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2. मेरी माँ

9 नवम्बर 2021

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रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |
जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज यही किया करता हूं ||1||

सुबह उठता हूं मायूसी  के साथ और दिन काटता हूं |
परेशान होकर इधर-उधर घर बड़ी देर से पहुंचा करता हूं ||2||

देर  रात  घर  के दरवाजे  पर दस्तक दूं  मैं किसको |
डर लगता है दूसरों से इसीलिए मां को आवाज दे दिया करता हूं ||3||

अजनबी से होते जा रहे हैं किसी से क्या कहूं और क्या सुनू |
एक मां ही है ऐसी जिससे कुछ कह सुन लिया लिया करता हूं ||4||

अब तो नाराज होने का भी हक मैं खोता जा 
रहा हूं  |
बस मां से ही लड़कर थोड़ा अपना गुस्सा निकाल लिया करता हूं ||5||

जाने  के  वक्त हर रोज मां   हिदायतें  देती 
तो है बहुत |
पर हर रात एक नया बहाना करके उसे टाल दिया करता हूं ||6||

अहद करता हूं हर रोज खुद से ही कि अब सुधर जाऊंगा |
पर हर दिन यूं ही कटता है और मैं मायूस हो जाया करता हूं ||7||

ऐसा नहीं है कि मां मेरे ऐसा करने से रूठती नहीं |
कभी-कभी गुस्से की उसकी डांट भी खा लिया करता हूं ||8||

किसी का गुस्सा होना ना होना मुझ पर फर्क डालता नहीं |
पर हां मां कितनी भी नाराज हो मैं उसे मना लिया करता हूं ||9||

हम जैसों का कौन होता ? जो मां जहां में ना होती है |
हो ना मुझसे वह दूर बस रोज खुदा से यही दुआ किया करता हूं ||10||

एक  वही  है जो  मेरे  लिए यू हमेशा परेशान  होती है |
दिल दहल जाता है जब मां  की आंखों में आंसू देख लिया करता हूं ||11||

है कोशिशें जारी कि मैं उसको जिंदगी भर खुशियां दूं |
अब मैं मां की हर दुआ में खुद को ढाल लिया करता हूं ||12||

ताज मोहम्मद
  लखनऊ 

ताज मोहम्मद

ताज मोहम्मद

किसी को मेरी गज़ल मे कोई भी गल्ती लगे तो सही करने का सुझाव दे। आपका आभारी रहूंगा। धन्यवाद।

10 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
अल्फ़ाज़-ए-अंदाज़ भाग-1
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यह किताब कोई बाजार में बेचनें के लिए नहीं लिखी गई है | किताब के जरिये मैं बस आप लोगों से जुड़ना चाहता हूँ | मेरा मानना ( यें सिर्फ मेरे विचार है, इनसे किसी को कष्ट हो तो छोटा समझ के माफ कर देंना ) है कि अल्फाजों की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है, ये भाव जो एक लेखक अल्फाजें के जरिए प्रस्तुत करता करता है उस भाव का कोई मोल नहीं हो सकता है | ये अल्फाज अनमोल होते हैं | इस किताब के जरिये मेरी एक छोटी सी पेशकस आप सभी लोगों के लिए प्रस्तुत है |
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1. जो खुशी है।

9 नवम्बर 2021
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<p>जो खुशी है एक बच्चे की तोतली आवाज में |</p> <p>जाके ढूँढों ये मिलती नहीं किसी भी बाजार में ||1||<

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2. मेरी माँ

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<div>रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |</div><div>जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज

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3. खै-ओ-खबर के लिए

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<div> </div><div>शहर-शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए |</div

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4. ऐसी कोई सोहबत नही।

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<div><br></div><div>उन्हें ना आने के जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</div><div>किस को कौन समझाए द

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5. मोहब्बत में जिनकी हम।

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<div>जाने कब से हम उनको खुदा कह रहे हैं |</div><div>और एक वो हैं जो हमको सजा दे रहे हैं ||1||</div><

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6. बुजुर्गों की जायदाद से।

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<div>देखो बुजुर्गों की जायदाद से <span style="font-size: 1em;">आज हम बेदखल हो गए हैं |</span></

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7. वहां ज़िन्दगी खड़ी थी।

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<div>कुछ थे सवाल तेरे तो कुछ थे सवाल मेरें |</div><div>कुछ थे जवाब मेरें तो

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8. काश मेरे भी पास होती।

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<div>पूछते-पुछते पहुँचा उस बाजार में जहाँ रौनक- </div><div>ए-महफिलें थी बड़ी |</div><div>बिकनें

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9. है यह आरजू।

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<div>है यह आरजू की उनसे मेरी एक मुलाकात हो जाए |</div><div>शायद पुरानी यादों की मेरी कुछ ना कुछ बात

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10. अच्छा लगता है।

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<div> मुझे

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11. कभी सोचा न था।

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<div>ऐसे भी ख्वाब मेरे यूँ बिखरेगें कभी सोचा ना था |</div><div>हर दुआ में मांगा बहुत पर उसे मेरा होन

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12. मुझको सिखाया तो बहुत।

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<p>दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत </p><p><span style="font-size: 1em;">अब दु

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13. मेरे इन्तजार की हद नहीं ।

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<p>उन्हें ना आने की जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</p> <p>किस को कौन समझाए दोनों को ही इसकी समझ

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14. कोई किसी को कितना चाहे ?

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<p>कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए |</p> <p>क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना

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15. तुमको पढ़ने की आदत ।

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<div>बार-बार तुझको पढनें की आदत सी हो रही है |</div><div>उफ ये सादगी तुम्हारी तो कयामत सी हो रही है

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16. ऐ ज़िंदगी माफ कर दे तू मुझे।

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<div> ऐ जिं

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17. मुझे बतलाओ ना।

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<div>खुश होने की कोशिश करके मुझे बहलाओ ना |</div><div>हमराज बनाके तुम अपना मुझे आजमाओ ना ||1||</div>

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18. पुरानी कोठी के ताख पर।

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<div>जलता हुआ चिराग देखा पुरानी कोठी के ताख पर |</div><div>क्या अब चाँद की चाँदनी आती नहीं इसके&nbsp

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19. दिन होगा क़यामत का ।

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<div><br></div><div>बन्द कर दो तुम दिखावा ज़िन्दगी मे अपनी शराफ़त का |</div><div>होगा हिसाब इक दिन त

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20. हम बुरों को बुरा ही समझना।

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<div> </div><div>कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना |</div><

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