अपनी उलझन को बढ़ाने की जरूरत क्या है।
छोड़ना है तो बहाने की जरूरत क्या है।
लग चुकी आग तो लाज़िम है धुँआ उठेगा
दर्द को दिल में छुपाने की जरूरत क्या है
उम्र भर रहना है ताबीर से गर दूर तुम्हें
फिर मेरे ख्वाबों में आने की जरूरत क्या है
अजनबी रंग छलकता हो अगर आँखों से
उनसे फिर हाथ मिलाने की जरूरत क्या है।
आज बैठे है तेरे पास कई दोस्त नये
अब तुझे दोस्त पुराने की जरूरत क्या है।
साथ रहते हो मगर साथ नहीं रहते हो
ऐसे रिस्ते को निभाने की जरूरत क्या है.