श्रीसूरदासजी हिन्दी-साहित्य-गगन के सूर्य तो हैं ही, बाल-वर्णन के क्षेत्र में भी सम्राट हैं-यह बात सर्वमान्य है। उसके दिव्य नेत्रों के सम्मुख उनके श्यामसुन्दर नित्य क्रीड़ा करते हैं। सूर कल्पना नहीं करते, वे तो देखते हैं और वर्णन करते हैं। इसीलिये उनकी वाणी इतनी सजीव है, इतनी ललित है, इतनी मर्मस्पर्शिनी है। अनन्त-सौन्दर्य-माधुर्यघन श्रीश्यामसुन्दर की बाल माधुरी का वर्णन जो सूर की सरस वाणी से हुआ है, रस का सर्वस्व-सार है। उसका गान करके वाणी पवित्र होती है, उसका चिन्तन करके हृदय परिशुद्ध होता है, उसके श्रवण से श्रवण सार्थक हो जाते हैं। श्रीकृष्णचन्द्र की शिशु-लीला के मधुर मंजुल पदों का सरल भावार्थ दिया गया है|
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