संस्कृत, हिंदी और विज्ञान
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार – दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने नूतन परीक्षणों से जो परिणाम प्राप्त कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश हमारे ग्रंथों मे समाहित हैं। हमारी परम्परायें विकसित विज्ञान का पर्याय हैं । हमारे ग्रंथ मूलत: संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं । हमारे गुप्त खजाने – अथर्ववेद के विषय में तो सर्वविदित ही है जिसमें कठिन गणित विषय भी सीधा, सरल व अत्यन्त रोचक बन गया है। हमारी भाषा संस्कृत पूर्णत: वैज्ञानिक भाषा है और यह तथ्य पूर्णत: प्रमाणित भी है । ‘नासा’ के प्रसिद्ध वैज्ञानिक रिक व्रिग्स ने तो १९८५ के अपने लेख में यह घोषित ही कर दिया है कि संस्कृत भाषा और देवनागरी लिपि कंप्यूटर की तकनीकी की दृष्टि से आदर्श लिपि है अर्थात् देवनागरी विशुद्ध रूप से आधुनिक ध्वन्यात्मक लिप्यंतरण के अनुकूल है। विश्व के अनेक भाषा वैज्ञानिकों ने इसे वैज्ञानिक लिपि बताया है। यह भाषा (संस्कृत) कम्प्यूटर विज्ञान की ‘नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग’ नाम की शाखा के लिये भी सर्वाधिक उपयुक्त है, इस दिशा में और अधिक शोध की आवश्यकता है।
संस्कृत एवम विश्व परिदृश्य
अमेरिकी अंतरिक्ष संगठन नासा ‘ऊँ’ सहित संस्कृत के सभी स्वरों की वैज्ञानिकता और ध्वन्यात्मकता स्वीकार कर चुका है। आज की पीढी के सुपर कम्प्यूटरों की भाषा संस्कृत में ही गढ़ी जा रही है। संस्कृत के पठन-पाठन के सन्दर्भ को अत्यंत व्यापक रूप में देखने, समझने व विस्तार देने की अत्यधिक आवश्यकता है। इसके पठन-पाठन के प्रयोजनों को भिन्न भिन्न रूपों मे समझते हुए इसके आयामों को विस्तार देने की आवश्यकता है।हमें मैकाले के जंजाल से बाहर निकलकर संस्कृत भाषा पर गर्व करना चाहिए। हमने इसे केवल कर्मकांड की भाषा माना है जबकि विदेशी लोग इसे पढ़ते हैं। प्रत्येक भारतीय अपनी मातृभाषा में व्यवहार करते हुए अनायास ही संस्कृत का प्रयोग करता चलता है। भारत की संस्कृति और अस्मिता की प्रतीक है यह भाषा। बिना शासकीय संबल के कोई भाषा नहीं बढ़ सकती। यह सुखद तथ्य होगा कि वैश्विक स्तर पर सामाजिक विकास हेतु संस्कृत के महत्व एवं आवश्यकता को अनुभूत कर इसके संवर्धन एवं विकास कार्य में हम संलग्न हों।संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। वाक् और अर्थ के सच्चे संबंध की द्योतक संस्कृत भाषा को देवभाषा की उपाधि भी प्राप्त है। वैदिक संस्कृत में जहां वेद-पुराण एवं उपनिषद आदि वांगमय की रचना हुई वहां थोड़ा सहज, सरल भाषा लौकिक संस्कृत कहलाई। जर्मनी, अमेरिका व ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में संस्कृत भाषा स्नातक स्तर पर पढाई जा रही है। जर्मनी में देश के १४ शीर्ष विश्वविद्यालयों में भी संस्कृत के अध्यापन के साथ उसके शास्त्रीय और आधुनिक रूप को यूरोपीय भाषाओं से जोड़ा जाता है। इस कारण ये लोग भारतीय संस्कृति,परंपरा एवं समाज के तुलनात्मक अध्ययन में रुचि लेते हैं। हीडलबर्ग विश्वविद्यालय के प्रो. एक्सेल माइकल कहते हैं- ‘हमारे संस्कृत वाले पाठ्यक्रम में पूरे विश्व के लगभग १४ देशों के २५४ छात्र प्रवेश हेतु आते है और प्रतिवर्ष हमें कई आवेदन अस्वीकार करने पड़ते हैं।