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समर्पण (कविता)

26 अप्रैल 2015

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सहजता से लक्ष्य की ओर बढना, निश्चितता से उसको पूर्ण करना, जिम्मेदारी को विशेष से समझना, समर्पण शायद इसी को मान लेना। पूर्ण जिम्मेदारी ही पूर्ण समर्पण है इसे स्वीकार करना थोड़ा कठिन है मैं जिम्मा लेता हूँ या मैं समर्पित हूँ, अधिकांश सुनने को यही मिलता है। जिम्मेदारियों को लेकर उलझ पड़ना उस समय समर्पण को याद रखना। वही आगे बढ़ने की शक्ति देती है, जिम्मेदारी का आधार ही समर्पण है ---------रमेश कुमार सिंह

रमेश कुमार सिंह की अन्य किताबें

रेणु

रेणु

समर्पण पर उत्तम रचना आदरणीय |

15 दिसम्बर 2018

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नववर्ष ( संस्मरण )

23 मार्च 2015
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आज भी मेरा ख्याल है किअगर आप ज०न०वि०-२जपला पलामू आप जायें तो और वहाँ पुछे तो कि नया साल कैसे मनाया जाता है तो जरूर कुछ बच्चे दो चार कहानी सुना ही देगे।नव वर्ष के बारे में अलग अलग ढंग से आनन्द के लहजे में क्यों कि वहाँ पर हर नव वर्ष केपहली जनवरी को बनभोज का आयोजन होता है।जो अपने स्थान को छोड़ कर द

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बिहार के बच्चों का क्या होगा भविष्य?

23 मार्च 2015
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कहा जाता है कि कक्षा दस बच्चों के पढाई का पहला प्रमाण पत्र देता जिस प्रमाण पत्र पर कहीं किसी का कोई सक नहीं होता और कोई भी नौकरी चाहे सरकारी हो या गैर सरकारी मिलने की शुरुआत होती है जिसके सहारे वे अपने भविष्य को सुन्दर बनाते हैं। आज हमारे प्रदेश बिहार की क्या स्थिति बन चुकी है,शायद ऐसा कहीं देखने को

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तुम्हारी याद

24 मार्च 2015
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यादें तुम्हारी मेरे पास बहुत है , किस पल को याद करूँ मैं। सभी पलो में हलचल मची है, किस-किस पर मन दौड़ाऊँ मैं। मन चारों दिशाओं मे जाते हैं, किधर-किधर उसे मोड़ दू मैं । सब कुछ बातें समझ नहीं पाते, कैसे बिताये लम्हे याद करूँ मैं । जब -जब याद तुम्हें करते हैं , उस वक्त सोचने लगता हूँ मैं। खुराफातें

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बिहार की राजनीति तलें शिक्षा दबी।

24 मार्च 2015
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हमारा बिहार राज्य पहले से ही राजनेताओं के राजनीति एवं भ्रष्टाचार के वजह से गरीब तथा पिछड़ा हुआ है। यहाँ के छोटे से लेकर बड़े लोग या छोटे कर्मचारी से लेकर बड़े अफसर तक भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। जब हमारे माननीय मुख्यमंत्री श्री लालूप्रसाद यादव जी के समय में ही शिक्षा की नीति ऐसी बनी थीं, उसमें बिहार के ब

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उम्मीद भरा वो सारे पल

27 मार्च 2015
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उम्मीद भरा वो सारे पल, अब विखरता जा रहा है। एक-एक होकर सामने, धुधलापन होता जा रहा है। बीत गये सुख भरे पल, दु:ख भरा पल आ रहा है। कायम है अंधेरा सामने,बढता हुआ चला आ रहा है। रोशनी के लिये हर पल, कोशिश करता जा रहा हूँ। मगर कमी तेल का सामने,नज़र में पड़ता जा रहा है। रोशनी के बिना एक पल, आगे नह

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आखिर क्यों गोडसे ने गाँधी जी को मारा सच्च जाने (संकलित)

5 अप्रैल 2015
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आखिर क्यों मारा गोडसे ने गाँधी को सच जाने विभाजन की पीड़ा.. गाँधी वध की वास्तविकता और ... हुतात्मा गोडसे ... कैसे उतरेगा भारतीय जनमानस से गोडसे जी का कर्ज ...... क्या थी विभाजन की पीड़ा ? विभाजन के समय हुआ क्या क्या ? विभाजन के लिए क्या था विभिन्न राजनैतिक पार्टियों का दृष्टिकोण ? क्या थी पीड़ा

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स्वाद (कविता)

5 अप्रैल 2015
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एक टॅाफी मिला।जैसे गुल खिला।कई दिनों से इन्तजार था।उस टॅाफी के स्वाद का।न जाने कैसा होगा स्वाद।यही दिल के अन्दर आस।तभी अचानक याद आई।वो टॅाफी मेरे हाथ में आई।स्वाद होगा कैसा आखिर।चखकर देखें इसे जरुर।तभी याद आये साथी लोग।लिये स्वाद हम तीन लोग।तब जाकर पता चला ऐसा।है इसका स्वाद मिठा जैसा।बहुत बहुत स्वाद

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कैसी है मानवता

6 अप्रैल 2015
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मानव ही एक मानव को कुछ नहीं समझता। एक दूसरे को नोचने में खुद महान समझता। चाहे वो अधिकारी हो या हो देश का राजनेता। मानव, मानव को कष्ट देने की तरकीब बनाता। मानव अब इस धरती पर अब मानव नहीं रहा। सारे बूरे कर्मो को अपने हाथों पे लिए चल रहा चन्द फायदे के लिए भ्रष्टाचार को सह दे रहा , मानव, मानव के ब

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मुक्तक

8 अप्रैल 2015
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किसी को समर्पित ------- ••••••••••मुक्तक ••••••••••••••••• आप अपने लेखनी को मत छोड़ियेगा। हौसले के उड़ान को नहीं तोड़ियेगा। यह मिला हुआ गुण ईश्वरीय वरदान है , इस दुनिया में लावारिस मत छोड़ियेगा। --------------------­-------------- पढने की बात रही सो पढा कीजिएगा, पढने के जरिये ही लेखनी कीजिएगा। ज्ञान

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निश्छल प्रेम कथा कह रही है!!(कविता)

