मैं शहर का शोर शराबा,
तू गांव जैसी शांत प्रिये !
मैं उलझा हुआ सा ख़्वाब कोई,
तू सुलझी हुई सी बात प्रये !
मैं दोपहर की चिकचिक,
तू सुकून भरा रात प्रिये !
मैं दूरियों का पैमाना,
तू हसीन मुलाक़ात प्रिये!
मैं इश्क़ सीखने का आदी
तू इश्क़ की पूरी जात प्रिये !
मैं बिखरा हुआ सा जवाब तेरा,
तू सिमटा हुआ सवालात प्रिये !
मैं थोड़ा अलग इस दुनिया से,
मगर मिलते हैं तुझसे ख़यालात प्रिये !
मैं कागज़ पर गिरी स्याही,
तू तराशा हुआ जज़बात प्रिये !