औरत बुद्ध नहीं बन सकती !! एक कट्टर धार्मिक समुदाय की ओर से एक घोषणा ..
/
मेरी प्रतिक्रिया
/
परन्तु स्री को बुद्ध बनने की , बुद्ध होने की आवश्यकता क्या है ये कार्य तो पुरुष के लिए है - स्त्री तो ईश्वर की बनाई हुई , उसी की खुद की प्रति सवरूपा है - स्त्री जब माँ बनती है एक अनजान आत्मा को अपने कोख में स्थान देती है - उसे संतान बनाती है अपने सीने से लगाती है उसे जीवन प्रदान करती है - तब वह स्त्री केवल बुद्ध ही नहीं - स्वयं रचयिता , परमात्मा बन जाती है माँ बन जाती है जगत जननी बन जाती है उस के बाद स्त्री के लिए कोई क्रिया कोई ज्ञान शेष - प्राप्त करने के लिए नहीं रहता , वह पूर्ण हो जाती है ....
अनुभव व्यक्ति के जीवन का एक बहुमूल्य खज़ाना होता है व्यक्ति जब किसी विपदा में , कष्ट में संकट में आता है तब व्यक्ति का ये खज़ाना उस के जीवन में काम आता है
/
अनुभव व्यक्ति के जीवन का स्वशक्ति - आत्म-सम्मान होता है किन्तु व्यक्ति जब भावनाओं में फंसता है तब व्यक्ति अपने अनुभवों को भूल जाता है ...
/
लेखक ने अपनी किताब , मेरा जीवनदर्शन - मेरे विचार - मेरा अनुभव , में जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश की है ..
लेखक ने अपने अनुभवों को अपने विचार से अलंकृत किया है और अपना जीवनदर्शन बना कर पाठक गण के सामने प्रस्तुत किया है ..
शेष किताब के हर लेख में पाठक गण को अनुभवों का इंदरधनुष देखने को पढ़ने को मिलेगा ...
.
.
साभार :-
लेखक - कुमार ठाकुर