10 अप्रैल 2015
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तुमसे जब होता है, नयनोन्मीलन। मुझे ऐसा एहसास होता है। तुम्हारी अधरों के, मधुर कंगारो ने। तुम्हारी ध्वनि की, गुंजारो ने । तुम्हारी मधुसरिता सी, हँसीं तरल। रजनीगंधा की तरह, कली खिली हो। राग अनंत लिये, अपने अधरों में। हँसीनी सी सुन्दर, पलको को उठाये हुअे। मौन की भाषा में। विस्फारित नयनो से, निश्छल प्रे

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मुक्तक

10 अप्रैल 2015
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आदरणीय मित्रों के प्रति दो शब्द --- मेरे आदरणीय मित्रों पोस्ट पर भी आया करें कभी कभी। मेरी रचनाओं को पढकर कमियां बताया करें कभी कभी। मैं उम्मीद ही नहीं बल्कि इस काम केलिए आशा रखता हूँ। सुझाव सलाह रूपी सहयोग हमें दिया करें कभी -कभी।

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जब तुम मिली

11 अप्रैल 2015
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जब तुम मिली मुझे ऐसा लगा। जमाने की सारी खुशी मिल गई। जब तुम मिली,तब मैं ऐसा समझा। जिन्दगी में खुशियों की बहार आ गई। जब तुम मिली मुझे महसूस हुआ। तरसते लबों को हँसीं मिल गई। जब तुम मिली तो मैं अन्दाज़ लगाया। सफर में उड़ने के लिए पंख जुड़ गई। --------------रमेश कुमार सिंह

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पैसा -पैसा (कविता)

14 अप्रैल 2015
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कोई दिवास्वप्न देखता है, कोई ख्वाबोंको सजाता है। यही पैसे की बेचैनी, जो सबको भगाता है। जो कीमत इसकी समझता है ये उसके पास नहीं रहता। जो कीमत नहीं समझता है, हमेशा उसके पास रहता है। जिसको कमी महसूस होता है, इसका दर्द वही समझता है। जिसके दिल पर गुजरता है, बयाँ वही कर पाता है। पैसा -पैसा होड़ मचा है ,

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अंधेरा,निंद और स्वप्न

14 अप्रैल 2015
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रात के अंधेरे में, निंद का पहरा, मुझ पर होता है। तब स्वप्न, मुझे जगाता है । कर लेता है मुझे, अपने में समाहित। हो जाता हूँ मैं स्वप्नमय। देखता हूँ तुम्हें, कभी छोटी सी, ज्योति की तरह। कभी कुहाँसे में, रूपहली झलमल, बुन्द की तरह। कभी लहलहाती, कलियो की तरह। मुस्कुराती हुई, दिखती हो। उसमें निहारता हूँ, त

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उदासीनता

15 अप्रैल 2015
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मनुष्य के, उदासीनता का मुख्य कारण आदर्शवाद का अभावग्रस्त अर्थहीन जीवन का होना प्रतीत प्रतिस्पर्धा भरे संसार में भयभीत उदासीनता इन्हें तब आती है जब समस्या से निपट नहीं पाते हैं आक्रामकता उदासिनता का, प्रतिरोधक होकर जब, कोई हद को पार करता है। तब वापस उदासीनता में ले जाता है। इन्हें जरूरत है प्

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गुरु की महिमा (मुक्तक)

16 अप्रैल 2015
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गुरु की महिमा है बहुत अपरम्पार। कराते हैं ज्ञान रूपी सागर को पार। सभी लोगो के हैं ये ऐसे शक्ति पुँञ्ज, मार्गदर्शन में जीवन की नईया पार। -----रमेश कुमार सिंह

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सबल (कविता)

18 अप्रैल 2015
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किसी सीमा को जब कोई, तोड़ जाता है। उसी वक्त भय का, उदय हो जाता है। यही भय द्वेष को अपने अन्दर, पैदा कर जाता है। द्वेष यहाँ पर हो जाता है आमंत्रित। और वापस सीमा के अन्दर ले जाता है। स्वयं मनुष्य, सीमा के अन्दर रहने के लिए, अपनी रक्षा के लिए, सुरक्षा की दृष्टि से रक्षात्मक, युक्ति लगाता है। वही बचाव क

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वो यादें••••!! (संस्मरण)

18 अप्रैल 2015
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ईशीका—— हमारे और तुम्हारे बीच जितनी भी क्रियाएँ हुई वो सब एक मधुर यादों के जरिये इस पन्नों में आकर सिमट गई।जो यह सफेद पन्ना ही बतलाएगा की हमारे दिल में तुम्हारे लिए क्या जगह थी यह पन्ना इतना ही नहीं बल्कि हमारे तुम्हारे बीच के अपनापन को दर्शायगा,कि हमारे और तुम्हारे बीच कितने मधुर सम्बन्ध थे।जिसे आँ

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ईश्वर,गुरु और आत्मा।

22 अप्रैल 2015
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ईश्वर भाग्य विधाता ही नहीं बल्कि, इस सृष्टि के पालनकर्ता, रचनाकार हैं। सूक्ष्म से लेकर विशालकाय जीवों में, आत्मा रूप अंश को देते आकार है। इन छोटे बड़े जीवों को आदि से ही, सीखने-सीखाने का गुरु देते हैं प्रकार। नैतिकता की बातें सीखकर ये लोग, कर लेते हैं अपने जीवन को साकार। जब प्रार्थना करने से मिल जा

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जा रहा था मैं ----!! (यात्रा वृतांत)

23 अप्रैल 2015
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मैं कुद्रा रेलवे स्टेशन पर ज्यों ही पहुंचा तभी एक आवाज़ सुनाई दी कि गाड़ी थोड़ी देर में प्लेट फार्म नम्बर दो पहुंचने वाली है आवाज़ को सुनते ही मेरे अन्दर इधर टीकट कटाने की तो उधर गाड़ी छुट न जाए यही दो बातें दिल के अन्दर आने लगी तभी अचानक मेरी नजर टिकट घर की तरफ गई वहाँ पर देखा भिड़ बहुत ज्यादा थ

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समर्पण (कविता)

