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यत्र, तत्र, सर्वत्र

20 सितम्बर 2015

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. यत्र, तत्र, सर्वत्र यदि तुम बिखेर दो स्वयं को यत्र, तत्र, सर्वत्र पुष्पों की तरह ! यदि तुम महकने लगो यत्र, तत्र, सर्वत्र गुलाबों की तरह ! यदि तुम छाया दो हर पथिक को वृक्षों की तरह ! शीतलता के लिए बहो हवा के झोंकों की तरह ! चहको, चिड़ियों की तरह। चमको, चाँद-तारों की तरह ! कुछ नहीं, सिर्फ मनोबल दो दीन-दुखियों को संतों की तरह ! सच मानो- तुम ईश्वर को जान जाओगे ये ही तो कर्म हैं ईश्वर के अर्थात् है वह विद्यमान यत्र, तत्र, सर्वत्र... यही उसका है संदेश- “ हे मानव, तुम भी मेरे जैसे बन जाओ बिखर जाओ यत्र, तत्र, सर्वत्र ... और हो जाओ एक रुप मेरे साथ !” ----x----
पुष्पा पी. परजिया

पुष्पा पी. परजिया

जितनी प्रसंशा की जाय कम है अति सुन्दर ... बधाइयाँ आशा "क्षमा " जी

4 अक्टूबर 2015

आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

रचना की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

4 अक्टूबर 2015

अर्चना गंगवार

अर्चना गंगवार

bबहुत सुंदर सन्देश

3 अक्टूबर 2015

वर्तिका

वर्तिका

कविता के माध्यम से बहुत अच्छी सीख!

3 अक्टूबर 2015

आशा  “क्षमा”

आशा “क्षमा”

धन्यवाद !

2 अक्टूबर 2015

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

बहुत सुन्दर सन्देश !

23 सितम्बर 2015

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"शून्य से अनंत तक"

19 सितम्बर 2015
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भटकता है हर दिन इंसानशून्य से अनंत तक,खोजता स्वअस्तित्व कोजन्म से लेकर अंत तक ।अपनाये उसने कौन से न रुपसाधु, संत, महंत तकखोजते-खोजते पहुँच गया वह,राजा, प्रजा और रंक तक ।अपने अंदर जब झांका वह,आकाश की ओर जब ताका वह,पहचाना अपनी रिक्त्तता वह, सारी संभावनाओं के अंत तक । निष्कर्ष रहा उसका आज तक,शून्य ही श

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यत्र, तत्र, सर्वत्र

20 सितम्बर 2015
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. यत्र, तत्र, सर्वत्रयदि तुम बिखेर दो स्वयं कोयत्र, तत्र, सर्वत्रपुष्पों की तरह !यदि तुम महकने लगोयत्र, तत्र, सर्वत्रगुलाबों की तरह !यदि तुम छाया दो हर पथिक कोवृक्षों की तरह !शीतलता के लिए बहोहवा के झोंकों की तरह !चहको, चिड़ियों की तरह।चमको, चाँद-तारों की तरह !कुछ नहीं, सिर्फ मनोबल दोदीन-दुखियों कोसं

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भोर की पहली किरण

22 सितम्बर 2015
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भोर की पहली किरणआती है रोज अंधकार के बाद भोर की पहली किरण लाती है संदेशएक नयी सुबह कानव जागरण कानयी उमंगों का नयी आशाओं का । वह कहती है देखो मैं आ गयी घोर अंधकार को चीरकरतुम भी करो ऐसाअंधकार ने समेटना चाहा मुझेकिंतु मुझमें अंश है अग्नि का,छिपाया नहीं जा सकता अग्नि को और मैं आ गयी ।उठो, जागोसारे अं

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ई - ईश्वर

27 नवम्बर 2015
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ई-ईश्वरहम समुद्र में बढ़े जा रहे थेआगे और आगेतेज गति से,नाव में सवार…ले रहे थे आनंद…समुद्री हवाओं काकर रहे अवलोकनगुजरते द्वीपों का,लुभावनेसुहावनेदृश्यों का।चाँद भी बढ़ रहा थासाथ-साथ हमारे,अचानकटकराई नावएक बड़ी शिला से-उलट गई वहतंद्रा हटीऔरघबराए हम ।अब क्या होगा ???किंतुथैंक्स टू ई-ई-ईश्वर ।ईश्वर था सा

