तू हर वक्त मेरे चारों तरफ होती थी,
पर दिखती ही नहीं थी मुझे,माँ!
तू हर काम में मेरे पास होती थी,
पर साथ दिखती ही नहीं थी मुझे,माँ!
तू हर दर्द में मेरे पास होती थी,
पर तेरी गर्माहट में दुबकी मैं,
कभी तू महसूस ही नहीं हुई मुझे,माँ !
पापा मेरे हीरो थे,पर तुझसे
शिकायतें बहुत थी मुझे,माँ!
सभी मुझ पर प्यार लुटाते थे,पर
तू हमेशा मुझे डाँटती थी, माँ!
पापा सिखाते थे हमेशा,
गर्व और स्वाभिमान की बातें,पर
उसी गर्व और स्वाभिमान को संजोये रखने,
उनकी ताकत बन,बचत करती..जोड़ती हुई,
तू कभी नजर ही नहीं आई मुझे, माँ!
कभी कभी सोचती थी मैं, तो
सभी दिखते थे,पर तू कभी
क्यों दिखाई ही नहीं दी मुझे, माँ !
विदा तो हुई थी,"पिता के घर" से मैं,
जब लौटी तो,वो सिर्फ़ मायका था, माँ !
जिस घर में हमेशा पिता दिखते थे,
उसके हर जर्रे जर्रे में बस मुझे,
तू ही तू नजर आई मुझे, माँ!
पहले तू नजर आती नहीं थी, मुझे
अब,मुझमें,मेरे हर अंदाज में,हर पल में,
मेरे हर काम में,बस तू ही नजर आती हैं माँ !
अब तू मेरे आसपास हैं नहीं,पर
हर पल मुझे नजर आती है, माँ !
जब दर्द का कोई पल आता है,तो
सबसे पहले तू याद आती हैं, माँ!
अब सोचती हूँ तो लगता है कि
तू मुझे नजर आती भी कैसे?
क्योंकि तू तो मेरे अंदर थी,
मेरे वजूद का हिस्सा हैं, माँ!
तू तो जीवन श्वास सी रचीबसी हैं,
मेरे अंदर,हवा की तरह दिखती नहीं,
पर अन्दर और बाहर होती हैं,माँ!
अब,जब मैं तुझसे मिलने आती हूँ,
तो सबसे ज्यादा तेरे पास होती हूँ माँ!
मैं कौन हूँ ?कैसी हूँ ? मुझे नहीं पता,
तेरी बेटी हूँ मैं बस, और कोई नहीं,
तेरे वज़ूद का, छोटा सा हिस्सा हूँ मैं माँ!
रिश्तों की समझ और सच्चाईयों से,
रुबरू तूने ही तो कराया है मुझे,माँ!
खुद को हारकर रिश्तों को निभाना,
सबके लिए जीना और झुक जाना
तूने ही तो सिखाया है मुझे, माँ !
पापा मेरी ताकत हैं हमेशा से,पर
जीत जाने का और कभी ना हारने का,
आगे बढ़ते रहने का तू,मेरा हौसला है माँ!
वैसे तो कहलाती हूँ "पापा की बेटी" मैं,
पर बहुत कुछ तेरे जैसी ही हूँ मैं, माँ !
तेरी झुकी हुई कमर का दर्द, मुझे
मेरे अंदर तक महसूस होता है, माँ !
मुझे लगता है कि शायद हर बेटी,
अपनी माँ के कदमों की छाप होती हैं, माँ !
✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल 🌸
(स्वरचित)
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