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6. बुजुर्गों की जायदाद से।

9 नवम्बर 2021

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देखो बुजुर्गों की जायदाद से आज हम बेदखल हो गए हैं |
ऐसे लगे जैसै हमारे ही घर में हम अपनों से कतल हो गए हैं ||1||


कोई सीरत ही ना रही अब हममें हम बे सीरत-ए-शकल हो गए हैं |
अब क्या कुछ सोचे इस मौजू पे हम अकल से बेअकल हो गए हैं ||2||


हर्फ क्या बदले वसीयत के लोगों हम तुम्हारे लिए बेअसर हो गए है |
आए थे हमारे हिस्से में जो बाग वो सारे के सारे बेशज़र हो गए हैं ||3||


बड़े बदकिस्मत है वो माँ-बाप भी यूँ जिनके बच्चें बेअदब हो गए हैं |
सारे के सारे अबतो जखम उनके यूँ मरने के बाद बे दरद हो गए हैं ||4||


क्यूँ करे वह भरोसा मेरी बात का मेरे अहद जब बे अहद हो गए हैं |
ऐसे टूट जानें पर यूँ ही अहदों के किये हर काम बे सबब हो गए हैं ||5||


जब से खतम सब ही ये रिश्ते हुये एक दूसरे से हम बेखबर हो गए हैं |
कभी जो थे उनकी आंखों के तारे आज सब के सब बेनजर हो गए हैं ||6||


एक तुम्हारे ही कारन आज से ऐसे मेरे माँ-बाप अब बेपिसर हो गए हैं |
वैसे अच्छा ही किया मजबूर तुमने आज डर से वह बेफिकर हो गए हैं ||7||


पहचान क्या ले ली अपनों नें हमारी अपने ही वतन में  हम बेवतन हो गए |
यूँ दूर जानें मेरे माँ-बाप के ज़िन्दगी से हम जानें कितना दिल से बेचैन हो गए ||8||

ताज मोहम्मद 
   लखनऊ 











ताज मोहम्मद

ताज मोहम्मद

किसी को मेरी गज़ल मे कोई भी गल्ती लगे तो सही करने का सुझाव दे। आपका आभारी रहूंगा। धन्यवाद।

10 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
अल्फ़ाज़-ए-अंदाज़ भाग-1
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यह किताब कोई बाजार में बेचनें के लिए नहीं लिखी गई है | किताब के जरिये मैं बस आप लोगों से जुड़ना चाहता हूँ | मेरा मानना ( यें सिर्फ मेरे विचार है, इनसे किसी को कष्ट हो तो छोटा समझ के माफ कर देंना ) है कि अल्फाजों की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है, ये भाव जो एक लेखक अल्फाजें के जरिए प्रस्तुत करता करता है उस भाव का कोई मोल नहीं हो सकता है | ये अल्फाज अनमोल होते हैं | इस किताब के जरिये मेरी एक छोटी सी पेशकस आप सभी लोगों के लिए प्रस्तुत है |
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1. जो खुशी है।

9 नवम्बर 2021
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<p>जो खुशी है एक बच्चे की तोतली आवाज में |</p> <p>जाके ढूँढों ये मिलती नहीं किसी भी बाजार में ||1||<

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2. मेरी माँ

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<div>रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |</div><div>जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज

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3. खै-ओ-खबर के लिए

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<div> </div><div>शहर-शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए |</div

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4. ऐसी कोई सोहबत नही।

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<div><br></div><div>उन्हें ना आने के जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</div><div>किस को कौन समझाए द

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5. मोहब्बत में जिनकी हम।

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<div>जाने कब से हम उनको खुदा कह रहे हैं |</div><div>और एक वो हैं जो हमको सजा दे रहे हैं ||1||</div><

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6. बुजुर्गों की जायदाद से।

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<div>देखो बुजुर्गों की जायदाद से <span style="font-size: 1em;">आज हम बेदखल हो गए हैं |</span></

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7. वहां ज़िन्दगी खड़ी थी।

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<div>कुछ थे सवाल तेरे तो कुछ थे सवाल मेरें |</div><div>कुछ थे जवाब मेरें तो

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8. काश मेरे भी पास होती।

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<div>पूछते-पुछते पहुँचा उस बाजार में जहाँ रौनक- </div><div>ए-महफिलें थी बड़ी |</div><div>बिकनें

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9. है यह आरजू।

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<div>है यह आरजू की उनसे मेरी एक मुलाकात हो जाए |</div><div>शायद पुरानी यादों की मेरी कुछ ना कुछ बात

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10. अच्छा लगता है।

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<div> मुझे

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11. कभी सोचा न था।

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<div>ऐसे भी ख्वाब मेरे यूँ बिखरेगें कभी सोचा ना था |</div><div>हर दुआ में मांगा बहुत पर उसे मेरा होन

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12. मुझको सिखाया तो बहुत।

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<p>दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत </p><p><span style="font-size: 1em;">अब दु

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13. मेरे इन्तजार की हद नहीं ।

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<p>उन्हें ना आने की जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</p> <p>किस को कौन समझाए दोनों को ही इसकी समझ

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14. कोई किसी को कितना चाहे ?

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<p>कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए |</p> <p>क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना

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15. तुमको पढ़ने की आदत ।

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<div>बार-बार तुझको पढनें की आदत सी हो रही है |</div><div>उफ ये सादगी तुम्हारी तो कयामत सी हो रही है

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16. ऐ ज़िंदगी माफ कर दे तू मुझे।

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<div> ऐ जिं

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17. मुझे बतलाओ ना।

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<div>खुश होने की कोशिश करके मुझे बहलाओ ना |</div><div>हमराज बनाके तुम अपना मुझे आजमाओ ना ||1||</div>

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18. पुरानी कोठी के ताख पर।

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<div>जलता हुआ चिराग देखा पुरानी कोठी के ताख पर |</div><div>क्या अब चाँद की चाँदनी आती नहीं इसके&nbsp

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19. दिन होगा क़यामत का ।

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<div><br></div><div>बन्द कर दो तुम दिखावा ज़िन्दगी मे अपनी शराफ़त का |</div><div>होगा हिसाब इक दिन त

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20. हम बुरों को बुरा ही समझना।

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<div> </div><div>कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना |</div><

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