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निमंत्रण

3 अप्रैल 2016
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सूर्य और समय

24 अप्रैल 2016
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सूर्य औरसमयजंगल,जिसमें हम खोज रहे थेप्राकृतिक सुंदरता कुछ पल पूर्वओढ़ता जा रहा हैभयावह आवरणअंधकार का !.... और हम भागना चाहते हैंदूर, कहीं दूर ।इस अंधकार से,इस जंगल से ।सूरज का आनाऔर सूरज का जानाबदल जाता नितजंगल के विभिन्न रूप।जंगल तो वहीबस,चमत्कार सूर्य का ।समय का गुजर जानाबदल जाता ज्योंशरीर के विभिन

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दृष्टिकोण

24 अप्रैल 2016
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दृष्टिकोणसूर्य आधाउदित है,या फिरआधा ढला ?घट है आधाखाली,या फिरआधा भरा?नैन थेअर्द्धरात्रि में,अधजगे याअधसोये ?अंतर‘दृष्टिकोण’ का सिर्फबताइये,हम क्यों मुसकराये ?        --x--    

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याराडा बीच, विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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प्रत्याशा

4 नवम्बर 2016
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प्रत्याशा नई सदी, नई पवन,नव जीवन, नव मानव मन,नव उमंग, नव अभिलाषा करते ये ज्यों स्वागत-सा।नव शीर्षक नव परिभाषा,नव दृष्टि नव जिज्ञासा,शून्य से अनंत तक,नई आशा, नई प्रत्याशा।मंजरी यह एक तुलसी की?या फल एक साधना का?है अरुणिमा रूपी आशा,या जननी की अमृताशा?फैली आज ब्रह्मांड में, न

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जानना

4 नवम्बर 2016
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जाननाएक ने कहा- वह विद्वान है । दूसरे ने कहा - वह सरल है। तीसरे ने कहा- वह पागल है ।मैं उससे मिला-मैंने उसे हर दृष्टि से देखा परखा।मैंने पाया- वह ‘ईमानदार’ है। उसको तो मैं जाना हीसाथ ही बाकी तीनों को भी जान गया।

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कन्याकुमारी

10 दिसम्बर 2017
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संस्कृत हिंदी और विज्ञान

12 अगस्त 2018
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संस्कृत, हिंदी और विज्ञान स्वामी विवेकानन्दके अनुसार – दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने नूतन परीक्षणों से जो परिणाम प्राप्त कररहे हैं, उनमें से अधिकांशहमारे ग्रंथों मे समाहित हैं। हमारी परम्परायें विकसित विज्ञान का पर्याय हैं ।हमारे ग्रंथ मूलत: संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं ।

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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

19 सितम्बर 2018
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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

18 जुलाई 2019
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बच्चे की भाषा को माँ औरमाँ की भाषा को बच्चा कब से समझता है ?आपको पता है न ?जन्म से...शायद जन्म से भी पहले से ?..तब से ...जब बच्चा बोल भी नहीं पाता ।किंतु वह समझता है माँ की भाषा माँ समझती है बच्चे की भाषा । वह भाषा कौन सी होती है ?वह भाषा जो भी होती है,बच्चे का माँ से संवाद उसी भाषामें होता है ।

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सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान

26 अगस्त 2019
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सम्मान समारोह

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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण" (सचित्र काव्य ) का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण"

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"रामायण" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित -"रामायण" का विमोचन

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

26 अगस्त 2019
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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्यरचयिता - स्व. श्री दया शंकर द्विवेदी सम्पादक - श्रीमति आशा त्रिपाठी "क्षमा"

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

26 अगस्त 2019
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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी

1 सितम्बर 2019
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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी”*श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में

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विश्व में हिंदी का महत्व

27 दिसम्बर 2019
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मेरा गाँव, मेरा देश

