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समसामयिकी

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*आज की स्थिति पर मन की व्यथा एवं आह निकलकर काव्यरूप में परिवर्तित हो गयी:---*××××××××××××××××××××××××××××××××××*असहायों की चीत्कारें , दे रही हैं सीना चीर !**ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो , मानवता की पीर !!**बेबस मानव आहें आज भर रहा है !**असमय हो संक्रमित आज मर रहा है !!**

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*मानव जीवन में लगातार उतार - चढ़ाव , सुख - दुख देखने को मिलते रहते हैं | सुख दुख के इन झंझावातों के मध्य मानव जीवन व्यतीत होता रहता है | संकट की घड़ी में जब कोई भी सहायक नहीं होता तब मनुष्य का धैर्य उसको सम्बल प्रदान करता है | जिसने अपना धैर्य खो दिया वह दुख के अथाह समुद्र में डूब जाता है | मनुष्य क

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*ईश्वर ने समस्त सृष्टि के साथ मनुष्य को भी प्रकट किया और साथ ही मनुष्य को असीमित शक्तियां भी प्रदान कर दीं | अपने बुद्धि एवं विवेक से मनुष्य निरंतर विकास करता गया | मनुष्य इस धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनकर धरा पर राज्य करने लगा परंतु मनुष्य पर ऐसा भी समय आया जब वह दीन हीन एवं असहाय होकर भगवान की शर

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*सनातन धर्म की मान्यतायें एवं जड़ें इतनी मजबूत हैं कि यदि इनको ध्यान से देखा एवं समझा जाय तो मानव समाज को कभी कोई समस्या का सामना करना ही न पड़े | हमारी मान्यतायें प्राचीन भले ही हों परंतु मानवमात्र का कल्याण हमारी मान्यताओं में स्पष्ट देखने को मिलता है | मानव समाज को

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*इस संसार का नाम है मृत्युलोक , यहां जो भी आया है उसे एक दिन इस संसार का त्याग करके जाना ही है अर्थात जो भी आया है उसकी मृत्यु भी निश्चित है | मृत्यु कों आज तक कोई भी टाल नहीं पाया है इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि जानबूझकर मृत्यु को गले लगाया जाय | मृत्यु को गले लगाना भी दो प्रकार का होता है :- एक तो लोक

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*मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है जिसका प्रयोग वह उचित - अनुचित का आंकलन करने में कर सके | मनुष्य के द्वारा किये गये क्रियाकलाप पूरे समाज को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित अवश्य करते हैं | सामान्य दिनों में तो मनुष्य का काम चलता रहता है परंतु मनुष्य के विवेक की असली परीक्षा संकटकाल में ही होती है |

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*इस समस्त सृष्टि में ईश्वर ने एक से बढ़कर एक बहुमूल्य , अमूल्य उपहार मनुष्य को उपभोग करने के लिए सृजित किये हैं | मनुष्य अपनी आवश्यकता एवं विवेक के अनुसार उस वस्तु का मूल्यांकन करते हुए श्रेणियां निर्धारित करता है | संसार में सबसे बहुमूल्य क्या है इस पर निर्णय देना बह

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*समस्त सृष्टि में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है | मनुष्य ने इस धरती पर जन्म लेने के बाद विकास की ओर चलते हुए इस सृष्टि में उत्पन्न सभी प्राणियों पर शासन किया है | आकाश की ऊंचाइयों से लेकर की समुद्र की गहराइयों तक और इस पृथ्वी पर संपूर्ण आधिपत्य मनुष्य ने स्थापित किया है | हिंसक से हिंसक प्रा

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*सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म का पालन करने का निर्देश बार - बार दिया गया है | धर्म को चार पैरों वाला वृषभ रूप में माना जाता है जिसके तीन पैरों की अपेक्षा चौथे पैर की मान्यता कलियुग में अधिक बताया गया है , धर्म के चौथे पैर को "दान" कहा गया है | तुलसीदास जी मामस में लिखते हैं :-- "प्रगट चार

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*हमारा देश भारत गांवों का देश हमारे देश के प्राण हमारे गांव हैं , आवश्यकतानुसार देश का शहरीकरण होने लगा लोग गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे परंतु इतने पलायन एवं इतना शहरीकरण होने के बाद आज भी लगभग साठ - सत्तर प्रतिशत आबादी गांव में ही निवास करती है | गांव का जीवन शहरों से बिल्कुल भिन्न होता है

