कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए |
क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना पाए ||1||
मेरे गुजरे हुए वक्त में वह मेरा काफी अच्छा रफीक था |
फिर इतनी दूर क्यों गया वह कि चाहे भी तो मिल ना पाए ||2||
या खुदा लबों पर मेरे इतनीे हंसी हमेशा बनाए रखना |
चाह कर कोई मेरे जख्मों को गिने भी तो गिन ना पाए ||3||
बहुत कोशिश की पुरानी चादर से खुद को पूरा ढकने की |
पर मेरे पैरहन मे थे इतने छेद कि छिपे भी तो छिप ना पाए ||4||
एक अरसे से भटक रहा हूं तेरे शहर में यहाँ से वहाँ बनके साकिब |
पर मेरे कदमों को तेरे घर का पता ना जानें क्यों मिल ना पाए ||5||
कम बोलता हूं अक्सर दुनिया के सामने आनें पर मैं |
डरता हूं इससे कि राजे मोहब्बत हमारा तुम्हारा कहीं खुल ना जाए ||6||
ताज मोहम्मद
लखनऊ