कुबुल है जिंदगी का हर तोहफ़ा
मैंने ख्खाहिशों का नाम, बताना छोड़ दिया
जो दिल के करीब है, वो मेरे आजीज़ हैं
मैंने गैरों पे हक़, जताना छोड़ दिया
जो समझ ही नहीं सकते दर्द मेरा
मैंने उन्हें ज़ख्म, दिखाना छोड़ दिया
जो गुजरती है दिल पे, हक़िक़त है मेरी
मैंने दिखावे के लिए, मुस्कुराना छोड़ दिया
जो मेहसूस ही नहीं करते ज़रूरत मेरी
मैंने उनका साथ, निभाना छोड़ दिया
जो मेरे अपने है, वो मिलेंगे ज़रूर मुझे
मैंने बेवजह बंदिशे, लगाना छोड़ दिया!