*सनातन धर्म शास्वत तो है ही साथ ही दिव्य एवं अलौकिक भी है | सनातन धर्म में ऐसे - ऐसे ऋषि - महर्षि हुए हैं जिनको भूत , भविष्य , वर्तमान तीनों का ज्ञान था | इसका छोटा सा उदाहरण हैं कविकुल शिरोमणि परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी | बाबा तुलसीदास जीने मानस के अन्तर्गत उत्तरकाण्ड में कलियुग के विषय में जैसा वर्णन किया है आज के मनुष्यों का चरित्र उसी प्रकार है | कहने का तात्पर्य यह है कि सनातन के महापुरुष त्रिकालदर्शी हुआ करते थे | वर्तमान समय में जिस महामारी ( केरोना) से सम्पूर्ण विश्न ग्रसित है उसकी भविष्यवाणी हजारों वर्ष पहले लिखी गयी नारद संहिता में भी देखने को मिलता है | जिसके अनुसार :-- "भूपावहो महारोगो मध्य स्यार्ध वृ्स्टय: ! दुखिनो जंतव: सर्वे वत्सरे परिधाविनो !!" अर्थात :- परिधावी नामक सम्वत्सर के उत्तरार्ध में असमय भारी जल वृष्टि होगी , शासकों में आपसी वैमनस्यता बढ़ेगी और ऐसी महामारी फैलेगी जो प्राणियों के दु:खदायी सिद्ध होगी | इस प्रकार आज हम जिस महामारी की चपेट में हैं उसका वर्णन पहले ही हो चुका है | इसके अतिरिक्त प्रत्येक पञ्चांग में वर्षफल लिखते हुए भी विद्वानों ने दिसम्बर माह से विषाणु युक्त महामारी फैलने का संकेत पहले ही कर दिया था | सनातन की प्रत्येक गणना ज्योतिषीय गणित पर आधारित होती है | ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि राहु एवं केतु पृथ्वी पर अप्रत्याशित परिणाम लेकर आते हैं | शनि जब अपने स्वराशि मकर में प्रवेश करता है तो असाध्य रोग ( महामारी) का कारक बनता है | इसके साथ ही अनेक ग्रह इस रोग की वृद्धि में सहायक हो रहे हैं | मंगल भी २२ मार्च को मकर राशि में प्रवेश करके स्थिति को गम्भीर बना सकता है परंतु सुखद स्थिति यह बन रही है कि ३० मीर्च को देवगुरु वृहस्पति के मकर राशि में र्रवेश करने से इस महामारी का प्रभाव कम होना प्रारम्भ हो जायेगा | शनि एवं गुरु की युति इस कोरोना नामक महामारी को कमजोर तो कर देगी परंतु प्रभावहीन यह तभी होगी जब मंगल मकर राशि से कुंभ पर जायेगा और यह स्थिति ४ मई को बन रही है | कुल मिलाकर मई तक मानवजाति पर भयंकर आपात स्थिति है | ऐसी परिस्थिति में सावधानी ही बचाव कही जा सकती है | सनातन धर्म में सृष्टि के आदि से अन्त तक का वर्णन प्राप्त होता है आवश्यकता उसके सूक्ष्म विन्दुओं पर ध्यान देते हुए अध्ययन करने की |*
*आज समस्त ज्ञान विज्ञान कोरोमा नामक संक्रमण से लड़ने में स्वयं को अक्षम पा रहे हैं | सनातन की दिव्य परम्परा का त्याग करके आधुनिक जीवन शैली को अपना चुके मनुष्य जीवन रक्षा के लिए पुन: सनातन की मान्यताओं की ओर लौटने को विवश दिख रहे हैं | मानवमात्र को किसी भी संक्रमण से सुरक्षित बमासे रखने के लिए ही सनातन धर्म में हाथ मिलाने की अपेक्षा हाथ जोड़कर प्रणाम करने की परम्परा रही है क्योंकि कोई भी संक्रमण स्पर्श करने से ही फैलता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज सरकार की घोषणाओं (हाथ थोने , घर के बाहर पानी रखने आदि) को सुनकर विचार करता हूँ कि ईज जो घोषणा की जा रही है यह दिशा निर्देश तो सनीतन में बहुत पहले है परंतु हम सनातन की मान्यताओं को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं जिसका परिणाम महामारी के रूप में समुपस्थित है | शाकाहारी खाद्य पदार्थों के गुणों का वर्णन करते हुए मांसाहार का निषेध इसीलिए किया गया है क्योंकि ुता नहीं कौन सा जीव किस संक्रमण से संक्रमित हो परंतु आज का मनुष्य भक्ष्य - अभक्ष्य खा करके अनेक प्रकार से स्वयं तो रोगी हो ही रहा है साथ ही समस्त मानव जाति को संक्रमित कर रहा है | संकट की इस घड़ी में खान पान का विशेष ध्यान रखते हुए किसी को भी छूने का प्रयास न करना ही श्रेयल्कर है | सावधानी , सतर्कता एवं संयम के द्वारा ही इस महामारी से स्वयं को सुरक्षित रखा जा सकता है | यदि जीवन सुरक्षित है तो जीवन में अनेक आयोजनों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता रहेगा इसलिए जीवन को सुरक्षित रखने के लिए सनातन की मान्यताओं का पालन करते हुए सरकार के द्वारा प्रसारित किये जा दिशा - निर्देशों का यथावत पालन करना ही स्वयं व समाज के हित में हैं |*
*कोरोना नामक भयंकर संक्रमणीय रोग से लड़ने एवं बचने के लिए धैर्य , संयम , सतर्कता , एवं सावधानी अपेक्षित है | अभी और कठिन समय उपस्थित होने वाला है ऐसे में विवेक का प्रयोग करके मानवमात्र की सुरक्षा - संरक्षा में सहयोगी की भूमिका हम सबको मिलकर निभाना है |*