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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक

12 अगस्त 2022

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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक

भाषा का महत्व सभी जानते हैं । जिस प्रकार एक
मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन, उसके व्यवहार, प्रकृति इत्यादि में वातावरण, परिवेश, उसके पूर्वजों,
जलवायु इत्यादि जिन अनेकानेक तत्वों का सम्मिलित प्रभाव समाहित होता है, उनमें से एक उसकी भाषा भी होती है । आप अपनी मां की तरह मातृभाषा से भी आंतरिक रूप से जुड़े होते हैं ।
वास्तव में अपने मूल वेश, भाषा आदि को छोड़ने का
परिणाम यह होता है कि आत्मगौरव एवम राष्ट्रगौरव नष्ट हो जाता है । हिंदी अथवा अपनी
राष्ट्रभाषा अपनाने से  देश में
राष्ट्रीयता का भाव बढ़ता है । विदेशी भाषा के शब्द, उसके भाव
तथा दृष्टांत हमारे हृदय पर वह प्रभाव नहीं डाल सकते जो मातृभाषा के चिरपरिचित तथा
हृदयग्राही वाक्य ! भारत की रक्षा तभी हो सकती है जब इसके
साहित्य, इसकी सभ्यता तथा इसके आदर्शों की रक्षा हो । हिंदी
की रक्षा इस दिशा में सर्वप्रथम कदम है । हिंदी भारत भूमि की
अधिष्ठात्री है ।

हमने बचपन में कहाँनियों में ऐसे राजाओं
के बारे में सुना है कि जिनके प्राण किन्हीं छोटी-छोटी चिडियों में बसते थे । इन
चिडियों के मरते ही राजा की भी मृत्यु हो जाती थी
। यही बात राष्ट्रों के बारे में भी सत्य है । प्रत्येक राष्ट्र के प्राण किसी
बिंदु विशेष में केंद्रित रह्ते हैं । वहीं उस राष्ट्र का राष्ट्रीयत्व बसता है ।
जब तक इस मर्म स्थान पर आघात नहीं होता,
वह राष्ट्र नहीं मरता । हमारे देश के प्राण हमारी संस्कृति में हैं । संस्कृति को
अभिव्यक्ति देती है भाषा । अत: हमें अपनी नागरी लिपि,
संस्कृत भाषा तथा क्षेत्रीय भाषाओं की हर हाल में रक्षा करनी है । हमारी भाषा
रहेगी तो हमारी संस्कृति जीवित रहेगी । हमारी संस्कृति अमर रहेगी तो हमारा राष्ट्र
भी अमर रहेगा । इस प्रकार हमारी भाषा और राष्ट्र के अस्तित्व में बिलकुल सीधा
सम्बंध है और इसीलिये यह मात्र हिंदी या किसी भाषा का प्रश्न नहीं है, यह तो हमारी संस्कृति का प्रश्न है, हमारे राष्ट्र
के अस्तित्व का प्रश्न है । देश की भाषा ही देश का
स्वाभिमान, आत्मविश्वास प्रकट करती है । भाषा से ही देश की
अखंडता का उद्घोष होता है | राष्ट्रभाषा न किसी प्रदेश की
होती है न किसी जाति की, वह तो सारे राष्ट्र की होती है, उसके साथ ही संस्कृति जुडी होती है । उसके माध्यम से राष्ट्र भावनात्मक
रूप से जुड़े रहता है । उससे सांस्कृतिक चेतना अभिव्यक्त होती है ।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है,
आजादी के ये 75 वर्ष, गुलामी के 100 सालों से बेहतर सिद्ध नहीं हुए हैं। जब
भारत गुलाम था तो स्वभाषा के अभिमान की ज्वाला महर्षि दयानंद और महात्मा गांधी
जैसे महापुरूषों ने देश के कोने-कोने में धधका रखी थी। ऐसा लगता था कि देश के आजाद
होते ही अंग्रेजों के साथ उनकी भाषा अंग्रेजी भी विदा हो जाएगी। गांधीजी कहा करते थे कि आजादी मिलते ही देश का
सारा काम-काज अपनी भाषा में शुरू हो जाना चाहिए। उन्होंने तो यहाँ तक कहा था कि
आजादी के छह महीने बाद भी यदि कोई व्यक्ति संसद या विधान सभा में अंग्रेजी में
बोलता हुआ पाया गया तो मैं उसे गिरफ्तार करा दूँगा । आजादी के छ्ह महीने पूरे होने
से पहले ही गांधीजी हमसे विदा हो गए थे, वरना चिरनिद्रा में विलीन होने के पहले वे अपनी छाती पर एक के स्थान पर
दो पत्थर रखकर जाते । एक तो खंडित भारत का और दूसरा अंग्रेजी के राज्याभिषेक का ।
ये दो पत्थर आज भी कोटि-कोटि भारतीयों के जीवनों के अस्तित्व को तोड़ते जा रहे हैं

