ईशीका——
हमारे और तुम्हारे बीच जितनी भी क्रियाएँ हुई वो सब एक मधुर यादों के जरिये इस पन्नों में आकर सिमट गई।जो यह सफेद पन्ना ही बतलाएगा की हमारे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह थी यह पन्ना इतना ही नहीं बल्कि हमारे तुम्हारे बीच के अपनापन को दर्शायगा,कि हमारे और तुम्हारे बीच कितने मधुर सम्बन्ध थे।जिसे आँखों के जरिए बयां करते थे लेकिन जुबां के जरिए नहीं कर पाते।आँखों के रास्ते धिरे-धिरे कब दिल और जुबां पर आ गये हमें पता ही नही चला।मैं तुम्हारे उतना ही नजदीक हूँ जीतना कल मैं। हमेशा तुम्हारे चेहरे और मुस्कान को ही देखना चाहा क्यों कि तुम्हारे साथ गुजारी वो सुहानी संध्याओ और चांदनी रातों के वे चित्र उभर आते है,जब बहुत समय तक लोगों के बीच मौन भाव से हम एक दूसरे निहारा करते थे बिना स्पर्श किये ही जाने कैसी मादकता तन मन को विभोर किये रहती थी।जाने कैसी तन्मयता में हम डुबे रहते थे •••••एक विचित्र सी स्वप्निल दुनिया में। मैं। कुछ बोलना भी चाहता था तुम्हें। पर जाने क्यों आत्मीयता के ये क्षण अनकहे ही रह जाते ।
हँसना ,खुश रहना चिड़ियों की तरह चहकना ,फुलो की तरह महकना हमारे खुशी का राज था। क्यों कि मेरी साँस जहाँ की तहा रूक जाती थी तुम्हारे आगे के शब्द को सुनने के लिए ,पर शब्द नहीं आते बड़ी कातर ,करूण याचना भरी दृष्टि से मैं। तुम्हें देखना चाहता था तुम मुझे जरूर भुल गई होगी लेकिन मैं तुम्हें आज भी यादों के। झरोखों में संजोये रखा हूँ।क्यों कि मेरे अंदर एक खास बात यह है कि जब किसी को वादा करता हूँ तो निभाना चाहता हूँ ।हो सकता है कि तुमने नादानी किया हो तो क्या मैं भी करूँ,कदापि नहीं। आज भी मैं उसी तरह से देखता हूँ तुम्हारे दिये हुए चित्र को। मुझे ऐसा महसूस होता हैं कि आज भी मेरी आँखों में रंगीनी और मादकता छा जाती है। तुम्हारे आवाज़ को मैं आज भी सुनता हूँ,तो एकाएक मेरे मन में। विचार आता है कि क्या कुछ मैं उस समय किया वह निरा भ्रम था मेरा कल्पना,मेरा अनुमान नहीं। नहीं उस घटनाओं को कैसे भूल सकता जिसके द्वारा उसके हृदय की एक-एक परत मेरे सामने खुल गये थे।वो आत्मीयता के अनकहे क्षण याद करता हूं तो वो सारे पल मेरे सामने एक-एक करके आने लगते है।
याद आता है तुम्हारे हाथ से लिखा वो शायरी आज भी मैं अपने डायरी में संजोये रखा हूँ।उसे कभी -कभी जब पढते है तो हमारी वो भावुकता यथार्थ में बदल जाती है।सपनों के जगह वास्तविकता आ जाते हैं ऐसा महसूस होता है। मैं तो नहीं मानता लेकिन उसमें जो स्पेशल रूप से जिन शायरी को चिन्हित किया गया था वो यही शायरी है जिन्हें आपसे। अवगत कराना चाहता हूँ जो इस प्रकार हैं-------
"ओठों पे एक मुस्कान काफी है,
दिल मे एक अरमान काफी है।
कुछ नहीं चाहिए हमें जिन्दगी से,
बस आप हमें ना भुलाना यही एहसान काफी है।
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" अपने दिल में हमारे लिए यही प्यार रखना,
प्यारा सा रिश्ता यु ही बरकरार रखना।
मालूम है आपकी दुनिया सिर्फ हम नहीं,
पर औरों के बीच में हमारा भी ख्याल रखना।
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Dosti hai any time"ham nibhate some time"
yad kiya karo any time"Aap khush rahe all
time"
yahi duaa hai meri "life time"
