है यह आरजू की उनसे मेरी एक मुलाकात हो जाए |
शायद पुरानी यादों की मेरी कुछ ना कुछ बात हो जाए ||1||
बेएतबार हो गया है मेरा वजूद दुनिया में उसके लिए |
क्या करूं मैं ऐसा की उनको फिर से मुझ पर एतबार हो जाए ||2||
यह कौन सा कहर है मजहब का जिसमें उजड़े सारे आशियाने हैं |
चलो बसाएं उस बस्ती को इक बार फिर से शायद वो आबाद हो जाए ||3||
यह सीधे-साधे लोग हैं बैर ना है कोई इनके दिलों में |
ना करो ऐसी बातें कि इनमें आपस में फसाद हो जाए ||4||
बिखरा हुआ है सब कुछ मेरा मैं इसको समेटूं कैसे |
मोहब्बत होती ही है ऐसी कि आदमी बर्बाद हो जाए ||5||
उठा कर देख अपने हाथ दुआ में तासीर है यहाँ कितनी |
ये दर है खुदा का शायद पूरी तेरी हर फरियाद हो जाए ||6||
हर पल जिंदगी मेरी अपनी पहचान को खोये जा रही है |
क्या करे कोई ताज जब ये इस कदर खकरनाक हो जाए ||7||
ताज मोहम्मद
लखनऊ