*सनातन धर्म की मान्यतायें एवं जड़ें इतनी मजबूत हैं कि यदि इनको ध्यान से देखा एवं समझा जाय तो मानव समाज को कभी कोई समस्या का सामना करना ही न पड़े | हमारी मान्यतायें प्राचीन भले ही हों परंतु मानवमात्र का कल्याण हमारी मान्यताओं में स्पष्ट देखने को मिलता है | मानव समाज को अनेक प्रकार के दिशा निर्देश हमारी सनातन मान्यताओं से प्राप्त होते हैं अब यह अलग विषय है कि हम उन्हें पुरानी एवं बेकार की मान्यताएं मानने लगे हैं | आज समस्त विश्व जिस कोरोना नामक बीमारी से संघर्ष कर रहा है उससे बचने का एक ही उपाय चिकित्सकों एवं सरकार के द्वारा किया जा रहा है और वह है उचित दूरी ! जिससे कि एक दूसरे को संक्रमण न फैलने पाये | यह आज हो रहा है और वही हमारी सनातन संस्कृति में संक्रमण से बचने के लिए बहुत पहले से ही उपाय बताए गए हैं | जब हमारे यहां किसी बच्चे का जन्म होता था तो माँ एवं बच्चे को कम से कम ग्यारह दिन के लिए एक अलग कमरे में रखा जाता था जिससे कि जच्चा एवं बच्चा को कोई संक्रमण न होने पावे | यह हमारा प्राचीन आइसोलेशन था | वहीं जब घर में किसी की मृत्यु होती थी तो दाहकर्म करने वाले को पूरे परिवार एवं समाज से अलग कर दिया जाता था | क्योंकि हमारे बुजुर्गों का मानना था कि जब किसी की मृत्यु होती थी तो उसका कारण या तो कोई रोग होता था या फिर वृद्धावस्था | जहां अनेकों प्रकार के संक्रमण मृतक को घेरे रहते थे और वे संक्रमण दाह कर्म करने वाले के शरीर में प्रविष्ट होने की पूर्ण आशंका बनी रहती थी | इसीलिए दाहकर्ता को तेरह दिन के लिए परिवार एवं समाज से दूर करते हुए उसकी व्यवस्था अलग कर दी जाती थी | उसका भोजन , वस्त्र , आसन आदि कोई नहीं छूता था | यह हमारा संक्रमणरोधी कार्य था | दस दिन के बाद दसवाँ संस्कार करके उसका शुद्धीकरण होता था और तेरह दिन के बाद वह पुन: परिवार एवं समाज में सम्मिलित होता था | ऐसा सिर्फ इसलिए किया जाता था जिससे कि संक्रमण के कीटाणुओं को समाज में फैलने का अवसर न मिल सके | ऐसा करके लोग अनेक प्रकार के संक्रमणों से स्वयं तो बचे ही रहते थे साथ ही अपने परिवार एवं समाज को भी सुरक्षित रखते थे | परंतु धीरे - धीरे स्वयं को आधुनिक मानने वाले समाज ने हमारी मान्यताओं को मानना कम कर दिया , सूतक एवं पातक आज की पीढ़ी के लिए एक दकियानूसी विचार लगने लगा जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं | हमारी प्राचीन सनातन मान्यतायें न तो पुरानी हैं और न ही दकियानूसी इन मान्यताओं के पीछे मानव कल्याण ही निहित था परंतु हमने आधुनिकता के चक्रव्यूह में स्वयं को इस प्रकार फंसा लिया है कि सब कुछ जानते हुए भी हम आज अपनी ही मान्यताओं को नहीं मानना चाहते हैं |*
*आज सारा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है अनेकों प्रकार के उपाय करने के बाद भी लोग असमय काल के गाल में समाहित होते चले जा रहे हैं | सरकारें बार बार चिल्लाकर क्वारंटीन एवं होम आइसोलेशन की अपील करने के साथ ही एक दूसरे से उचित दूरी बनाये रखने का निर्देश दे रही हैं | और लोग इसे मानने को बाध्य भी हैं | जिस संक्रमणरोधी प्राचीन मान्यता (सूतक एवं पातक में उचित दूरी) को लोग हंसी में उड़ाकर दकियानूसी विचार कहकर टाल देते थे आज वही क्वारंटीन एवं होम आइयोलेशन मनुष्य के प्राण बचा रहा है | इतना सबकुछ होने के बाद भी कुछ लोग आज भी कुछ नहीं मानना चाहते और यही लोग समाज के लिए घातक हो रहे हैं | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज के समाज को देख रहा हूँ जहाँ लोग चिकित्सालय में बच्चे का जन्म होने के बाद तुरन्त पूरे परिवार सहित उसको गोद में लेकर पूरे चिकित्सालय में टहलने लगते हैं तथा प्रसूता भी घर आने के बाद सारे घर में घूमने लगती है | किसी प्रियजन का अनेतिम संस्कार करने के बाद लोग पुरानी मान्यता को न मानकर दूसरे दिन से ही सबके साथ उठने बैठने एवं भोजन करने का कार्यक्रम प्रारम्भ कर देते हैं | यही कारण है कि आज समाज में जाने अनजाने अनेकों प्रकार के संक्रमण प्रसारित हो रहे हैं | हमारे ऋषि - महर्षियों ने अपने धर्मग्रन्थों में जो भी विचार रखे थे वे सब के सब स्वयं में वैज्ञानिकता से ओतप्रोत थे परंतु हमें आज अपने ही ग्रन्थों में उद्धृत विचार पुराने एवं वैज्ञानिक विचार आधुनिक एवं कल्याणकारी लगते हैं जबकि वैज्ञानिक भी आज हमारी मान्यताओं को समझते हुए उसे मानने को विवश हो रहे हैं | हमारे पूर्वजों ने जो भी मान्यतायें स्थापित की थीं उनका मूल उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मानव कल्याण था परंतु आज का मानव उन मानेयताओं को न मानकर अपना अकल्याण ही कर रहा है | समाज विरोधी सदैव से होते आये हैं | कोरोना का इतना भीषण हाहाकार होने के बाद आज भी कुछ लोग हैं जो किसी भी प्रकार की अपील न तो सुनना चाह रहे हैं और न ही अपने घरों में बैठ रहे हैं ऐसे लोग स्वयं तो संक्रमित हो ही रहे हैं साथ ही समाज को भी संक्रमित कर रहे हैं | आज हमें अपनी सनातन मान्यताओं पर गहनता से विचार करने की आवश्यकता है |*
*मानव अपना कल्याण एवं दुखद स्थिति उत्पन्न करने के लिए स्वतंत्र है वह जैसा चाहे वैसा कर सकता है | आज संसार में जो भी हो रहा है उसका कारण स्वयं मानव एवं उसके हृदय में प्रकट हो रहे नकारात्मक विचार ही हैं |*