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*अपने संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य में अनेक गुणों का प्रादुर्भाव होता है | अपने गुणों के माध्यम से ही मनुष्य समाज में सम्मान या अपमान अर्जित करता है | यदि मनुष्य के गुणों की बात की जाए तो धैर्य मानव जीवन में एक ऐसा गुण है जिसके गर्भ से शेष सभी गुण प्रस्फुटित होते है

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*सनातन धर्म पूर्ण वैज्ञानिकता पर आधारित है , हमारे पूर्वज इतने दूरदर्शी एवं ज्ञानी थे कि उन्हेंने आदिकाल से ही मानव कल्याण के लिए कई सामाजिक नियम निर्धारित किये थे | मानव जीवन में वैसे तो समय समय पर कई धटनायें घटित होती रहती हैं परंतु मानव जीवन की दो महत्त्वपूर्ण घटनायें होती हैं जिसे जन्म एवं मृत्य

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*मानव जीवन में अनेकों प्रकार की एवं मित्र बना करते हैं कुछ शत्रु तो ऐसे भी होते हैं जिनके विषय में हम कुछ भी नहीं जानते हैं परंतु वे हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध होते हैं | शत्रु से बचने का उपाय मनुष्य आदिकाल से करता चला आया है | अपने एवं अपने समाज की सुरक्षा करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है , अपने इस क

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*मानव जीवन में जिस प्रकार निडरता का होना आवश्यक है उसी प्रकार समय समय पर भय का होना परम आवश्यक है | जब मनुष्य को कोई भय नहीं जाता तब वह स्वछन्द एवं निर्द्वन्द होकर मनमाने कार्य करता हुआ अन्जाने में ही समाज के विपरीत क्रियाकलाप करने लगता है | भयभीत होना कोई अच्छी बात नहीं है परंतु कभी कभी परिस्थितिया

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*इस समस्त सृष्टि में वैसे तो बहुत कुछ है जो मनुष्य को प्रभावित करते हुए उसके जीवन में महत्वपूर्ण हो जाता है परंतु यदि आंकलन किया जाय तो मनुष्य को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है समय | इस संसार में एक से बढ़कर एक बलवान हुए हैं परंतु उनका बल भी समय के आगे व्यर्थ ही हो गया है अत: यह सिद्ध हो जाता है कि सम

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*ईश्वर ने सृष्टि के रचनाक्रम में पंचतत्वों (भूमि , जल , वायु , अग्नि एवं आकाश) की रचना की फिर इन्हीं पंचतत्वों के सहारे जीवों का सृजन किया | अनेक प्रकार के जीवों के मध्य मनुष्य का सृजन करके उसको असीमित शक्तियाँ भी प्रदान कीं | मनुष्य की इन शक्तियों में सर्वश्रेष्ठ ज्ञान एवं बुद्धि को बनाया , अपनी बु

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*संपूर्ण विश्व में हमारा देश भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां अनेक धर्म , संप्रदाय के लोग एक साथ निवास करते हैं | धर्म , भाषा एवं जीवनशैली भिन्न होने के बाद भी हम सभी भारतवासी हैं | किसी भी संकट के समय अनेकता में एकता का जो प्रदर्शन हमारे देश में देखने को मिलता है वह अन्यत्र कहीं दर्शनीय नहीं है | हमें

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*मनुष्य जिस स्थान / भूमि में जन्म लेता है वह उसकी जन्म भूमि कही जाती है | जन्मभूमि का क्या महत्व है इसका वर्णन हमारे शास्त्रों में भली-भांति किया गया है | प्रत्येक मनुष्य मरने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करना चाहता है क्योंकि लोगों का मानना है कि स्वर्ग में जो सुख है वह और कहीं नहीं है परंतु हमारे शास्

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*सनातन धर्म शास्वत तो है ही साथ ही दिव्य एवं अलौकिक भी है | सनातन धर्म में ऐसे - ऐसे ऋषि - महर्षि हुए हैं जिनको भूत , भविष्य , वर्तमान तीनों का ज्ञान था | इसका छोटा सा उदाहरण हैं कविकुल शिरोमणि परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी | बाबा तुलसीदास जीने मानस के अन्तर्गत उत्तरकाण्ड में कलियुग के विषय में ज

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