27 दिसम्बर 2019
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जय हिंद, जय हिंदी

27 दिसम्बर 2019
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर

31 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर आजकाफी अरसे बाद,बैठी मैं फुरसत मेंअपनी मां के पास ।कुछ अपनी सुनायीकुछ उनकी सुनी ....देखा,मेरी मांअब बूढ़ी हो चुकी है !हाथ-पैर कमजोर,आखों की रोशनी कमजोर,शरीर शिथिल,हर काम के लिये,चाहियेसहाराउनकी सेवा करते हुएमन में विचार आते रहे -यही वे हाथ हैंजिन्होंन

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भारतीय संस्कृति, हिन्दी और भारत का बाल एवम् युवा वर्ग

10 मई 2020
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जीवन

10 मई 2020
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विश्व विजेता भारत

23 अप्रैल 2021
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आ, अब घर लौट चलें

23 अप्रैल 2021
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भारतीय संस्कृति एवं कोरोना

23 अप्रैल 2021
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हिंदी वैज्ञानिक भाषा है

23 अप्रैल 2021
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ओम

23 अप्रैल 2021
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लिखना है अब हिंदी में

24 अप्रैल 2021
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हिंदी हिंदुस्तान की

24 अप्रैल 2021
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कोरोना का एक वर्ष

25 अप्रैल 2021
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जीवन को पुनर्जीवित कियाधन्यवाद तुमको कोरोना ।जीवन में महत्वपूर्ण क्या ?बताया तुमने कोरोना ।।1।।कैसे बढ़े प्रतिरोधक क्षमता ?सिखलाया तुमने कोरोना ।करो संघर्ष, पर डरो ना,पढ़ाया तुमने कोरोना ।।2।।तकनीक ने क्या दिया ?तकनीक की भूमिका क्या ?तकनीक का प्रयोग करके,आगे बढ़ो, कभी ठ्हरों ना ।।3।।घर बार हो कैसा?जीवन

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हिंदी

27 अप्रैल 2021
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आह्वान

3 मई 2021
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक

12 अगस्त 2022
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक भाषा का महत्व सभी जानते हैं । जिस प्रकार एक मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन, उसके व्यवहार, प्रकृति इत्यादि में वातावरण, परिवेश, उसके पूर्वजों, जलवायु इत्यादि जिन अ

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विश्व विजेता भारत

12 अगस्त 2022
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 विश्व विजेता भारत  हम तो विश्व विजेता थे .....  ये हम कहां से कहां आ गये ?  स्व शास्त्र भूले, वेद, उपनिषद भूले,  कैसे हमें विदेशी राग भा गये ?  क्या नहीं हमारे पास ? सब कुछ तो है,  दृष्टि

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स्वदेशी ही पर होगा बल

15 अगस्त 2022
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 मिली हमे आजादी मगर   योजना हमारी न हुई सफल।   सपना महान भारत का जिस पर होना अभी अमल ।।1।।     सपना अपनी भाषा का   संस्कृति के प्रचार का ।  विश्व गुरु बनने का,   सभी रहे अब तक विफल।।2।। 

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एक बार फिर

15 अगस्त 2022
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 एक बार फिर....*  *----------------*     *एक बार फिर* जानी -   नश्वर जीवन की नश्वरता !  रिश्ते सारे बनावटी लगते,   कब कौन जाये, क्या पता ?     *एक बार फिर* याद आया ....  हमको भी जाना एक द

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माँ

15 अगस्त 2022
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 माँ जन्म देती है बेटी को,    फिर स्वयं बेटी बन जाती है  !  तन हैं दो, पर मन हैं एक   ये शिक्षा दे के जाती है  !!  

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मन का कैनवास

26 जुलाई 2024
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आज फ़ुरसत के कुछ पलों में…. पिछले २० वर्षों की डायरियाँ खंगाल डालीं…. हर पेज पढ़ते हुए… मानो वे दिन जी लिये पुनः  युवावस्था से प्रौढ़ हुए पुनः  उन चार घंटों में मानो  २० वर्ष जिये पुनः  नष्ट

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किताब पढ़िए

लेख पढ़िए