्र' को पटायासुर्य देव अस्त होते होते उगते ठहर गया🌺 🌸🌻🌹🌹🌻🌸 🌺'रुद्रावतार' ध्वज पर चड़ा, चक्का धस गयाधर्म का झंडा फिर गड़ा, महाभारत बन गया🌺🌸🌻🌹🌷🌹🌷🌹🌻🌸🌺ऋषियों के तपो
*इस सृष्टि का सर्वोच्च प्राणी मनुष्य जन्म लेने के बाद निरंतर प्रगतिशील रहा है | मनुष्य ने सफलता के कई मानदंडों को स्थापित किया , परंतु जब जब मनुष्य ने अपने बल , कौशल या ज्ञान को माध्यम बनाकर के कुछ सफलता अर्जित की है तो उसमें एक दुर्गुण चुपके से उत्पन्न हो जाता है जिसे वह स्वयं नहीं जान पाता उस दुर्
*आदिकाल से ही सामाजिक व्यवस्था के दो स्तंभ थे - वर्ण और आश्रम | मनुष्य की प्रकृति-गुण, कर्म और स्वभाव-के आधार पर मानवमात्र का वर्गीकरण चार वर्णो में हुआ था | व्यक्तिगत संस्कार के लिए उसके जीवन का विभाजन चार आश्रमों में किया गया था | ये चार आश्रम थे- (१) ब्रह्मचर्य, (२) गृहस्थाश्रम, (३) वानप्रस्थ और
एक और साल अपने नियत अवधि को समाप्त कर जाने को है और एक नया साल दस्तक दे रहा है। बस, एक रात और कैलेंडर पर तारीखे बदल जायेगी। दिसम्बर और जनवरी महीने की कुछ अलग ही खासियत होती है। कहने को तो ये भी दो महीने ही तो है पर साल के सारे महीनो को बंधे रखते है। दोस
किसी के बात-चीत के अंदाज़ से काफ़ी हदतक उसके व्यक्तित्व का अंदाज़ा लगाया जा सकता है क्योंकि हर एक का अंदाज़-ए-बयाँअपना अपना होता है। परन्तु धीरे-धीरे हमारी आम बात-चीत में फ़ूहड़ता और भद्दापन आमहो गया है|कुछ रोज़ पहले एक शाम रोज़ाना की तरह टहल रहा था। टहलते टहलते एकछोटॆ से मैदान के पास से गुज़रना हुआ। वहां कु
सकारात्मक सोच व्यक्ति को उस लक्ष्य तक पहुंचा देती है जिसे वो वास्तव में प्राप्त करना चाहता है लेकिन उसके लिए एक दृण सकारात्मक सोच की आवश्यकता होती है| जब जीवन रुपी सागर में समस्यारूपी लहरें हमे डराने का प्रयत्न तो हमे सकारात्मकता का चप्पू दृण निश्चय के साथ उठाना चाहिए
“अवसर” खोजें, पहचाने और लाभ उठायें अवसर का लाभ उठाना एक कला है एक ऐसा व्यक्ति जो जीवन में बहुत मेहनत करता है लेकिन उसे अपने परिश्रम का शत-प्रतिशत लाभ नही मिल पाता और एक व्यक्ति ऐसा जो कम मेहनत में ज्यादा सफलता प्राप्त कर लेता है इन दोनों व्यक्तियों में अंतर केवल अवसर को