*आज की स्थिति पर मन की व्यथा एवं आह निकलकर काव्यरूप में परिवर्तित हो गयी:---*
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*असहायों की चीत्कारें , दे रही हैं सीना चीर !*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो , मानवता की पीर !!*
*बेबस मानव आहें आज भर रहा है !*
*असमय हो संक्रमित आज मर रहा है !!*
*मानवता के रक्षक - भक्षक आज बने !*
*कितनों के रक्तों से इनके हाथ सने !!*
*मानवता को लज्जित करती , मत खींचो शमशीर !*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो मानवता की पीर !!*
*किसी ने बेटा बाप किसी ने खोया है !*
*सुहागिनों ने मांग का सेंदुर धोया है !!*
*दुगुने पैसों में सामान दे रहे हो !*
*तुम पैसो की खातिर जान ले रहे हो !*
*भारत की अब नहीं बिगाड़ो तुम सुन्दर तस्वीर !*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो मानवता की पीर !!*
*जनमानस की समझो तुम किंचित लाचारी !*
*औषधियों की बन्द करो कालाबाजारी !!*
*तुम भी किसी के बेटे बाप कहाते हो !*
*फिर क्यों ले बद्दुआ ये पाप कमाते हो !!*
*देख तुम्हारी दानवता अब नयन बहीये नीर !*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो मानवता की पीर !"*
*सोंचो जब अपना कोई प्रिय जाता है !*
*जीवन भर वह कितना हमें रुलाता है !!*
*डरो हाय से ! श्रापों से इन तापों से !*
*बूढ़ी मां के हृदय जले सन्तापों से !!*
*"अर्जुन" अपना प्रिय जायेगा तब जानोगे पीर !*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो मानवता की पीर !!*
*ओ निष्ठुर ! पहचानो अब तो मानवता की पीर !"*
*रचना :- आचार्य अर्जुन तिवारी*
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