आज तप रहा हूँ,कल जल रहा था मैं।धुँआ हीं धुँआ दिख रहा,दग्ध बीज सा चमक रहा था मैं।।डॉ. कवि कुमार निर्मलबेतिया (बिहार)7209833141
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🎵🎶🎤गी🎧🎷🎸🎹🎺🎻त🥁🎵🎼सुरीले गीत बना दो- चारसुना तुझे रिझा पातापैंजनिया की झंकार सेअपनी ओर खींच पाताकण्ठ वैसा नहीं सधा हुआ और,न हीं गीतकार,मीठी चासनी में छान-जलेबियाँ खिला मैं पातालकिरें उकेर कुछेक-पढ़ सुना भर देता रे आज,जैसे भी हो- हृदयांचल मेंगुद्गुदी तो लगा पातासुरीले गीत बना दो- चारसुना तुझ
प्रतियोगिता:साहित्य मित्र मंडल (पंजीकृत: एम. पी.)विषय: "तीन रंगों में सजा तिरंगा"🇮🇳🇮🇳🇮🇳तिरंगे की कथा 🇮🇳🇮🇳 🇮🇳तिरंगा झंडा प्यारा लाल किले परदो बार लहराता हैहर भारतीय का हृद्यांचल आह्लादित हो झूम जाता हैआज तिरंगे की महिमा कवि सुधिजनों को सुनाता हैमन में छुपी व्यथा खुल करप्रियजनों को बतलाता
कोरोना का कहर और सृजनसम्मेलनों और कवि -गोष्ठियों की चहुँदिसि मची धूम हैहर ओर शंखनाद् गुँजायमान्,कीर्तन का शोर हैनगमों-नज़्मों में अगन,टपका कलमों से ओज हैमन की जमी हुई भडास सारी है आज निकस रहीगुर्गों की नजर शर्म से उफ़!कत्तई झुक नहीं रहीवख्त है, चेत जा; आ रही कोरोना की बौछार हैनफरत नहीं किसी से,विश्व ब
🌹🌹🌹🌺मध्य रात्रि 🌺🌹🌹🌹 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺प्रचण्ड एषणा हृदय में, मन मैंने बनाया है।एक विराट शुभ विचार मन में समाहृत है।।भव्य स्वर्णिम मण्डप स्वप्न में हटात् आ दिखता है।विशाल स्तंभ केन्द्र में- बहुआयामिय आलोकित है।।भिन्न-भिन्न अद्भुत आकृतियाँ यत्र-तत्र दृष्टिगोचर हैं।।सदाशिव महादेव-त्रिनेत
।।🙏परशुराम🙏।।कन्नौज-सम्राट गाधि की थीअत्यंत रूपवती सुकन्या!सत्यवती भृगुनन्दन ऋषीकके जीवन से बंध रमना!!भृगु ऋषि से पुत्रवधू नेपुत्र प्राप्ति का किया प्रणय निवेदनतथास्तु! कह भृगु मार्ग बताएगूलर-वृक्ष का आलिंगन करचरु-पान से गर्भ वह पाएपात्र माँ ने लोभवशछल से पात्र बदलाब्राह्मण पुत्र 'जमदग्नि'क्षत्रिय
💖💖💖पिता💖💖💖एषणाओं के भंवरजाल मेंउलझ व्यर्थ हीं,व्यथित हो इहजगत् कोन बँधु झुठलाओ।तुममें है हुनर एवम्है अदम्य सामर्थ्य,अजपाजप गह'सबका मालिक एककह नित महोत्सव मनाओ।।हर साल "फादर्स डे" मना एक दिन३६४ भूल जाते आखिर क्यों (?) तुम!"पित्रि यज्ञ महामंत्र" नित्य उचर कर,आशीर्वाद भरपूर बटोर करसदगति रे मन पा
★☆तुम मिलना मुझे☆★ ★☆★☆★☆★☆★☆★आँखों में जब भी डूबना चाहाझट पलकें झुका ली आपनेछूना लबों को जब भी चाहाहाथ आगे कर दिया आपनेसरगोशी कर रुझाना चाहाअनसुना कर दिया आपनेगुफ़्तगू की ख़्वाहिश जगी पुरजोरतन्हा
★★मसीहा फिर आओ★★येसु! बार - बार आ कर आलोक फैलाओअँधेरा छाया- फिर से ज्योत बिखराओतुमने सदा प्यार बाँट शुभ संदेश दिया हैहमने बँट कर नफ़रतभरा अंजाम दिया हैचमत्कार फिर दिखला कर होश में लाओप्रायश्चित और प्रार्थना का मार्ग बताओयेसु! बार - बार आ कर आलोक फैलाओअँधेरा छाया- फिर से ज्योत बिखराओडॉ. कवि कुमार निर
🕉️ 🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️🕉️ 🕉️दीपक यह जलता रहा रात भरज्योत्सना से भरी रात्रि जी भरदग्ध-बीजों को मीले सातवरअमरत्व मिला न आएगाजरगुँजायमान् चहुंओर शंखनाद् स्वर'कोरना' व्यध्र- इति होना है कहर नैतिकवादियों का प्रारंभ प्रहरसात्विकों की जय- सुनिश्चितअनैश्वरवादी का अंत निश्चितअजपाजप वर करें सब मिलकरहर आतंकी स्व
बाहुबली रणक्षेत्र की ओर कूच करते हैंरण जीत कर आते या मर कर अमर होते हैंजो शोषित सह कर आर्तनाद् करते हैंत्रुटिपुर्ण कुपरंपरा चला ये निरीहसम बनसमाज का सर्वथा अहित हीं करते हैंडॉ. कवि कुमार निर्मल
★★★★ जरुरी है ★★★★ 💐💐💐💐💐💐💐💐रिश्तों में समझौता यक़ीनन,बेहद जरुरी हैज़ख्म ज़िंदगी ज़ख्मों से भरी,कारगर मरहम जरुरी हैहर ज़ुम्बिश ओ' साँसों परतवज़्ज़ो करने वाले,अपने हीं ख़ुद-परस्त हुए तो क्या हुआ?हर ज़ायज़-नाज़ायज़ काम कापक्का हिसाब जरुरी हैमंज़ूर किया ग़र सरयामताज़िंदगी साथ चलने के लिए,वख़्त-बेवख़्त हर उसूलनिभ
बदल रहा है सबकुछ हमारे भारत में- धीरे धीरेबजार की रौनक फिर सेनिखर रही है- धीरे धीरेखुली हैं दवा की दुकानें, बिक रहे नेंबु ओर खीरेकोभिड १९ की गिनती- चल रही है- धीरे धीरेअर्थ व्यवस्था भी सूधरेगी निश्चय हीं- धीरे धीरेडॉ. कवि कुमार निर्मल
आज निंदिया आवे ना आवे,सब्बा खैर का तो बनता है।सुबह के सपने सच हों,मालिक से यह बंदा,इल्तिज़ाकरता है।।के. के.
कोरोना की राजनीतियह सोसल डिस्टेंसिंग महज़अगले चुनाव का एक बुलंद नारा हैसड़क जाम, सट कर चलना- ई. भी. एम. ने हीं देश को तारा हैसाठ साल के उपर नेता-डॉक्टर रहें घरों में सुरक्षितसविनय निवेदन हमारा हैनोक - झोक से रहे परहेज़, आत्म निर्भर हो देश, लिखना नायाब फ़साना हैकब्र खुदीं चार लाख पार,अंकुश अब पुरजोर हरओ
भ्रुण और नवजात शिशु कोहँसना किसने सिखलाया।चोट, पीड़ा नहीं पर स्वत:रोना उसको सिखलाया।।हाथ पकड़ कर पशु कोकिसी ने नहीं चलना सिखलाया।अन्न नहीं था जब धरा पर,वनस्पतियों से काम चलाया।।पापाचार गह, सदाचार सेमुँह मोड़ हे मानव अधोगति पाया!हृदयांचल में बैठा प्रभु,उनकी सुन नहीं पाया!!डॉ. कवि कुमार निर्मल
💐💐राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस💐💐भारत का डॉक्टर हार रहा-हुआ हताशकवि अश्रु बहा थकित-हो रहा निराश''कोभिड'' फटेहाल देख डॉक्टर कोआगोश में समेट कहीं छुप जाता हैघर में बने 'मास्क' पहन क्या (?) कोईकोभिड संक्रमण से क्या बच पाता हैपैदल चल कर आखीर कैसे डॉक्टर५लाख पार खाने वाले को-मार भगा पाएगापहुँच रहा आँकड़
रंगारंग क्रांति का पंचम चहुंओर लहरायाशंखनाद् गुँजायमान्, विह्वल मन हरषायाआनंद परिवार" का सुखद् युग है आयागुलाल-अबीर का खेल, बहुव्यंजन भी बहुत हींरे! भायात्रस्त मानवता देख विद्रोही कवि क्रांतिमय गद्य ले आया🔥🔥 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥सत् युग, द्वापर, त्रेता एवम् कलियुग ये चारों व्यक्तित्व केrefl
साप्ताहिक प्रतियोगिता में "प्रथम" सर्वोतकृष्ठ चयनित रचनासमुह का नाम:- साहित्यिक मित्र मंडल जबलपुर ( एम. पी.)पटल संख्या: १-२-३-४-५-६-७ एवम् ८संपर्क:- 9708055684 / 7209833141शीर्षक: आँखों के किनारे ठहरा एक आंसू💧💧💧💧💧💧💧💧💧💧आँखों के किनारे ठहरा एक आंसूभक्तों का सर्वश्रेष्ठ धन है गिरते आंसू🌹🌹🌹
साहित्य श्रिंखलाअद्भुत हैअभिव्यक्ति कीस्वतंत्रता हैसृजन में संस्कृति कीनैसर्गिक माला पिरोयेंमानववादियों को अतिशिध्रएक मंच पर लायेंडॉ. कवि कुमार निर्मल
टपकी बुँद पसीने कीमाथे पर आई पसिने की बुँदे कुछ कह रही हैंटपक - टपक पलकों को जब - तब छू रही हैंतपिश है उमस भरी- ठंढ़ी छाँव ढ़ूंढ़ वे रहीं हैंअपनी हीं तश्वीरों को देख मदहोश हो रही हैमाथे पर आई पसिने की बुँदे कुछ कह रही हैंटपक - टपक पलकों को जब - तब छू रही हैंडॉ. कवि कुमार निर्मलDrKavi Kumar Nirmal