भारत में विदेशी अंग्रेजी शासन के खिलाफ स्वराज की लड़ाई स्वभाषा
हिन्दी में ही लड़ी गई थी । तत्कालीन भारतीय नेता अंग्रेजी भाषा व साहित्य से
जुड़े दुष्चक्र व उसके घातक परिणामों को भांप गए थे । वे राष्ट्र की अस्मिता की
प्रतीक राष्ट्रभाषा के इस महत्व को समझ गए थे । इसीलिये स्वतंत्रता संग्राम के
दौरान हिंदी ही वह भाषा थी जिसने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोने में, एक जुट होने में, भाषाई विविधता और सांस्कृतिक भिन्नता के बावजूद
अपने देश के लिए स्वयं को समर्पित करने हेतु प्रत्येक भारतवासी को एक उद्देश्य और
एक लक्ष्य के साथ जुट जाने में मदद की। हिंदी के प्रयोग से ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत की आजादी के दीवाने
आपस में जुड़े और तभी इस देश ने स्वतंत्रता हासिल की जिसमें इस दौर के नागरिकों के
साथ-साथ हिंदी और हिंदी साहित्य सेवियों, पत्रकारों ने भी
भरपूर योगदान दिया ।

1880 तक ही हिंदी ने एक
आंदोलन का स्वरूप ले लिया, जिसमें गांधी जी के
साथ-साथ सुभाष चंद्र बोस, स्वामी दयानंद, मदन मोहन मालवीय, डॉ. राम मनोहर लोहिया ने एक स्वर
में अंग्रेजी का बहिष्कार कर हिंदी को आगे किया । गांधी जी के साथ नेताजी ने भी यह
घोषणा की कि देश के सबसे बड़े भू-भाग में बोली जाने वाली हिंदी ही राष्ट्रभाषा की
अधिकारिणी है । महात्मा गांधी चाहते थे कि हिंदी संपूर्ण भारत की भाषा बने । वर्ष
1909 में ‘हिंद स्वराज’ में गांधी जी
ने एक भाषा-नीति की घोषणा की और यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी राष्ट्र के विकास के
लिए यह आवश्यक है कि उस राष्ट्र की एक राष्ट्रभाषा हो । इस बात पर बल देने के लिए
स्वयं गुजराती होते हुए भी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान रखते हुए भी उन्होंने सभी
सभाओं को हिंदी में संबोधित करना शुरू किया, साथ ही अन्य
नेताओं को भी अंग्रेजी में संचालन व संबोधन के लिए हतोस्ताहित किया। 1916 में
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, 1917 में भागलपुर में आयोजित एक
छात्र सम्मेलन में गांधीजी द्वारा दिए गए और 1918 में इंदौर के हिंदी सम्मेलन में
हिंदी में दिए गए भाषणों ने पूरे भारत में हिंदी की नींव रख दी ।

