वो रिश्ता हीं क्या
जिसमें प्रेम न हो
वो रिश्ता हीं क्या
जिसमें विश्वास न हो
वो रिश्ता हीं क्या
जिसमें समर्पण न हो
वो रिश्ता ही क्या
जिसमें सौहार्द न हों
वो रिश्ता हीं क्या
जिसमें सहानभूति न हो
वो रिश्ता ही क्या
जिसमें मानमनौव्वल न हों
वो रिश्ता बहुत हीं
मजबूत हो जाता है
जिसमें प्यार और नफरत हो
गुस्सा भी हो
हंसी और खुशी भी हो
वैसे रिश्ते मजबूत
हीं नहीं बहुत मजबूत होते है