लो बिन कहे मैं चुपके से आ गया हूँख़्वाबों को सबके- सजाने आ गया हूँतिलस्म नहीं, "सच" बन आ गया हूँ"चार" का मेरा यह आकड़ा नायाब हूँशुन्य से निकसा हुआ स्वर्णिम प्रभात हूँहर दिल की तमन्ना बन छा गया हूँ२०२० सतयुग लिए मैं आ गया हूँविश्व के नैतिकवादियों को समेट लाया हूँजाती-शरहदों को मिटाने आ गया हूँलबों की म
हटात् कवि का स्वप्न टूटटा,उठ लिख फिर सो जाता हैदीवा स्वप्न नहीं भाता,कटु हो पर सत्य हीं वह कहता हैभयम्-भयानाम्, भीषणम्-भीषणानाम् उचरता हैगढ़ता नहीं कुछ सोंच- भाव लेखनी में बसता हैकवि विशुद्ध चक्र जागृत कर "त्रिकालदर्शी" बनता हैसहृदय श्रोताओं कादुख हर- अश्रुपूरित करता हैसृजन में आदि एवं अंतसमाविष्ट
69 वें "जन्म दिन" पर मेरा शुभकारी "फलादेशसूर्य में राहु का उपद्रव- 2020 के बाद सुधार💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐कहते सुना सबसे कि मैंने खोया हीं खोया।टघरते आँसुओं की धार- पीया हीं पीया।।दिल हुआ छलनी, वज़ूद ज़ार - ज़ार हुआ।सब खोया मगर, तेरा मैं तेरा "प्यार" हुआ।।शौहरत-दौलत की- कत्तई ख़्वाहिश न थी,आफ़ताब के आग
🌹 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹बाल रूप प्यारा-न्यारा सबको लगता है। तरुण-वृद्ध तो बस बक-झक करता है।। 🌺 🌺🌺🌺🌺🌺🌺बालक रोना भूल चट खिलखिलाता है। गुस्सा चुटकी भरते हीं फुर्र हो जाता है।। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷"द्वेष-ध्रिणा" से उसका नहीं है दूर का कोई नाता। प्यार मिले तो परायों की गोदी में चट चढ़ जाता।। 💟💝💗💜💜💖💗💟
राजनीतिक आजादी का कोई मोल है।आर्थिक आजादी अब तक रे गोल है।।खाली खजाना भर चलवाया जिनने,उनकी हीं होती सुहावनी हर भोर है।फूटपाथ से चुन खाये- जिनने तिनके,उनकी चौलों की छतों में कई होल हैं।।'आइ. पी. सी.' रट उतार लिया बचके,"अथर्व वेद" की ऋचाएँ सारी गोल हैं।अमीरों की उठ रही नित अट्टालिकायें,साधु चले
"परिवर्तन"लाख मुखौटा तुम,रकम-रकम काचाहे बदल डालोमुद्दतों से रूठी तक़दीर,चाहे फुसला मना डालोपत्थर को चूर-चूर करधूल के पहाड़ बना डालोबची-खुची मानवता,भस्म कर राख़ बना डालोज़िन्नात - हैवान बन,समंदर में आग़ लगा डालोमयपन के गुरूर से,रुहानी दौलत जुदा कर,जमीन को कंकालों से पटा डालोकोभिड मुँह बाये सामने खड़ा हैंत्
★★★★कोरोना★★★★"आंकड़े" देख शोहबत को'नजायज' करार दी"क्वारेंटाइन" के बाद हीं आना घर!ये आस दीदिल है कि सात समन्दर पाररह कर भी प्यार बरकरार है'मोबाइल' में तश्वीर देख-आँसुओं की बह रही धार हैप्यार को महज़ जिस्मानी रिस्ता कहा!यह रुहानी बात हैकोरोना की सुन्दरता जरा देख लेना,लाल! क्या? बात हैडॉक्टर कवि कुम
"सुस्वागत वंसत"हरित-क्रांति की,प्रज्ज्वलित मशालपिली सरसों दृष्ट सर्वत्र,जिव-जंतु,समस्त विश्व.संपन्न-खुशहाल,प्रलय का भय त्याग,निर्भयता का करो वरण,अशुभ भाव त्याज्य, शुभ हों विचारस्वागत करतें है दृष्ट-अगोचर,सुहावन, 'ॠतु-बसंत बहार'माँ सरस्वती की रहे अहेतुकी कृपा,हो नित्य अद्भुत चमत्कारशुभारम्भ करो,पठन-
✳️🌺🌹।।🕉️।।🌹🌺✳️कोरोना महासंक्रमण से राष्ट्रसीमाओं और टिड्डी दल तक!रुष्ट प्रकृति, तमसा छाई-आहत शोणित गृहि-साधु तक!!सनातन से विमुख हुए सभी-तमसा छाई है क्षितिज तक!चहुदिशी ताण्डव नृत्य महाकाल का-शनि-दृष्टि हुई वक्र!!🙏🏻 डॉ. कवि कुमार निर्मल 🙏🏻
https://hindi.pratilipi.comशब्बे-ए-बाराततेरी इबादत मेंहर लम्हा गुजर जाएरहमत तेरीइस बंदे पर नज़र आएगुस्ताख़ियां है कबूल,सजा मुकर्रर कर दोऔलाद हूँ तेरी,इल्तिज़ा पूरी कर दोडॉ. कवि कुमार निर्मल
मेरी बही अख्ज़ फ़ितरत में मेरे नहींफ़र्माइशों की आदत है नहींफ़र्याद का शऊर तक नहींबन्दिगी करता हूँ, यह सहीफ़कीर कहते हैं लोग बागमौत की फिक्र कत्तई नहींयही कहती है हमारी बहीनिर्मल
🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞🌞"बचपन" से हीं जिस वीर शिवा ने सुनेतृत्व निभाया!युद्ध - चक्रव्युह रच मिट्टी -बालू के कीले पर ध्वज फहराया!!🎌🎌🎌🎌🎌🎌🎌१६ साल का तरुण ने, पुणे के तोरण दुर्ग पर परचम् लहराया!बीजापुर के आदिलशाह को लोहे के चने वीर शिवा चबवाया!!⛺🎪⛺🎪⛺🎪⛺🎪⛺प्रपंच से पिता शाह को बंदी कर,शिवा का क्र
मैंने भूत देखामैंने एक बार देखा है भूत...वह छाया थी, या सच-मुच!एक दिन गोधुली के समय बेतिया रेलवे स्टेशन के करीब घटित हुई एक घटना की स्मृति ताजी हो गई।संभवतः अप्रैल 1969 की बात है, याने आज से लगभग 52 साल पहले की बात।उधर, शहर से बाहर, उन दिनों प्रायः सन्नाटा रहता था पर आज वह चकाचक फोर लेन कनेक्टिंग हा
★★★★★★★★★★★★★★आजूबाजू में हैं- मोबाइल खेलते हैं!चाँद है पास हमिमून तक भूलते हैं!!★★★★★★★★★★★★★★दिल धड़कता है महसूस गर करते।राह पर चलते, गर नहीं- बहकते।।ठहर जाना हीं काबलियत है।खुशबुओं में बह जाना हीं ज़िंदगी है।।दिल धड़कता है महसूस गर करते।राह पर चलते, गर नहीं बहकते।।★★डॉ. कवि कुमार निर्मल★★
🌿🌿🌿ऋतु गान🌿🌿🌿🌾🌱🌲🌳🌴🌳🌲🌱🌾उमस भरी ग्रीष्मकालिन-उष्णतावातानुकूलित का आमंत्रण लाती है🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀बर्षा की टगर होठों पर टपकती बुँदों मेंमानो सावन के गीत सजनी गाती है🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺गीत शदर ऋतु की चाँदनी रात मेंअत्यंत प्रिय-आह्लादित कर देते हैं🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷शिशिर ऋतु अगन को आम
ओ' मेरे रंगरेज़ बता कैसे- तेरे रंगों से मैं भर जाऊँ?विधा न आवे, राग नहीं; कैसे गीत गा तुझे रिझाऊँ??निर्मल
मानव रे चेतलोग-बाग तुझे- पत्थरों में तराश मंदीरों में बैठाते हैं!'सुनहरी फ्रेम' में तुझे जड़वा, दम तेरा घुटवाते हैं!!अष्टधातु-सोने की मूर्ति बनवा, "ताला" लटकाते हैं!कैलेन्डर-किताबों में छपवा दीवारों पर टाँग देते हैं!!गर्मी के मौसम में- भक्त चादरों तले तुझे दबाते हैं!दम घुटता प्रभु का- धुँआ कुण्ड स
गुरूर
बाल गीत कान्हा का आज मैं गाऊँ। प्रियतम् गोप उनका बन मैं जाऊँ।।🙏🙏🌸🌸🌹🌸🌸🙏🙏🙏 🙏 "नंद गोपाला" 🙏 🙏हर कवि कृष्ण भक्त होता है'नंद' वही जो आनंद देता हैनंदन तो आनंद पाता - देता है'गोप् सदा हीं आनंद देता हैगोपालक कृष्ण कहलाते हैसूर के कृष्ण ग्वाले कहलाते हैंरागानूगा भक्ति कही गई हैप्रथम चरण रागा
मानव मन में जमा मैल निकल बह रहा है।तमसा का ताण्डव कोरोनाबन डोल रहा है।।माँस-मछली-प्याज-लहसनअब तो बँधु छोडों।कुकृत्य किए बहुत,भगवान् से नाता रे! जोड़ो।।दवा पुरानी पर जयपुर मेंकारगर सिद्ध हुई है।कोरोना ऐसों की जमातसीमा पर खड़ी है।।दिखते नहीं पर सारी पृथ्वीशत्रुओं से पटी हुई है।सात्विक बन योग वरो,समय बाक
🎉🎉🎉 कृष्णावतार"🎉🎉🎉🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾कृष्ण जन्माष्टमी कृष्ण भक्त हर्षित हो मनाते हैं।"कृष्ण लीला" आज हमआप सबको सुनाते हैं।।कारागृह में 'द्वितीय महासंभूति'का अवतरण हुआ।दुष्ट कंस का कहर,साधुसंतों का दमन हुआ।।जमुना पार बासु यशोधा के घर कृष्ण को पहुँचाये।'पालक माँ' को ब्रह्माण्ड मुख गुहा में प्रभु
कल मिलुँगा मैं तुझे,किस हाल में (?)कोई कहीं लिखा पढ़-कह नहीं सकता।नसीब के संग जुटा हूँ-ओ' मेरे अहबाब,अहल-ए-तदबीर में मगर,कोताही कर नहीं सकता।।के. के.
🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤 कहानी आज-कल की 🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤कहानी नानी-दादी कीसुनने का वख़्त कहाँ?स्कुल- कॉलेज- औफिस बंद, ऑनलाइन सहारा है🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤चाँद-सितारों-गुड़िया कीबातें रह गई कहाँ?घर में दुबके छ मास-निकला बेहिसाब दिवाला है 🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤🖤कहानी ह
नमस्कार-प्रणामनमस्कार -प्रणाम में अंतर कर पानाअत्यंत कठिन है।नमन् श्रेष्ठ को- प्रणामकिसी को भी कर सकते है।सभी प्रणम्य हैं कारणहम किसी व्यक्ति कोनहीं मन के ब्रह्म कोसंबोधित करते हैं।वरन् सामने आए किसीपरिचित को उसकेमन में बैठे प्रभु का स्मरण कर ब्रह्म भाव हम लाते हैं।पल दो पल आँख बंद करआज्ञा चक्र औरअ
मज़हबी रफ़्तार जरा थम जाएहर आदमी घर में- सिमट जाएफिक्र हो गर 'अहले वतन' कीतो हर किरदार बन सँवर जाएकवि कुमार निर्मल
🌹🌹🌹🌹🌹🌹मन बनाया है आज,तुम्हें जैसे भी हो, मना लूँ।दीपवाली के नावें,सारी रात रौशन कर निकाल दूँ!सुबह की खुमारी पुरजोर,गुस्ताखी कोई है मुमक़िऩचुप रहना जरा आज भर,ग़ुजारिस है- तोहफ़ों को बाँट दूँ!!🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷नज़रों का दोष कहें कि मुकद्दर का सौदागर।हर नज़्म लग रहीं है उनको, उम्दा बहर।।🌴
कहानी कोरना कीआज शुभदिन 'शनिवार' हैसाथ समस्त शब्द नगरी के सुधिजन,साहित्य प्रेमियों का परिवार हैसौहार्दपूर्णता प्रचूर, न कोई मलाल हैविषय 'कोरोना'- बेताबी से इंतजार हैगोधुली पर्यन्त हो सृजन,लक्ष्य संहार हैपन्ना नया हो ऐसा- कोभिड19 निगलने को तैयार हैकलम उगल रही अग्नि बाण, अंत्येष्टि हेतु बेकरार हैआज क
अवतारअवतार यहीं है।अवतार यहीं है।।मन की परतों को खोल,छुप बैठा वहीं कहीं है।एषणा बुरी नहीं है।बुरी नहीं है।।अनाधिकृत घनसंचय है अपराध,विवेकपूर्ण वितरणसही है।सत्य जहाँ अढिग है,धर्म वहीं है।।साधना सेवा त्याग कासुपथ सही है।।अवतार यहीं है।अवतार यहीं है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
"ग़ज़ल"गज़ल को सितम पीने कीआदत है बहुत पुरानीपढ़ कर वो मस्ती मेंआफ़जाही- वाह! वाह!!उम्दा! लाज़वाब कहना-महफ़िल की जान- मानीकह दो भले इसे कहानीज़माने को क्या पता,हम किन मजबूरियों में लिखते हैं?वख़्त पहले था कहाँ की कुछ लिखूँ!सोहबत की अब गुंजाइश नहीं,हाय! श्याही ख़तम होती नहीं!!क़िताब मोटी होती चली गई!दूर-
👁️👁️👁️👁️👁️👁️👁️👁️शरहद की ओर तकने वालों केसंग 'खून की होली' वीर खेलते।शरहद की ओर तकते वालों केसंग खून की होली बाँकुणे खेलते।।कौन धृष्ट कहता "एल. ओ. सी."की तरफ न भारतीयों तुम देखो!शरहद पार कर हमने खदेड़ापुलवामा को जा जरा देखो!!'सोने की चिड़िया' को अरेबहुतो ने सदियों था नोचा।संभल गये अब हम- ब
💖🕸️🕸️।।कहानी। 🕸️🕸️💖कहानी एक नायाब- नई- अनकही आज सुनाता हूंमन की गुत्थी खोल सहृदयसुधिजनों को दिखाता हूं(१)'मन की गुत्थी' प्रभु कृपा से सुलझ,मानव तन का 'रहस्य' जान पायेगा!पोथी के पठन- पाठन से नहीं कभी,प्रेम-पथिक हीं आत्म-ज्ञान पायेगा!!(२)कलमकार लकिरें कछेक उकेर,हुनर मौन बोल- निकसता है।श्याह
राणा- शिवा- लक्ष्मीबाई को भूलजिन्ना नेहरु से मिल बँट रोते हो!तिरंगा फहराया नेता सुभाष नेसफेद टोपी पर जान झिड़कते हो!!बहुत घोटालों की जलेबी छानीसंकल्पों श्रिंखलाओं केमहाजाल में फँस सोते हो!जाग गई फिर सुभाष फौजविप्लव से भी तनिक नहीं डरते हो!!डॉ. कवि कुमार निर्मल
💐💐💐💐"माँ-२"💐💐💐💐माँ नारी का सर्वश्रेष्ठ नैसर्गिक रूप हैमातृऋण हर मानव का प्रथम धर्म है🌹🌺 🌺🌺🌺🌺🌺🌺 🌺🌹माँ तो बस, १माँ- नारी श्रेष्ठ होती है।माँ अपनी,पराई न कभी हो सकती है॥🌻🌷🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌷🌻भाई हों४ पर माँ सबकी सम होती है।सबको सम प्यार कर न थकती है॥🌸 🌸🌸 🌸🌸 🌸🌸 🌸🌸 🌸उसके लख़्
दो दिन गुजर गए-मुई ये रात भी-बीत हीं जाएगी।चलो तुम्हारीखुशबुओं से,कल की सुबह-दमक-गमक जाएगी।।रौशन शाम;महक------सराबोर कर जाएगी।ग़रीब की झोपड़ीआशियाना बन,मुहब्बत की,मिशाल बन जाएगी।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
🌺🌺🌺🌺जन्में थे जब तो बेहिसाब ज़श्न थे मने,स्वजनों के जाने के साथवसियतनामे खुले।हुनर था बहुत परवह छुपाये न छुप सका--जाने के बाद सभों केआँसुओं संग बह रहे।।🌹🌹🌹🌹🌹🌹बेवफ़ाई देख कविता-शायरी उमड़ बरसती है।हर हर्फ-छंद से हुश्न की दीवारें चिनी जाती है।।शायर आशिकी कीशहनाई आदतन बजाया है।'कवि' नेह समेट
ओ' मेरे मेधावी- सात वर्षिय कलाविद्,हुनर के सागर-कला के प्रेमी,विज्ञान के शोधकर्ता,प्यार के मसिहा- निपुण सुक्ष्म विश्लेषक,मर्यादाओं की अनन्त सीमा,अपनी मन पसंद-दुनिया के मालिक,ब्रह्माण्ड के विश्व कोष,विज्ञानं, खगोल, इतिहास,और आप द्वारा प्रदत्त ज्ञान,तुम्हारा मनपसंद रंग
"मौत"मौत तो महज़ एक है वहम,मौत अरअसल नया जनम है।मौत हीं है अगली ज़िंदगी अगली,मौत हीं असली फलसफ़ा है।।मौत हीं खुदा ओ' है क़ुरआन,बाइबल की रोचक पैरेबल्स;ऋचाओं की विहंगम खान है।मौत से हीं है सारा यह ज़हान,मौत हीं मानो- ज़िंदगी की शान है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
"कहानी हमारे देश की"🌺महाराणा प्रताप के नाम,🌺 "इण्डिया रिजर्व बटालियन"ताजमहल अगर प्रेम की कहानी है!चित्तोड़ एक सूरमा की कहानी है!!मुगल चढ़े चित्तोड़ ६०००० सैलानी ले कर!मात न खाए मात्र थे ८००० शत्रुओं से टकरा कर!!चालीस हजार के उपरलाशों का ढ़ेर वीर बिछाया!राणा का वीजय ध्वज "गुंबज" पर ऊंचा लहराया!!व
वसंत ऋतु और प्रथम कोपलनैसर्गिक बीज एक नील गगन से-पहला जब वसुन्धरा पर टपकामाटी की नमी से सिंचित हो वह-ध्रुतगति से निकसा- चमकाप्रकाश की सुक्ष्म उर्जा- उष्णतामाटी से मिला पोषण संचित कर-प्रथम अंकुरण बड़भागी वह पायाअहोभाग्य, पहली कोपल फुटी!लगा खोजने पादप नियंत्रक को--पर वह नहीं कहीं मिल रे पाया--हर पल महस
🏵️ईश्वर की बेटी का आँचल🏵️ईश्वर की बेटी का गुणगान आज हम सब करते हैंउसे हम माँ, बेटी, बहन एवं अर्धांगिनी भी कहते हैंशिव ने किया प्रथम विवाह, यही शास्त्रों में पाते हैंतिरिस्कार-आत्मदाह लख अश्रुप्लावित होते हैंचीर हरण शर्मनाक, भहाभारत कृष्ण रचते हैंमीरा की भक्ति नमन्य है- हम सब भजन उचरते हैंजातिमुक्त
जब चाँद अमावस्या में छुप पटल पार हो जाए।स्वप्नों में हटात् चमक तूं साकार हो छा जाऐ।।पूर्णिमा में तो धुल - मिल 'उच्चाटन' करती हो।दीवा - स्वप्न सम तुम मिल कर भी लगती हो।।नारी का गहन भेद संग लिए तुम चलती हो।।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
प्रतियोगिता हेतु चयनित एवम्पुरुस्कृत रचनाविषय:"ईश्वर की बेटी का आँचल"प्रतियोगिता आयोजक:साहित्यिक मित्र मण्डल,जबलपुर, मध्य प्रदेशफेस बुक एवम् व्हाट्स एप्प (१-८ भाग)चयनकर्ताओं और मण्डलके सुधिजनों को सहृदय साधुवाद्★★★★★★★★★★★★🏵️🏵️ईश्वर की बेटी का आँचल🏵️🏵️ईश्वर की बेटी का गुणगानआज हम करते हैंउसे हीं
भैलेंटाइन परचम्पता नहीं था, आज भैलेंटाइन डे चल कर है आतादिन में याद दिलाते गर तो गिफ्ट-विफ्ट ले आतासाथ बैठ मोटेल में मटर-पनीर-पुलाव खाताउपर से मिष्टी आदतन रस-मलाई चार गटक जाताचल- रात हुई बहुत अब और जगा नहीं जाताभैलेंटाइन की बची-खुची कसर की पूरी कर पाताडॉ. कवि कुमार निर्मल
रोमांस लॉकबंदी मेंघर में महफ़ूज हो,मास्क मत लगाना।कर्फ्यु सड़क पर है,गली-कूचों से गुजर-आज की रात आ जाना।।बुर्का है एक काफी-हुश्न छुपाने के लिए,चिलमन के धुँधरु बजा कर,साँप को रस्सी समझ तुमदिल में उतर बस जाना।।।💕💕💕के. के.💕💕💕
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺*"काव्य सरिता" घर-घर बहती है!**कवि-मन को व्यथित करती है!!**अन्न-जल त्याग "देवी जी" बैठी है!**"दुर्गा" का मानो 'अवतार' हुआ है!!**'क्षत-विक्षत' सारा 'घर-बार' हुआ है!**ठप्प कलह-द्वद्व से व्यापार हुआ है!!**"पाठ-मंचन" से नहीं त्राण मिलना है!**ऋणम् लेवेत-धृतम् पिवेत वरना है!!**कलश स्
जानता हूँ,उड़ नहीं सकते।बेवफ़ा हो,वफ़ाई के किरदार-बन नहीं सकते।।★★★★★★★★"रिश्ता" बनाया है तोन उसे तूं 'तोड़' देना।प्यार किया,नफ़रत की चादरन ओढ़ तूं लेना।।★★के• के•★★
कविमनन-चिंतन, पठन-पाठन में अग्रसारिता गह,बुद्धिजीवी कोई बन पाता है। तुकबंदी, कॉपी-एडिट वा कुछेक लकिरें उकेर,कवि कोई बन नहीं सकता है।। जन्मजात संस्कारों की पोटलीगर्भ से हीं कवि साथ लाता है। मानसिकत: परिपक्व हो मचल-उछल कर अभिव्यक्ति करता है।कवित्व स्वत: स्फुरित-स्फुटित हो,'रचनाकार' निखर उभरता है।। आलो
इश्क का निकल आया चाँदइश्क का निकल आया चाँदडुबो दिया रे! जग को बुहानले डूबा संग सोने की खान'माया द्विप' हो गया परेशानकोरिया छेड़े न दे धमासानपौने तीन लाख! बचालें प्राण'सात्विक' बन, बात यह मानस्वाद त्याग- बचा पहले प्राणइश्क का निकल आया चाँदडूबा दिया रे! जग को बुहानडॉ. कवि कुमार निर्मल
दौलतजो दिया है गैरों को वोही काम आ साथ जाएगा।राजा का बेटा ताज पहन याद नहीं कर पायेगा।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
🌷🌹🔥प्रगति गान🔥🌹🌷आज झूम - झूम प्रगति के गीत गाओअवतरण हुआ प्रभु का,कथा सुनाओप्रथम महासंभूति सदाशिव जब धराधाम पर थे आएमानव समाज में मानवपशुवत् थे छाएतंत्र साधना दे अध्यात्मिकता का परचम विश्व में लहरायाबुद्धिहीन मानव को ज्ञान दिया बुद्धिजीवी- अध्यात्मवादी बनायादानव समस्त धरातल पर छा अत्याचार तब थे
बेटीबेटे से बाप का बटवारायुगों से होता चला आया है!माँ को बाप से विलगा- शपीड़ा तक भी बटवाया है!!उसर कोख का ताना लेकोर्ट का चक्कर मर्द लगता है!कपाल क्रिया कर वहआधे का हक सहज पा जाता है!!बेटी सिंदूर लगवाएक साड़ी में लिपट साथ हो लेती है!माँ-बाप का दु:ख सुनते हींवह दौड़ी चली आती है!!मरने पर वह साथ न हो
👩⚕️👼👮बचपन👮👼👩⚕️काश बचपन में एकबार वापस फिर जा मैं पाता।गुल्ली डंडे का खेल,गगन में ऊँची पतंग उड़ाता।।अल्हड़पन वह बाल सुलभ वाक् पाटुता पुनः पाता।नटखट कृत्यों से अविभावक गणों को खूब छकाता।।पठन-पाठन एवम् क्रिणा में ताल-मेल बैठा मैं पाता।कब्बडी खेल कर धूल-धुसरित हो घर पर था आता।।गृह कार्य में कोताही
बीत गये दिन शांति पाठ के,तुमुल युद्ध के बज उठे नगाड़े।विश्व प्रेम से ओत - प्रोत आजपश्चिम उत्तर से वीर दहाड़े।।विश्व बंधुत्व महालक्ष्य हमारा,नहीं बचे एक भी सर्वहारा।जातिवादिता और आरक्षण हटाओ।यह चक्रव्यूह तोड़ मानवता लाओ।।हर घर तक अन्न पहुचाँ कर हीं,हे मानववादियों! अन्न खाओ।।शांति तो श्मशान में हीं होती
