*हमारा देश भारत गांवों का देश हमारे देश के प्राण हमारे गांव हैं , आवश्यकतानुसार देश का शहरीकरण होने लगा लोग गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने लगे परंतु इतने पलायन एवं इतना शहरीकरण होने के बाद आज भी लगभग साठ - सत्तर प्रतिशत आबादी गांव में ही निवास करती है | गांव का जीवन शहरों से बिल्कुल भिन्न होता है | प्रेम , आत्मिकता एवं आपसी बंधुत्व का जो उदाहरण एवं प्राकृतिक आनन्दमयी वातावरण जो गाँव में देखने को मिलता है वह शहरों में कहीं दृष्टिगत नहीं होता है | भारतीय संस्कृति आज भी गाँवों में ही फलती - फूलती है , इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण देश का उदर भरण गाँवों से ही होता है क्योंकि बिना अन्न के मनुष्य रह नहीं सकता और अन्न उत्पादन गाँवों में ही होता है | इस विशाल देश की कृषि व्यवस्था के आधार गाँव ही हैं यदि गाँव के किसान कृषिकार्य का बहिष्कार कर दें तो सम्पूर्ण देश भुखमरी के कगार पर पहुँच जायेगा | गाँव से शहरों की ओर पलायन करके कुछ दिन शहर में निवास करने वालों को न तो गाँव अच्छा लगता है और न ही गाँव के लोग | आधुनिक जीवनशैली को आत्मसात कर लेने के बाद इन शहरी लोगों को अपने ही गाँव के लोग देहाती एवं गंवार लगने लगते हैं | गाँव के लोग गंवार बिल्कुल भी नहीं होते हैं क्योंकि कला - संस्कृति एवं परम्पराओं का सृजन गाँव में ही होता है | मनुष्य जीवन में विकास करने के क्रम में आगे बढ़ता चला जाता है और अपने मूल (गाँव) को तिरस्कृत करते हुए भूलता चला जाता है परंतु शहरी लोगों से तिरस्कृत होने के बाद भी किसी आपदा के समय यह गाँव ही इनका आश्रयस्थल बनते हैं , यही गाँवों की आत्मीयता एवं संस्कार का उदाहरण है | जहाँ शहरों में लोग एक दूसरे को पहचानना नहीं चाहते वहीं गाँव में यदि कोई अपरिचित भी आ जाता है तो वह भोजन सत्कार आदि सब कुछ पा जाता है | शायद इसीलिए गाँवों को भारत का प्राण कहा जाता है |*
*आज देश संकटकाल में है , कोरोना नामक वैश्विक संक्रमण ने हमारे भारत को भी अपनी चपेट लेना प्रारम्भ कर दिया है , पूरा देश तालाबंदी का पालन कर रहा है , ऐसे में सारे उद्योग - धंधे बन्द हो गये हैं तो लोगों को गाँव याद आ रहा है | आज गाँवों को गंवार व देहाती कहकर शहरों में रह रहे लोगों का अपने गाँव के प्रति प्रेम देखकर बाबा जी की चौपाई "स्वारथ लाइ करहिं सब प्रीती" बरबस ही स्मरण हो जाती है | अपने गाँव के प्रति प्रेम प्रदर्शित करते हुए जिस प्रकार लोग एक बड़ी संख्या में शहरों को छोड़कर गाँवों की पलायन कर रहे हैं वह मनुष्य के स्वार्थ को उजागर करता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूँ कि जिस गाँव को लोग बेकार एवं देहात कहकर हंसी उड़ाते थे वही गाँव आज इन लोगों का आश्रयस्थल बन रहे हैं | यद्यपि गाँ के लोग यह जानते हैं कि शहरों से यह संक्रमण गाँव में भी आ सकता है परंतु फिर भी आत्मीयता के नाते अपनों को आश्रय दे रहे हैं | प्रत्येक मनुष्य को अपने मूल का सम्मीन एवं संरक्षण करते रहना चाहिए क्योंकि यदि मूल ही नहीं रह जायेगा तो मानव अस्तित्व विहीन हो जायेगा | हमारे देश का मूल हमारे गाँव हैं देश के किसी भी आपत्ति में एक संरक्षक एवं अभिभावक के रूप में गाँवों ने अपनी भूमिका निभाई है | आज संकट की इस घड़ी में प्रत्येक शहरवासी बड़ी आशा भरी निगाहों से गाँव की ओर देखते हुए शहरों से पलायन कर रहा है , वहीं कुछ लोगों ने अपने गाँव व परिजनों का इतना अपमान कर दिया है कि चाहकर भी वे गाँव नहीं जा सकते , इसीलिए कभी भी अपने जन्मदाता एवं जन्मभूमि को अपमानित नहीं करना चाहिए क्योंकि इनकी गणना स्वर्ग से भी ऊपर की जाती है |*
*पक्षी आसमान कितना भी ऊँचा उड़कर धरती पर रहने वालों की हंसी उड़ाता हुआ स्वयं में गर्वित हो परंतु उसको भोजन लेने के लिए धरती पर ही आना पड़ता है , उसी प्रकार मनुष्य चाहे जितना आधुनिक एवं शहरी हो जाय अन्ततोगत्वा उसको शरह गाँव में ही मिलता है |*