*मनुष्य को ईश्वर ने विवेक दिया है जिसका प्रयोग वह उचित - अनुचित का आंकलन करने में कर सके | मनुष्य के द्वारा किये गये क्रियाकलाप पूरे समाज को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित अवश्य करते हैं | सामान्य दिनों में तो मनुष्य का काम चलता रहता है परंतु मनुष्य के विवेक की असली परीक्षा संकटकाल में ही होती है | संकटकाल में मनुष्य को विवेक नहीं खोना चाहिए | जब समक्ष शक्तिशाली शत्रु हो तो मनुष्य को विवेक का प्रयोग करते हुए उसके सामने न आकरके छुपकर पहले शक्ति संचय करके ही उसके समक्ष जाना चाहिए | हमारे देश में ही नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व में श्री राम एवं श्री कृष्ण को भगवान मानकर पूजा जाता है परंतु जन्म लेते ही भगवान श्री कृष्ण अपने शक्तिशाली मामा कंस से स्वयं को बचाने के लिए गोकुल चले गये क्योंकि उनको शक्ति संचय करना था | वहीं इसका उदाहरण हमें भगवान श्रीराम के चरित्रों में भी देखने को मिलता है | रामायण के पात्र बालि की यह विशेषता थी कि वह अपने शत्रु से कभी भी पराजित नहीं होता था क्योंकि जो भी उससे लड़ने आता था उसका आधा बल बालि में आ जाता था | ऐसे विचित्र बलवान का वध करने के लिए श्री राम ने विवेक का प्रयोग करते हुए स्वयं को छुपा करके वृक्ष की ओट से बालि का वध किया एवं सुग्रीव को किष्किन्धा का राजा बनाया | श्री राम सर्वशक्तिमान भगवान थे यदि चाहते तो बालि का वध सामने से भी कर सकते थे परंतु उन्होंने मानवमात्र को संदेश दिया कि यदि शत्रु शक्तिशाली हो तो उससे छुपकर ही लड़ना विवेकपूर्ण कार्य है | प्रत्येक मनुष्य को पूर्व के आदर्शों से शिक्षा अवश्य लेनी चाहिए | मनुष्य शक्तिमान तो हो सकता है परंतु सर्वसमर्थ एवं सर्वशक्तिमान कभी नहीं हो सकता , तो सर्वशक्तिमान ईश्वर के चरित्रों का अनुगमन करते हुए शक्तिशाली शत्रु से छुपकर ही लड़ना विवेकपूर्ण कार्य है !*
*आज मनुष्य ने बहुत विकास कर लिया है अपने विकास क्रम में मनुष्य ने अनेक प्रकार की भौतिक शक्तियां भी एकत्र की हैं अपनी इन्हीं शक्तियों के बल पर विश्व के शक्तिशाली देशों ने अपने शत्रुओं को परास्त भी किया है | ऐसा करके मनुष्य स्वयं को सर्वशक्तिमान मरने लगा | परंतु विचार करना चाहिए कि एक विषधर सर्प को पकड़ने वाला सपेरा भी कुछ दिन एकांत में बैठकर उस सर्प को पकड़ने के लिए मंत्र शक्ति का संचय करता है | सिंह जैसे हिंसक जीव को पकड़ने के लिए भी मनुष्य पिंजरा लगाकर छुप जाता है | पृथ्वी पर उत्पन्न सभी प्रकार की जीवो पर शासन करने वाला मनुष्य आज एक अदृश्य एवं शक्तिशाली शत्रु (कोरोना संक्रमण) से युद्ध कर रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यही कहना चाहूँगा कि जब हमारे महापुरुषों ने (जिन्हें भगवान कहा गया है) शक्तिशाली शत्रुओं से छुप जाने की शिक्षा दी है तो आज हम स्वयं को अपने घरों में क्यों नहीं छुपा पा रहे हैं ? कुछ अधिक बुद्धिमान खुले में टहलकर शत्रु (कोरोना) के शिकार हो रहे हैं | इन मूर्खों को विचार करना चाहिए कि जब सभी प्रकार की सुविधाओं को ग्रहण करके , बचाव के अनेक साधनों का उपयोग करने वाले चिकित्सक भी नहीं बच पा रहे हैं तो साधारण मनुष्यों की क्या बिसात है ? कुछ लोग स्वयं को ईश्वर का परम भक्त एवं अल्लाह का नेक बन्दा मानकर खुले में घूम रहे हैं ये न तो ईश्वर के भक्त हैं और न ही नेक बन्दे , ईश्वर भक्त शायद भूल गये कि उनके ईश्वर श्री राम भी बालि से छुप गये थे , अल्लाह के बन्दों को भी शायद यह याद नहीं रह गया है कि अपने शत्रु से बचने के लिए अपने एक साथी के साथ "हजरत मुहम्मद साहब" भी मकड़ी के जाले के पीछे छुपे हुए थे | जो अपने आदर्शो से शक्षा न ग्रहण करे वह बुद्धिमान होते हुए भी महामूर्ख है | इन्हीं मूर्खों के कारण आज देश के देश तबाह और बरबाद होते चले जा रहे हैं | जिस प्रकार एक मछली पूरे तालाब को दुर्गन्धित कर देती है उसी प्रकार सड़ी एवं नकारात्मक मानसिकता के कुछ चन्द जाहिल लोग पूरे मानव समाज के लिए दुर्गन्ध सदृश बनते जा रहे हैं | अभी भी समय है अपने आदर्शों को आत्मसात करते हुए छुपकर ही शक्तिशाली शत्रु (कोरोना) से युद्ध किया जाय , अन्यथा यह प्रबल शत्रु विध्वंस मचाकर पृथ्वी को पूर्ण श्मशान बना देगा |*
*प्रबल शत्रु के सम्मुख युद्ध में जब जीतने की सम्भावना न हो तो उससे छुप जाना चाहिए ! आज हमें अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिए घरों में छुपे रहने का ही समय है ! यही बुद्धिमत्ता है |*