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गदा - अग्निवाण - सुदर्शन चक्र -
ब्रह्मास्त्र अवतारों ने बहुत चलाया
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लाखों शवों से 'कुरुक्षेत्र' को पटाया
सुर्य देव अस्त होते होते उगते ठहर गया
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'रुद्रावतार' ध्वज पर चड़ा, चक्का धस गया
धर्म का झंडा फिर गड़ा, महाभारत बन गया
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ऋषियों के तपोबल से वेद ऋचाओं को रच दिया
सदगुरुओं ने ध्यान का उपदेश प्रचूर दिया
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पाषाण सम्मुख तुम मौन रे! बैठे हो
स्वमुक्ति-मोक्ष की चिंता में मरते हो
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धरा धाम रसातल में डूबती जा रही है
मानवता विनष्ट हो रे! कराह रही है
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युगों युगों से रक्तपात होता आया है
'शिव-राम-कृष्ण' बार-बार आया है
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शोषण की चक्की चलती हीं आई है
दग्ध मानवता धरातल पर मरती आई है
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अबला नारी की अस्मत, व्यथा बहुत पुरानी है
दानव-दल देवों पर सदा हुआ चढ़ हावी है
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"कालचक्र" अविरल त्वरित हो रहा है
मानव त्रस्त- त्राहिमाम्! आर्तनाद गुँज रहा है
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पूर्णिमा रात्रि में अमावस्या सा लाल चाँद गोचर है
तिमिर अंधकार चहुदिसि देखो आच्छादित है
भाई भाई के रक्त से तृष्णा मिट नहीं पाई है
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बहुत ध्वंस हुआ अब तो रे! चेतो
अँधकार त्याग- आलोक वर लो
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विश्व के समस्त नैतिकवादियों एकजुट होओ
त्रस्त मानव के त्राण हेतु तुमुल युद्व का शंखनाद् करो
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"स्वस्तिक झंडे" को फहरा विश्व क्रांति लाओ
सुसुप्त मानव में शक्ति- जागृति लाओ
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विश्व बंधुत्व कायम हो- नारा गुँजाओ
"मानव मानव मिल सब एक हो जाओ
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साँझा चौका हर नुक्कड़ पर अब जलता दिख जाएँ
दुष्ट-शोषक-महापातकी सारे प्याश्चित कर सुधर जाएँ
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"सद्-विप्र समाज" कायम शिध्र हो जाए
"विश्व सरकार" का ध्वज हर घर पर लहराए
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अभावग्रस्त धन-धान्य से पूरित हो संपन्न हो जाए
सबको मान-मर्यादा, ज्ञान-स्वास्थ्य लाभ मिल जाए
सर्व जन हिताय-सर्व जन सुखाय अंगिभूत हो जाए
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डॉ. कवि कुमार निर्मल
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