‘ जर्मनी के अलावा ज्यादातर शिक्षार्थी अमेरिका, इटली, इंग्लैंड और शेष यूरोप से होते हैं।जर्मनी में केवल संस्कृत में स्कूली शिक्षा लेने वाले विद्यालयों की संख्या १२०० के लगभग है जबकि भौतिक्ता की चमक और आधुनिकता की होड़ में लगे हम भारतवासी इसे मात्र कर्मकांड की भाषा और मृतभाषा के रूप में ही प्रचारित करते हैं। सभी भाषाओं की माता है संस्कृत: यह अंतर यात्रा और विश्वबोध की भाषा है । इसे एक झटके से नही जाना जा सकता है । इसके लिए परिश्रम करना होगा । जर्मनी, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों मे संस्कृत के अध्यापकों की बहुत मांग है। भारत सरकार को इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिये और अधिक से अधिक संस्कृत के अध्यापक तैयार करके उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने चाहिए। इनदेशों ने इस भाषा के महत्व को भलीभाँति समझ लिया है। हमारे देश के आर्युवेदिक कालेजों (क्योंकि आयुर्वेद की शिक्षा में संस्कृत भी प्रयुक्त होती है) के प्राध्यापकों का मानना है कि भविष्य मे आयुर्वेद के प्राध्यापक हमे विदेशोंसे मँगाने पड़ेंगे।
ध्वनि के आधार पर भाषा का निर्माण: पूर्णत: तार्किक उत्पत्ति
विकास, वैश्विक महाचेतना के जागरण की कहानी है। बिन्दु अर्थात् अम् । संस्कृत भाषा में अम् प्राण ध्वनि है। छांदोग्य उपनिषद् कहता है – “अम् प्राणस्य नाम” । ‘अकार’ सारे स्वर बीजों का जन्मदाता है और हकार व्यंजनों का। दोनों मिलकार सृष्टि के संपूर्ण बीजाक्षरों को जन्म देते हैं। ‘ओंकार’ सृष्टि के प्रारंभ की ध्वनि (Primordial sound) है। ध्वनियों के आधार पर भाषा का निर्माण, यह स्वयं हमारे पूर्वजों की मेधा, श्रम और तप का परिणाम था। संसार का सच तो गति ही है। वही शक्ति का कारण है। स्वर ही वर्ण का अक्षरत्त्व है। व्यंजन, क्षरतत्त्व ।,‘ओंकार’ स्वरों का स्वर है इसलिये अक्षर है। स्वर निरवयव है। अ, उ, अम् जो ओंकार के तीन अवयव समझे जाते हैं, वस्तुत: एक आधार स्वर - अकार की ही तीन गतियां हैं। स्वर प्राणात्मक हैं। प्राण, शक्ति है। वर्ण, मात्र गुणरूप है। बिंदु सत्ता का स्वरूप, जगत सत्ता का बीज रूप है। अपने को देखने की इच्छा जगी, तो संसार बना । पूर्व में अव्यक्त या व्यक्त कुछ नहीं था।तब केवल मन था। भारतीय भाषाऋषियों ने जिस आधार पर अपनी भाषा को बनाया उसका वैज्ञानिक आधार था ।उन्होंने मूलसत्ता को चैतन्यरूप माना । यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है ।संस्कृत भाषा में प्रत्येक वर्ण का एक प्रतिवर्ण है- उसी प्रकार जैसे आधुनिक विज्ञान के अनुसार हर कण का प्रतिकण होता है और हर क्रिया की उसकी समानांतर प्रतिक्रिया होती है । सभी वर्णों के प्रतिवर्ण है साथ ही इनके अर्थ भी एक दूसरे के विपरीत हैं किंतु इस नियम के केवल ‘म’ और ‘न’ वर्ण ही अपवाद हैं, जिनसे मिलकर ‘मन’ शब्द बनता है। यह ‘मन’ ही सृष्टि का कारण है। मन न हो तो देह प्राण होने के बाद भी आदमी निष्क्रिय पड़ा रहता है ।