क्षेत्रीय भाषाओं की
बहुलता होने पर भी राष्ट्र की एकता और स्वराज,
हिंदी से जुड़ गया और पूरा देश एक भाषा सूत्र में बंध गया । 29 मार्च 1918 को
इंदौर में 8वें हिंदी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता महात्मा गांधी ने की थी । इसी
सम्मेलन के दौरान पहली बार हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने के विषय में उन्होंने
अपनी बात रखी थी और उनकी यह बात भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक सभी भारतीयो के
पास पहुंची, जिससे हिंदी भाषी ही नहीं हिंदीतर भाषी
क्षेत्रों में भी स्वतंत्रता के साथ-साथ राष्ट्रभाषा के एक होने की भावना चल पड़ी, जिससे पूरा देश हिंदी भाव से जुड़ गया। उस समय सभी यह महसूस कर रहे थे कि
अखिल भारत में परस्पर व्यवहार के लिए एक ऐसी भाषा की आवश्यकता है, जिसे अधिकतम जनता पहले से ही जानती-समझती हो और हिंदी ही इस दृष्टि से
सर्वश्रेष्ठ है । इस इंदौर सम्मेलन के बाद ही दक्षिण में पांच हिंदी दूतों को भेजा
गया, जिनमें से एक गाँधी जी के छोटे बेटे देवदास गांधी भी थे
। दक्षिण में हिंदी के प्रचार को बड़े ही सुनियोजित ढंग से आगे भी बढ़ाया गया और
इसके लिए हिंदी प्रेमियों की एक टीम बनाई गई और उन्हें हिंदी के प्रचार के लिए
दक्षिण भेजा गया और लोगों को भी प्रांतीयता से ऊपर उठने की सलाह दी गई। किंतु
स्वतंत्रता के पूर्व जो हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की चर्चा हुई थी, एक अभियान चला था, स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जब
संविधान निर्माण सभा की बैठकों में भाषा पर बहस हुई तो हिंदी के सारे सार्थक
सहयोगों और गांधी जी और अन्य नेताओं के अथक प्रयासों के बावजूद हिंदी को
राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिल सका । 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा घोषित
किया गया । गांधीजी जिन सूत्रों का तर्क देकर इसे राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे, उन्हीं के बल पर हिंदी को सिर्फ राजभाषा का दर्जा मिल सका । लेकिन
साथ-साथ अंग्रेजी भी जुड़ी रही । पहले यह आशा थी कि अंग्रेजी सिर्फ कुछ दिनों के
लिए रहेगी फिर हिंदी भी पूर्ण स्वराज प्राप्त कर लेगी, लेकिन
ऐसा नहीं हुआ। राजभाषा अधिनियम 1963 के आने के बाद हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी
अनिश्चितकाल के लिए जुड़ गई ।

वैश्वीकरण के इस दौर में हिंदी ने,
अपनी संपूर्ण क्षमताओं के साथ, अपनी अंतर्राष्ट्रीय पहचान तो
बढ़ाई है, लेकिन हिंदी के संदर्भ में हमारे राष्ट्रपिता का
सपना अधूरा और टूटा हुआ नजर आता है। सरकारी काम-काज में तो हिंदी एक औपचारिकता
बनकर रह गई है। जिस बिंदु पर गांधी जी अडिग थे कि भारत की भाषाओं के साथ देश की
संस्कृति जुड़ी हुई है और इसलिए हमें कभी अपनी भाषा को छोड़कर किसी विदेशी भाषा को
नहीं अपनाना चाहिए। हो भी वही रहा है, गांधी जी के सपने के
विपरीत अंग्रेजी के साथ साथ भारत पाश्चात्य संस्कृत की ओर भी तेजी से आगे बढ़ रहा
है और भाषा के साथ-साथ भारत अपनी गौरवमयी  सभ्यता-संस्कृति की पहचान भी खोता जा रहा है । आज
आवश्यकता है कि हम अपनी देशी भाषाओं की ओर मुड़े और हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर
प्रतिष्ठित करें । हमें अपने सभी प्रादेशिक कार्य अपनी-अपनी भाषाओं में करने चाहिए
तथा हमारी राष्ट्रीय कार्यवाहियों की भाषा हिंदी होनी चाहिए।

