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8. काश मेरे भी पास होती।

10 नवम्बर 2021

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पूछते-पुछते पहुँचा उस बाजार में जहाँ रौनक- 
ए-महफिलें थी बड़ी |
बिकनें के लिये हर दुकान पर वहाँ कई ज़िन्दगीयाँ थी खड़ी ||1||

हर सम्त ही शऱाब-ओ-सबाब की महकी-महकी शामें थी सजी |
कोई भी शर्म कोई भी हया उस हरम में ना किसी नजर में थी दिखी ||2||

बाजार-ए-हुस्न की हर दुकान पर गिरने के लिये कयामत थी बड़ी |
मैनें भी देखा दिवान-ए-खास में खरीदारों की लगी एक भीड थी बड़ी ||3||

हर हाथ में ही जाम था हर नजर में ही थी मयखाना-ए-मस्ती |
ऐसा लगा मेरी भी मझधार में फसीं कश्ती साहिल पर आ थी लगी ||4||

मालिक-ए-सामाँ को सुकून आया जब उनकी नजर मुझ पर थी पड़ी |
घूमते-घूमते मेरी भी नजर इक नूरे आफताब पर जा थी टिकी ||5||

हर आँख थी इन्तजार में उस महफिल-ए-मुन्तजर की बड़ी |
शिरकत-ए-बज्म से उसके हर आशिके जाँ पर बिजली सी थी गिरी ||6||

शोखियाँ उस आब-ओ-हया के चेहरे की उफ कातिल थी बड़ी |
आगोश में उसके जानें को मेरी जुस्तजू मेरें दिल पर ही थी अड़ी ||7||

उस कमरे की हर दिवार पर इक अजब सी थी नमी |
मेरे लिये उसके उल्फत-ए-मोहब्बत में ना जानें कैसी थी कमी ||8||

छूनें पर उसको जानें कैसी उसके दिल में इक आह थी उठी |
देखा जो मैनें गौर से तो उसकी आंखों में कुछ अश्को की थी नमी ||9||

दिल को तो अब मेरें उस पर बीती हर बात सुननें को थी पड़ी |
मुझको पता चला इक गरीब की इज्ज़त का जो आके यहाँ थी बिकी ||10||

ना जानें कितनें हाथों से कितनी ही बार उसकी आबरू थी लुटी |
रूह उसकी अन्दर से छलनी-छलनी हर बार ही थी हुई ||11||

मरना भी अगर चाहे तो वह अपनी मर्जी से मर सकती थी नहीं |
क्योंकि पहरे की हर निगाह होती उस पर थी हर घड़ी ||12||

उसकी हर आह में दुआ बद दुआ थी कि आ जाये कयामत की घड़ी |
क्योंकि ज़िन्दगी उसकी हर वक़्त मौत से भी बद तर थी बनी ||13||

मायूस थी बड़ी वह शायद कुछ कहना मुझसे चाह थी रही |
थी लबों तक तो बात उसके पर हिम्मत कहने की ना थी बची ||14||

कम्बख्त रात को भी ना जानें गुजरनें की इतनी जल्दी क्यू् थी पड़ी |
सब जाननें को मैं बेताब था उस पर बीती ज़िन्दगी की हर घड़ी ||15||

फेहरिस्त सब गुनहगारों की इस बाजार में लम्बी थी बड़ी |
मैं भी तो उसमें शामिल हो गया था उस वक़्त की घड़ी ||16||

कैसे बनाऊ मै उसको फिर से वह पहले वाली मासूम सी लड़की |
काश मेरे भी पास होती वह परियों वाली जादू की छड़ी ||17||

ताज मोहम्मद 
   लखनऊ 















ताज मोहम्मद

ताज मोहम्मद

किसी को मेरी गज़ल मे कोई भी गल्ती लगे तो सही करने का सुझाव दे। आपका आभारी रहूंगा। धन्यवाद।