🏵️🏵️🏵️लधुकथा: "माँ"🏵️🏵️🏵️यह एक ममतामयी बेबस माँ कीदर्दनाक लधुकथा का एक अंशमात्र हैमाँ कोई न कोई बहाना खोजती रहती है कि कैसे भी हो, अपना पेट काट कर बच्चे को दो निवाला अधिक खिला दे बस? दो कौर अधिक खाले, एतदर्थ आँचल में छुपा लेती है एक-आध रोटी और-अतिरिक्त फुसला-उसला कर, इधर-उधर बच्चे का ध्यान बंट
सपनेसुहावने सपनों के बाद सुहानी भोर आएगीफिर वहीं शाम आ कर सपने नए सजाएगीकौन जानता है (?) कल दस्तख़ दे उठाएगीदिन में शौहरत पाँव चूम कर गले लगाएगीकर दिया है जब खुद को- हवाले मालिक कोबिधना अपनी जादुगरी क्याकर (?)दिखाएगीडॉ. कवि कुमार निर्मल
कामदं मोक्षदं चैवॐकाराय नमो नमः🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏आज की है यही एक पुकारलबों से चिपकाओ बार- बारजरुरत हो तो लगा कर जाओजो भी शुद्ध मिले घर में खाओधूप में टाँग- रोजाना चमकाओमिस किए तो रुमाल लटकाओचाइनिज-प्लेट है, अभी हटाओ मास्क पहन कर अबकी आओडॉ. कवि कुमार निर्मल
शोषित शुद्र जाग उठा हैपुँजिवाद भाग रहा हैकवि
चीन तूं मरेगा अपनी मरण★★☆★★☆★★☆★★☆★★ खुदा का वज़ूद तुम सरयाम नकारते हो!ज़हर इज़ाद कर सबको तुम मारते हो!!हवस इतनी की पैसा अब उछालते हो!दोज़ख़ की राह पे अपनों को डालते हो!!तुम्हारा मुक़ाम जा तुझे आज पुकारता है!दुनिया का हर इंसान तुझे ललकारता है!!नाम तेरा जेहादियों के साथ मिट जाएगा!हर सख़्स कहर बन तुझे निग
★★★★★उल्फ़त★★★★★क़ायनात के मालिक का वारिस,भिखारी बन छुप अश्क बहाता है।सर्वनिगलु एक अमीरजादा,खोटे सिक्के की बोरी पाता है।।🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵सुना है इश्क 'खास महिने' मेंशिकार कर सवँरता हैं !हुश्न पे एतवार कर,"मुकम्मल" फना होता है!!🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂उड़ता रहा ख्यालों में तेरेउम्मीदों से गुल खिले मेरे💮💮💮💮💮�
💮🌍🌎🌎धरा विचलित🌏🌎🌍💮धरती माँ की पीड़ा- अकथनीय- अतिरेक,दिवनिशि धरती माँ रे! अश्रुपूरित रहती है,मन हुआ क्लांत - म्लान - अतिविक्षिप्त है।व्यथा-वेदना सर्प फणदंश सम- असह्य है।।जागृति की एषणा प्रचण्ड- अति तीव्र है।शंख-प्रत्यंचा सुषुप्त- रणभूमि रिक्त है।।पौरुषत्व व्यस्त स्वप्नलोक में-चिर निंद्रा में
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺मनुष्य के अंदर सब कुछ जाननेवाला जो बैठा है वही है भगवान्।ओत-प्रोत योग से वे हर क्षण हमारे साथ हैं।याने, हम अकेले कदापि नहीं।जब अनंत शक्तिशाली हमारे साथ हैंतो हम असहाय कैसे हो सकते हैं?डर की भावना कभी नहीं रहनी चाहिए--जैसे एक परमाणु है जिसमें एकनाभि है तथा एलेक्ट्रोन्स अपनीधूरि पर
ज़िंदगी के मोड़उचंट खाता बन खोला है सदालकीरें उकेरने का सीख रहा हूँ कायदा💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮💮अश्कों के संग दर्दे दिल बह जाएगा!सुकून फिर भी क्या? कभी मिल पाएगा!!मरहम छुपा उलझा रखा है-गेसुओं में अपने,आहें नज़र-अंदाज़ करने कीआदत बना डाली है!इनकार बनाया जिन्दगी का'आईन'- सवाली है!! प्यार का दस्तूर बेहिसाब,
उँचे सपने बिखर जाते हैं-बालू के टिब्बे की तरह!संतोष के गहने-चमक जाते हैं सोने की तरह!!DrKavi Kumar Nirmal
सावनलद्द-फद्द मदहोश हो-छा गये दिलोदिमाग परखुशियों का सावनलिख दिया बुझते वज़ूद परलुट-लुटा के मुकम्मलजब होश आ झकझोरानासाज़ हुए बेहिसाबकज़ा की बरसात झेलकरडॉ. कवि कुमार निर्मल
यादों का उँचा पहाड़सिमट कर मन में छुपकर रह जाता है।मन अटके मगर मनचुपके से बोझिल होलुप्त हो जाता है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
असली मित्रजिंदगी से मुलाक़ातएक बार गोष्टियों में यह बात हुई।असली मित्र कौन? बहस बेबात हुई।।धमासान चला वर्षों वाक् युद्ध।अंत में निष्कर्ष यही निकला शुद्ध।।मित्रता की सोंचे वो है पगला।हम हैं तो कोई मित्र बने हमारा।।हम न रहे लो श्मशानधाट हमारा।।साँसों के तार का ताना-बाना,जीवन हीं परम मित्र हमारा।।।मुला
🙏कोरोना की विदाई🙏"कोरोना" की कर रहाचीन विदाई!भारत क्योंकर करे उनकी भरपाई?ठप्प हुआ आयात, आगे नाम मत लेनामेरे भाई।कैलाश-मानसरोवर लौटाए, भला करेगा उनका साईं।डॉ. कवि कुमार निर्मल
त्रिभुवनपति कारा में जायोदेवकी की कोख से त्रिभुवनपति कारा में जायोअमावस की रात थी काली सो कृष्ण वो कहलायोगोरो भोत लला म्हारो- कारा में जोत बिखरायोसंकट देख मथुरा में- जमुना पार बासुदेव पहुँचायोनंदलाल गोप यशोदा गोद उठा छाती से चिपकायोपालण म माँ को मुख मांय सकल जग दिखायोगोकुल को नटखट लड्डु गोपाल बहुत
जय हो- अमर सृजन होदग्ध मानवता- रक्षित होअष्टपाश- सट् ऋपु मुर्छित हों''नवचक्र'' आह्वाहन जागृत होंकीर्तित्व उजागर - बर्धित होंशंखनाद् प्रचण्ड, कुण्डल शोभित होंकवि का हृदयांचल अजर - अमर होजय हो! 'वीणा वादनी' की जय हो!! 🙏 डॉ. कवि कुमार निर्मल 🙏
★☆★☆कविता लॉक डाउन☆★☆★नित दिन तन्द्रा है "लॉक डाउन" अति भारीउठ कर हटात् एक कविता लिखने की पारीआज बैठेगा न कोई मुखिया न है कोई पटवारीशांति छाई चहुँदिसी न गहमा-गहमी, मारा-मारीड्युटी अॉन-लाइन हीं है करनी, आजादी हैदेर सबेरे तक सबको जी भर आज सोना हैआज न खोना कुछ, सिर्फ- पाना हीं पाना हैप्यार-मुहब्बत का
"कोरोना कुछ करो ना"कोरोना! कोरोना!! अब और कोई कुछ कहो ना।अलविदा कह मरे, ऐसा कुछ जतन करो ना।।चक्के थमे निजी वाहनों के, अब तो डरो ना।दान दिए एम पी-एम एल ए ने, ₹ गिनो ना।।शिरडी के साईं मंदिर ट्रस्ट ने दिए ५१ करोड़,बाकी भी आगे बढ़ें- खुल कर दान करो ना।हे महामहिम ट्रंप, चीन से बात आज करो ना।।रिक्त
☁️⛈️⛅🌥️ 🌈इंद्र सभा 🌈⛅⛈️☁️🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈🌈इंद्र सभा स्वर्ग की धारणा पर आधारित गल्प है।स्वर्ग - नर्क की धारणा धर्मभीरुता- त्रुटिपूर्ण है।। सुकृतों का पलड़ा जब भारी होता है।कहते उस प्राणि को स्वर्ग मिलता है।।कुकृत किये तो नर्क का भागी बनता है।प्रश्न गूढ़! हर मानव दोनों कर्म करता है।।"तारक ब्रह
"मेरी जिद्द"जिद्द है- मन बनाया है- तुझे पाउँगादिल के एक कोने में छुपा- बिठाउँगागुफ़्तगू में लम्बी रातें- मैं बिताउँगासिकवा-शिकायत रोज सुलझाउँगाखासमखास बन- मयपन मिटाउँगातुझसे आया- तुझमें समा जाउँगाजिद्द है- मन बनाया है- तुझे पाउँगादिल के एक कोने में छुपा- बिठाउँगाडॉ. कवि कुमार निर्मल
शायरीजुगलबंदी : बेइंतिहा•●★☆★□■बेइंतिहा■□★☆★●•१इनकार किया-बेइंतिहा की खाई थी कसमखून से लिखा कई बार- मोहसिन ओ' हमदम२छुप के बैठा दिल में- खंगाल कर जरा तो देखबेइंतिहा इश्क-तम्मना न दबा- इज़हार फेंक३बेइंतिहा प्यार हमारा साथ पचास पारघुल जाती है तुरंत आई बेवज़ह खार४लबों पे तेरे सारा जहाँ सिमटा सदा नज़र आता ह
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩बेटा बचाओ- बेटी बहु बन कहीं जा घर बसाएगी!जो बहु बन आए वह क्या (?) ''बेटी'' बन पाएगी!!सुसंस्कार वरण कर पिया का घर-संसार बसाएगी!उच्च घर में जा कर वह निखरेगी वा सकुचाएगी!!विदा करते तो शुभ कहते पुरोहित् अभिवावक हैं!माँ-बाप का हुनर समेटे, वही बनती बड़भागिन है!!बेटा पास बैठ
खबरदार पाकिस्तानआज एल. ओ. सी. पार ९ आतंकीहिमाकत कर फिर ढ़ेर हुए।इमरान को क्वारेन्टाइन कीजरुरत नहीं- सीमा पारसमय को नज़ाकत भूलउझील दिए।।कोरोना की अंत्येष्टि कर लेंसमझे नहीं पुलवामा-बार-बार पंगा लिए।कब्रें बनालो यार चीन केपाक पर जलेगें हमारे१० लाख दिए।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
🥀🥀🥀🥀गुलाब🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀तेरी हीं अद्भुत रचना मैं हूँ🥀🥀🥀खुशबू फैला कर मुरझा जाता हूँ🥀🥀सिंचित करता वनमाली पर,🥀🥀अनजाने में चुभ पीड़ा पहुँचाता हूँ🥀🥀चाहा मगर, काँटों को छुपा नहीं पाता हूँ🥀🥀🥀🥀डॉ. कवि कुमार निर्मल 🥀🥀🥀
👹कोरोना का कहर👹अनैश्वरवाद औरपूंजिवाद निगलविलुप्त हो जाएगा।तामसिक और राजसिकआहार-विचार- व्यवहारधरा धाम से उठ जाएगा।।ताण्डव नर्तन कीमुद्रा में थिरक रहेशिव के पैरों तलेकुचला रे जाएगा।नैतिकवादी विश्व के होंगे एक"सद् विप्र समाज"स्थापित हो जाएगा।।"विश्व बँधुत्व"कायम होगाजाति-सीमा का पृथकतावादमिट जाएगा।
DrKavi Kumar Nirmal shared a post.Member · 1 hr · Members of ग़ालिबDrKavi Kumar Nirmalचुपके से तुम रोज सुबह,पूरब से उग आते हो!सितारों की जग-मग बारात,साथ लिए आते होकहीं बादलों के पीछे छुप,सारे जहाँ को ललचाते हो!कभी चाँदनी छटा बरसा,धप्-धप्प पूर्णिमा लाते हो!!कभी छाया के पीछे छुप,अमावास की रात दिखाते ह
रावण हर साल जल कर राख से जी उठता हैराम का तरकश खाली हो फिर भरता रहता हैयह राम रावण का युद्ध अनवरत मन में चलता हैखूँटे से बँधा स्वतंत्र हो लक्ष्मी संग विचरण करता हैसुर्य अस्त हो नित्य आभा बिखेर आलोकित करता हैअष्ट-पाश सट्-ऋपुओं के समन हेतु हमें यज्ञ करना हैसाघना-सेवा-त्याग से दग्ध मानवता को त्राण देना
कोरोना ऐसे कई कहरहमने झेले हैं।लौक डाउन कर इसेहम खदेड़े हैं।।सुना-पढ़ा है प्लेग नेलाखों को खाया है।लाल आंख लिएबगंला देश भी छाया है।।जापानी जेएन-यू एस से एचएन आया है।पीएफ हजारों बच्चे-जवानोंको खाया है।।अब हम जब वतन के एक हो गये हैं।कोभिड १९ को सीमाओं पर घेर रहे हैं।।लाइलाज हो मगर क्वारेंटाइन काफी है।
❤❤💚💜💙💛💙❤❤💜💚❤प्रकृति पुरुष से है या फिर नारी से है!पिधला हिमखंड हीं बन जाता 'वारी' है!!पुरुष तैलिय दाहक तरल, नारी दाह्य कोमल बाती है! शक्ति संपात कर ज्योत प्रज्वलित वह करती है!! "अर्धनारीश्वर" की यही अमर गाथ, कहानी है! ऋषियों-देवों की यही सास्वत अमृत वाणी है!!💙💚💛 💜💗💜 💛💚💙ड
••••••••• आशिक •••••••••आंखों से नहीं दिल में डूबमदहोश होता है आशिकचाहत लुटा के किरदारबन पाता है आशिक•••••••••••••••••••••हाल यह है अपनाउकेर लेता हूं रकीरें मगरमहफ़ूज रख नहीं पातादर्द बन रिस रहा नासूरअश्क बहाता रहाजार -जार हो करअश्क देख कर मगरमैं पोंछ हूं सदा पाता•••••••के. के.•••••••
"हमारा संबंध", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :https://hindi.pratilipi.com/story/srpcyca7uvmf?utm_source=android&utm_campaign=content_shareभारतीय भाषाओमें अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और सुनें, बिलकुल निःशुल्क!