26 अप्रैल 2015
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सहजता से लक्ष्य की ओर बढना, निश्चितता से उसको पूर्ण करना, जिम्मेदारी को विशेष से समझना, समर्पण शायद इसी को मान लेना। पूर्ण जिम्मेदारी ही पूर्ण समर्पण है इसे स्वीकार करना थोड़ा कठिन है मैं जिम्मा लेता हूँ या मैं समर्पित हूँ, अधिकांश सुनने को यही मिलता है। जिम्मेदारियों को लेकर उलझ पड़ना उस समय समर

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धरती में कंपन (कविता)

26 अप्रैल 2015
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सहसा, अचानक बढ़ीं धड़कन, हृदय में नहीं, धरती के गर्भ में। मची हलचल, मस्तिष्क में नहीं, भु- पर्पटी में। सो गये सब, मनुष्य सहित, बड़े-बड़े मकान। सो गये सब पशुओं सहित, बड़े-बड़े वृक्ष। मचा कोहराम, जन- जीवन में। हुआ अस्त-व्यस्त लोगों का जीवन। फट गया कहीं-कहीं, धरती का कपड़ा। टूट गया हर -कहीं, कोई धागा नहीं, ढ

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मैं बहुत उदास हूँ •••!(कविता)

29 अप्रैल 2015
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मैं बहुत उदास हूँ •••!(कविता) क्या अब मेरे, सुख भरे दिन नहीं लौटेगें। क्या अब मेरे कर्ण , उस ध्वनि को नहीं सुन पायेगें क्य अब मेरे हँसीं, उस हँसीं में नहीं मिल पायेगें। क्या अब कोई, मुझसे यह नही कहेगा- ओ प्रिय ! तुम अकेले कहाँ हो, मैं भी तेरे साथ में हूँ। यदि मूझमे यह प्रवृत्ति अनवरत है। त

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नवोदय का सफर (संस्मरण)

29 अप्रैल 2015
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नवोदय का सफर (संस्मरण) ••••••••••••••••• मैं कोई लेखक नहीं हूँ, हाँ थोड़ा बहुत शब्दों में शब्दों को एक कतार में रखकर कुछ पंक्तियों का विस्तार कर देता हूँ। मिल गया है मुझे अपने जिन्दगी में बिताये हुए कुछ पल का भाग जिसको सफर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मान बैठा हूँ और उसी हिस्से को शब्दों क

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गरीबी

2 मई 2015
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गरीबी मनुष्य के जीवन में एक मिट्टी की मूर्ति के समान स्थायीत्व और चुपचाप सबकुछ देखकर सहने के लिए मजबूर करती है शायद उसकी यही मजबूरी उसके जिन्दगी के सफर में एक कोढ़ पैदा कर देती है।ईश्वर भी अजीबोग़रीब मनुष्य को बना दिया है किसी को ऐसा बनाया है कि वो खाते -खाते मर जता है कोई खाये बिना मर जाता है वास्

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मानव (कविता)

5 मई 2015
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मानव अब मानव नहीं रहा। मानव अब दानव बन रहा। हमेशा अपनी तृप्ति के लिए, बुरे कर्मों को जगह दे रहा। राक्षसी वृत्ति इनके अन्दर। हृदय में स्थान बनाकर । विचरण चारों दिशाओं में, दुष्ट प्रवृत्ति को अपनाकर। कहीं कर रहे हैं लुट-पाट।कहीं जीवों का काट-झाट। करतें रहते बुराई का पाठ, यही बुनते -रहते सांठ-गाँठ। य

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मंजिल

8 मई 2015
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मंजिल की तरफ बढते रहना। हरदम कदम को बढ़ाते रहना जिन्दगी, है लक्ष्य को पाने लिए उन्नति के पथिक बने रहना। जिन्दगी में बहुत सी समस्याएँ। धैर्य के बल पर इसे निपटाएँ । तभी होगे हम लोग मजबूत, सबको यही हम पाठ सीखाएँ। रास्ता है बहुत टेड़ा-मेड़ा। पार करना जिवन का बेड़ा। रोड़े आते रहते हैं बहुत से, सब

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दो महीना आठ दिन (संस्मरण)

11 मई 2015
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मनुष्य एक समाजिक प्राणी है जो समाज में रहकर हमेशा आगे बढने का प्रयास करता है। शायद यही प्रयास उसके जीवन में रंग लाता है। इनका जीवन, असीम इच्छाओं एवं आवश्यकताओं से भरा पड़ा है। इनकी आकांक्षाएँ ही इन्हें आगे बढने को प्रेरित करती है। शायद इसी का थोड़ा बहुत प्रभाव मेरे उपर है और मैं भी आगे बढ़ने के लिये

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फिर हिली धरती (कविता)

12 मई 2015
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धरती के अन्दर उदगार उठा जिससे भू-पर्पटी हिलने लगा आपसमें शोर हुआ चारों ओर अफरा - तफरी मचने लगा लोग मकानों से निकलकर बन गये सब पथ के राही। चर्चा विषय चहुओर बनाकर भागे सवत्र जान बचाकर। मच गया चारों तरफ हंगामा चाहे नुक्कड़ हो या चौराहा गाँव-गाँव हर गली -गली में कई जगह हर शहर-शहर में फिर

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मुक्तक

13 मई 2015
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देखते-देखते नयनो के जरिए हृदय में महल बना लिया। बात करते-करते आवाज़ों के जरिए मुझे दिवाना बना दिया अब तक तुम्हारे अदाओं के रंग में ऐसा रंगीन हो गया हूँ मैं हमेशा के लिए मेरे ख्वाबों-ख्यालों मे स्थायी जगह बना लिया @रमेश कुमार सिंह /१२-०५-२०१५ ••••••••••

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हौसला ...(कविता)

15 मई 2015
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अपने हौसला को बुलन्द रखना है सम्भल-सम्भलकर यहाँ चलना है जिन्दगी के सफर में काटे बहुत है अपने पथ से बिचलित नहीं होना है जो भी आते हैं समझाकर रखना है अपने शक्ति में मिलाकर रखना है सीखना-सीखाना है उन्हे सत्य का पाठ इस कार्य को कर्तव्य समझकर चलना है हम जो भी है अभी इसे नहीं गवाना है इसी के बल पर आगे

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मेरे जिन्दगी का एक लम्हा!! (संस्मरण)

16 मई 2015
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अपने गाँव से लेकर बनारस तक खुशी पूर्वक शिक्षा लेकर आनन्द पूर्वक जिवन व्यतीत कर रहे थे तभी एक तुफान आया जो हमारी जीवन के बरबादी का शुरूआत लेकर। एक फूल की तरह हमारी जिन्दगी सवंर ही रही थी कि बारिश के साथ आया तूफान फूल के पंखुड़ियों को झड़ा दिया बस बाकी रह गया वो पत्तियां और टहनिया जिसके जरिए जीना है ।

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मैं दुखी हूँ ..

