*अपने संपूर्ण जीवन काल में मनुष्य में अनेक गुणों का प्रादुर्भाव होता है | अपने गुणों के माध्यम से ही मनुष्य समाज में सम्मान या अपमान अर्जित करता है | यदि मनुष्य के गुणों की बात की जाए तो धैर्य मानव जीवन में एक ऐसा गुण है जिसके गर्भ से शेष सभी गुण प्रस्फुटित होते हैं | यदि किसी में धैर्य नहीं है तो वह चाहे जितना शक्तिसंपन्न हो उसकी संपन्नता दुर्बलता में बदल जाती है | धैर्य के बिना मनुष्य के किए गए किसी भी कार्य का समुचित परिणाम नहीं प्राप्त हो पाता | हमारे महापुरुषों ने कहा है कि जिसके पास धैर्य है समझो उसने काल को भी पक्ष में कर लिया है | यदि आपमें धैर्य है तो आप के विरोधी ही नहीं बल्कि आपके दुश्मन भी आप का लोहा मानने के लिए बाध्य हो जाएंगे | मनुष्य को जीवन की विषमताओं में प्रतिकूलताओं में अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए , यदि धैर्य डगमगा जाता है तो मनुष्य नकारात्मक हो जाता है और नकारात्मक मनुष्य जीवन के अंधेरों में खोता चला जाता है | अतः प्रत्येक मनुष्य को धैर्य का त्याग कभी नहीं करना चाहिये | कर्म करना मनुष्य का कर्तव्य है परंतु कर्म करने के बाद उसके फल की प्रतीक्षा करने में धैर्य की आवश्यकता भी होती है | धैर्यवान मनुष्य कोई भी कार्य समय को अनुकूल पा करके ही करते है यह अलग विषय है ऐसे लोगों को कुछ लोग कमजोर व डरपोक कहने लगते हैं | जबकि ऐसा व्यक्तित्व ना तो कमजोर होता है ना ही डरपोक होता है बल्कि वह धैर्य धारण करके उचित समय की प्रतीक्षा किया करता है | बाबा जी मानस में लिखते हैं :-- "आपदकाल परिखअहिं चारी ! धीरज धर्म मित्र अरु नारी !! आपत्तिकाल में जिन चार की परीक्षा लेनी चाहिए उनमें प्रथम स्थान धैर्य को ही दिया गया है | प्रत्येक मनुष्य को अपने धैर्य की परीक्षा अवश्य लेनी चाहिए |*
*आज सम्पूर्ण जिस संकटकाल का सामना कर रहा है वह. किसी से छुपा नहीं है | "वैश्विक महामारी" बनकर कोरोना संक्रमण ने आज समस्त विश्व को अपने चपेट में ले रखा है | इस संक्रमण के भय से जीवन थम सा गया है लोग अपने घरों में बन्द हैं | परन्तु कुछ लोग इस संकटकाल में अपने महान गुण धैर्य का त्याग. करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं | विचार कीजिए कि आपत्तिकाल में जिसने भी धैर्य का त्याग कर दिया वह स्वयं के साथ एक बड़े समाज के लिए घातक सिद्ध हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देश - विदेश का परिदृश्य देखकर यह कह सकता हूँ कि आज मनुष्यों में धैर्य बिल्कुल नहीं रह गया है | जबकि हमारे महापुरुषों ने कहा है कि जब शत्रु अदृश्य होकर हमला कर रहा हो उस समय अपनी बीरता दिखाने की अपेक्षा धैर्यपूर्वक उसके प्रकट होने की प्रतीक्षा कर लेना ही बुद्धिमत्ता है | जो भी अदृश्य शत्रु के ललकारने पर , अधीर होकर अपना सुरक्षाकवच तोड़कर बाहर निकल पड़ता है शत्रु उसका शिकार अवश्य कर लेता है | आज यही परिदृश्य समुपस्थित है कोरोना नामक अदृश्य शत्रु कब कहाँ से आक्रमण कर दे यह कोई नहीं जान पा रहा है , कुछ लोग तो धैर्यपूर्वक अपने घरों में बैठकर इस आपत्तिकाल के व्यतीत हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं वहीं अधिकतर लोगों का धैर्य जैसे खो सा गया है और वे अधीर होकर बाहर निकल रहे हैं तथा संक्रमित होकर स्वयं तो मृत्यु को निमंत्रण दे ही रहे हैं साथ ही अपने समाज को भी मृत्यु की ओर ले दा रहे हैं | यदि कुछ दिन धैर्य धारण करके अपने घरों में बैठा रहा जाय तो हम इस अज्ञात शत्रु को पलायन करने पर विवश कर सकते हैं परंतु दुर्भाग्य है कि आज लोग ऐसा नहीं कर पा रहे हैं जो कि समस्त मानवजाति के लिए एक विशाल संकट का संदेश है | आज आवश्यकता है अपने महान गुण धैर्य को प्रकट करने की क्योंकि धैर्य धारण करने पर बड़े से बड़ा संकट भी टल जाता है |*
*सुग्रीव की ललकार पर बालि की पत्नी तारा ने बालि को बाहर न निकलने के लिए बहुत समझाया परंतु बालि धैर्य न धारण कर पाया और बाहर निकल पड़ा जिससे कि वह मृत्यु को प्राप्त हो गया ! आज बालि सरीखे लोग अधिक दिखाई पड़ रहे हैं जो कि मृत्यु को निमंत्रण दे रहे हैं ऐसा करना कदापि उचित नहीं है |*