"कवि"कविता कवि का परिचय हैकविता मन का आह्लाद,मंथन, संशय और पीड़ा हैकविता जग की गाथा हैकवि के मन में जो भी आता हैउकेरी लकीरों में- बह जाता हैसंचित अपना सब कुछ दे कर भीरिक्त होता नहीं, समृद्ध रह जाता हैआसु कवि करता सुधिजनों को तुष्टमित्रों का अंतरंग सहज बन जाता हैसाहित्यकारिता में प्रवीण- निष्णातसर
"साहिल"साहिल बहुत है दूरकिश्ती डगमगा रही हैबालू का आशियाना,हवा धमका रही हैडॉ. कवि कुमार निर्मल
🐾🐾🐾🐾🐾🐾🐾ज़िंदगी की अधुरी किताब,अश्कों की अज़िबोगरीब दॉस्ता है!🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵मानो न मानो दोस्त,ये मुकम्मल बेज़ुवाँ है!!🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺उल्फ़त का यह है जनाजा,बेवफ़ाई इसका इन्तिहॉ है!🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄सिद्दतों का असर यक़िनन,फ़रिस्तों पे हीं मेहरवॉ है!!🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼खुदगर्ज- जाहील इन्सान पे,होती नहीं
ब्रह्म पूर्ण है!यह जगत् भी पूर्ण है,पूर्ण जगत् की उत्पत्तिपूर्ण ब्रह्म से हुई है!पूर्ण ब्रह्म सेपूर्ण जगत् कीउत्पत्ति होने पर भीब्रह्म की पूर्णता मेंकोई न्यूनता नहींआती!वह शेष रूप में भीपूर्ण ही रहता है,यही सनातन सत्य है!जो तत्व सदा, सर्वदा,निर्लेप, निरंजन,निर्विकार और सदैवस्वरूप में स्थित रहताहै उस
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏माँ तो सबकी एक जैसी हीं होती है।दोनों हाथों से सदा- देती रहती है॥🌻🌷🌻🌷🌻🌻🌷🌻🌷🌻खून-पसीना-दूध-हुनर-संचित देती सारा।कहती रहती है मेरा बच्चा- प्यारा दुलारा॥🌹 🌹🌹 🌹🌹🌹 🌹🌹 🌹माँ तो ममता की साक्षात मूरत होती है।भ्रूण का १०माह सिंचन- जीवन देती है॥🌸 🌸🌸🌸🌸🌸🌸 🌸बच्चे को माँ,
गुरूर जिश्म ओ' हुनर का बेकार हो जाएगा।झुर्रियों से टपकता इश्क हीं---- रंग लाएगा।।निर्मल
🙏🙏🙏माँ!🙏🙏🙏माँ! मुझे अकेला छोड़ करकभी चली तुम नहीं जाना!नहीं चलेगा तेरा कोई सुनलो,मनघढ़ा कोई भी बहाना!!माँ ने कहा, "मैं हूँ ना,निश्चिन्त हो के सो तूं जा ना"बत्ती बुझी हटात्, बिजली जाने से,हर ओर घुप्प अँधेरा छाया!बोझिल थी आँखे,पलक झपकते नींद में खोया!!हठात् नींद में कान में जैसेकिसी ने कुछ कह जगाय
'कलाकृतिश्रष्टाओं' को नमन् है।''प्रतिमा'' का 'विसर्जन गलत है।।सगुण साधना का प्रथम चरण है।ईश्वरत्व हेतु "अंत: यात्रा" तंत्र है।।🙏 डॉ. कवि कुमार निर्मल 🙏
🌺🌹 🌼🌻🌻🌼 🌹🌺चलिए हम दो काफी हैं आग लगाने के लिए।कुछ अपना, कुछ औरों का दर्द बताने के लिए।।🎶 🎶🎶🎶🎶🎶🎶🎶अगन जब लगी, कह दिया, समन्दर में जा नहा लो।बात जब चली, कहा हमें अपने करीब तो बुलालो।।〽 〽 〽 〽〽 〽 〽करीबी बन कर, रक़ीब क्यूँ (?) बन गए!दूर थे वो मगर, हबीब अजीज बन गए!!🎸 🎸🎸🎸 🎸🎸 🎸नशा जब
कृष्णमहाभारत का पार्थ-सारथी नहीं,हमें तो ब्रज का कृष्ण चाहिए।राधा भाव से आह्लादित मित्रों का,साथ, चिर-परिचित लय-धुन-ताल चाहिए।।प्रेम की डोर तन कर,टूटी नहीं है कभी।अंत युद्ध का,हमें दीर्ध विश्राम चाहिए।।।प्रेम सरिता में आप्लावन,अतिरेक प्यार चाहिए।दानवों का अट्टाहस नहीं
💐💐💐आह्वान💐💐💐मैं सबका आह्वान करता हूँ,सभी मेरे प्राणों के प्राण हैं।सभों के संग मिल - जुल कर,आलोक स्नान का मैंने मन बनाया है।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐कोई भी पीछे न छुटने पाये।समाज में कोई भी नीच नहीं।सभी एक हीं तरंग में समाहृत हो,जीवन का गीत गाते रहें।💐💐💐💐💐💐मानव - मानव के बीच,कोई भेद - भाव न र
धनवंतरी आयुर्वेदाचार्य मृत्युंजीवि औषधि आजीवन बाँटे।आज हम भौतिकता मे लिपट24 कैरेट का खालिस सोना चाटें।।मृत्युदेव तन की हर कोषिका-उतक में शांत छुपा सोया है।मन जीर्ण तन से ऊब कर देखोनूतन भ्रूण खोज रहा है।।लक्ष्मी अँधेरी रात्रि देख आदीपकों की माला सजवाती है।गरीब के झोपड़ में चुल्हे मेंलकड़ी भी नहीं जल प
★★★★★देवाधिदेव ★★★★★"परम पुरुष" के बाहर कुछ भी नहीं।वे हीं देव हैं जो ब्रह्माण्डीय कार्यकीके कारण हैं। ब्रह्म रंध्र वा विश्व नाभिसे उत्सर्जित अभिव्यक्त महापँचभूत तरंगें हीं देवता हैं जो देव स्वरूपपरम पुरुष की सृष्टि नियंत्रित करते हैं।यहीं महाशक्ति ब्रह्माण्ड के अनवरतताण्डव का कारण है जिसक
वसंत ऋतु का यह धराधाम भारत भूखण्ड स्वागत् करता हैशिव भार्या प्रीये गंगा जटा से बह निकली- सारा जग कहता हैझरनों की वक्र धारा बन इठला कर गंगा चलती हैंपठारों पर दुस्तर पथ गह लम्बी यात्रा करती हैगंगा-सागर से मिल कपिल मुनि आश्रम तक जाती हैउत्तरांचल से चल पश्चिम तक भूमि सिं
सिप्पी में मोतीकुछ भी समझोबँधु प्रिय मेरे,गीत त्राहिमाम्!कह गुनगुनाता हूँ।सिप्पी के मोती बटोर सारे- सागर से,आलोकित पथ पर चलता जाता हूँ।।धरा-धाम पर आतंकी कोरोना है फैल रहा,मास्क लगा, ग्लब्स पहन हीं कहीं भी मैं जाता हूँ।घोर तमसा फैल रही है चहुदिशी इस धरातल पर,सात्विकता का आह्वान कर- मृदंग बजाता हूँ।।
"कवि हताश"अजीब बात है!हैरतअंगेज माहौल है!!सांसत आई विकराल, अजीबोगरीब हालात है!!!जब भयंकर दमघोंटू प्रदुषण था!ठेलमठेल- उमस भरी- दम घुटता था!!खुले में दुषित वायु फेफड़ों को भरता था!आज जब अजुबा भाइरस आया!सड़कों पर हटात् सन्नाटा छाया!!दिल्ली महानगर तक सुधर सँवर गया!आज सभी छुटभइये- युवा व वृद्ध घर में द
दुनिया का जादुगरविश्व लीला एवम् विश्व मेलातुम्हारी हीं अद्भुत रचना है।तुम्हारे दर पर इबादतखुद पर जादुगरीहर आदमी करता है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
"छल कपट प्रपंच की दलहीज""जीवन का जटिल समीकरण"आज हल करने कामन मैंने बनाया है!माँ की कोख के ९ महिनों का,मोटा-मोटी हिसाब लगाया है!!जन्म के समय की चिल्लाहट,पॉटी- सुसू की यादें- मजा बहुत आया है!माँ की गोद जाते हीं चुप होने का,होठों पे स्वाद ताजा हो आया है!!बहुत खुश हुआ जब पहली बार,सहारा दे कर माँ ने चलाय
रद्दी बही और अखबारों को कूट - काटबनी लुगदी से चमक- उभर मैं आता हूँचाहने वालों के रंग में सहज मैं जाता हूँ'उकेरी लकिरों' से कवियों का मन पढ़ पाता हूँशास्त्र कहें या किताब, पुस्तकालयों में सज जाता हूँ'भोज पत्र' अब दुर्लभ, मैं हीं सबका मन बहलाता हूँनित नई कहानी- 'इतिहास' के पन्नों से जुट जाता हूँरद्दी
🌸🌸हुश्न ओ' सबाब🌸🌸प्रोफाइल फोटो हर शाम तुम, बदलते रहना!दिल की बात कह अगन समेटते हीं रहना!!चिलमन की क्या? औकात, हुश्न छुपा सके,दिल की लबों पे बिखेर,इकरार तुम करना!प्यार रहा अब तलक,बस प्यार करते रहना!!🌹🌹🌹🏵️🏵️🌹🌹🌹🌺डॉ. कवि कुमार निर्मल🌺
🌵🌵🌵🌵🌵🌵🌵कभी पतझड़ के थपेड़ों से,मुरझा, झुक तुम जाते हो!🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿कभी वसंत की हवाओं से,मिल-जुल के मुस्कुराते हो!!🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🌞🌝🌞🌝🌞🌝🌝🌞सूरज की तपिश सह कर भी,फल-फूल डाल के लहराते हो!🌸🌷🌹🌻🌺🌻🌹🌸सावन-भादो की बौछारों से,झूम-झूम तुम इतराते हो!!⛅⚡☁☔☁⚡⛅सर्दियों के दस्तक के पहले
❓❓नारी प्रतारण❓❓दूध का कर्ज चुकाने वालों कोइतिहास के पन्नों में लिखा देखा हैपित्रिभक्त दैत्यगुरु परशुराम को- 'मातृहंता' होते भी देखा हैभुमिगत् होती सीता कोमर्यादा पुरुषोत्तम तक ने देखा हैभयाक्रांत बहन सुभद्रा पाषाण बनी, सहोदरा-मेला भी देखा हैभारत माँ की बेटियों को देश हेतु विधवा बनते युगों से देखा ह
नर नारायण बन स्वामि बन अगराता है।नारी कामायनी बन, अश्रु धार बहाती है।।🏵️ 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️ 🏵️भ्रुण काल माना विस्मृत कर क्षमा - पात्र है।शिशु स्तन पान कर नवजीवन हीं पाता है।।तरुण गोद से उछल - कूद दौड़ लगाता है।युवा नार सौंदर्य में अपने स्वप्न सजाता है।।
🍁🍁।।दर्प।।🍁🍁आँखों के आगे अँधेराकिस पल कब छा जाएकुछ अपना कोई कहे पर सुन कुछ नहीं पाएहाथ पैर एवम् इंद्रियां कबअवसान- लोथ बन जाएस्मृतियों का ग्रंथागारपतंग बन भांतिउड़ गगन पार जाएअर्जित सिद्धियाँ हटात्निरस्त हो शक्तिहीन करउदास बनाएआज है सम्राट तो कहींकल भिक्षाटन् परनिकल न जाएदर्प कहाँ से आया जिवन में
