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“मुक्तक” सुर्ख गाल नहीं तकता

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“मुक्तक”मचल रहा है चीन, गिन रहा अपना पौवा। ले पंख दूरबीन, चढ़ाई करता कौवा। काँव काँव कर नोंच, चोंच मारे है पगला- अंगुल भर की जीभ, हिलाये कचरा हौवा। धावा बोले मुर्ख, सुर्ख गाल नहीं तकता। कबसे लहूलुहान, हुआ है घायल वक्ता। झूठा उसका दं

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