कुछ भी असंभव नहीं ! आजादी के अमृत
महोत्सव के अवसर पर, जैसे कुछ वर्ष पूर्व हमने गाँधी जी की
स्वच्छता को हाथों-हाथ लिया था, उसी प्रकार यदि आज भी
राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के लिए सोचें, फिर से उनके
भाषणों को पढ़कर उनके भाव को जानकर, पूरे राष्ट्र की
एकता-अखंडता के सूत्र के रूप में हिंदी भाषा को रखकर देखें तो पूरे विश्व में
सफलता के सोपान चढ़ती हिंदी अपने देश में भी अपना यथोचित स्थान पा लेगी और कुछ देर
से ही सही हम गांधीजी व अन्य अमर शहीदों के राष्ट्रभाषा के सपने को साकार कर
सकेंगे ।



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"शून्य से अनंत तक"

19 सितम्बर 2015
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भटकता है हर दिन इंसानशून्य से अनंत तक,खोजता स्वअस्तित्व कोजन्म से लेकर अंत तक ।अपनाये उसने कौन से न रुपसाधु, संत, महंत तकखोजते-खोजते पहुँच गया वह,राजा, प्रजा और रंक तक ।अपने अंदर जब झांका वह,आकाश की ओर जब ताका वह,पहचाना अपनी रिक्त्तता वह, सारी संभावनाओं के अंत तक । निष्कर्ष रहा उसका आज तक,शून्य ही श

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यत्र, तत्र, सर्वत्र

20 सितम्बर 2015
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. यत्र, तत्र, सर्वत्रयदि तुम बिखेर दो स्वयं कोयत्र, तत्र, सर्वत्रपुष्पों की तरह !यदि तुम महकने लगोयत्र, तत्र, सर्वत्रगुलाबों की तरह !यदि तुम छाया दो हर पथिक कोवृक्षों की तरह !शीतलता के लिए बहोहवा के झोंकों की तरह !चहको, चिड़ियों की तरह।चमको, चाँद-तारों की तरह !कुछ नहीं, सिर्फ मनोबल दोदीन-दुखियों कोसं

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भोर की पहली किरण

22 सितम्बर 2015
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भोर की पहली किरणआती है रोज अंधकार के बाद भोर की पहली किरण लाती है संदेशएक नयी सुबह कानव जागरण कानयी उमंगों का नयी आशाओं का । वह कहती है देखो मैं आ गयी घोर अंधकार को चीरकरतुम भी करो ऐसाअंधकार ने समेटना चाहा मुझेकिंतु मुझमें अंश है अग्नि का,छिपाया नहीं जा सकता अग्नि को और मैं आ गयी ।उठो, जागोसारे अं

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ई - ईश्वर

27 नवम्बर 2015
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ई-ईश्वरहम समुद्र में बढ़े जा रहे थेआगे और आगेतेज गति से,नाव में सवार…ले रहे थे आनंद…समुद्री हवाओं काकर रहे अवलोकनगुजरते द्वीपों का,लुभावनेसुहावनेदृश्यों का।चाँद भी बढ़ रहा थासाथ-साथ हमारे,अचानकटकराई नावएक बड़ी शिला से-उलट गई वहतंद्रा हटीऔरघबराए हम ।अब क्या होगा ???किंतुथैंक्स टू ई-ई-ईश्वर ।ईश्वर था सा

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निमंत्रण

3 अप्रैल 2016
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सूर्य और समय

24 अप्रैल 2016
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सूर्य औरसमयजंगल,जिसमें हम खोज रहे थेप्राकृतिक सुंदरता कुछ पल पूर्वओढ़ता जा रहा हैभयावह आवरणअंधकार का !.... और हम भागना चाहते हैंदूर, कहीं दूर ।इस अंधकार से,इस जंगल से ।सूरज का आनाऔर सूरज का जानाबदल जाता नितजंगल के विभिन्न रूप।जंगल तो वहीबस,चमत्कार सूर्य का ।समय का गुजर जानाबदल जाता ज्योंशरीर के विभिन

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दृष्टिकोण

24 अप्रैल 2016
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दृष्टिकोणसूर्य आधाउदित है,या फिरआधा ढला ?घट है आधाखाली,या फिरआधा भरा?नैन थेअर्द्धरात्रि में,अधजगे याअधसोये ?अंतर‘दृष्टिकोण’ का सिर्फबताइये,हम क्यों मुसकराये ?        --x--    

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याराडा बीच, विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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विशाखापतनम !