10 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
अल्फ़ाज़-ए-अंदाज़ भाग-1
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यह किताब कोई बाजार में बेचनें के लिए नहीं लिखी गई है | किताब के जरिये मैं बस आप लोगों से जुड़ना चाहता हूँ | मेरा मानना ( यें सिर्फ मेरे विचार है, इनसे किसी को कष्ट हो तो छोटा समझ के माफ कर देंना ) है कि अल्फाजों की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है, ये भाव जो एक लेखक अल्फाजें के जरिए प्रस्तुत करता करता है उस भाव का कोई मोल नहीं हो सकता है | ये अल्फाज अनमोल होते हैं | इस किताब के जरिये मेरी एक छोटी सी पेशकस आप सभी लोगों के लिए प्रस्तुत है |
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1. जो खुशी है।

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<p>जो खुशी है एक बच्चे की तोतली आवाज में |</p> <p>जाके ढूँढों ये मिलती नहीं किसी भी बाजार में ||1||<

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2. मेरी माँ

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<div>रात भर जागता हूं मैं जाने क्या-क्या सोचा करता हूं |</div><div>जिंदगी रुक सी गई है अब तो हर रोज

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3. खै-ओ-खबर के लिए

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<div> </div><div>शहर-शहर घूमता हूं तेरी एक नजर के लिए |</div

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4. ऐसी कोई सोहबत नही।

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<div><br></div><div>उन्हें ना आने के जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</div><div>किस को कौन समझाए द

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5. मोहब्बत में जिनकी हम।

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<div>जाने कब से हम उनको खुदा कह रहे हैं |</div><div>और एक वो हैं जो हमको सजा दे रहे हैं ||1||</div><

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6. बुजुर्गों की जायदाद से।

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<div>देखो बुजुर्गों की जायदाद से <span style="font-size: 1em;">आज हम बेदखल हो गए हैं |</span></

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7. वहां ज़िन्दगी खड़ी थी।

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<div>कुछ थे सवाल तेरे तो कुछ थे सवाल मेरें |</div><div>कुछ थे जवाब मेरें तो

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8. काश मेरे भी पास होती।

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<div>पूछते-पुछते पहुँचा उस बाजार में जहाँ रौनक- </div><div>ए-महफिलें थी बड़ी |</div><div>बिकनें

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9. है यह आरजू।

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<div>है यह आरजू की उनसे मेरी एक मुलाकात हो जाए |</div><div>शायद पुरानी यादों की मेरी कुछ ना कुछ बात

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10. अच्छा लगता है।

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<div> मुझे

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11. कभी सोचा न था।

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<div>ऐसे भी ख्वाब मेरे यूँ बिखरेगें कभी सोचा ना था |</div><div>हर दुआ में मांगा बहुत पर उसे मेरा होन

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12. मुझको सिखाया तो बहुत।

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<p>दोस्तों नें मेरे मुझको सिखाया तो बहुत </p><p><span style="font-size: 1em;">अब दु

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13. मेरे इन्तजार की हद नहीं ।

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<p>उन्हें ना आने की जिद है पर मेरे इंतजार की हद नहीं |</p> <p>किस को कौन समझाए दोनों को ही इसकी समझ

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14. कोई किसी को कितना चाहे ?

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<p>कोई किसी को कितना चाहे कि वह उसको भूल ना पाए |</p> <p>क्यों रास्तों के फूल कभी दरगाहों पर चढ़ ना

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15. तुमको पढ़ने की आदत ।

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<div>बार-बार तुझको पढनें की आदत सी हो रही है |</div><div>उफ ये सादगी तुम्हारी तो कयामत सी हो रही है

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16. ऐ ज़िंदगी माफ कर दे तू मुझे।

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<div> ऐ जिं

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17. मुझे बतलाओ ना।

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<div>खुश होने की कोशिश करके मुझे बहलाओ ना |</div><div>हमराज बनाके तुम अपना मुझे आजमाओ ना ||1||</div>

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18. पुरानी कोठी के ताख पर।

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<div>जलता हुआ चिराग देखा पुरानी कोठी के ताख पर |</div><div>क्या अब चाँद की चाँदनी आती नहीं इसके&nbsp

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19. दिन होगा क़यामत का ।

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<div><br></div><div>बन्द कर दो तुम दिखावा ज़िन्दगी मे अपनी शराफ़त का |</div><div>होगा हिसाब इक दिन त

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20. हम बुरों को बुरा ही समझना।

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<div> </div><div>कुर्आन की हर आयत से जिंदगी को समझना |</div><

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