सूखते हुए यूनिफार्म
अप्रैल का महीना शुरू हो
गया है । मौसम तो इस वर्ष मार्च से ही काफी शुष्क और गर्म हो गया है, पर क्या पता शायद मुझे ही कुछ ज्यादा लग रहा है!
मौसम गर्म हो या
सर्द क्या फर्क पड़ता ? काम तो करना ही होता है । कर भी रही हूॅ ।
पर दो तीन दिनों से जब भी कपड़े धोने बॉलकॉनी में जा रही हूॅ आसपास की बॉलकॉनी में
बच्चों के सूख रहे स्कूल यूनिफार्म देखकर मन खो सा जाता है । किसी बॉलकॉनी में
सफेद रंग वाले तो किसी में, चेक
वाले ,तो किसी बॉलकॉनी में हरे रंग के यूनिफार्म सूख रहे हैं तो कहीं स्कूल बैग धुल कर सुखाये जा रहे हैं । कल
बगल के घर से आवाज आ रही थी, मेरी
पड़ोसन अपने नौवीं कक्षा में गये बच्चे को डॉट कर कह रही थी-’’दो दिन बाद स्कूल खुल जायेंगे सौ बार कह चुकी हॅू कि जूते अच्छी
तरह पॉलिश करके धूप में रख दे थोड़ी देर ,अच्छी
चमक आ जायेगी पर तेरे कान पर जूं नहीं रेंग रही है ।
हर बच्चों वाले घर में
डबल त्यौहार की तैयारी चल रही है , एक
तो नवरात्रि और दूसरी दो सालों के बाद पूरी तरह से सारे स्कूलों के खुलने की वजह
से लगभग हर घर में बच्चों को स्कूल भेजने की तैयारयों का उत्सव ।
यह सब देखकर मुझे भी कुछ
वर्षों पहले के अपने दिन याद आ जा रहे हें जब इस महीने के आने की सुगबुगाहट के साथ
ही में भी बैग,यूनिफार्म, रंगबिरंगे पेंसिल बॉक्स और वाटर बॉटल खरीदने में बिजी रहती थी ,तपती धूप में बस स्टाप पर छाता लगा कर खड़ी बच्चो के स्कूल से आने
का इंतजार करती थी।
आज ईश्वर की कृपा से मेरे बच्चे बड़े हो
गये हैं । अलग अलग शहरों में कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं । बड़ा बेटा तो अब जॉब में आ
गया है । एक दो महीने में ही ऑफिस जाने लगेगा । पर फिर भी पता नहीं क्यूं आज भी जब
छोटे छाटे यूनिफार्म सूखते और दुकानों पर वाटर बॉटल खरीदने के लिए मचलते बच्चों को
देखती हूॅ तो बच्चों का बचपन याद करके उदास हो जाती हूॅ ।
कितने अच्छे थे वह दिन जब
बच्चे छोटे थे, हम साथ रहते थे, एक साथ खाते पीते हॅसते और खेलते थे । आई मिस दोज डेज ।