सौ ख़ुलूस बातों में सब करम ख़यालों में
बस ज़रा वफ़ा कम है तेरे शहर वालों में
पहली बार नज़रों ने चाँद बोलते देखा
हम जवाब क्या देते खो गये सवालों में
यूं किसी की आँखों में सुबह तक अभी थे हम
जिस तरह रहे शबनम फूल के पियालों में
रात तेरी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
जैसे कोई चुटकी ले नर्म नर्म गालों में
मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गये उजालों में
जैसे आधी शब के बाद चाँद नींद में चौंके
वो गुलाब की जुंबिश उन स्याह बालो में
जनाब सैयद मोहम्मद बशीर बद्र साहब