जिन्दगी की हर घड़ी है वारन्टी मय।कभी जय होती तो कभी होती छय।।आगे ससरती हीं यह जाती है।सुर-ताल सब बदल जाते हैं।।ठोकरो की पुरजोर ताक़त से,तजुर्बा बढ़ता, निखर जाते हैं।खिलखिलाहट से कहकशे की,राह पे सब बढ़ते चले जाते हैं।।मयपन है कि झुर्रियाँ गि
.💞 💞💞रात्रि गायन💞 💞💞विरह के अगन अब बुझ नहींपाएगी।नींद उड़ किसी विराने में खोजाएगीअश्रुधारा बहाकर कहीँ और ले जाएगी।बिसरे स्वप्न की याद प्रतिपल दिलाएगी॥चुभती सेज का दर्द, वह सह नहीं पाएगी।विरह के गीत हर शाम वह गुनगुनाएगी॥याद तेरी जब-तब आकर बहुत सताएगी।अँधेरों में सुगंध उनकी जब-तब आएगी॥हृद-गति
📱 📱📱📱📱 #मोबाइल_एरा 📱📱📱📱 📱मोबाइल ने घर - घर में धनधोर "संग्राम" छेड़ रखा है।नवजात शिशु उफ़! मोबाइल की ओर अरे! लपका है।।रिश्ते सिमट कर सारे एन्ड्राइड से चिपक गुम हुए हैं।आस - पास बैठे हैं मगर, "मिनी केक" सेंड किए हैं।।पति - पत्नी को गुड - नाइट कर शाम ढ़ले सुलाता है।हूर कि परियों से इस्टाग्रा
ठहरे मन के आँसूमन चंचल,आलोढ़ित चितवन,मन तो आखिर है मन-डोलेगामन आह्लादित-मन अश्रुप्लावितएक को ठहरा कर हीं-कुछ बोलेगाप्रसव-पीड़ा के आँसूजन्म के आँसू सुख के आँसूदुख के आँसूप्रतारणा पठन-पाठन के आँसूधुयें के आँसूंप्रेम के आँसूभक्ति के आँसूआसक्ति के आँसूविरक्ति के आँसूमरण के आँसूमन ठहर सकता नहींब
"ऋषि दधीचि" सम बन तुम देवों को तारो"चरैवेति-चरैवेति" का अमोध "मंत्र" उचारो"पूर्ण समर्पण" कर सर्वस्व अराध्य पर वारोबन जाओ तुम श्री कृष्ण सम--प्यारो-न्यारो"नीलकण्ठ" सम बन कर पीयो हलहल सारो**************************"देती रहती है नदी--मीठा जल होता हैलेता रहता ह
'गजल' नहीं,महज़ ये अश्कों की बौछार है!दाद से हमको रहानहीं कभी सरोकार है!!हमदर्द बनने का हुनरतनिक भी पाया नहीं,दिल में जल-जला-मुक़म्मल जार- जार है!'गजल' नहीं ये महजअश्कों की बौछार है!!💕💕💕💕गज़ल💕💕💕💕हम तो सागर से गोमुख★ के राहीधार को पलट कर- हम बहे रहे हैंशायरी का ही दमख़म है - जिसनेबोल बोले हैं अन
"कोरोना महामाया"कोई बोला- आर. एन. ए. युक्त भाइरस यह कोभिड- 19 हैकोई डी. एन. ए. भाइरस कह-लैब अनेक चमका दियाअभी प्रोटीन का तो कभीलाइपिड आवरण पहना दियाकभी बिषाक्त कणवसा आवृत कह कर भरमा दियाभाइरस को बैक्टेरिया कहा-डब्ल्यू. एच. ओ. गरमा गयाकल्चर न कर पाया मगरजाँच से पोजिटिभ बतला दियादवा नहीं उपलब्ध परन्त
सब्बा खैर से शाम तक की सफरआज निंदिया आवे ना आवे,सब्बा खैर का तो बनता है।सुबह के सपने सच हों,मालिक से यह बंदा,इल्तिज़ा किया करता है।।भोर का सपना टुटते के संगचाय का प्याला सजता है।हो, न हो फर्माइश उनकी,शाम को तोहफा बनता है।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
💐💐💐💐💐💐💐💐💐कोई है आगे, कोई चल रहा पीछेआओ सूखे पौधों को हम सींचेसोए खाट पर आँख दोनों मींचेकाव्य चक्र को तनिक तो खींचे💐💐💐💐💐💐💐💐दो दाना मात्र चने का खा कर,करे वह शुक्र को संतोषि माँ व्रत।सात समन्दर पार जा बस गए,लिखा नहीं आया एक भी पत्र।।🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇🎇दीये और बाती अँधेरी रात जगमगाना
मोहब्बत
🌲🌳🌴🌾🌾🌴🌳🌲🌲विश्व पर्यावरणदिवस🌲🌲🌳🌴🌾🌾🌴🌳🌲हिमगिरि से झर-झर्र बह झरना नद-ताल-तिलैया का आप्लावन करता है।बसुंधरा पर सर्वत्र हरितिमा फैला महासागर में अन्ततः नीर मिल जाता है।।शितल जल छारीय बन कर भी भास्कर की असह्य उष्णता झेल जाता है।वाष्पित - धनीभूत हो काले बादल बन उमड़-धुमड़ कर छा जाते हैं।
🕉️🕉️🕉️🐚🐚सृष्टि-रहस्य🐚🐚🕉️🕉️🕉️‘महाशुन्य’ ‘ब्रह्म-एषणा’ की छद्म अभिव्यक्ति!"व्यष्टि" में लुप्त हुई समस्त- अव्यक्त "समष्टि"!!धूम्र-वर्ण निहारिका, अपार व्योम दृष्टव्य सारा!चकाचौंध तारे, हटात् उभरा अशुभ पुच्छ्ल तारा!!धूम्रकेतु- सप्त-ॠषि- मनोहर निहारिकायेंअतुल सृष्टि का मनमोहक अद्भुत भण्डारण!स
⚔️🏹⚔️🏹⚔️🏹⚔️🏹⚔️कुरुक्षेत्र में एक मेधावी तरुण अश्व पर आयामहाभारत के प्रथम दिवस का छाया सायाबालक वह भीम- हिडम्बा पुत्र,धटोत्कच पुत्र थाबरबरिक बालक की परिक्षा लेना पुर्वनिश्चित थावृक्ष तले खड़े हो कर कृष्ण बालक से बोलेबाण से वृक्ष के पत्ते बींधदो योद्धा हम बोलेंछलिया कृष्ण टूटे पत्ते को पैरों तले द
भगुआ वस्त्र धारण कर साधु नहीं बन कोई सकता। जीव को प्रिय है प्राण, हंता नहीं साधु बन सकताअहिंसा का पाठ तामसिक वस्त्रधारी पढ़ा नहीं सकता।सात्विक बन कर हीं कोई सच्चा साधु बन भगुआ धारण कर सकता।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
🔥🔥 बेबात जलन 🔥🔥ब्याह किये मुझसे,माँ-बाप के संग बैठ समय-जाया करते हो!माना आँचल पाया माँ का,मुझको अवहेलित तुम करते हो!!पिता ने पढ़ा-लिखा जॉब दिलाया,माँ को सैलरी भी देते हो!मेरी भी कुछ हैं जरुरते,मायके भी जाने नहीं मुझे देते हो!!माँ ने खीर जली बना लाई,चाट कर- कटोरी साफ करते हो!मैंने रोटी चुपड़ दाल सं
भगवान् "प्रेम" का हीं दुजा नाम है।न वो मूरत में या फिर मकान में है।।उसे चाहते हो बँधु गर तुम पाना,प्रेम का रास्ता बहुत हीं आसान है।अंतरजगत में तीर्थाटन जो करता,वही साघक सिद्ध और महान है।।🙏 🙏 🙏निर्मल🙏 🙏 🙏🙏👣ह👣रि👣प👣द👣🙏
लधुकथा लिखने बैठा पर विहंगम विषय एक मन में आ गहराया।सोचा कुछ हल्का- फुल्का लिख डालूँ,पर हटात् गहन विचार मन में आया।।🤔 🤔🤔🤔🤔🤔🤔 🤔"मन हीं कर्म का कारण है"-मन की चर्चा करते हैं।मन की गति की शुभफलाफलकारी दिशा वरते हैं।। 🏵️मन का स्वभाव और गति🏵️मृत्यु के समय जब तीनों वायु तन से निकलती हैं तब मन सं
दौलतजो दिया है गैरों को वोही काम आ साथ जाएगा।राजा का बेटा ताज पहन याद नहीं कर पायेगा।।डॉ. कवि कुमार निर्मल
💮💮💮धरा विचलित💮💮💮धरती माँ की पीड़ा-अकथनीय- अतिरेक,दिवनिशि धरती माँ रे! अश्रुपूरित है,मन क्लांत म्लान- अतिविक्षिप्त है।व्यथा-वेदना फण दंश सम-असह्य है।।जागृति की एषणा प्रचण्ड,अति तीव्र है।शंख-प्रत्यंचा सुषुप्त-रणभूमि रिक्त है।।पौरुषत्व व्यस्त स्वप्नलोक में-चिर निंद्रा में मानो लिप्त है।नारी में द
मेरा न्यारा देश है ये भारतदीप जले घर-घर, हर आँगनरंग-बिरंगी सजी रंगोली द्वारों परप्रिये का श्रृंगार देख, इठलाये साजनविजय-ध्वजा फहरे हर चौबारेवीरों का ये देश राष्ट्र की सीमा संवारेपाई हर बच्चे ने आज महारथदेश-प्रेम से बड़ा न कोई स्वारथजग-मग करता मेरा प्यारा भारतस्वरचित ©®★★★★★★★★★★★★★★प्रेरणात्मक सृजन
💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓कृष्ण💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓महाभारत का पार्थ-सारथी नहीं,हमें तो ब्रजभूमि का कृष्ण चाहिए।राधा भाव से आवेशित-आह्लादित अंतरंग मित्रों का-सुखद चिरकालीन साथ,चिर- परिचित लोकप्रियलय, धुन और ताल चाहिए।।प्रेम की डोर तन कर,टूटी नहीं है आजतक कभी।अतिशिध्र अंत युद्ध का,हमें दीर्ध विश्राम चाहिए।।
💐💐 "एतवार पर एतबार" 💐💐 समेट पलकों को रखूँ कहाँ? पलकों को कैद तुमने जो कर रखा है। खुला है सदा- दरवाज़ा दिल का,दिल में एक कोना महफूज़ तेरा रखा है।।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐काश हमें बाजू से--हर गुज़रने वालों की--अनसुनी धड़कनों का--जरा भी अहसास होता।दुजों के लबों पे--आए मुस्कान बस--ये हमारा मुक
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳जय भारत 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 देवाधिदेव का कैलाश मानसरोवरभी खो कर भी हम चुप बैठे थे।शांति प्रतीक कबुतर उड़ाया बहुत,आशान्वित हो हम बैठे थे।।बाजू के सागर में जंगी पोत उतारअपना रंग सबको दिखलाया।पड़ोसी नेपाल को तोड़ मनमानानक्
शायरीशायरी लिखूं क्या?शरहदें जब मजबूर हैं!फासला एक आता है मुझे-सबका मालिक एक है!!डॉ. कवि कुमार निर्मलके. के.
