देखो बुजुर्गों की जायदाद से आज हम बेदखल हो गए हैं |
ऐसे लगे जैसै हमारे ही घर में हम अपनों से कतल हो गए हैं ||1||
कोई सीरत ही ना रही अब हममें हम बे सीरत-ए-शकल हो गए हैं |
अब क्या कुछ सोचे इस मौजू पे हम अकल से बेअकल हो गए हैं ||2||
हर्फ क्या बदले वसीयत के लोगों हम तुम्हारे लिए बेअसर हो गए है |
आए थे हमारे हिस्से में जो बाग वो सारे के सारे बेशज़र हो गए हैं ||3||
बड़े बदकिस्मत है वो माँ-बाप भी यूँ जिनके बच्चें बेअदब हो गए हैं |
सारे के सारे अबतो जखम उनके यूँ मरने के बाद बे दरद हो गए हैं ||4||
क्यूँ करे वह भरोसा मेरी बात का मेरे अहद जब बे अहद हो गए हैं |
ऐसे टूट जानें पर यूँ ही अहदों के किये हर काम बे सबब हो गए हैं ||5||
जब से खतम सब ही ये रिश्ते हुये एक दूसरे से हम बेखबर हो गए हैं |
कभी जो थे उनकी आंखों के तारे आज सब के सब बेनजर हो गए हैं ||6||
एक तुम्हारे ही कारन आज से ऐसे मेरे माँ-बाप अब बेपिसर हो गए हैं |
वैसे अच्छा ही किया मजबूर तुमने आज डर से वह बेफिकर हो गए हैं ||7||
पहचान क्या ले ली अपनों नें हमारी अपने ही वतन में हम बेवतन हो गए |
यूँ दूर जानें मेरे माँ-बाप के ज़िन्दगी से हम जानें कितना दिल से बेचैन हो गए ||8||
ताज मोहम्मद
लखनऊ