विश्व के सात प्रमुख आश्चर्यों में शामिल आगरा का ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है। मंदिर हिन्दुओं की श्रद्धा और शक्ति के केन्द्र होते थे। राजसत्ता भी धर्म सत्ता के नियंत्रण में थी। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो मोदी राज में भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। ऐसे में केन्द्र व प्रदेश सरकार की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि ताजमहल की सच्चाई को उजागर करे। जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्ट्रीय शर्म और क्या हो सकता है? मुगल आक्रमणकारियों ने जब भारत पर आक्रमण किया तो उन्होंने सबसे पहले यहां के श्रद्धा और प्रेरणा के केन्द्र हिन्दू मंदिरों को ही निशाना बनाया। किसी भी देश पर विजय प्राप्त करनी हो तो सबसे पहले उस देश के इतिहास को मिटा दो। किसी भी देश के नागरिक अपने राष्ट्र के इतिहास से ही प्रेरणा लेते हैं। इसीलिए मुगलों ने सबसे पहले यहां के इतिहास को मिटाने का काम किया। यही काम अंग्रेजों ने भी किया।
कुछ लोग तर्क देते हैं कि मुस्लिमों ने लूट के लिए मंदिरों पर हमला किया था। लेकिन अगर उनकी मंशा केवल मंदिर के धन को लूटने तक होती तो वे मंदिरों को तहस-नहस कर जमीदोंज नहीं करते। भारत में हजारों मंदिर हैं जिनको मुगलों ने तोड़ कर मंदिर के मलबे से ही मस्जिद खड़ी की गयी। अयोध्या का श्रीराम जन्मभूमि मंदिर,वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर ,मथुरा का श्रीकृष्णजन्मभूमि और गुजरात के सोमनाथ मंदिर इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। इसी तरह भारत में हजारों मंदिर के प्रमाण हैं जिन्हें तोड़ कर मस्जिद बनायी गयी है। इन मंदिरों की मुक्ति का आन्दोलन आजादी से पहले भी जारी था लेकिन आजादी मिलने के बाद केवल एक मंदिर गुजरात स्थित सोमनाथ मंदिर को ही प्रतिष्ठा मिल पायी बाकी के मंदिर आज भी बाट जोह रहे हैं। ऐसा ही इतिहास आगरा स्थित ताजमहल का है। मुगलों ने इसे प्रचारित किया कि बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की यादगार में ताजमहल का निर्माण कराया था। लेकिन यह पूर्णतया आधारहीन तथ्य है। पहली बात तो यह है कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताजमहल था ही नहीं, उसका नाम मुमताज-उल-जमानी था। शाहजहां और यहां तक कि औरंगजेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है।
पी.एन. ओक ने अपनी पुस्तक ‘‘ताजमहल इज ए हिन्दू टेम्पल प्लेस’’ में ऐसे ही 100 से भी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा किया है कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। ताज में संगमरमर की सीढ़ियाँ चढ़ने के पहले जूते उतारने की परंपरा शाहजहां के समय से भी पहले की थी जब ताज शिव मंदिर था। यदि ताज का निर्माण मकबरे के रूप में हुआ होता तो जूते उतारने की आवश्यकता ही नहीं होती क्योंकि किसी मकबरे में जाने के लिये जूता उतारना जरूरी नहीं होता। इसी तरह संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित उसके ऊपर 108 कलश आरूढ़ हैं, हिंदू मंदिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। भारतव में 12 ज्योतिर्लिंग है। जानकारों के मुताबिक ताजमहल उनमें से एक है जिसे कि नागनाथेश्वर के नाम से जाना जाता था क्योंकि उसके जलहरी को नाग के द्वारा लपेटा हुआ जैसा बनाया गया था। जब से शाहजहां ने उस पर कब्जा किया, उसकी पवित्रता समाप्त हो गई।
