*मानव जीवन में लगातार उतार - चढ़ाव , सुख - दुख देखने को मिलते रहते हैं | सुख दुख के इन झंझावातों के मध्य मानव जीवन व्यतीत होता रहता है | संकट की घड़ी में जब कोई भी सहायक नहीं होता तब मनुष्य का धैर्य उसको सम्बल प्रदान करता है | जिसने अपना धैर्य खो दिया वह दुख के अथाह समुद्र में डूब जाता है | मनुष्य को कभी भी आशा का त्याग नहीं करना चाहिए | जब भगवान श्रीराम वनवास को गये तो अयोध्यावासी उनके वियोग में प्राण तक त्यागने को तैयार हो गये थे परंतु उनके मन में एक आशा थी कि चौदह वर्षों के उपरान्त उनके श्रीराम पुन: वापस आयेंगे | इसी आशा एवं धैर्य ने उनको जीवित रखा और अयोध्या में चौदह वर्षों तक किसी की मृत्यु नहीं हुई | संकट के समय मन विह्वल हो जाता है परंतु इसका अर्थ यह नहीं हुआ कि हम जीवन से निराश हो जायं इसके अतिरिक्त यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मनुष्य का धैर्य , संयम एवं दुख के बाद सुख आने की कल्पना का त्याग कभी भी न होने पाये | रावण की अशोक वाटिका में बैठी हुई माता जानकी के पास अपना कोई भी नहीं था परंतु उनका यह दृढ़ विश्वास कि भगवान राम अकेले ही रावण जैसे राक्षस का वध करके उन्हें ले जायेंगे उनको जीवन देने में सहायक सिद्ध हुआ | मनुष्य की मृत्यु तभी हो जाती है जब वह निराशावादी होकर नकारात्मक चिन्तन करने लगता है ` कुल मिलाकर मई तक मानवजाति पर भयंकर आपात स्थिति है | ऐसी परिस्थिति में सावधानी ही बचाव कही जा सकती है | सनातन धर्म में सृष्टि के आदि से अन्त तक का वर्णन प्राप्त होता है आवश्यकता उसके सूक्ष्म विन्दुओं पर ध्यान देते हुए अध्ययन करने की |*
*आज समस्त ज्ञान विज्ञान कोरोमा नामक संक्रमण के दूसरे प्रहार से लड़ रहा है | कोरोना का दूसरा प्रहार भले ही प्रचण्ड है परंतु सकारात्ंकता के साथ इस पर विजय भी प्राप्त की जा रही है | आज का चिन्तनीय विषय यह है कि हम सनातन की दिव्य परम्परा का त्याग करके आधुनिक जीवन शैली को अपना चुके हैं परंतु सुखद यह भी है कि मनुष्य जीवन रक्षा के लिए पुन: सनातन की मान्यताओं की ओर लौटने को विवश दिख रहा हैं | मानवमात्र को किसी भी संक्रमण से सुरक्षित बमासे रखने के लिए ही सनातन धर्म में हाथ मिलाने की अपेक्षा हाथ जोड़कर प्रणाम करने की परम्परा रही है क्योंकि कोई भी संक्रमण स्पर्श करने से ही फैलता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज मनुष्य धैर्य नहीं रख पा रहा है अधिकतर मृत्यु हृदयगति रुकने से हो रही है | जैसे ही खाँसी बुखार हुआ लोगों की मानसिकता बन जाती है कि हमको कोरोना हो गया और फिर वह भविष्य की चिंताओं में डूब जाता है कि "अब क्या होगा ?" और सोंचते सोंचते उसकी हृदयगति रुक जाती है | वहीं अनेकों रोगी कोरोना से लड़कर विजयी भी हो रहे हैं ऐसे लोगों ने सकारात्मकता के साथ अपना धैर्य बनाये रखा और अपनी सोंच को नकारात्मक एवं निराशावादी नहीं होने दिया | इस समय मानव मात्र के ऊपर बहुत बड़ा संकट है परंतु ऐसी विषम परिस्थिति में भी मनुष्य को अपने पूर्वजों का अनुसरण करते हुए संयम एवं धैर्य बनाये रखते हुए संकट की इस घड़ी में खान पान का विशेष ध्यान रखते हुए किसी को भी अनावश्यक छूने का प्रयास न करना ही श्रेयल्कर है | सावधानी , सतर्कता एवं संयम के द्वारा ही इस महामारी से स्वयं को सुरक्षित रखा जा सकता है | यदि जीवन सुरक्षित है तो जीवन में अनेक आयोजनों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता रहेगा इसलिए जीवन को सुरक्षित रखने के लिए सनातन की मान्यताओं का पालन करते हुए सरकार के द्वारा प्रसारित किये जा दिशा - निर्देशों का यथावत पालन करना ही स्वयं व समाज के हित में हैं |*
*कोरोना नामक भयंकर संक्रमणीय रोग से लड़ने एवं बचने के लिए धैर्य , संयम , सतर्कता , एवं सावधानी अपेक्षित है | अभी और कठिन समय उपस्थित हो सकता है ऐसे में विवेक का प्रयोग करके मानवमात्र की सुरक्षा - संरक्षा में सहयोगी की भूमिका हम सबको मिलकर निभाना है |*