*समस्त सृष्टि में मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है | मनुष्य ने इस धरती पर जन्म लेने के बाद विकास की ओर चलते हुए इस सृष्टि में उत्पन्न सभी प्राणियों पर शासन किया है | आकाश की ऊंचाइयों से लेकर की समुद्र की गहराइयों तक और इस पृथ्वी पर संपूर्ण आधिपत्य मनुष्य ने स्थापित किया है | हिंसक से हिंसक प्राणियों को पिंजरे में बंद करके उन पर शासन करने वाला मनुष्य अनुशासन अर्थात स्वयं पर शासन करना भूल गया है | अनुशासन से अभिप्राय है कि मनुष्य नियम, सिद्धान्त तथा अपने शासन - प्रशासन एवं परिवार के आदेशों का पालन करता रहे | जीवन को आदर्श रूप से जीने के लिए अनुशासन में रहना आवश्यक है | अनुशासन का अर्थ है स्वयं को वश में रखना | जीवन को उन्नति की ओर ले जाने के लिए मनुष्य में अनुशासन का होना बहुत आवश्यक है , जब तक मनुष्य का अपनी इंद्रियों पर , अपने मन पर एवं अपने क्रियाकलाप पर स्वयं का शासन नहीं होगा तब तक वह जीवन में कभी भी सफल नहीं हो सकता | राष्ट्रीय नियमों एवं कानून का पालन मनुष्य तभी कर सकता है जब उसका स्वयं के ऊपर शासन होगा , क्योंकि कोई भी सत्ता मनुष्य को तब तक किसी बात को मानने के लिए बाध्य नहीं कर सकती हैं जब तक उसका समय के ऊपर शासन नहीं होगा | संपूर्ण सृष्टि पर शासन करने वाला मनुष्य स्वयं पर शासन ना कर पाने के कारण ही अनेक प्रकार की आपत्तियों से घिरा रहता है | बड़ा ही विस्मयकारी विषय है कि जिस मनुष्य को परमात्मा का युवराज कहा जाता है , जिस मनुष्य ने इस सृष्टि पर शासन करने के लिए अनेकों नियम बनाए हैं वह स्वयं किसी भी नियम को मानने के लिए तैयार नहीं दिखाई पड़ता , जबकि यह अकाट्य सत्य है कि अनुशासन में रहने वाला ही किसी समाज पर या राष्ट्र पर शासन कर सकने में सक्षम हो सकता है |*
*आज संपूर्ण विश्व में एक प्राणघातक संक्रमण के फैल जाने से समस्त मानव जाति पर खतरा दिखाई पड़ रहा है | मनुष्य मानव जाति को बचाने के लिए अनेक प्रकार के उपाय तो कर रहा है परंतु यह भी सत्य हैं कि वह स्वयं को संयमित करके अनुशासित नहीं रह पा रहा है | जहां आज विश्व के अनेक देश इस संक्रमण से व्यथित हैं वही हमारा देश भारत भी इससे अछूता नहीं रह गया है | ऐसी परिस्थिति में जब देश में तालाबंदी की घोषणा हो गई है मनुष्य उसको मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह मान सकता हूं कि कुछ आवश्यक आवश्यकताएं मानव जीवन की होती है परंतु यह भी विचार करना चाहिए कि आवश्यकतायें तभी होंगी जब यह जीवन रहेगा | जब मनुष्य राष्ट्र , समाज या परिवार की चिंता छोड़ करके उच्छृंखल होकर मनमानी करने लगता है तब वह समाज संकट की ओर अग्रसर हो जाता है | स्वयं को शिक्षित एवं शासक मानने वाला मनुष्य कुछ दिन के लिए स्वयं के ऊपर शासन नहीं कर पा रहा है , अपनी इच्छाओं को ,अपनी इंद्रियों पर रोक नहीं लगा पा रहा है | विचार कीजिए जिस मनुष्य का स्वयं के ऊपर शासन नहीं है , जो कुछ दिन के लिए धैर्य रखकर घर में नहीं रह पा रहा है वह किसी परिवार , समाज या राष्ट्र पर शासन कैसे करेगा ? क्योंकि शासन वही कर सकता है जिसने अनुशासन का पाठ सीखा हो | अनुशासन का पालन किस प्रकार हो रहा है यह आज हमें संपूर्ण भारत में देखने को मिला है | एक समाज अनुशासन का पालन करते हुए अपने घरों में बैठा है तो इसी समाज में रहने वाले कुछ लोग स्वयं पर शासन नहीं कर पा रहे हैं और यही वह लोग हैं जो एक बड़े समाज के लिए खतरा बनते जा रहे हैं | संकट की घड़ी में मनुष्य की परीक्षा होती है , आज परीक्षा की घड़ी में प्रत्येक मनुष्य को स्वयं का आंकलन करना चाहिए कि वह संसार की अपेक्षा स्वयं पर कितना शासन करने में सक्षम है | जिस दिन मनुष्य स्वयं पर शासन करना सीख जाएगा उस दिन उसके लिए कुछ भी अप्राप्त नहीं रह जाएगा , इसलिए मनुष्य को सर्वप्रथम स्वयं पर शासन करने के लिए स्वयं से युद्ध करना चाहिए |*
*अनुशासन का प्रथम पाठ विद्यालय में पढ़ाया जाता है परंतु पढ़ लिख कर भी मनुष्य स्वयं पर शासन नहीं कर पा रहा है | समस्त मानवजाति के लिए यह एक घातक संकेत है |*