*इस समस्त सृष्टि में ईश्वर ने एक से बढ़कर एक बहुमूल्य , अमूल्य उपहार मनुष्य को उपभोग करने के लिए सृजित किये हैं | मनुष्य अपनी आवश्यकता एवं विवेक के अनुसार उस वस्तु का मूल्यांकन करते हुए श्रेणियां निर्धारित करता है | संसार में सबसे बहुमूल्य क्या है इस पर निर्णय देना बहुत ही कठिन हो सकता है परंतु यदि सकारात्मकता के साथ विचार किया जाय तो यह बिल्कुल भी कठिन नहीं है | इस सृष्टि में सबसे बहुमूल्य है मनुष्य का प्राण ! क्योंकि जब प्राण ही नहीं रहेंगे तो संसार में कितने भी बहुमूल्य पदार्थ भरे हों सब व्यर्थ हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहना चाहिए इतिहास / पुराण साक्षी हैं कि इस प्राण को बचाने के लिए मनुष्य तो क्या देवता , बलवान दैत्य भी भयाक्रान्त होकर इसे सुरक्षित रखने के लिए अनेक प्रकार के उपाय करते हुए देखे गये हैं | मृत्यु के भय से देवराज इन्द्र कमल की नाल में छुप गये थे , भोजराज कंस को जब पता चला कि देवकी की आठवीं संतान उसका वध कर देगी तब अपने प्राणों की रक्षा के लिए उसने देवकी के पुत्रों का वध करना प्रारम्भ कर दिया | अपने प्राणों की रक्षा के लिए कालिय नाग यमुना के दह में छुपकर बैठा था | दस हजार हाथियों का बल स्वयं में समाहित करने वाला दुर्योधन भी मृत्यु के भय से अपने अन्तिम प्रयास में सरोवर में छुप गया था ! पाण्डवों के बीर बार ललकारने पर दुर्योधन ललकार को सहन न कर पाया और लक्ष्मी जी के लाख मना करने पर भी वह बाहर निकल आया और मृत्यु को प्राप्त हुआ | यदि दुर्योधन उस रात्रि दुश्मन की ललकार को अनसुना करके सरेवर में छुपा रहता तो शायद उसकी मृत्यु न होती | यह सब इतिहास पढ़कर यह संदेश प्राप्त होता है कि प्रत्येक मनुष्य को अपने प्राणों की रक्षा प्राथमिकता से तो करना ही चाहिए साथ ही बलवान दुशमन की ललकार सुनने के बाद भी विपरीत समय देखकर चुपचाप छुपे रहना चाहिए अन्यथा दुर्योधन की ही भाँति दुर्गति निश्चित है |*
*आज का समय समस्त मानव जाति के विपरीत ही चल रहा है | चीन से निकला हुआ "कोरोना संक्रमण" एक बलवान दुश्मन की भाँति समस्त मानव जाति के लिए काल बना हुआ है | अब तक इस संक्रमण ने लाखों मनुष्यों को अपना शिकार कर लिया है | आज का मनुष्य सांसारिकता में इतना व्यस्त हो गया है कि उसे अपना भला - बुरा सोंचने की फुर्सत ही नहीं रह गयी है | प्राणें का मूल्य क्या है यह भी शायद आज लोग सोंचना ही नहीं चाहते है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज विश्व के समस्त देशों में कोरोना नामक बलवान. दुशमन मनुष्यों को ललकार रहा है | जो बुद्धिमान वे तो कुसमय जानकर दुशमन की ललकार को अनसुना करके अपने घरों में छुपकर बैठे हैं वे सुरक्षित हैं परंतु कुछ अधिक बुद्धिमान ( जिन्हें यदि जाहिल एवं गंवार कहा जाय तो भी अतिशयोक्ति न होगी ) अपने दुशमन (कोरोना) को कमजोर एवं भ्रम या यह समझकर कि यह कोरोना मेरा क्या कर लेगा बाहर निकलकर घूम रहे हैं दुशमन (कोरोना) उनका शिकार कर रहा है | समस्त मानव जाति के लिए यह चिन्तन का समय है कि किस प्रकार अपने प्राणों की रक्षा की जाय | कुछ लोगों का अतिउत्साह एवं गंवारपन एक पूरे समाज को संक्रमित करता चला जा रहा है | ऐसे समय में मनुष्य को इतिहास से शिक्षा लेते हुए अपने प्राणों का मूल्य समझते हुए इसकी रक्षा करने का प्रयास करते रहना चाहिए इसके चाहे छुपना पड़े या भागना पड़े तो भी करना चाहिए | जब प्राण ही नहीं रह जायेंगे तो इस संसार की बहुमूल्य से बहुमूल्य वस्तु अर्थहीन ही है |*
*संसार में सबसे बहुमूल्य है मनुष्य का प्राण , इन प्राणों की रक्षा करना प्रत्येक प्राणी का परम कर्तव्य है |*