18 मई 2015
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मैं दुखी हूँ - अपने आप से नहीं, इस समाज से, पुरे समाज से नही, समाज में बिखरी हुई, विसंगतियों से। जो विश्वास के आड़तले, खड़ा होकर पुरा करते हैं, स्वर्थसिद्धि। मैं दुखी हूँ उनसे - जो जनता को धोखे में रखकर, अपने को नतृत्वकर्ता कहते है। सहारा लेते हैं - झूठे वादे, झूठे सपने, झूठे शान-शौकत का। इन्हीं को ह

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इतिहास:-वास्तव में ताजमहल एक शिव मंदिर था...(संकलित)

18 मई 2015
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विश्व के सात प्रमुख आश्चर्यों में शामिल आगरा का ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। मंदिर हिन्दुओं की श्रद्धा और शक्ति के केन्द्र होते थे। राजसत्ता भी धर्म सत्ता के नियंत्रण में थी। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो मोदी राज में भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। ऐ

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इतिहास:-वास्तव में ताजमहल एक शिव मंदिर था...(संकलित)

18 मई 2015
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विश्व के सात प्रमुख आश्चर्यों में शामिल आगरा का ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। मंदिर हिन्दुओं की श्रद्धा और शक्ति के केन्द्र होते थे। राजसत्ता भी धर्म सत्ता के नियंत्रण में थी। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो मोदी राज में भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। ऐ

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मेरे दुख भरे पल की सुगबुगाहट!!!

19 मई 2015
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सुखमय जीवन जा रहा है, दुखमय जीवन आ रहा है महसूस ऐसा क्यों आज, पल-पल मुझे हो रहा है । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ सुख भरे यात्रा को मैं आज तक करते आया हूँ। दुख भरे यात्रा को आज से मैं देख रहा हूँ । ये कितनी लम्बी यात्रा होगी कैसे जान पाऊँ। इसी उधेड़बुन में आज मैं पल पल सोच रहा हूँ। ~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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मोहब्बत को मन में सजाये हुए हैं ••!

21 मई 2015
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मैं भी अन्जान था वो भी अन्जान थी जिन्दगी के सफर में एक पहचान थी दोनों के नयन जब आपस में मिले दिल में हलचल हुई मन सजल हो उठे तब बातों का सिलसिला शुरू हो गए वो कुछ कहने लगी मैं कुछ कहने लगा बातों के दरमियान प्यार पनपने लगा क्षण-प्रतिक्षण एक दूसरे में घुलने लगे खुशियाँ मिली जैसे फुल खिलने लगे

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जेठ की दुपहरी

23 मई 2015
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जेठ की दुपहरी में सुरज ने खोल दिया नैन। अपनी तपती हुई गर्मी से किया सबको बेचैन । पशु-पक्षियों ने छोड़ने लगे अपना रैन। मानव भी इस तपन में हो गया बेचैन। नदी और झरना कर दिये अपने पानी को कम सुख गई सभी नदियाँ झरने हो गये सब बन्द त्राहि -त्राहि मच गया सभी जीवों में एक संग लगे भागने इधर उधर हो गये सब तं

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चाँदनी रात (कविता)

24 मई 2015
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दीवस के समापन के बाद अंधकार का धिरे-धिरे छा जाना। और उनके बीच टिमटिमाते तारो का, नजर आना। मानो जुगनू की तरह विचरण करना। अप्रतिम सुन्दरता को साथ लिए, इसी बीच में खुशबुओं को विखेरती हुई। लोगों को शीतलता प्रदान करती हुई। मन्द मन्द धिमा प्रकाश ज्योति के सहारे। गगन में तारों के फौज के बीच में, मौज के साथ

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मुझे ऐसा लगा .......!!

26 मई 2015
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मुझे ऐसा लगा आपका चेहरा उदास है कहाँ खोये रहती हैं लगाईं क्या आश हैं जब मैं चला अपने आशियाना की तरफ, ऐसा लगा रोकने का कर रही प्रयास हैं। आँखों में देखा भरा आँसुओं का शैलाब है उमड़ रहा था जैसे बादल भरा बरसात है स्पष्टतः हृदय की आवाज़ झलक रही थी, कह रही रुक जाइए करनी कुछ बात है। मौन की ही भाषा में

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शब्दनगरी संगठन के प्रति दो शब्द!!

27 मई 2015
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शब्दनगरी संगठन ने इस वेबसाइट के माध्यम से हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिये एवं हिन्दी के अस्मिता को बनाये रखने के लिए एक सराहनीय कार्य किया गया है । हिन्दी भाषा के साथ -साथ हिन्दी साहित्य का विकास होगा , इस क्षेत्र में साहित्यकारों का मनोबल ऊँचा उठेगा। साथ में सन्देश जन-जन तक फैलेगा। शब्दनगरी संगठ

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शब्दनगरी संगठन के प्रति दो शब्द!!

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शब्दनगरी संगठन ने इस वेबसाइट के माध्यम से हिन्दी भाषा को आगे बढ़ाने के लिये एवं हिन्दी के अस्मिता को बनाये रखने के लिए एक सराहनीय कार्य किया गया है । हिन्दी भाषा के साथ -साथ हिन्दी साहित्य का विकास होगा , इस क्षेत्र में साहित्यकारों का मनोबल ऊँचा उठेगा। साथ में सन्देश जन-जन तक फैलेगा। शब्दनगरी संगठ

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जिन्दगी (कविता)

28 मई 2015
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जिन्दगी भी एक अनुठा पहेली है कभी खुशी तो कभी याद सहेली है कभी उछलते है सुनहरे बागानों में कभी दु:ख भरी यादें रूलाती है अजब उतार चढ़ाव आते रहते है बचपना खेल-खेल में बित जाते हैं भागमभाग जवानी में आ जाते हैं कई उलझने मन में जगह बनाते हैं मानसिक तनाव बढ़ने लगते हैं एक दूसरे से मसरफ बिगड़ते हैं लोग

