*ईश्वर ने समस्त सृष्टि के साथ मनुष्य को भी प्रकट किया और साथ ही मनुष्य को असीमित शक्तियां भी प्रदान कर दीं | अपने बुद्धि एवं विवेक से मनुष्य निरंतर विकास करता गया | मनुष्य इस धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी बनकर धरा पर राज्य करने लगा परंतु मनुष्य पर ऐसा भी समय आया जब वह दीन हीन एवं असहाय होकर भगवान की शरण में गया | स्वयं को विधाता मान लेने वाला मनुष्य अंततोगत्वा उसी परमात्मा की शरण में जाता है | प्रायः लोग यह कहा करते हैं कि मनुष्य ईश्वर का भजन करता रहता है परंतु परमात्मा इसका फल नहीं प्रदान करते | तो यह जान लीजिए कि जब तक मनुष्य अपने धनबल , जनरल एवं बाहुबल के भरोसे रहता है तब तक ईश्वर उसकी सहायता करने नहीं आते | जब मनुष्य संसार की सारे सहारे छोड़ कर उनकी शरण में जाता है तब अविलंब वह दयालु परमात्मा उस मनुष्य को अपनी गोद में बिठा लेते हैं | भक्त प्रहलाद के पास ईश्वर के अतिरिक्त और कोई आश्रय नहीं था और परमात्मा ने उसकी रक्षा हिरणाकश्यप जैसी महामारी से की | इतिहास में अनेकों कथानक ऐसे प्राप्त होते हैं जहां मनुष्य संसार के सहारे को छोड़कर जब भगवान के नाम का सहारा लेकर उनकी शरण में गया है तब उसके सारे कार्य निष्पादित हो गए हैं | भगवान ने स्वयं गीता में कहा है :- "ये यथा मां प्रपद्यंते तांस्तथैव भजाम्यहम्" अर्थात जो मुझको जिस प्रकार भजता है मैं उसको उसी प्रकार भेजता हूं | ईश्वर हमारी सहायता क्यों नहीं कर रहा है ? यदि इसे जानना है तो दोष ईश्वर में नहीं बल्कि स्वयं के भीतर ढूंढना चाहिए कि जिस प्रकार हमें ईश्वर का स्मरण करना चाहिए उस प्रकार हम कर पा रहे हैं कि नहीं ? क्योंकि जिस दिन मनुष्य भगवान नाम का सहारा लेकर धैर्य पूर्वक कोई भी कार्य करेगा तो उसका धैर्य एवं भगवान नाम का आश्रय ही उस का मार्ग प्रशस्त करता रहता है | इसलिए संकट के समय में स्वयं के धैर्य को बनाए रखते हुए ईश्वर का आश्रय ग्रहण करना ही एकमात्र उपाय है |*
*आज हम एवं हमारा समस्त विश्व एक अदृश्य शत्रु से युद्ध कर रहा है | कोरोना नामक संक्रमण ने समस्त विश्व में हाहाकार मचा रखा है | इस धरती का एकमात्र अधिपति मनुष्य आज स्वयं को असहाय पा रहा है | स्वयं को विधाता समझ लेने वाला मनुष्य आज किंकर्तव्यविमूढ़ है | उसकी यह नहीं समझ में आ रहा है कि क्या किया जाय | अनेकों लोग काल के गाल में समाहित होते चले जा रहे हैं | ऐसे समय में अनेकों लोग इस संक्रमण से विजयी होकर अपने घर भी लौट रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि जिसने भी इस संकट के समय में अपने धैर्य को बनाए रखते हुए ईश्वर की शरण पकड़ ली उसका बाल भी नहीं बांका हो रहा है , और जो अपने धन , अपने परिवार एवं अपने बाहुबल के भरोसे इस युद्ध को जीतना चाह रहे हैं वह परास्त होकर काल के गाल में समाहित होते चले जा रहे हैं | हमें यह समझना होगा कि काल जब अपना चक्र घुमाता है तो हमारा धन , हमारा परिवार एवं हमारा बाहुबल सब कुछ असहाय हो जाता है ऐसे में मनुष्य को एक ही सहारा बसता है और वह है परमपिता परमात्मा का | इस संकट काल में प्रत्येक मनुष्य को अपने धैर्य को बनाए रखना है और धैर्य धारण रखते हुए भगवान के नाम का आश्रय लेकर ही इस महामारी से बचा जा सकता है अन्यथा कोई भी सहारा नहीं है |*
*निश्छल एवं निर्मल मन से की गयी प्रार्थना कभी भी निष्फल नहीं जाती है | स्वयं एवं अपने परिवार की कुशलता के लिए निरन्तर भगवन्नाम स्मरण करते रहें तथा धैर्य बनाये रखें ! संकट का यह समय भी व्यतीत हो जायेगा |*