भारतीय संस्कृति एवं कोरोना
“रोगानशेषान पहंसितुष्टा............” दुर्गा सप्तशती के इस श्लोक से स्पष्ट है कि आदिकाल से हमारा देश रोगों, महामारियों इत्यादि के प्रति कितना सचेत है, ऐसे अनेकानेक मंत्रो एवम श्लोकों से परिलक्षित होता है । मात्र धार्मिक दृष्टि से ही नहीं चिकित्सकीय दृष्टि से भी हमारी सनातन भारनीय संस्कृति कितनी सुदृढ़ एवं सम्पन्न है इसका उदाहरण है आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति ।
कोरोना एक वैश्विक महामारी है जिससे संपूर्ण विश्व में त्राहित्राहि मची हुई है। इसकी कोई कारगर दवा न होने के कारण, इससे बचाव एवं अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना हो दो उपाय कारगर साबित हुए हैं। इन दोनों ही उपायों का आधार हमारी भारतीय संस्कृति में पहले से ही निहित है।
कोरोना से बचें : भारतीय जीवन शैली अपनाएं
हमारे प्राचीन ग्रंथों में नियमित जीवन शैली एवं स्वस्थ दिनचर्या का वर्णन है। चकाचौंध करने वाली पाश्चात्य सभ्यता के प्रभाव में हमारा समाज इस स्वस्थ और उपयोगी जीवन शैली से धीरे-धीरे विमुख होता जा रहा है। यह कितना आश्चर्य जनक तथ्य है कि आज के वैज्ञानिक युग में भी, वैश्विक महामारी के परिप्रेक्ष्य में भी हमारे परम्परागत उपाय ही प्रांसगिक सिद्ध हो रहे हैं। हमारी संस्कृति में ये उपाय वास्तव में हमारे संस्कारों को श्रेणी के अंतर्गत आते हैं यथाः
(i) हस्तप्रक्षालनम : हर शुभ कार्य से पहले हाथ धोना ।
(ii) आचमनम् : शुभ कार्य से पहले जल ग्रहण करना ।
(iii) धूपदीपम : वातावरण की शुद्धि एवं जीवाणुओं का नाश करना।
(iv) नमस्कारम : रोगों के संक्रमण से बचने के लिए हाथ जोड़कर नमस्कार करना (न कि हाथ मिलाना)
(v) उपवासम : समय-समय पर शारारिक शुद्धि हेतु।
(vi) दाहसंस्कारम : मुत्यु के पश्चात् शव को जलाना, न कि जमीन में दबाना ।
इस प्रकार के हमारी संस्कृति में जीवनपर्यंत अनेकानेक संस्कार निर्धारित किये गये हैं । आज के युवाओं को विशेष संदेश है कि उसे पाश्चात संस्कृति के मोह में न पड़कर भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएः आर्युवेद अपनाएं
“चौधरी ब्रह्म प्रकाश आर्युवेद चरक संस्थान” दिल्ली, के एक आर्युवैदिक यूनिट ने कोविड-19 के सारे भारतवर्ष से रोगियों की देखभाल के विषय में उदाहरण प्रस्तुत किया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने dedicated कोविड-19 स्वास्थ्य केन्द्र ( DCHC ), चौधरी ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक चरक संस्थान का दौरा करने के पश्चात इस केन्द्र को बधाई दी और कोरोना युग में आर्युवेद को Forefront में लाने के लिए प्रबंधको को धन्यवाद दिया । इसके स्वास्थ्य कर्मियों की भी प्रशंसा की । डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि आर्युवेद भारतवर्ष के एक परम्परागत चिकित्सकीय ज्ञान का स्रोत है एवं इस क्षेत्र में विशाल सम्भावनाएं हैं। इस केन्द्र में कोविड-19 के इलाज के लिए इस ज्ञान के स्रोत का भरपूर उपयोग किया गया है। यह अनुभव एवम ज्ञान निश्चित रूप से भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। इस आयुर्वैदिक संस्थान में आयुष मंत्रालय द्वारा जारी किये गये सभी protocol को ध्यान में रखते हुए आर्युवेदिक treatment से सभी कोरोना रोगियों का सफल इलाज किया गया ।इससे सम्बंधित विस्तृत रिपोर्ट इंटरनैट पर उपलब्ध है । आयुर्वेदीय सलाह के अनुसार दालचीनी, अजवाइन, लौंग, गिलोय, तुलसी इत्यादि अनेकानेक पदार्थों का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सेवन करना कोरोना युग में शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है ।
कोरोना काल में अवसाद : मुख्यतः भोगवादी संस्कृति का परिणाम
जब भोगवादी सभ्यता की आदत हो जाती है तो इसका अभाव अवसाद को जन्म देता है। अवसाद मूल रूप से उन व्यक्तियों को प्रभावित करता है जो एक खास जीवनशैली के आदी होते है। असंतुलन को झेलने की उनमें क्षमता नहीं होती है ।
इस विकट स्थिति में हमारे पास पूरे विश्व को सिखाने के लिए बहुत कुछ है यथा :-
(i) ऐसे कठिन अवसरों पर हम भारतीय धैर्य नहीं खोते हैं। जिसका कारण हमारी सम्पन्न भारतीय आध्यात्मिक संस्कृति है। आत्मबल का गुण हमारे अधिसंख्यक समाज में है।
(ii) योग एवं प्राणायाम संस्कृति भी मानसिक के साथ - साथ शारीरिक शक्ति को भी मजबूत करती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि एक कोरोना ने ही संपूर्ण विश्व को भारतीय संस्कृति को अपनाने को बाध्य कर दिया। पूर्णरूप से यह तथ्य आज सिद्ध हो चुका है कि भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है । यह पूर्ण रूप से वैज्ञानिक संस्कृति है । यही सनातन संस्कृति है। आज सम्पूर्ण विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान की दृष्टि से देख रहा है। कोरोना से बचाव के लिए भारतीय संस्कारों का अनुसरण कर रहा है। प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिये आर्युवेदिक पद्धति अपना रहा है। अब जबकि विश्व हमारी संस्कृति की प्रंशसा कर रहा है तो हमें चाहिए कि हम अपनी संस्कृति का और अधिक गहराई से अध्ययन करें, इसे अपनांए एवं सभी भारतीयों विशेषकर युवा पीढ़ी को इसके महत्व से अवगत कराएं। वैसे भी हम भारतीय उसी वस्तु या पद्धति को कुछ समझते हैं, जिसे विश्व मान्यता देता है । संक्षेप में हमारी संस्कृति है :-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया ।
सर्वे भद्राणि पश्यंति मा कश्चितदुःख भाग्भवेत।।
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