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सिलसिला

30 मई 2015
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तुम्हारी लबों से आई आवाज़ों में मगरूर होता गया। जब - जब अदाओं को देखा तो सुरूर चढता गया। मुलाकातों का सिलसिला जैसे-जैसे आगे बढता गया हम तुम्हारी तरफ़ इस कदर खिचा हुआ चला आया हर नखरे हमें यु हर रोज दिल को याद दिलाता रहा बलखाते हुए संजीदा बदन हमेशा याद आता रहा कोशिश किया जितना तुम्हें नजरों से दूर ह

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तुम्हारे हर सवाल•••

2 जून 2015
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तुम्हारे हर सवाल मेरे दिल के अन्दर उलफत मचाता रहेगा। न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं, जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा। तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा। तुम्हारे काले-काले घुघराले

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तुम्हारे हर सवाल•••

2 जून 2015
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तुम्हारे हर सवाल मेरे दिल के अन्दर उलफत मचाता रहेगा। न जाने कब तक यादों के झरोखो मे आशियाना बनाता रहेगा तुम्हारे हर कायदा को बरकरार तब- तक संजोकर रखूँगा मैं, जब- तक हुस्न के हर सलीके नजरों के रास्ते समाता रहेगा। तुम्हारे लबों से निकली लफ्जों के मिठास मन में आता रहेगा। तुम्हारे काले-काले घुघराले

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दो टुक---

2 जून 2015
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मन में है खुशी बाहर भी निकाला करों। है बहुत पड़े दुखी उन्हें भी हँसाया करों।।

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मैं नहीं चाहता ..(कविता)

3 जून 2015
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मैं नही चाहता कि तुमको भुल जाऊँ हमेशा के लिए दिल में जगह बनाऊँ भले ही दूरी है हमारे-तुम्हारे बीच में मिटाने केलिए कोई तरकीब बनाऊँ दूरियाँ मिटाकर दोनों एक हो जाऊँ चाँदनी रातों में दोनों लुप्त उठाऊँ तुम्हारे लिये हमेशा मन करता मेरा चाँद-तारो को धरती पर खिच लाऊँ आनंदात्मक पलों का एहसास करूँ दुनिय

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उम्मीद (कविता)

4 जून 2015
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मैं जब कभी -कभी कमरे में जाकर, शान्तिः जहां पर होता है, चुपके से अपनी लिखी हुई पुराना कागज पढता हूँ मेरे जीवन का कुछ विवरण अक्षरों में अंकित है वह एक तरह का पुराना प्रेम-पत्र है जो लिखकर, रखे थे देने के लिए किसी को, जिसे पाने वाला काफी दूर चला गया है। मिलने की कोई उम्मीद नहीं फिर भी आश लगाये हुए है

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पर्यावरण

5 जून 2015
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वृक्षों से मिलती है स्वच्छ हवा लोग वृक्षों को क्षति न पहुचाएं। इन्हीं से मिलती है सुन्दरता इस सुन्दर सुगंध को न गवाएं। महत्वपूर्ण हिस्सा जिन्दगी के हैं अपने परिवार का अंग बनाएँ। बच्चों की तरह इन्हें जन्म देकर सुन्दर सबका भविष्य बनाएँ। वायुमंडल का संतुलन बनाकर निशुल्क प्रदान करते हैं सेवाएं वातावर

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मुक्तक

5 जून 2015
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पर्यावरण का सुरक्षा करना हमारा धर्म है वृक्ष और पौधा लगाना यही हमारा कर्म है इससे वायुमंडल का संतुलन हो जाता है पृथ्वी को हरा भरा करना यही सत्कर्म है ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ दुनिया वालों से हमारा एक यही पुकार है बच्चों की भान्ति वृक्षों का सत्कार करना है वृक्षों से धरा को सजाने और सँवारने के लिए, वृक

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हाइकु

7 जून 2015
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खूबसूरत, मनमोहक अदा, झुकी नज़र, @रमेश कुमार सिंह

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मुक्तक

7 जून 2015
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जिन्दगी बहुत हसीन है हँस- हँस के जीना यारों । दुनिया बहुत लम्बी-चौड़ी है सबको हँसाना यारों। अपने तरफ से सबका पूर्ण सहयोग करना यारों। किसी को दर्द की दुनिया मे पहुचाना नही यारों । ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ नज़र से नजर मिली तो मुलाकातें बढ गई। हमारे तुम्हारे सफर की कुछ बातें बढ़ गई। हर मोड़ पर खोजने

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तनहाईयां

8 जून 2015
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जिन्दगी मे रह-रह कर तनहाईया मिलती हैं हर मोड़ पर ठहर कर रूसवाईया मिलती हैं न जाने कब तक ये मंजर चलता रहेगा यारों इस कठिन डगर पर कठिनाइयाँ मिलती हैं सफर में उसकी यादों की पंक्तियां मिलती हैं जिसे पन्नों में बिखेरने की शक्तियां मिलती हैं शब्दों को लिख कर बिताया करता हूँ यारों कभी पन्नों पर उभरकर झाँक

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मैं तेरे सामने खड़ा हूँ ...

9 जून 2015
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देख पगली क्यूँ उदास है तुम, मैं तेरे सामने खड़ा हूँ चल कहाँ चलना है तुझे मैं भी तेरे साथ चलता हूँ तुम्हारे चेहरे पर इतना उदासी मैं कैसे देख सकता हूँ जी भर के देख अपनी नजरों से मैं तेरे सामने खड़ा हूँ मुझे ऐसा क्यों लगता है तुम बहुत दिन से ढुढ रही हो तुम्हारा चेहरा बतला रहा है मुझे तुम कैस

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नहीं करते ...

