आ, अब घर लौट चलें ....
वर्षों हुए ज्यों घर छोड़े हुए,
अपनों से हृदय को जोड़े हुए ।
भागते रहे, दौड़्ते रहे,
दुनिया औ' धन-दौलत के पीछे ।
आ, अब अपनों की सुध लें,
आ, अब घर लौट चलें .....
बच्चे भी ना जानें, घर है क्या ?
सपनों में उड़्ते, पर धरती क्या ?
माता-पिता हैं, पर परिवार कहॉ ?
कोठी-मकान है, पर घर कहॉ ?
आ, अब बच्चों की सुध लें,
आ, अब घर लौट चलें ...
विदेश घूमे, वैदेशिक अपनाया,
अपना भूले, पश्चिमी अपनाया ।
महत्व न समझा, धरोहर का,
पूर्वजों का सब हमने भुलाया ।
आ, अपना सब कुछ सम्हालें,
आ, अब घर लौट चलें ......
-----*----- आशा क्षमा