मेरी मां - मेरा ईश्वर
आज
काफी अरसे बाद,
बैठी मैं
फुरसत में
अपनी मां के पास ।
कुछ अपनी सुनायी
कुछ उनकी सुनी ....
देखा, मेरी मां
अब बूढ़ी हो चुकी है !
हाथ-पैर कमजोर,
आखों की रोशनी कमजोर,
शरीर शिथिल,
हर काम के लिये,चाहिये सहारा
उनकी सेवा करते हुए
मन में विचार आते रहे -
यही वे हाथ हैं
जिन्होंने कभी वर्षों तक
मुझे सहारा दिया था !
मुझे सहेजा था !
जो मैं आज हूं !!
ये ही वो मां है,
जिसने मुझसे कभी कुछ नहीं मांगा
बस दिया ही दिया...
ये जीवन,ये संसार और ढेर सा प्यार !
जब कभी हताश हुए, इस संसार से
तो याद आयी मां ही !
मैने अनुभव किया है
जब-जब ईश्वर को
पाया है कि ईश्वर वो है, जो बस
देता ही देता है ....
ये जीवन, ये संसार और प्यार ही प्यार !
जब कभी हताश हुए इस संसार से...
तो याद आया ईश्वर ही
अर्थात ...
हमने पाया है
मां रूपी ईश्वर !!
हे ईश्वर !
आज मैं समझी....
तुम मेरे पास हो,
मेरे घर में ही हो,
हे ईश्वर, मैंने तुम्हें अब पहचान लिया है
तुम्हारी सेवा का व्रत लिया है !
मेरी मां के माध्यम से तुमने,
मुझे आशीर्वाद दिया है,
आशीर्वाद दिया है ॥
-----*---- आशा "क्षमा"