हिंदी : भारत में जनसाधारण की भाषा
“हिंदी” - यह फारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है हिंद से संबंधित । हिंदी शब्द बना ‘सिन्धु’ यानी ‘सिंध’ से क्योकिं ईरानी भाषा में ‘स’ को ‘ह’ बोला जाता है। इस तरह ‘सिंध’ शब्द से ‘हिंदी’ ‘शब्द बना । ३२२ ईसा पूर्व ब्राह्मी लिपि का विकास हुआ, जो बाद में देवनागरी लिपि के रूप में विकसित हुई। ब्राह्मी लिपि में समय के साथ हुए सुधारों के बाद देवनागरी बनी, जिसमें हिंदी भाषा को लिखा जाता है। इसे देवनागरी इसलिए कहते है, क्योकि इस लिपि में सबसे पहले देवभाषा संस्कृत की रचनाएं लिखी गईं। इसे बांयी से दाहिनी ओर लिखा जाता है। प्रत्येक अक्षर के ऊपर रेखा खींची जाती है। इस लिपि में कई भारतीय भाषांए लिखी जाती हैं। हिंदी भाषा का विकास १२८३ में खुसरों की पहेलियों ने किया, जिसमें हिंदवी शब्द का प्रयोग किया गया था। खुसरो को खड़ी बोली का जनक भी माना जाता है। तुलसीदास ने १५३२- १६२३ में रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की, जो हिंदी का ही रूप है। १८२६ में उदंत मार्तंड नाम से हिंदी का पहला समाचार पत्र शुरू हुआ। समय के साथ होने वाले बदलावोंको अपनाते हुए। हिंदी भाषा ने अपनी पहचान दुनिया में कायम की है, जिसके चलते आज यह दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और पढ़ी जाने वाली भाषाओं में शामिल हैं । हमारे यहाँ एक अक्षर से एक ही ध्वनि निकलती हैं दूसरी भाषा में यह वैज्ञानिकता नहीं पाई जाती । अंग्रेजी में कितनी तरह के अक्षर उपयोग में लाए जाते है । जैसे ई की ध्वनि के लिए ee (see),I (sin) ea (tea) ey (key) आदि अनेक ऐसे अक्षर हैं ‘क’ शब्द के उच्चारण के लिए कभी k (King) और कभी (CH) का भी उच्चारण होता है। हिंदी भाषी लोग अपने विचारों को बड़े समुदाय तक पहुंचाना चाहते हैं लेकिन उन्हें मंच नहीं मिल पाता। यहां शब्दनगरी, मातृभारती, प्रतिलिपि जैसी वेबसाइट्स उनकी मदद करती हैं। आईआईटी मुम्बई से इलेक्ट्रिकल इंजीनिरिंग करने वाले छात्र कहते हैं, ‘विदेश में स्थानीय भाषाओं का बोलबाला है। जर्मनी, रूस, चीन हर जगह लोकल लैंग्वेज में प्रोग्रामिंग को प्रथामिकता दी गई है जबकि भारत में हिंदी भाषियों की अधिक संख्या होने के बावजूद प्रोग्रामिंग पर उतना ध्यान नहीं दिया गया। अंग्रेजी और उर्दू की शब्द- संपदा को सहेजे नई पीढी की हिंदी अब गाँव से लेकर गूगल तक की भाषा है। हिंदी आम आदमी की भाषा है। इसके जरिए हम बड़ी आबादी तक पहुंच बना सकते हैं। तमाम सर्वेक्षण इसकी पुष्टि करते हैं कि आने वाले समय में हिंदी का प्रयोग बढ़ेगा ।
शिक्षा - मातृभाषा में
पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने स्वयं के अनुभव के आधार पर कहा है, मैं अच्छा वैज्ञानिक इसलिए बना, क्योंकि मैंने गणित और विज्ञान की शिक्षा मातृभाषा में प्राप्त की थी। भारत के बडे-बडे वैज्ञानिकों ने शिक्षा अपनी मातृभाषा में प्राप्त की है। जगदीशचंद्र बसु, सत्येंद्रनाथ बसु, रामानुजन, डॉ. अब्दुल कलाम आदि इसके उदाहरण हैं। वर्तमान में विभिन्न राज्यों की बोर्ड परीक्षाओं में उच्च अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी, मातृभाषा में पढ़ने वाले ही अधिक हैं। शिक्षा के विभिन्न आयोगों एवं देश के महापुरुषों ने भी कहा है कि मातृभाषा में शिक्षा होनी चाहिए। ऐसा करना असम्भव नही है। बस सरकारों की इच्छा शक्ति पर निर्भर है । जिस दिन से हमारी प्राथमिक शिक्षा से उच्चशिक्षा तक का माध्यम मातृभाषा (हिंदी ) होना आरम्भ हो जायेगा । वह दिन हिंदी के इतिहास के लिये स्वर्णिम दिन होगा,उस दिन मैकाले की शिक्षा प्रणाली की हार और भारतीय संस्कृति की जीत होगी।
हिंदी मे विज्ञान लेखन
आज हम वैज्ञानिक युग में जी रहे हैं, विज्ञान हमारी कृषि से लेकर रसोई तक पहुँच गया है । आज घर-घर में टेलीफोन, टेलीविजन, फ्रिज, कम्प्यूटर जैसे इलैक्ट्रॉनिक्स उपकरण प्रयोग में लिए जा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति में विज्ञान के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न होती है। आज आवश्यकता है कि विज्ञान सम्बंधी सरल एवम् सुबोध साहित्य उपलब्ध हो। वैसे तो देश में वैज्ञानिक प्रवृति लाने के लिये अनेकों प्रयास हुए हैं। अनेक प्रकार का वैज्ञानिक गल्पसाहित्य, विज्ञान आओ करके सीखें (प्रयोगात्मक विज्ञान), प्रचलित अंधविश्वासों के पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों को उजागर करता वैज्ञानिक साहित्य आदि-आदि। पिछले काफी समय से विज्ञान सम्बंधी नियमित पत्रिकाएं भी प्रकाशित हो रही हैं। जिनमें अनेक रोचक स्तम्भ होते हैं, ये पत्रिकायें बच्चों से लेकर वैज्ञानिकों तक के स्तर के लिये अलग-अलग उपलब्ध हैं। राजभाषा हिंदी में भी वैज्ञानिक साहित्य लिखा जा रहा है । इन सब पर यदि एक नजर डालें तो ज्ञात होता है कि कोई भी साहित्य जब तक रोचक एवम् सरल भाषा में नहीं लिखा जाता, तब तक वह हृदयंगम नहीं हो पाता । विज्ञान सम्बंधी जो सबसे महत्वपूर्ण बात है, वह यह है कि इस बात का व्यापक प्रचार-प्रसार होना चाहिए कि विज्ञान केवल कठिन समीकरणों का नाम नहीं है, वह नीरस लगने वाली किलष्ट, गंभीर एवम् रूखी चर्चा भी नहीं है अपितु विश्व का रहस्य खोलकर दिखाने वाली एक रहस्य – कथा है।
हिन्दी में विज्ञान साहित्य की कमी है ! डा. दौलत सिंह कोठारी चाहते थे कि हिंदी में विज्ञान लेखन का प्रसार हो । देश में कुछ वैज्ञानिक तथा साहित्यकर हिंदी में विज्ञान के प्रबल समर्थक थे ! फलत: सन १८५० के आस पास हिंदी में विज्ञान लेखन की शुरूआत हुई ! पिछले १५० वर्षों में प्रचुर विज्ञान साहित्य प्रकशित हुए हैं ! विज्ञान की पत्रिकाएं – ‘विज्ञान’, ‘विज्ञान जगत’ , ‘विज्ञान प्रगति’, ‘विज्ञान लोक’ थीं, जिनमें १९५०-७० के काल में उत्तमोत्तम सामग्री प्रकाशित होती रही! वर्तमान समय में भारत का प्रत्येक उच्चस्तरीय सम्मेलन विदेशी भाषा के माध्यम से ही सम्पन्न होता है, जिस भाषा के ज्ञाता भारत में केवल २ या ३ प्रतिशत ही हैं! हिंदी जनसाधारण की भाषा है यदि देश में आधुनिक ज्ञान –विज्ञान