6 अगस्त 2016
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प्रत्याशा

4 नवम्बर 2016
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प्रत्याशा नई सदी, नई पवन,नव जीवन, नव मानव मन,नव उमंग, नव अभिलाषा करते ये ज्यों स्वागत-सा।नव शीर्षक नव परिभाषा,नव दृष्टि नव जिज्ञासा,शून्य से अनंत तक,नई आशा, नई प्रत्याशा।मंजरी यह एक तुलसी की?या फल एक साधना का?है अरुणिमा रूपी आशा,या जननी की अमृताशा?फैली आज ब्रह्मांड में, न

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जानना

4 नवम्बर 2016
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जाननाएक ने कहा- वह विद्वान है । दूसरे ने कहा - वह सरल है। तीसरे ने कहा- वह पागल है ।मैं उससे मिला-मैंने उसे हर दृष्टि से देखा परखा।मैंने पाया- वह ‘ईमानदार’ है। उसको तो मैं जाना हीसाथ ही बाकी तीनों को भी जान गया।

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कन्याकुमारी

10 दिसम्बर 2017
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संस्कृत हिंदी और विज्ञान

12 अगस्त 2018
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संस्कृत, हिंदी और विज्ञान स्वामी विवेकानन्दके अनुसार – दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने नूतन परीक्षणों से जो परिणाम प्राप्त कररहे हैं, उनमें से अधिकांशहमारे ग्रंथों मे समाहित हैं। हमारी परम्परायें विकसित विज्ञान का पर्याय हैं ।हमारे ग्रंथ मूलत: संस्कृत भाषा में लिखे गये हैं ।

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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

19 सितम्बर 2018
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मातृभाषा एवम विदेशी भाषा

18 जुलाई 2019
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बच्चे की भाषा को माँ औरमाँ की भाषा को बच्चा कब से समझता है ?आपको पता है न ?जन्म से...शायद जन्म से भी पहले से ?..तब से ...जब बच्चा बोल भी नहीं पाता ।किंतु वह समझता है माँ की भाषा माँ समझती है बच्चे की भाषा । वह भाषा कौन सी होती है ?वह भाषा जो भी होती है,बच्चे का माँ से संवाद उसी भाषामें होता है ।

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सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान समारोह

26 अगस्त 2019
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पटेल टाइम्स मीडिया सम्मान समारोह

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मीडिया सम्मान

26 अगस्त 2019
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सम्मान समारोह

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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आशा "क्षमा" द्वारा सम्पादित प्रबंध -काव्य "भारतीय शौर्य गाथा" का विमोचन

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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण" (सचित्र काव्य ) का विमोचन

26 अगस्त 2019
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आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित "रामायण"

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"रामायण" का विमोचन

26 अगस्त 2019
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सुश्री आद्या त्रिपाठी द्वारा रचित -"रामायण" का विमोचन

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

26 अगस्त 2019
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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्यरचयिता - स्व. श्री दया शंकर द्विवेदी सम्पादक - श्रीमति आशा त्रिपाठी "क्षमा"

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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

26 अगस्त 2019
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"भारतीय शौर्य गाथा" - कश्मीर - युद्ध की पृष्ठ्भूमि पर आधारित प्रबंध-काव्य

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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी

1 सितम्बर 2019
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ढोल,गवार,क्षुब्ध पशु,रारी”*श्रीरामचरितमानस में कहीं नहीं किया गया है शूद्रों और नारी का अपमान।भगवान श्रीराम के चित्रों को जूतों से पीटने वाले भारत के राजनैतिक को पिछले 450 वर्षों में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित हिंदू महाग्रंथ 'श्रीरामचरितमानस' की कुल 10902 चौपाईयों में

