बच्चे की भाषा को माँ और
माँ की भाषा को बच्चा
कब से समझता है ?
आपको पता है न ?
जन्म से...
शायद जन्म से भी पहले से ?
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तब से ...
जब बच्चा बोल भी नहीं पाता ।
किंतु वह समझता है माँ की भाषा
माँ समझती है बच्चे की भाषा ।
वह भाषा कौन सी होती है ?
वह भाषा जो भी होती है,
बच्चे का माँ से संवाद उसी भाषा में होता है ।
.
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धीरे धीरे बच्चा बड़ा होता है
उनकी मूक भाषा को शब्द मिल जाते हैं ...
वे शब्द कितने प्यारे होते है . .
कितना प्यारा होता है,
उन शब्दों में ‘माँ’ कहना
उन शब्दों में ‘बेटा’ कहना
उन शब्दों में ‘मेरे बच्चे’ कहना ।
वह समय होता है --- माँ की दुनिया -
सिर्फ वह ‘बच्चा’ ,
और वह समय होता है-- बच्चे की दुनिया
सिर्फ अपनी ‘माँ’
दोनो के संवाद कुछ स्वर सहित, कुछ स्वर रहित भी ।
..
बच्चा और बड़ा होता है
वह विद्यालय जाता है
कल्पना कीजिये . . .
उसे सिखायी जाती है -- एक विदेशी भाषा
अब उसे संवाद करना है
इससे, उससे, सबसे ...
अपनी माँ से-- अपने आप से --
इस नयी भाषा में ।
वह सोचता है-- ऐसा क्यूँ ?
उसे समझा दिया जाता है -- ऐसा ही ।
वह संवाद करता है ।
वह मेहनत करता है।
वह संवाद करता है, इससे, उससे , सबसे---
किंतु नही भूल पाता अपनी मातृ भाषा ।
वह महसूस करता है - कुछ खालीपन ।
उसके मन मे प्रश्न ही प्रश्न ।
जब अपनी माँ के पास है जाता . .
जब अपनी माँ को है देखता . .
अपनी माँ की गोद मे बैठता. .
बोलो कौन सी भाषा बोलता ???
पर वो सफल संवाद करता ।
बताने की आवश्यकता नहीं
वो कौन सी भाषा होती है ?
वो भाषा होती है - - -
हृदय को हृदय से जोड़ने वाली !
वो भाषा होती है - - -
एक दूसरे को समझने वाली !
वो भाषा होती है - - -
हम एक हैं - का अहसास कराने वाली !
वह भाषा सब कुछ होती है
किंतु वह भाषा -
वह भाषा - विदेशी नही हो सकती है ।
एक विदेशी भाषा उस भाषा का स्थान
कदापि नही ले सकती है ।
नही ले सकती है ॥
जय हिंद, जय हिन्दी ।
जय भारत, जय भारती ।।
- आशा “क्षमा”