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लहरों का आशिक़ ...

15 सितम्बर 2024

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लहरें तो मासूम , नाज़ुक , हसींन होती हैं वो भला कश्ती को क्या डूबोएंगी , उन का उछलना , कूदना , मचलना , बहकना यह तो , उन की मस्ती है उन का खेल है - कश्ती को डूबोने वाला तो कोई और है जो समंदर के भीतर रहता है जब उसे ये महसूस होता है और जब वो ये देखता है की कोई उस की लहरों को छेड़ रहा है उन्हें लज्जित कर रहा है तब वो तनिक भी देरी नहीं करता और छेड़ने वाले को तुरंत डुबो देता है - वो जो समंदर के भीतर रहता है जो लहरों का आशिक़ है ....
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कुमार ✍️
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रचनाएँ
मेरा जीवनदर्शन - मेरे विचार - मेरा अनुभव ..
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अनुभव व्यक्ति के जीवन का एक बहुमूल्य खज़ाना होता है व्यक्ति जब किसी विपदा में , कष्ट में संकट में आता है तब व्यक्ति का ये खज़ाना उस के जीवन में काम आता है / अनुभव व्यक्ति के जीवन का स्वशक्ति - आत्म-सम्मान होता है किन्तु व्यक्ति जब भावनाओं में फंसता है तब व्यक्ति अपने अनुभवों को भूल जाता है ... / लेखक ने अपनी किताब , मेरा जीवनदर्शन - मेरे विचार - मेरा अनुभव , में जीवन के सभी पहलुओं को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश की है .. लेखक ने अपने अनुभवों को अपने विचार से अलंकृत किया है और अपना जीवनदर्शन बना कर पाठक गण के सामने प्रस्तुत किया है .. शेष किताब के हर लेख में पाठक गण को अनुभवों का इंदरधनुष देखने को पढ़ने को मिलेगा ... . . साभार :- लेखक - कुमार ठाकुर
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तुम ईश्वर की सूंदर रचना बन जाओगे ...

15 सितम्बर 2024
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स्थिर हो जाओ , उफनती - उठती गिरती लहरों को - नियंत्रण कर लो , मुस्कराओ , शांत हो जाओ , झील बन जाओ - कँवल के फूल खिलाओ , पक्षियों को निमंत्रण भेजो , मंद मंद बहती हवा को प्रेम से पुकारो , बच्चों

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स्री बुद्ध नहीं बन सकती -

15 सितम्बर 2024
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स्री बुद्ध नहीं बन सकती - /औरत बुद्ध नहीं बन सकती !! एक कट्टर धार्मिक समुदाय की ओर से एक घोषणा ../मेरी प्रतिक्रिया/परन्तु स्री को बुद्ध बनने की , बुद्ध होने की आवश्यकता क्

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लहरों का आशिक़ ...

15 सितम्बर 2024
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लहरें तो मासूम , नाज़ुक , हसींन होती हैं वो भला कश्ती को क्या डूबोएंगी , उन का उछलना , कूदना , मचलना , बहकना यह तो , उन की मस्ती है उन का खेल है - कश्ती को डूबोने वाला तो कोई और है जो समंदर के भीतर र

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ऐ नारी तू नास्तिक कैसे हो गयी ...

15 सितम्बर 2024
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ऐ नारी तू नास्तिक कैसे हो गयी तू तो आस्था की प्रतिक थी उषा-काल में तू तुलसी की पूजा किया करती थी तेरी अनुपम सूंदर वाणी से भोर हुआ करती थी तू अपने ही घर परिवार क

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अपनी आत्मा को ऋण और अपेक्षा से मुक्त करो :

17 सितम्बर 2024
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अपनी आत्मा को ऋण और अपेक्षा से मुक्त करो :/ज़िन्दगी का सब से बड़ा बोझ , दुःख , गम , कर्ज़ का होता है चाहे आप को पैसे की मदद ,किसी अपने ने दी हो , रिश्तेदार ने दी हो , दोस्त ने दी हो या आप की मोहब्बत ने आ

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