9 जून 2015
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साथ छुटे भी तो भूला नहीं करते वक्त की नजाकत से छोड़ा नहीं करते जिसकी आवाज में मधुर और मिठापन हो ऐसी तस्वीर को दिल से हटाया नहीं करते जीने का सहारा मिलता है थोड़ा- थोड़ा, यू ही चले जाने वालों का दिल तोड़ा नहीं करते जो सिधे अपनी गति में बढते है उसे बढने दो ऐसे लोगों का कभी रूख मोड़ा नहीं करते। ------@र

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भ्रष्टाचार (कविता)

12 जून 2015
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आज जरूरत है भ्रष्टाचार से देश को बचाने की मार झेल रहे है गरीब स्वतंत्रता में परतंत्रता की हमें उनको उठाना है जिसे है प्रबल उमंगें जीवन की इसलिए आओ युवक लगा दो बाजी अपने जीवन की नहीं है कोई व्यक्ति इनके उपर ध्यान करने वाला बन जाएं हम सब मिलकर इनके भविष्य का रखवाला इनके रक्षात्मक रणनीति हम सबको बनाना

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हाँ तुम!!(कविता)

14 जून 2015
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~~~~~ हाँ तुम!! मुझसे प्रेम करो। जैसे मैं तुमसे करता हूँ। जैसे मछलियाँ पानी से करती हैं, उसके बिना एक पल नहीं रह सकती। जैसे हृदय हवाओं से करती है हवा बिना हृदय गति रूक जाती है हाँ तुम !! मुझसे प्रेम करो। चाहे मुझको प्यास के पहाड़ों पर लिटा दो। जहाँ एक झरने की तरह तड़पता रहूँ। चाहे सूर्य की किरणों

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प्राकृतिक आपदा (कविता)

15 जून 2015
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यह एक प्राकृति के द्वारा दी गयी हमारे लिए समस्याएं हैं, जिसे हमलोगो को कष्टो एवं क्षति के साथ झेलना पड़ता है । यह बिना पूर्व सुचना के हमारे सामने ताडव मचाता है, इस ताडव में घर-मकान जिव-जन्तु चपेट में आ जाता है। इससे बचने के लिये सावधानीपूर्वक रहना कारगर उपाय है, इसलिए सब लोगों तक को यह संदेश पहुच

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जागो हमारे देश वासियों ....(कविता)

19 जून 2015
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जागो हमारे देश वासियों आज देश जकड़ा है भ्रष्टाचारियों से। हर अपराध रहस्यमय बनता जा रहा है इनके क्रियाकलापों से। समस्यापूर्ण जीवन जी रहे हैं लोग इनके अपनाये व्यवहारों से। अंतर्ज्ञान बढाकर, कर साझा लड़ना है इनके अत्याचारों से । कुछ भी हो कमरकस कूद पड़ना है इस जंग के मैंदानो में झुठ का मकान धराशायी हो

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हाइकु -योगा

21 जून 2015
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योगासन से, मन को शांत कर, व्यथा से दूर। @रमेश कुमार सिंह

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हाइकु

21 जून 2015
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हाइकु -- ---------- गर्मी का जाना, मानसून का आना, राहत मिला। ••••••••••••• @रमेश कुमार सिंह

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मुक्तक ---

24 जून 2015
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अब तुम्हारे साथ रहने को दिल करता है, साथ में रहकर हँसने को दिल करता है, जब दूर रहना था हम दोनों को यहां पर, ईश्वर ने साथ आने की इजाज़त क्यों देता है । @रमेश कुमार सिंह /२४-०२-२०१५

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मेरा बचपन...(कविता)

24 जून 2015
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अपने बचपन की बातें मुझे भी आज भी याद है साथियों के साथ खेलना कुदना बहुत सुंदर पल था टोली बनाकर नदी में स्नान करने जाते थे पानी में बहुत देर तक डुबकीयां लगाया करते थे नदी के किनारे पर बैठ कर रेत से खेलवाड़ करते थे रेत और पानी को मिलाकर सपनों का महल बनाते थे आपस में टक्कर करके अलग-अलग सजाते थे क्षणभ

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मेरा पहला हिन्दी साहित्य सम्मान

24 जून 2015
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रामकिशोर उपाध्याय अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच समारोह 36 के अंतर्गत विविधा आयोजन में श्रेष्ठ रचनाकार चयनित किया गया है। मैं अध्यक्ष महोदय एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच के सुधीजनो का आभार व्यक्त करता हूँ एवं सभी साथियों को हृदय तल से बहुत बहुत धन्यवाद!!! साथियों के सहयोग एवं हिन्दी साहित्य

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जुदाई

26 जून 2015
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ये कैसी जुदाई दिया तुने मेरा हाल बुरा हो गया। फटी सी जिन्दगी में मेरा दिल तड़पता रह गया। तेरे इस तनहाई के दर्द से मैं गुजरता चला गया। अब तक आशु तो बह रहे थे दिल रोता रह गया। आँखों के खुलने पर तुम्हे याद करता रह गया। आँखों के बन्द होने पर ख्वाब देखता रह गया। याद और ख्वाब में अपना संसार देखता

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अपनी दुनिया

28 जून 2015
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अपनी दुनिया को देखने में हम लगे हैं रंग भरी दुनिया रंगीन बनाने में लगे हैं कैसे बनेगा कुछ पता नहीं चल रहा है कुछ लोगों के बताने पर चल रहे हैं चलते हुए डगर पर हमेशा सोच रहे हैं स्मरण शक्ति से ही सपने सजा रहे हैं अपना ख्वाब कैसे पुरा होगा इस दुनिया में यही तरकीब बनाने में दिन रात सोच रहे ह

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जीवनपर्यंत

1 जुलाई 2015
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प्रतिक्षण, प्रतिपल, प्रतिदिन, मेरे हृदय के दीपक धिरे-धिरे जल। मेरे प्रिये का पथ अलोकित कर। मृदु आभास, अपरिमित, जीवन का अणु, तुम धुप की तरह फैलाओ पंख। मन्द-मन्द दीपक की लौह जल। विश्वसुलभ, जल पाया, ज्वाला कण, सभी शीतलता एवं कोमलता का नूतन। तुम मेरे जीवन में नित्य प्रस्फुटित कर। अग्नोन्मुख जीवन पर्यंत,

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पानी टपक रहा है ...

2 जुलाई 2015
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बरसात का मौसम है पानी टपक रहा है शीतलता मिल रही है आनन्द आ रहा है बारिश के बुन्दों से तन-मन सिहर रहा है ठन्डी- ठन्डी हवाओं से मन मचल रहा है बादल उमड़कर, गगन में दीख रहा है अपनी बुन्दों से सबको चमन कर रहा है सूखी पड़ी थी धरती अंकुरण हो रहा है खेतो में चारोतरफ हराभरा दीख रहा है किसानों

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प्रेम में रंजीत कर जीवन प्रेममय कर दो!