इन शायरी को जब मैं पढ़ा तो मेरे अन्दर एक अजीब सी हलचल पैदा हुई जिसके वजह से तुम्हारे तरफ खींचा चला गया और तुम्हारे बारे में सोचने पर मजबूर भी हो गया।और तुम्हारे साथ सारी बातें साझा करने लगा।
आज भी तुम्हारे कॅाल का उसी प्रकार इन्तजार रहता है जिस प्रकार तुम सुबह-साम खिड़की के रास्ते देखा करती थी इतना ही नहीं हमारे चले जाने पर मेरे आने का राह देखा करती थी।
मैं तुम्हारे अन्दर एक ही कमी पाया था जिसको भरसक प्रयास किया दूर करने का इसलिए कि तुम हमेंशा खुश रहो,वो यही था कि तुम्हारे अन्दर क्रोध का होना । तुम्हारा मेरे उपर इतना ख्याल रखना मेरे बारे में किसी से जिक्र करना और इनतजार करना भोजन साथ करने के लिए और एक दूसरे को प्रेम परिपूर्ण निगाहों से देखना ये सब याद आते है कॅास ओ दिन आज भी आ जाते फिर से हमारी यादें हकीकत हो जाती।
मुझे तो यह भी याद आता है तुम्हारा बार -बार मेरे पास आना तुम्हें जो भी अच्छी चीजें मिले पहले उसे दिखाना ,कभी -कभी आँखों से एक टक देखना फिर शर्म से पलके झुकाना ,इतराना ,रूठना फिर अपनेआप मान जाना,हथेलियों का स्पर्श करना और मुझसे यह बात कहना-------"जब मैं रूठती हूँ। या आप रूठते हैं,तो दोनों तरफ से मुझे ही नुकसान होता है,मुझे ही मनाना पड़ता है।" उस आवाज़ में किस प्रकार का लगाव था जो लगाव इतना हुआ कि चाहकर भी भूल नहीं पा रहा था। ओ भी बातें याद आ रही है कि तुम एक बार। मुझसे आकर पूछी -----"कि मैं किसी को भुलना चाहती हूँ लेकिन मैं भूल नहीं पा रही हूँ कृपा करके कोई उपाय बताइए।" तो मैं हल्का मुस्कान लिए हँसा और उत्तर दिया ----" कोशिश करो कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती।"
इतना ही नहीं और बहुत से ऐसे पल हैं जो उस समय प्रति दिन अपने ही बॅाटल में पानी लाकर पिलाना मुझे दिखाकर खिड़की के रास्ते सजना संवरना मैं न रहूँ तो मेरा इन्तजार करना।
वो होली याद आ रही है २०१२ की जब हम घर से वहाँ पहुँचा तो तुम अबीर लेकर आई और बोली -"यह अबीर सिर्फ व सिर्फ आपके लिए रखीं हूँ।" तथा मेरे अनुपस्थिति में होली किसी के साथ नहीं खेलना चेहरा उदास रहना इसका आखिर मतलब क्या था ?
तुम्हारे प्रति मेरे अंदर इतनी नजदीकियां बढ गयी कि मुझे भी पता नही चला।किसी सभा में मुझे ही देखना।अन्त में जाते समय हाथों का स्पर्श लेना चाकलेट अपने हाथों से खिलाना और मेरे पास अपने छोटे भाई के बहाने मुझसे बार-बार मिलने की कोशिश करना और घर पहुँचते ही फोन करना और बातें करना उसके बाद भी किसी रिश्ते खुलासा नहीं करना ये क्या दर्शाता है।
उपर्युक्त बातों से पता चलता है कि तुम मानो या न मानो यह रिश्ता बहुत ही प्यारा था।हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे तुम्हारे और मेरे बीच कोई न कोई मजबूरी थी जिससे हम आपस में नहीं खुल पाये । तुम मुझसे बोलों या न बोलों,याद करों या ना करो वो पल एक सुहाना था वो पल एक सुंदर था प्यार भरा था चाहे भले ही आत्मीयता के वो क्षण अनकहे रह गये हों जो सिर्फ यांदो के इस पन्नों में सिमटकर रह गयी।इसलिए मैं अब भी यही चाहता हूँ जहाँ भी रहो खुश रहो आबाद रहो ढेर सारी खुशियाँ तुम्हारी चरण हुवे बस यही हमारी कामना है,तुम्हारा अपने जीवन में खुश रहना ही हमारा सच्चा प्यार है ••••
तुम्हारा
रमेश कुमार सिंह ♌
२१-०१-२०१५