दिले चाह जरूरी है मगर दिले नादानी कहा तक है मुमकिन एक वफा कर के तो देख बेवफाई तुम्हें इल्जाम लगेगे जरूर कोसेगे मन तुम्हें जब फुर्सत के पल आराम करोगे भागोगे कब तक काह पे तुम जब फर्ज का एहसास तुम्हें परेशान करेगे किसी का दिल तोडना गुनाह हो समझते तो दिल्लगी करने का ख्याल ही क्यो हो रखते दिलो की चाह तो है सासों से जुडी दिल को क्यों तुम खेलवाड हो समझते दिल्लगी नही एहसासों का समंदर जो बेवजह परेशान लगे दिल्लगी तो है बहारों का मौसम जो चंद पलो का ऐहसान करे मुश्किलों घड़ी का जो सामना करे वही तो जग में इन्सान बने दिले चाह एक तपस्या है उदासी साधना कब किसी को परेशान करे नादानीयो का है एक वक्त मुकर्रर जो हर वक्त करे तो वह खुद को कैसे इन्सान कहे