नकल नहीं अक़ल''हैप्पी फादर्स डे"💕💕🙏💕💕भारतीय संस्कृतिके गाल पर रपटमहज़ यह कम्युनिटीसाइट्स परमचा हंगामा है।स्टेटस लगाना मतलब पिता कीइज्जत नहीं बढ़ना है।।१ का दिन हो-हल्ला मचाबाकी दिन गटक जाना है।।।पिता कोई घटना नही है किएक दिन हीं वह पूजा जाए।बाकी ३६५दिन उसका तिरिस्कार कर अवहेलित रखा जाए।।"वृद्धा
यह मयपन तुझको रे ले डूबेगादर्प का बोझ क्या तूं सह लेगाअपने तक सिमित रख अपना मन,निज सुख खातिर हीं सदा बोलेगासम्राट बन के भी कटोरा लिए डोलेगापरहित कर, बैताल बन क्या कर लेगाडॉ. कवि कुमार निर्मल
🌺सच्ची कहानी मन की🌺नानी- दादी- माँ की कहानी सुन कर हीं,नींद कभी आती थीसपनों में कहानी हुबहू फिर आ कर हिया बहलाती थीपाठशाला के मेरे पण्डित जी मनहर-कहानी सुनाते थेविद्यालय के शिक्षक कहानी की अलग घंटी लगाते थेमाँ जब व्रत करती तो बैठा पौराणिक-कथा सुनाती थीपुस्तकालयों से बहना कहानी की पुस्तकें हीं लाती
होली का अर्थ हुआ बँधुओं, हम भगवान् के होलिएतन-मन-धन-समय-सांस-संकल्प भगवान् के लिएभगवान् की ही अहेतुकी कृपा के फलस्वरुप हम हुएविगत बातों को कहते हम सब- "होली" सो होलीशंकर के भक्त भ्रमित हो गटक रहे रे भंग की गोलीपवित्रता को फिरंगियों ने भी सहृदय कहा सदा होलीये तीनों अर्थ हम सब के लिए श
कागज की नाव⛵⛵⛵⛵⛵⛵बाल गीत लिखते लिखतेजागतिक् विचारों में बह चलाबाल सुलभ जीवन मेरासमयान्तर- छिटक दूर हो चला★★★★★★★★★★★★★★🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂🍂जो सोचा था, वह पा न सकाजो खोया था, न वापस ला सकातुम्हारी यादों को समेटे खुद को बहला न सका🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷टच से काम चलता है,श्याही पोतना क्याअँगुली की पोर परउझलती ह
युद्ध देव दानव का युगों से चलता आया है"कुरुक्षेत्र" बार - बार रक्तिम होता आया हैसंधर्ष यह "मन" का है, ग्रंथों में बाँचा जाता हैमृत्यु काल में मन में वही भाव समक्ष आता हैमन खोज अनुकूल देह भ्रूण में समा जाता हैसंस्कार क्षय कर पूर्ण- दिव्यात्मा कहलाता हैनाशवान इह जगत् से मुक्त हो 'मोक्ष' पाता हैराम
चीन तूं मरेगा अपनी मरण★★☆★★☆★★☆★★☆★★ खुदा का वज़ूद तुम सरयाम नकारते हो!ज़हर इज़ाद कर सबको तुम मारते हो!!हवस इतनी की पैसा अब उछालते हो!दोज़ख़ की राह पे अपनों को डालते हो!!तुम्हारा मुक़ाम जा तुझे आज पुकारता है!दुनिया का हर इंसान तुझे ललकारता है!!नाम तेरा जेहादियों के साथ मिट जाएगा!हर सख़्स कहर बन तुझे निग
आज का हालआमरण हड़ताल, मांगों की बौछारनिर्जला व्रतों का गगनचुंबी पहाड़वृद्धों का अनादर एवम् तिरस्कारउदारता से नहीं है तनिक सरोकारबंद कमरे से चलती रही आज की सरकारईर्श्या-द्वेष-ध्रिणा मात्र- नहीं तनिक रे प्याररिस्तों का झूठला कर, गैरों से पनपा प्यारपरिवार यत्र-तत्र टूट
📖 कहानी कागज की 📖📰📰📰📰📰📰📰📰रद्दी बही - मैगजीन - अखबारों को कूट - काटबनी 'लुगदी' से चमक- दमक उभर मैं आता हूँचाहने वालों के रंग में सहज हीं रंग जाता हूँ'उकेरी लकिरों' से कवियों का मन पढ़ पाता हूँशास्त्र कहें या पुस्तक,पुस्तकालयों में सज जाता हूँ'भोज पत्र' अब दुर्लभ,मैं हीं सबका मन बहलाता हूँन
धर्म युद्ध
शिवत्वचित्त कभी शुष्क नहीं होशिवत्व हेतु उद्यत सब होआप्लावन हेतु जल नहींपूर्ण समर्पण भाव प्रचण्डशिव जल तत्व- चंद्रधारी-जल-दुग्ध एवं विल्वपत्र नहींनवचक्रों का जागरण चाहिएछाले नहीं पड़े पैरों में भक्त के,तर्पण, अर्पण एवं भाव समर्पणप्रसन्न हों शिव, मन उनका दर्पणनहीं अन्य कोई वरदान चाहिए☆डॉ. कवि कुमार नि
🙏लधु कथा कागज की "काव्यात्मक"🙏रद्दी बही और अखबारों को कूट -काटबनी लुगदी से चमक- उभर मैं आता हूँचाहने वालों के रंग में सहज मैं रंग जाता हूँ'उकेरी लकिरों' से कवियों का मन पढ़ पाता हूँशास्त्र कहें या किताब, पुस्तकालयों में सज जाता हूँ'भोज पत्र' अब दुर्लभ, मैं हीं सबका म
💦 💦💦 💦 💦💦 💦दर्द तेरा सारा, काश मैं पी पाता!अश्कों को तेरे पोछ मैं जी पाता!!ताजिंदगी निभाने का वायदा किया है,जहाँ की सारी खुशियाँ तुझे मैं दे पाता!तेरी हर चाहतों पे दिल कुरवाँ हो जाता!!🐾 🐾🐾 🐾 🐾 🐾🐾 🐾🐾 शराबोर है मेरा मन!छायें हैं मेध सधन!!तिश्नगी बेहिसाब- बेताब हूँ,शराबोर हो पिधल जा
DOGMA NO MORE MOREपरंपरा अंधविश्वास का पुष्ट कारण भी हो सकता है।मेरे पुर्वजों ने चुंकि ऐसा किया,अतयेव मुझे भी करना चाहिए---गलत है।उस समय की अवस्था क्या 【?】 थी,यह उनके सामयिक सिस्टम के अनुकूलऐसा कुछ हो रहा होगा, परन्तु आज वहगलत भी हो सकता है, गलत है सरासर- समय के प्रतिकूल।"सती प्रथा" कभी धर्मिक मान्य
☁🌧️☁🌧️⛈️🌧️☁️⛈️☁️☆☆☆★12/07/202★☆☆☆🌧️सावन आएगा झूम के🌨️🌧️⛈️ सावन झूम के आया ⛈️🌧️⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡⚡भादो भी मन की तिश्नगी मिटाएगा।नयन मटक्का करती चपला बाला काझूला ऊँची-ऊँची पेंगें अब लगाएगा।।युवाओं का चंचल मन यहाँ- वहाँ लखजाल फेंक डोर खींच पास ले आएगा।बरसाने का कान्हा प्यारा हर बार कुँज-गलियन में रास र
👿👹👿👹👿👹👿👹👿👹👿कोरोना! कोरोना!! कोरोना!!!उचर करत्राहिमाम् - त्राहिमाम् सब चिल्लाते हो!फैल रही चहुंदिश तामसिकता कोतौल नहीं तुम रे मानव पाते हो!!कार्निभोरस नहीं तन से पर-भक्षण कर विष उगल रहे हो!समय अभी भी है बाकि,चेत सात्विकता नहीं गह पाते हो!!डॉ. कवि कुमार निर्मल
आरोहण- अवरोहण अति दूभर,जल-थल-नभ है ओत-प्रोत,समय की यह विहंगम,दहकती ज्वाला हैअंध- कूप सेखींचनिकालोहे प्रभु शीध्र,अकिंचन मित्र आया है!कृष्ण! तेरा बालसखा आया हैधटा-टोप अंधेरा, सन्नाटा छाया हैअन्धकार चहुदिस, मन में तम् छाया हैगोधुली बेला की रुन- झुन रुन- झुन,मनोहर रंगोली, दीपों की माला हैदीर्ध रात्रि का
"प्याज में लगी आग"सात्विक हो आहारतनिक लो फलाहारठप भले हो व्यापारसुस्वागत् है सरकारसफैद या काली टोपीसरकार होती है मोटीतामसिकों की किस्मत खोटीराजसिक भी खाए दाल रोटीदो रुपये चावल किलोएक रुपया आंटा जीलोआलु राजा- "सदाबहार"थूको प्याज नहीं आहारऋषियों से करलो प्यारभगवान् खड़ा तेरे द्वारडॉ. कवि कुमार नि
💐💐💐★गज़ल★💐💐💐🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥🍥गज़लों में हदें पार होती हैंदिलदारों की खातिर--अगाज़ होती हैंआवाम की नहीं,मोहताज होती हैशर्म की आवाज--दुश्वार होती हैअनकही दास्तॉ--चिलमन के पार होती हैशरगोशी को गुनाह--करार जो देते हैवे ताज़िंदगी पल्लू--पकड़ के रोते हैंसरहदों की बात--
🎊 🎊🎊🎊🎊 🎊कृत्रिम मायानगरी कीचकाचौंध की बातों मेंना अब और उलझाओ।सात्विक बन, सत् - पथ परमिल संग चलें, बँधु आओ।।सार्थकता जीवन की,'जन सेवा' में बिताना।भर पेट खुद दो जून खाना,बाकी सब बाँट खिलाना।।संचयधन!!!!!!!!!!!!!!!संग देह नहीं ले जा पाएगा।''साधना - सेवा - त्याग'' सेहे मानव! महान बन पाएगा।।
💐💐"जिंदगी से मुलाक़ात"💐💐मुलाकात जिंदगी से पहली बार हुई,न हुआ अहसास, न वैसा दिमाग था।दुसरी मुलाकात हुई राह चलते,दर्दों का न कोई पारावार था।।मुलाकात होती रही बार-बार,मिलना हआ बेहद आसान,कुछ बहाना- करना कॉल था।अपने - पराये का मन में--न कभी आया ख्याल था।।कभी भूख खातीर था हंगामा,पर प्यारा सा माँ का हाथ
💦💦💦💦💦आँसू प्यार केआँसू दर्द केआँसू खुशी केआँसू नेह केआँसू खून केआँसू हीं.जिन्दगानी हैआँसुओं के संग.पैदा हुए,आँसुओं का तोहफ़ा दे जाना हैअश्क महफ़ूज रख भला होगा क्या?बह जाने दो सारे, पी कर करोगे क्या?इनको देख अपनो काकाफ़िला संग चल रहा है!बेनाम ज़िन्दगी के आंसू पी केअकेला अनजान सफर परइंसान सँवर