6 जुलाई 2015
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प्रेम में रंजीत कर, जीवन प्रेममय कर दो। दिल के अंधेरे में, प्रेम का प्रकाश कर दो।। मुझे प्रेमयुक्त दुनिया का, सफर करा दो। सर्वत्र प्रेम बाटने लगे, मुझे ऐसा बना दो।। • प्रेमभरी दुनिया से दूर हूँ नजदीक ला दो। प्रेम का स्नान कर लूँ , कुछ ऐसा कर दो।। जरूरत है मुझे प्रेम का तुम राह बता दो। मैं प्रेम का

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मुक्तक --

9 जुलाई 2015
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--------------मुक्तक- (१)--------------- अपने आपके लिए.... बहुत से लोग जीते हैं। कभी एक दूजे के लिए भी.. लोग जी लेते हैं। ऐसा करें, लोग दिल में अच्छा जगह देते रहे, अपने से ज्यादा दिलदार दूसरे लोग ही देते हैं। ••••••••••••••••••••••••••••••••• --------------मुक्तक- (२)---------------- सुनो साथियों हम

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मुक्तक --

9 जुलाई 2015
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--------------मुक्तक- (१)--------------- अपने आपके लिए.... बहुत से लोग जीते हैं। कभी एक दूजे के लिए भी.. लोग जी लेते हैं। ऐसा करें, लोग दिल में अच्छा जगह देते रहे, अपने से ज्यादा दिलदार दूसरे लोग ही देते हैं। ••••••••••••••••••••••••••••••••• --------------मुक्तक- (२)---------------- सुनो साथियों हम

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कामयाबी

17 जुलाई 2015
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कामयाबी ••••••••••• पैसा प्रतिष्ठा या सत्ता पा जाना ही कामयाबी नहीं है सच्ची सफलता भितर से मिलने वाली खुशीयां है। • यह तभी मिलती है जब उस चीज़ को पाने के लिए, समय और जीवन समर्पित होता है उस कार्य के लिए। • हमेशा यह पता होना चाहिए जिन्दगी में करना क्या है? कामयाब हुए हैं जो लोग अपने मंसूबे को तय किया

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धोबी गीत (प्रथम प्रयास)

17 जुलाई 2015
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धोबी गीत --(भोजपुरी) •••••••••••••••••• नाच देखे जाइब... (नायक) ओ ही धोबी घटवा-2 अरे, कपड़ा फिचत होईइइइ... मोरे रे दुलहिनीयाँ...... • ये ही टाइम आईब (नायिका) ओ ही पानी घटवा -२ साथ में फिचल जाईई....... मिलकर रे सवरियाँ...... • खुब मजा लेहल जाइब। (दोनों साथ में) ओ ही धोबी घटवा -२ पनबुलबुल साथ मे

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विवशता एक पशु का

19 जुलाई 2015
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•••••••••••••••••••• विवशता एक पशु का •••••••••••••••••••• मैं चरते हुए देखा, एक पशु को घास के मैदान में, हरी बिछली घास पर कर रहा था. भुख की छुदा को शान्त करने की, कोशिश अनवरत-- लेकिन इस मानव की कारतुते भी अजीब है, इसमें भी बाधक बनता है, उसके साथ किया था, घोर अन्याय। उसके चार पैरों को बाधकर, कर दिया

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हाइकु से बनी कविता

24 जुलाई 2015
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••••••• भर लो मुझे, बाहों के आगोश में, था मैं बेचैन।। •••••• अभी आकर, हो गये हम एक, लिपटकर।। •••••••• मेरा व तेरा, प्रफुलित हो रहा, अपनापन।। •••••• रमेश कुमार सिंह

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संस्कृति (कविता)

25 जुलाई 2015
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बयार वह रही है हम साथ-साथ बह रहे हैं एक दूसरे के स्नेह को मजाक समझ रहे हैं आये दिन सभी लोग सद्विचार छोड़ रहे हैं कुविचारों को अपने चित में जगह देरहे हैं भारतीय संस्कृति से हम सब दूर जा रहे हैं स्नेह के जगह पर ईर्ष्यालु बनते जा रहे हैं द्वेषपूर्ण भावनाओं को मन में पाल रहे हैं आज अपने अन्दर लोग धारणा

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काली घटा (कविता)

25 जुलाई 2015
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खुले आसमान में बादलों का उमड़ना सभी जीवों को गर्मी से राहत पहुंचाना मानो बादलों का बदलीं रूपी मुस्कान, बुन्दो के रुप में शीतलता प्रदान करना सबको ठन्डे मौसम का एहसास होना। मन्द-मन्द सर्द हवाएं रह-रह बहना। काली-काली घटा नभ में छा जाना, तन-मन को एक नयी उमंग पहुँचना।। @रमेश कुमार सिंह /२५-०६-

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पर जाने क्यों???

28 जुलाई 2015
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पर जाने क्यों लोग यहां--------- अभिमानी बन जाते हैं। हद कर जाते सीमा को,---------- मानवता भूल जाते हैं। वश नहीं जब चलता है तो--- साथ निभाना छोड़ जाते हैं। किसी माध्यम से प्रताड़ित करने का मन में भाव जगाते हैं। नरता का आदर्श- उसके स्वभाव से पलायन कर जाते हैं। जो देता नहीं किसी को प्रकाश,आग में सदैव

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गुरु के प्रति दो शब्द ---

31 जुलाई 2015
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••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उस गुरु को मैं सत् सत् नमन् करता हूँ!!! जिन्होंने हमें नये - नये विचारों पर चलना सिखलाए। जिन्होंने हमें नैतिकता,उज्ज्वल भविष्य,को दिखलाए। जिन्होंने हमें---जीवन जीने का उद्धार मार्ग बतलाए। जिन्होंने हमें हर प्रकार की शिक्षा से परिपूर्ण बनाये। उस गुरु को म

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गुरु के प्रति दो शब्द ---

31 जुलाई 2015
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••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• उस गुरु को मैं सत् सत् नमन् करता हूँ!!! जिन्होंने हमें नये - नये विचारों पर चलना सिखलाए। जिन्होंने हमें नैतिकता,उज्ज्वल भविष्य,को दिखलाए। जिन्होंने हमें---जीवन जीने का उद्धार मार्ग बतलाए। जिन्होंने हमें हर प्रकार की शिक्षा से परिपूर्ण बनाये। उस गुरु को म

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रिमझिम बारिश ☔

4 अगस्त 2015
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रिमझिम रिमझिम~~ बारिश होती। ठन्डी ठन्डी हवा जो~~~~~बहती। सिहरन पैदा तन-मन में~~ करती। ठनडापन का~~ एहसास दिलाती। • जलपरी अपने को~~~~~ कहती। हम सबके चरणों को~~~~ धोती। जहां तहां पानी की बौछारें~ करके, सबका नि:शुल्क कल्याण~~करती। • जमीन को पानी से~~~ तर करती। किसानों का हृदय ठन्डा~~ करती। धान के बिजड़े

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वो चली गई क्यों ?

