रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |
जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज यही किया करता हूं ||1||
सुबह उठता हूं मायूसी के साथ और दिन काटता हूं |
परेशान होकर इधर-उधर घर बड़ी देर से पहुंचा करता हूं ||2||
देर रात घर के दरवाजे पर दस्तक दूं मैं किसको |
डर लगता है दूसरों से इसीलिए मां को आवाज दे दिया करता हूं ||3||
अजनबी से होते जा रहे हैं किसी से क्या कहूं और क्या सुनू |
एक मां ही है ऐसी जिससे कुछ कह सुन लिया लिया करता हूं ||4||
अब तो नाराज होने का भी हक मैं खोता जा
रहा हूं |
बस मां से ही लड़कर थोड़ा अपना गुस्सा निकाल लिया करता हूं ||5||
जाने के वक्त हर रोज मां हिदायतें देती
तो है बहुत |
पर हर रात एक नया बहाना करके उसे टाल दिया करता हूं ||6||
अहद करता हूं हर रोज खुद से ही कि अब सुधर जाऊंगा |
पर हर दिन यूं ही कटता है और मैं मायूस हो जाया करता हूं ||7||
ऐसा नहीं है कि मां मेरे ऐसा करने से रूठती नहीं |
कभी-कभी गुस्से की उसकी डांट भी खा लिया करता हूं ||8||
किसी का गुस्सा होना ना होना मुझ पर फर्क डालता नहीं |
पर हां मां कितनी भी नाराज हो मैं उसे मना लिया करता हूं ||9||
हम जैसों का कौन होता ? जो मां जहां में ना होती है |
हो ना मुझसे वह दूर बस रोज खुदा से यही दुआ किया करता हूं ||10||
एक वही है जो मेरे लिए यू हमेशा परेशान होती है |
दिल दहल जाता है जब मां की आंखों में आंसू देख लिया करता हूं ||11||
है कोशिशें जारी कि मैं उसको जिंदगी भर खुशियां दूं |
अब मैं मां की हर दुआ में खुद को ढाल लिया करता हूं ||12||
ताज मोहम्मद
लखनऊ