आगरा के निवासियों की सदियों से दिन में पाँच शिव मंदिरों में जाकर दर्शन व पूजन करने की परंपरा रही है विशेषकर श्रावन के महीने में।यहां के भक्तजनों को बालकेश्वर, पृथ्वीनाथ, मनकामेश्वर और राजराजेश्वर नामक केवल चार ही शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन उपलब्ध हैं। वे अपने पाँचवे शिव मंदिर को खो चुके हैं जहां जाकर उनके पूर्वज पूजा पाठ किया करते थे। स्पष्टतः वह पाँचवाँ शिवमंदिर आगरा के इष्टदेव नागराज अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर ही है जो कि तेजोमहालय मंदिर उर्फ ताजमहल में प्रतिष्ठित थे।
ताजमहल इज ए हिन्दू टेम्पल प्लेस के अनुसार औरंगजेब के द्वारा अपने पिता को लिखी गई चिट्ठी में सन् 1662 में औरंगजेब ने खुद लिखा है कि मुमताज के सातमंजिला दफन स्थान के प्रांगण में स्थित कई इमारतें इतनी पुरानी हो चुकी हैं कि उनमें पानी चू रहा है और गुम्बद के उत्तरी सिरे में दरार पैदा हो गई है। इसी कारण से औरंगजेब ने खुद के खर्च से इमारतों की तुरंत मरम्मत के लिये फरमान जारी किया और बादशाह से सिफारिश की थी कि बाद में और भी विस्तारपूर्वक मरम्मत कार्य करवाया जाये। यह इस बात का साक्ष्य है कि शाहजहाँ के समय में ही ताज प्रांगण इतना पुराना हो चुका था कि तुरंत मरम्मत करवाने की जरूरत थी।
शाहजहां ने ताजमहल पर कुरान की आयतें खुदवाने के लिए मरकाना के खदानों से संगमरमर पत्थर और उन पत्थरों को तराशने वाले शिल्पी भिजवाने के लिए जयपुर के शासक जयसिंह को तीन फरमान जारी किये थे।
शाहजहां के ताजमहल पर जबरदस्ती कब्जा कर लेने के कारण जयसिंह इतने कुपित थे कि उन्होंने शाहजहां के फरमान को नकारते हुये संगमरमर पत्थर तथा शिल्पी देने के लिये इंकार कर दिया। जयसिंह ने शाहजहां की मांगों को अपमानजनक और अत्याचारयुक्त समझा और इसीलिये पत्थर देने के लिये मना कर दिया साथ ही शिल्पियों को सुरक्षित स्थानों में छुपा दिया था। इससे स्पष्ट है कि मंदिर को अपवित्र करने, मूर्तियों को तोड़ कर छुपाने और मकबरे का रूप देने में ही उसे 22 वर्ष लगे थे।
पी.एन. ओक की पुस्तक के अनुसार ताज के नदी के तरफ के दरवाजे के लकड़ी के एक टुकड़ के एक अमेरिकन प्रयोगशाला में किये गये कार्बन 14 जाँच से पता चला है कि लकड़ी का वो टुकड़ा शाहजहां के काल से 300 वर्ष पहले का है, क्योंकि ताज के दरवाजों को 11वी सदी से ही मुस्लिम आक्रामकों के द्वारा कई बार तोड़कर खोला गया है और फिर से बंद करने के लिये दूसरे दरवाजे भी लगाये गये हैं, ताज और भी पुराना हो सकता है। असल में ताज को सन् 1115 में अर्थात् शाहजहां के समय से लगभग 500 वर्ष पूर्व बनवाया गया था।
चार कोणों में चार स्तम्भ बनाना हिंदू विशेषता रही है। इन चार स्तम्भों से दिन में चैकसी का कार्य होता था और रात्रि में प्रकाश स्तम्भ का कार्य लिया जाता था। ताजमहल के गुम्बद के बुर्ज पर एक त्रिशूल लगा हुआ है। इस त्रिशूल का का प्रतिरूप ताजमहल के पूर्व दिशा में लाल पत्थरों से बने प्रांगण में नक्काशा गया है। त्रिशूल के मध्य वाली डंडी एक कलश को प्रदर्शित करती है जिस पर आम की दो पत्तियाँ और एक नारियल रखा हुआ है। यह हिंदुओं का एक पवित्र रूपांकन है। इसी प्रकार के बुर्ज हिंदू मंदिरों में भी होते हैं।