कोरोना में रक्षाबंधन का स्वरूपकोरोनाकाल में रक्षाबंधन का स्वरूप-चिपका होठों से हलाहल का प्याला हैलुप्त हो रहा आतंकि कोरोना समित हो,पर जाते जाते स्वरूप बदल डाला हैएकलौता भाई- अटका उदास सात समुन्दर पार-आंसुओं में सारा जग डूबा हैरक्षाबंधन आ हर्षाया हर बार--भाई-बहन का मिलन होता सबसे प्यारा हैजय हो! जय
सुकूनमशगूल थे बियाबानों में,कभी धुँध,कभी दोस्तों केआशियानों में!झंझावात् तोकभी तूफ़ानों में!!सकून मिला है तोसिर्फ तेरीहंसी ओ' मुस्कानों में!!!डॉ. कवि कुमार निर्मल
🥀🥀कहानी एक फूल की🥀🥀🌳🌳🌷🌺🌺🌺🌷🌳🌳कहानी फूल की तुझे आज सुनाता हूँमत जाना कहीं-आद्योपांत सुनाता हूँऊँचे दरख़्त झूम- झूम कर ताज़िन्दगी,छाँव-बतास ओ' गुल- फल लुटाते हैं!वख्त की मार कहूँ या तूफानों से धिर,गीर-पड़ उखड़ निर्जीव हो जाते हैं!!डालें टुंग-टुंग कर मानव दो शाम,असंख्य चुल्हें जल-जठराग्नि
तेरी हीं अद्भुत रचना मैं हूँखुशबू फैला कर मुरझा जाता हूँसिंचित करते वन माली को भीअनजाने में चुभ, पीड़ा पहुँचाता हूँचाह मगर, काँटों को छुपा नहीं पाता हूँडॉ. कवि कुमार निर्मल
कान्हां आयोकृष्ण मथुरा जमुना पार आयोगोकुल जा बहुत रे धूम मचायोसथियन संग सारो माखन चुरा खायोगइयन को सारे दिन गोपाल चरायोबांसुरियां धुन सुन जग बउरायोगोपियन को प्यारो बहोत भायोदेवकी माता को कन्हिया जायोयशोदा पलना डाल झुलायोकालिया नाग को मार भगायोगोबरधन उठा इंद्र को हरायोमामा कंस को बहुत डरायोपूतना क
🐚🐚 कहानी कृष्ण की 🐚🐚 🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️🏵️"कृष्ण जन्माष्टमी" हम हर्षित हो मनाते हैं।"कृष्ण लीला" आज हम सबको सुनाते हैं।।कारागृह में ''महासंभूति'' का अवतरण हुआ।दुष्ट कंस का कहर, जन जन का दमन हुआ।।जमुना पार बासु यशोधा के घर कृष्ण को पहुँचाये।''पालक माँ'' को ब्रह्माण्ड मुख गुहा में प्
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳जय हिन्द🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🌏 🌎 🌍 ।।धरा विचलित है।। 🌎 🌏 🌏🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳धरती माता की पीड़ा- अकथनीय- अतिरेकआर्यावर्त भू - खण्ड संकुचन! भारतीय चेतपच्चहत्तरवें वर्ष में प्रवेश, विश्व-गुरु बन देखवंदे मातरम् अंगिभूत कर दासता भाव फेंकदिवनिशि धरती
💕💕 *इश्क* 💕💕इश्क कोई अज़ूबा 'रिश्ता' नहींइश्क कोई गहरी साज़िश नहींइश्क कोई बेहिसाब सज़ा नहींइश्क क़ुदरत का एक फ़रमान हैक़ायानात से उतरा हुआ,आशिकों की आन जान हैइश्क क़ायदा है हुश्न फ़रमाने काइश्क उल्फ़त का आइना हैइश्क "चाहत" हैइश्क नेह की डगर हैइश्क "ज़न्नत" का पैगाम हैइश्क हदों के पार दोस्तना है
💮💮 हरिकृपाहि केवलम् 💮💮मुझे तुम्हारे अलावा कभी किसी और से कोई दरकार नही हुईमुझे तुम्हारे सामिप्य औरकृपा के अलावाकभी कोई चाहत नहीं हुईजब भी कुछ चाहा,तुमसे मन की बातआँखों के इशारे से,पूरी हुईहर जरुरत, शिशु मानिंद ममत्व लूटा-अबोध समझा, और पूरी हुई हर कदम पर साथ रह, बता करमुझे चला, हर सफर पूरी भी ह
🙏🙏 समय की पुकार🙏🙏निरीह पशु-पँछियों को अपनीक्षुधा का समान मत बनाओइनमें जीवन है, इनको अपनोंसे वंचित कर रे नहीं तड़पाओखाद्यान्न प्रचूर है, और उगाओ"अहिंसा" का सुमार्ग अपनाओ🌳🌲🌼🌺🌷🌺🌼🌲🌳सौन्दर्य वर्धन हो धरा काशुन्य पर मत सब जाओपशु-पादप-वृक्ष-ताल-तलैया के
समय चक्रसमय चक्र प्रबल'तमसा' को धूल धुसरित करता हैसफल मानव वहींजो समय के संग सदा चलता हैकाल के विपरीत शक्ति-संपातजो साधक करता हैप्रकृति का कोप भाजन बनरसातल लोक गमन हैकवि मन तो अपनी मुट्ठियों में आसमान भर लेता हैसृजन श्रेष्टतम् वहींजो सत् पथ निर्देशन करता हैडॉ. कवि कुमार निर्मल
येसु फिर आओ ★★मसीहा फिर आओ★★येसु! बार - बार आ कर आलोक फैलाओअँधेरा छाया- फिर से ज्योत बिखराओतुमने सदा प्यार बाँट शुभ संदेश दिया हैहमने बँट कर नफ़रतभरा अंजाम दिया हैचमत्कार फिर दिखला कर होश में लाओप्रायश्चित और प्रार्थना का मार्ग बताओयेसु! बार - बार आ कर आलोक फैलाओअँधेरा छाया- फिर से ज्योत बिखराओडॉ.
गाँव की मिट्टी से भगवान तक★☆★☆★☆★★☆★☆★☆★🏠🏠🏠गाँव की मिट्टी🏠🏠🏠गाँव गया नानी के, गर्मी की छुट्टी-मुझको कुछ काम न थाकभी गगन को तकता तो-कभी अपने कोले में जाता थापहली बौछार पड़ी मिट्टी पर-सौंधी गंध- मजा आता थामिट्टी लेप चौका में नानीलकड़ी के चुल्हा पर भात पकातीछौंक दाल
कोरोना से कवि धायल!कोरोना का कहर देखलेखनी थमी हरजाई है!भूत को बिसरा- भयाक्रांत,आगे ज्यों खाई है!!अभूतपूर्व सौहार्दपूर्णता शुभ-चहुंदिश छाई है!'क्वारेन्टाइन' से कजाकोरना की बन आई है!!आर्थिक बिपदायें तोकई बार आ हमें रुलाई है!संकट पार हुए सारे,हर घर में खुशियां छाई है!!हौसला पुरजोर- बुलंद इरादे,थका नहीं
💐💐💐💐💐💐💐💐💐आदर्शों की मिसाल है शिक्षकआदर्श स्तंभ है शिक्षकज्ञान प्रचारक है शिक्षक ★☆☆★★☆★☆★☆★सच्ची शिक्षा एवं मानव समाजसारा ज्ञान बाँट- लाता है अगाज़★☆★☆★☆★★☆★☆★☆★धन्य है वो लोग जिनको गुरु के संपर्क में आने का सौभाग्य मिला है तथा उनके सानिध्य में जीवन मे कुछ ज्ञान और शिक्षा ग्रहण करने का सुअव
सृजनात्मकतासाहित्य श्रिंखला अद्भुत हैअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हैसृजन में संस्कृति कीनैसर्गिक माला पिरोयेंमानववादियों को अतिशिध्रएक मंच पर लायेंडॉ. कवि कुमार निर्मल
💓💓💓💓💓💓💓💓💓सबका मालिक एक है💓💓इरादा रखना- नेक है💓💓ये दुनिया सारी फेक है💓💓रोटी खाना दो-एक है💓💓मालिक की हीं भेंट है💓💓सबका मालिक एक है💓💓इरादा रखना- नेक है💓💓💓🙏निर्मल🙏💓💓
🌻🌺🌹💮🌸🌸🌸🌸💮🌹🌺🌻दुनिया की समस्त सरहदें मिट गर गुम हो जाती।मजहब-फीरकापरस्ती की दिवारें टूट ढ़ह जाती।।नफ़रत का फ़ितूर न होता, जंग का इल्म न होता।मुहब्बत का नजारा, इंसान इंसान का प्यारा होता।।इतिहास के पन्नों से खून रिस कर टप-टप पड़ता है।कहीं कंस कहीं रावण अट्टाहास कर ताण्डव करता है।।नित 'द्रो
*गुम हो गए संयुक्त परिवार**एक वो दौर था* जब पति, *अपनी भाभी को आवाज़ लगाकर* घर आने की खबर अपनी पत्नी को देता था । पत्नी की छनकती पायल और खनकते कंगन बड़े उतावलेपन के साथ पति का स्वागत करते थे । बाऊजी की बातों का.. *”हाँ बाऊजी"* *"जी बाऊजी"*' के अलावा दूसरा जवाब नही होता था ।*आज बेटा बाप से बड़ा हो गया
रात अभी बहुत कुछ बाकी हैरात होने को आई आधी हैलिखना बाकी अभी प्रभाती हैनक्षत्र "विशाखा" ऋतु- ''शरद" शुभकारी हैकल 'पंचमी', नक्षत्र अनुराधा, कन्या साथी हैस्वर्ण आभुषण प्रिये को देता पर प्लाटिनम-कार्ड खाली हैकवि उदास, कह लेता हूँ मृदु 'दो शब्द', कहना काफी हैडॉ. कवि कुमार निर्मल
दीपवाली में 'मन' माना दूर,मंदीर अलग-अलग चमकते हैं!चंचल लक्ष्मी ठम- खड़ी दूर,हृदयहीन के घर-आँगन सजते हैं!!निर्मल
🍀🎄🍃🌿🌴🌴🌿🍃🎄वंसंत ऋतु के अद्भुत सौन्दर्य ने,मेरे हृदय में पुरजोर अगन है लगाई!🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 🔥 🔥तुझे पाने की चाहत ने मेरे हिया में,अश्कों की नदियाँ कई बहवाई!!💦💦💦💦💦💦💦 💦 💦 प्रगाड़ नींद्रा से झकझोर मुझे तुमने जगाया!तन्द्रा को रक्तिम-तिव्र किरणों से दूर भगाया!!☀☀☀☀☀☀☀☀☀ ☀ ☀अहिर्निष तुम्ह
सामयिक साहित्य____🖊महामारी / पैंडेमिक से बचने के लिये हमारे शास्त्रों में कतिपय (करणीय) निर्देशन उपलब्ध हैं:---मेरे सद् गुरु नियम दिए "सोड्ष विधि", जिसके अंतरगत् 'व्यापक सौच'★ और 'सौच मंजुषा'★★सर्वोपरी हैं।【1】 लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च।लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत्।।धर्मसिन्ध