23 मार्च 2018
“मुक्तक”मचल रहा है चीन, गिन रहा अपना पौवा। ले पंख दूरबीन, चढ़ाई करता कौवा। काँव काँव कर नोंच, चोंच मारे है पगला- अंगुल भर की जीभ, हिलाये कचरा हौवा। धावा बोले मुर्ख, सुर्ख गाल नहीं तकता। कबसे लहूलुहान, हुआ है घायल वक्ता। झूठा उसका दं