*मानव जीवन में अनेकों प्रकार की एवं मित्र बना करते हैं कुछ शत्रु तो ऐसे भी होते हैं जिनके विषय में हम कुछ भी नहीं जानते हैं परंतु वे हमारे लिए प्राणघातक सिद्ध होते हैं | शत्रु से बचने का उपाय मनुष्य आदिकाल से करता चला आया है | अपने एवं अपने समाज की सुरक्षा करना मनुष्य का प्रथम कर्तव्य है , अपने इस कर्तव्य का पालन मनुष्य आदिकाल से करता चला रहा है | कुछ शत्रु ऐसे होते हैं जो संपूर्ण मानव जाति के लिए घातक सिद्ध होते रहे हैं | पूर्वकाल में हमारे यहां जब राजतंत्र था तब राजा लोग अपनी एवं अपने प्रजा की सुरक्षा के लिए एक मजबूत किले का निर्माण कराते थे , संपूर्ण प्रजा उसी किले के भीतर प्रेम से रहा करती थी | जब किसी शत्रु का आक्रमण होता था तो सर्वप्रथम प्रजा की सुरक्षा के लिए किले के दरवाजे को बंद कर दिया जाता था जिससे कि वह शत्रु किले में पहुंचकर प्रजा को नुकसान न पहुँचा सके | किले के अंदर ही बैठकर राजा अपने मंत्रियों के साथ शत्रु से लड़ने की योजना बनाया करते थे | कभी-कभी तो यह भी देखने को मिला है कि शत्रु सेना किले को न भेद पाई और उसे निराश होकर वापस लौटना पड़ा है | इतिहास साक्षी है कि मनुष्य विवेकवान प्राणी और अपने विवेक से उसने अपने शत्रुओं को पराजित भी किया है | परंतु इसके लिए शत्रु के विषय में जानकारी एवं समय की अनुकूलता आवशयक है | जिसने समय को ना पहचाना और अपने बल के अहंकार में स्वयं से बलवान शत्रु से भिड़ने का प्रयास किया उसका पतन भी हो गया है | बुद्धिमत्ता यही है कि अपने शत्रु की शक्ति का आकलन करके तब उससे युद्ध ठाना जाय , शत्रु समुपस्थित होता है तो उस से युद्ध करना आसान हो जाता है परंतु जो शत्रु अदृश्य होकरके प्रहार कर रहा हो उससे युद्ध करके विजय प्राप्त कर पाना बहुत ही कठिन कार्य होता है | ऐसे में स्वयं को सुरक्षित करना ही एकमात्र उपाय बचता है | आज वहीं पर स्थिति संपूर्ण विश्व के सामने उपस्थित है शत्रु प्रबल है , और हम उसके स्वरूप को जानते भी नहीं ऐसे में स्वयं की सुरक्षा ही बचाव है |*
*आज संपूर्ण विश्व में मानव जाति के लिए प्रबल शत्रु बन करके कोरोना नामक महामारी तांडव तो मचा ही रही है साथ ही अदृश्य रूप में मानव जाति पर प्रहार करके मनुष्य को असमय ही काल के गाल में पहुंचा रही है | यह शत्रु ऐसा है जो हमको दिखाई तो नहीं पड़ता परंतु उसका प्रहार प्राणघातक होता है | ऐसे में हमें अपने पूर्वजों से सीख लेते हुए अपने किले अर्थात घर के दरवाजों को बंद करके घर के अंदर बैठकर शत्रु से लड़ने योजना बनानी चाहिए या फिर शत्रु के वापस चले जाने की प्रतीक्षा करनी चाहिए | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के संकट काल में समस्त देशवासियों को यही निवेदन करना चाहूंगा कि आज एक ऐसा प्रबल शत्रु प्राणघातक बनकर मानव जाति के लिए काल बना हुआ है जिसे कोरोना संक्रमण कहा जा रहा है और उससे युद्ध करने की सामग्री हमारे पास नहीं है , ऐसे में स्वयं को अपने घरों में सुरक्षित रखना ही बुद्धिमत्ता कही जा सकती है | जो लोग शत्रु के बल को ना जान करके बहादुरी दिखाते हुए अपने घरों के दरवाजों को खोलकर बाहर घूम रहे हैं वह स्वयं तो काल के गाल में जाने की तैयारी कर ही रहे है साथ ही एक बड़े समाज को भी शत्रु के सामने परोस रहे हैं | जो कि मानवमात्र के लिए घातक है | अपनी बुद्धि - विवेक का प्रयोग करके इतिहास के सीख लेते हुए प्रत्येक मनुष्य को अपनी एवं अपने परिवार की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाते हुए तब तक घरों में रहना है जब तक कि शत्रु वापस न चला जाए अन्यथा यह शत्रु इतना प्रबल है कि तत्क्षण मनुष्य को अपनी चपेट में ले लेता है अत: सुरक्षित रहें |*
*समय कभी भी एक जैसा नहीं रहता है इस समय मनुष्य के लिए अच्छे दिन नहीं चल रहे है इसलिए विवेक का प्रयोग करते हैं घरों में बैठकर अच्छे दिनों की प्रतीक्षा करना ही एकमात्र उपाय है |*