ताजमहल के चारों दशाओं में बहुमूल्य व उत्कृष्ट संगमरमर से बने दरवाजों के शीर्ष पर भी लाल कमल की पृष्ठभूमि वाले त्रिशूल बने हुये हैं। सदियों से लोग इन त्रिशूलों को इस्लाम का प्रतीक चांद-तारा मानते आ रहे हैं और यह भी समझा जाता है कि अंग्रेज शासकों ने इसे विद्युत चालित करके इसमें चमक पैदा कर दिया था। जबकि सच्चाई यह है कि यह हिंदू धातुविद्या का चमत्कार है क्योंकि यह जंगरहित मिश्रधातु का बना है और प्रकाश विक्षेपक भी है। त्रिशूल के प्रतिरूप का पूर्व दिशा में होना भी अर्थसूचक है क्योकि हिंदुओं में पूर्व दिशा को, उसी दिशा से सूर्योदय होने के कारण, विशेष महत्व दिया गया है। गुम्बद के बुर्ज अर्थात् (त्रिशूल) पर ताजमहल के अधिग्रहण के बाद अल्लाह शब्द लिख दिया गया है जबकि लाल पत्थर वाले पूर्वी प्रांगण में बने प्रतिरूप में अल्लाहश् शब्द कहीं भी नहीं है।
इसके अलावा आश्चर्य की बात है कि बिना मीनार के भवन को मस्जिद बताया जाने लगा। वास्तव में ये दोनों भवन तेजोमहालय के स्वागत भवन थे। उसी किनारे में कुछ गज की कुछ दूरी पर नक्कारखाना है जो कि इस्लाम के लिये एक बहुत बड़ी असंगति है क्योंकि शोरगुल वाला स्थान होने के कारण नक्कारखाने के पास मस्जिद नहीं बनायी जाती। इससे जाहिर होता है कि वह शिव मंदिर ही है। गौरतलब हो कि हिंदू मंदिरों में सुबह शाम आरती में घंटे,घड़ियाल और नगाड़े बजाये जाते हैं।
जहाँ पर वर्तमान में मुमताज का कब्र बना हुआ है वहाँ पहले तेज लिंग हुआ करता था जो कि भगवान शिव का पवित्र प्रतीक है। इसके चारों ओर परिक्रमा करने के लिये पाँच गलियारे हैं। संगमरमर के अष्टकोणीय जाली के चारों ओर घूम कर या कमरे से लगे विभिन्न विशाल कक्षों में घूम कर और बाहरी चबूतरे में भी घूम कर परिक्रमा किया जाता है। हिंदू रिवाजों के अनुसार परिक्रमा गलियारों में देवता के दर्शन हेतु झरोखे बनाये जाते हैं। इसी प्रकार की व्यवस्था इन गलियारों में भी है। कोई भी व्यक्ति जो ताज महल गया होगा वह हिन्दू मंदिर से तुलना करेगा तो उसे काफी समानता वहां देखने को मिलेगी। जहां तक हमने अपने आंखों से देखा है मंस्जिद के अंदर ज्यादा स्थान भी खाली नहीं रहता है इसके उलट किसी भी बड़े मंदिर को आप देखें तो मंदिर के बाहर बड़ा खुला मैदान मिलेगा। ताज भवन में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि हिंदू परंपरा के अनुसार शरदपूर्णिमा की रात्रि में अपने आप शिव लिंग पर जल की बूंद टपके। इस पानी के टपकने को इस्लाम धारणा का रूप दे कर शाहजहां के प्रेमाश्रु बताया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में बेल पत्तियों का विशेष प्रयोग होता है। ताज की वाटिकाओं में बेल तथा अन्य फूलों के पौधों की उपस्थिति सिद्ध करती है कि शाहजहां के हथियाने के पहले ताज एक शिव मंदिर हुआ करता था। भारत में स्थित अधिकांश बड़े मंदिर किसी न किसी नदी के तट पर ही स्थित हैं। ताजमहल भी यमुना नदी के तट पर ही स्थित है। यमुना नदी में भक्त स्नान कर मंदिर के दर्शन हिंदू मंदिर प्रायः नदी या समुद्र तट पर बनाये जाते हैं। ताज भी यमुना नदी के तट पर बना है जो कि शिव मंदिर के लिये एक उपयुक्त स्थान है। इससे यह सिद्ध होता है कि ताजमहल वास्तव में शिव मंदिर है। इस विषय को किसी भी पंथ या मजहब से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। राष्ट्रहित में जो सच्चाई है उसे जानने का हक हर आदमी का है। इसलिए केन्द्र की मोदी सरकार को जनाकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए ताजमहल की सच्चाई से जनता को वाकिफ करायें।