को हमें जनसाधारण तक पहुँचाना है तो इसी भाषा का सहारा लेकर काम कर सकते हैं । लोकप्रिय विज्ञान हिंदी में लिखा जा रहा है । विभिन्न अनुसंधान प्रयोगशालाऐं एवं स्थापनाऐं द्वारा किये जाने वाले नवीनतम शोध लेख –पत्र एव अन्य प्रमुख उपलब्धियों की जानकारी जनसंचार के माध्यम से हिंदी में अवश्य प्रदान की जाए । आज सूचना और प्रौद्योगिकी का भी युग है। इस क्षेत्र में देवनागरी लिपि ने अपनी श्रेष्ठता और वैज्ञानिकता विश्व के सामने सिद्ध कर दी है और इस लिपि को ही कंप्यूटर के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। विश्व के अनेक विद्वानों ने नागरी लिपि की वैज्ञानिकता की दिल खोलकर प्रशंसा की है। स्वर विज्ञान (फोनोग्राफी) के अनुसंधानर्ता आइजेक पिटमेन लिखते है कि ‘संसार में यदि कोई पूर्ण अक्षर है तो देवनागरी के हैं। प्रो. मोनियर विलियम्स ने कहा था देवनागरी अक्षरों से बढ़कर पूर्णं और उत्तम अक्षर दूसरे नहीं हैं। जॉन क्राइस्ट तो यहां तक कहते हैं कि मानव मस्तिष्क से निकली हुई वर्णमाला नागरी सबसे पूर्णं वर्णमाला है। सर विलियम जोन्स जो मूलत: रोमन लिपि के पक्षधर थे, नागरी को रोमन की अपेक्षा श्रेष्ठ बताते हुए कहते हैं ‘हमारी भाषा अंग्रेजी की वर्णमाला तथा वर्तनी अवैज्ञानिक तथा किसी रूप में हास्यास्पद भी है’। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि भारतीय भाषायें संस्कृत, हिंदी या अन्य कोई भी क्षेत्रीय भाषा (क्योंकि भारतीय भाषाये संस्कृत से ही व्युत्पन्न हैं) विज्ञान को अभिव्यक्त करने में पूर्ण सक्षम हैं। विज्ञान एवम् तकनीकी शिक्षा के पठन-पाठन के लिये सर्वथा उपयुक्त है । इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि संस्कृत ऐसी भाषा है जिसमें भारतीय अध्यात्म, दर्शन लिखा गया जो कि वैज्ञानिकता का पर्याय है, अत: यह सोचना भी हास्यास्पद है कि हिंदी मे विज्ञान की शिक्षा नही दी जा सकती अथवा विज्ञान में उच्च शिक्षा के लिए हिंदी माध्यम उपयुक्त नही है । आज भी हमारे देश के अधिकांश वैज्ञानिकों ने माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा अपनी मातृभाषा मे ही प्राप्त की है किंतु दुर्भाग्यवश आगामी पीढ़ी इस बात से अनिभज्ञ है कि वह क्या खो रही है ।
अत: अब वक्त आ गया है कि हम बेझिझक जीवन के हर क्षेत्र में अपनी मातृ भाषा (हिंदी) का ही प्रयोग करें। अपनी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ भी हिंदी में ही जनसाधारण के लिये उपलब्ध करायें। इस प्रकार हिंदी के माध्यम से एक पूर्ण रूपेण सक्षम भारत के निर्माण के लक्ष्य को पूरा करें। विज्ञान के विषय में तो यह नितांत आवश्यक है कि रोचकता एवम् महत्वपूर्ण जानकारी जन-जन तक पहुँचायी जाये। प्रत्येक वैज्ञानिक की यह हार्दिक आकांक्षा रहती है कि उसकी उपलब्धियों एवं खोजो से अधिक से अधिक जन लाभान्वित हों। अंत मैं कुछ पंक्तिया मेरी कविता “वैज्ञानिक” से -
“विज्ञान पहुँचाना हर जन-जन तक, स्वभाषा में उपलब्ध कराना!
यह विज्ञान धर्म, वैज्ञानिक कर्म,विश्व को वैज्ञानिक दृष्टिकोण बताना !!!
आशा त्रिपाठी 'क्षमा'