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यें कैसी विरह..जान ले छोड़ेगी
लगता हैं तो बस....अब ऐसा हीं
यें विरह.... बस प्यार में होता हैं..क्या..
जो यें मुझें...अब महसूस हैं हो रहा....
यें.. तो.. अब..ऐसी तड़प..
जान ले छोड़ेगी.. हीं.. अब..
अगर यें प्यार हैं.. तो अब लग रहीं जैसे सजा हैं..
किसे दोष दू..मैं..उसे .. जो हैं लगा के चल दिये...
संभाले जा रहीं पर... ख़ुद को अब कैसे सँभालु..
अब.. कुछ समझ ना आये.. अब कैसे मैं भूलूँ
क्यों होती प्यार क़ी.. यें मनोदशा...
जो बन कर रह जाती.. हैं यें बस सजा...
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