*सनातन धर्म में प्रत्येक व्यक्ति को धर्म का पालन करने का निर्देश बार - बार दिया गया है | धर्म को चार पैरों वाला वृषभ रूप में माना जाता है जिसके तीन पैरों की अपेक्षा चौथे पैर की मान्यता कलियुग में अधिक बताया गया है , धर्म के चौथे पैर को "दान" कहा गया है | तुलसीदास जी मामस में लिखते हैं :-- "प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान ! येन केन विधि दीन्हे दान विविध कल्यान !! अर्थात कलियुग में यदि धर्म का पालन करना है तो दान करते रहना चाहिए | जब भी दान की बात आती है तो राजा हरिचंद्र , कर्ण का दान आदि का नाम सबसे पहले लिया जाता है | शास्त्रों में दान देने के बारे में विस्तार से बताया गया है | दान सदैव नि:स्वार्थ भाव से देना चाहिए , नि:स्वार्थ दान का उदाहरण हमें प्रकृति से सीखना चाहिए, जिस तरह वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं , नदियां परोपकार के लिए जल देती हैं वायु हमें प्राण प्रदान करते हैं , अग्नि हमें ताप देती है , सूर्य एवं चन्द्रमा हमें प्रकाश देते हैं उसी प्रकार मनुष्य को भी दान करना चाहिए | दूसरों की सहायता करके जो शांति मिलती है उसका कोई मूल्य नहीं होता है | संसार के प्रत्येक धर्म में दान का विशेष महत्व होता है | दान करने से मनुष्य के भीतर त्याग और बलिदान की भावना आती है | दान करने से व्यक्ति को संतुष्टि तो मिलती ही है साथ ही दान के समान पुण्य का कोई काम माना ही नहीं जाता है | शास्त्रों में भी दान का बहुत महत्व बताते हुए कहा गया है कि है कि दान करने से अक्षय पुण्य मिलता है , इतना ही नहीं दान करने से हमारे द्वारा किए गई जाने-अनजाने पापों में मिलने वाले फल नष्ट हो जाते हैं | दान करने के लिए मनुष्य के हृदय में प्रेम , करुणा एवं दया का भाव होना आवश्यक है क्योंकि जिस व्यक्ति के हृदय में दया नहीं होती है वह कभी दान नहीं कर सकता है |*
*आज समस्त विश्व एक संक्रमणीय महामारी से लड़ रहा है हमारे देश में तालाबंदी की घोषणा के बाद कुछ लोगों के समक्ष भोजन जुटाने की भी समस्या बन रही है ! यद्यपि दिश की सरकार प्रत्येक देशवासी के लिए भोजन की व्यवस्था करने की घोषणा भी कर रही है परंतु यह भोजन प्रत्येक व्यक्ति के पास तक नहीं पहुँच पा रहा है | ऐसे में दानदाताओं को आगे आकर जरूरतमंदों की सहायता करते हुए दान का पुण्य अर्जित करना चाहिए | और लोग कर भी रहे हैं | देश इस समय संकटकाल में है , संकट की इस घड़ी में किया गया दान अक्षय फल प्रदान करने वाला होगा | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" गर्व कर सकता हूँ कि मैं सनातन धर्म में उत्पन्न हुआ हूँ गर्व इसलिए क्योंकि संकट की इस घड़ी में आज अन्य धर्मों की अपेक्षा सनातन धर्मी अपनी योग्यता के अनुसार बढ़ चढ़कर दान कर रहे हैं | देश में धन कुबेरों की कमी नहीं है परंतु दुख का विषय है कि अभी तक कुछ लोग यह विचार कर रहे हैं कि दान करें या नहीं | धन कुबेरों के पास जो भी धन है वह गरीब मजदूरों की मेहनत का ही परिणाम हा तो आज जब गरीब मजदूर संकट में है तो अपने धन का कुछ अंश इनको वापस करने में कोई गहन विचार नहीं होना चाहिए क्योंकि जहाँ दान करने से किसी की सहायता हो जाती है वहीं दान करने के कई मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलते हैं | दान करने से मन और विचारों में खुलापन आता है , दान करने वाले व्यक्ति के अहम और मोह का त्याग होता है | दान करने से मन की कई ग्रंथियां खुलती हैं एवं हृदय को अपार संतुष्टि मिलती है | कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दान करने से कई प्रकार के दोष मिट जाते हैं | अत: पात्रता का अवलोकन करके प्रत्येक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करते रहना चाहिए |*
*वैसे तो व्यक्ति समय समय पर दान आदि किया करता है परंतु संकट के समय किसी की सहायता करते हुए उसे दान स्वरूप कुछ सामग्री भेंट करने का जो फल प्राप्त होता है वह सामान्य दिनों में किये दान से कहीं अधिक पुण्य का कारक बनता है |*