7 अगस्त 2015
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उसके चले जाने का ~जितना मुझे गम न था।वो कभी कभी मिले~~उतना मुझे कम न था।आखिर वो चली गई क्यों? मुझे तन्हा छोड़कर,उसके मुलाकातो का मिठास मुझे कम न था।क्या जिन्दगी मिलती है अकेले बिताने के लिए क्या लोग मिलते हैं राह में छोड़ जाने के लिए अगर ऐसे ही लोग मिलते रहें हमसफर में तो,क्यों बनातें हैं अपना किसी

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इन्सान

13 अगस्त 2015
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ऐ ऊपरवाले क्यों बड़ा रचकर बनाया ऐसा इन्सान। बनाते समय सोचा होगा कि ये प्राणी हैं~ बुद्धिमान। बहुत बड़े शैतानों की श्रेणी में~~आ गये हैं ये मनुष्य,इनके हरकतों से दूसरे प्राणी भी~~ हो गये हैरान।।बनाकर भेजा इस मानव को~~यहाँ सबका रक्षक। बन गया इस धरती पर आकर यहाँ सबका भक्षक। लगे छिप-छिपकर रहने यहाँ सभी जी

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मुक्तक

13 अगस्त 2015
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•••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••••काले-काले बालों को लहराने से, नभ में काली घटा छाने लगी।ओठों पर मुस्कुराहट लाने से~~चेहरे पर हरियाली छाने लगी।ये जुल्फे, ये आँखें, इस मधुर-मधुर मुस्कुराहट के संमागम से,ऐसा कर गई, मुझ पर जादू, कि ख्वाबों-ख्यालों में आने लगी।••••••••••••••••••@रमेश

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आजादी

14 अगस्त 2015
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पराधीनता के आड़ में~ स्वतंत्रता कितना प्यारा नाम।इसी चाहत में किये वीर सपुत्र~ अपना काम तमाम ।सन् सन्तावन में वीरों ने शुरू किया स्वतंत्रता संग्राम ।आजादी की घोषणा कर देश में किये महत्वपूर्ण काम।देश के वीर जवनों एवं अंग्रेजों में युद्ध हुआ घमासान।गिरते गये भारतमाता के लाल, पिछे नहीं हटे जवान।उनके हर

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आज और कल

14 अगस्त 2015
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यह कैसी आजादी है ?———————-!!देश की हो रही बर्बादी———————-!!कल देश के लिए कितने लाल~~हो गये कुर्बान। आज देश के लिए बन गए नेता~ अच्छे मेहमान। कल वीर सपूतों ने~ अपना सर कलम कर दिये। आज नेताओं ने माँ के साथ छल कपट कर रहे हैं।कल वीर सपूतों ने माँ के प्रति किया अच्छा काम। आज नेताओं ने भारत माँ को बेच रहा

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देख रही है

23 अगस्त 2015
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रूपसि तेरा,श्यामल-श्यामल,कोमल-कोमल,केश-पाश,लहराता है,तेरे वक्ष पर।सजल अंग,खुली अलकों से,तिरछी नजर के छोरों में,तेरा उज्ज्वल हास्।पुलकित कर-मन को,शीतल मुस्कान लिए,अंकित कर ,चंचलता मन में लिए।आँखों के कोरों से, देख रही है!!!----••••------रमेश कुमार सिंह२२-०७-२०१५

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प्यार 💘 इजहार

23 अगस्त 2015
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•••••••••••••••••••••••••••••••••लो हाथों में--- प्यारा फूल सजा लो।दिल के अन्दर--- मेरा दिल बसा लो।उमंग भरे पल में--- इजहार करके,मेरी दुनिया को--- अपना बना लो।।••••••••••••••••••••••••••••तेरे लिए मैं यहा वक्त लेकर आया हूँ।इस खुशी पल में कुछ लेकर आया हूँ।मेरी हँसी को अपनी हँसी में मिलाना,प्य

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कहीं कहीं

24 अगस्त 2015
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कहीं-कहीं हवा बहीं, कहीं-कहीं घटा छाईं,कहीं-कहीं फुहारों की गजब सी छटा चली।कहीं-कहीं गगन में, बादलों की घटा छाईं,कहीं-कहीं उसे देख उमंग भरी छटा चली।कहीं-कहीं खेतों में हरियाली की घटा छाईं,कहीं-कहीं फसलों में लहरों की छटा चली।कहीं-कहीं किसानों में खुशियों की घटा छाईंकहीं-कहीं खेतों में औजारों की छटा

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फुटपाथ के बशिंदे

7 अक्टूबर 2015
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पिघल उठता है हृदय,जब नजर जाती है फुटपाथ पर,कैसे ? बिताते हैं अपना जीवन।उस भयानक डगर पर।अपना बसेरा खुले आसमान में बनाये हैं।रुलाई गुप्त कमरे में,उनके हृदय में उमड़ती है।सुसंस्कृत,बुद्धिमानों की श्रेणी में नहीं आते।इन सब चीजों से दूर,उसी परिवेश में जन्मे बालकों का,परिवरिश करती हैं।अ

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देश की कैसी हालत बन गई है

13 मई 2016
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देशद्रोहीयों  के  कारण  कैसी  हालत  बन  गई  है।यहाँ   लुट- घसोट  की   जैसी  आदत  बन  गई  है।नहीं किसी पर कोई रहम, यहाँ चलता है मनमानी, अपने स्वार्थ  को  पूर्ण  करना  आदत  बन  गई  है।आज हमारे देश की कैसी हालत बन गई है------।हो   रहा  है  हर  जगह  पर  भारी-भारी अत्याचार।मंत्री से अधिकारी  तक  नहीं  कर

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