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विश्व में हिंदी का महत्व

27 दिसम्बर 2019
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मेरा गाँव, मेरा देश

27 दिसम्बर 2019
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जय हिंद, जय हिंदी

27 दिसम्बर 2019
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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आ, अब घर लौट चलें

30 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर

31 मार्च 2020
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मेरी मां - मेरा ईश्वर आजकाफी अरसे बाद,बैठी मैं फुरसत मेंअपनी मां के पास ।कुछ अपनी सुनायीकुछ उनकी सुनी ....देखा,मेरी मांअब बूढ़ी हो चुकी है !हाथ-पैर कमजोर,आखों की रोशनी कमजोर,शरीर शिथिल,हर काम के लिये,चाहियेसहाराउनकी सेवा करते हुएमन में विचार आते रहे -यही वे हाथ हैंजिन्होंन

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भारतीय संस्कृति, हिन्दी और भारत का बाल एवम् युवा वर्ग

10 मई 2020
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जीवन

10 मई 2020
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विश्व विजेता भारत

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आ, अब घर लौट चलें

23 अप्रैल 2021
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भारतीय संस्कृति एवं कोरोना

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हिंदी वैज्ञानिक भाषा है

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ओम

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लिखना है अब हिंदी में

24 अप्रैल 2021
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हिंदी हिंदुस्तान की

24 अप्रैल 2021
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कोरोना का एक वर्ष

25 अप्रैल 2021
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जीवन को पुनर्जीवित कियाधन्यवाद तुमको कोरोना ।जीवन में महत्वपूर्ण क्या ?बताया तुमने कोरोना ।।1।।कैसे बढ़े प्रतिरोधक क्षमता ?सिखलाया तुमने कोरोना ।करो संघर्ष, पर डरो ना,पढ़ाया तुमने कोरोना ।।2।।तकनीक ने क्या दिया ?तकनीक की भूमिका क्या ?तकनीक का प्रयोग करके,आगे बढ़ो, कभी ठ्हरों ना ।।3।।घर बार हो कैसा?जीवन

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हिंदी

27 अप्रैल 2021
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आह्वान

3 मई 2021
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक

12 अगस्त 2022
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हिंदी : आज़ादी के पूर्व से अमृत महोत्सव तक भाषा का महत्व सभी जानते हैं । जिस प्रकार एक मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन, उसके व्यवहार, प्रकृति इत्यादि में वातावरण, परिवेश, उसके पूर्वजों, जलवायु इत्यादि जिन अ

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विश्व विजेता भारत

12 अगस्त 2022
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 विश्व विजेता भारत  हम तो विश्व विजेता थे .....  ये हम कहां से कहां आ गये ?  स्व शास्त्र भूले, वेद, उपनिषद भूले,  कैसे हमें विदेशी राग भा गये ?  क्या नहीं हमारे पास ? सब कुछ तो है,  दृष्टि

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स्वदेशी ही पर होगा बल

15 अगस्त 2022
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 मिली हमे आजादी मगर   योजना हमारी न हुई सफल।   सपना महान भारत का जिस पर होना अभी अमल ।।1।।     सपना अपनी भाषा का   संस्कृति के प्रचार का ।  विश्व गुरु बनने का,   सभी रहे अब तक विफल।।2।। 

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एक बार फिर

15 अगस्त 2022
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 एक बार फिर....*  *----------------*     *एक बार फिर* जानी -   नश्वर जीवन की नश्वरता !  रिश्ते सारे बनावटी लगते,   कब कौन जाये, क्या पता ?     *एक बार फिर* याद आया ....  हमको भी जाना एक द

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माँ

15 अगस्त 2022
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 माँ जन्म देती है बेटी को,    फिर स्वयं बेटी बन जाती है  !  तन हैं दो, पर मन हैं एक   ये शिक्षा दे के जाती है  !!  

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