किसी के लिए बस अभिशाप हूँ,
तो किसी के लिए वरदान हूँ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
किसी के लिए बस "जरूरत" हूँ ,
तो किसी के लिए "जिम्मेदारी" हूँ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
किसी की बहन या किसी की बेटी हूँ,
तो किसी की नजरों में बहता हुआ ख्वाब हूँ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
किसी की माँ ,तो किसी की पत्नी हूँ,
तो किसी के लिए दूसरे घर से आई हूँ ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
किसी के लिए ईर्ष्या-द्वेष और तिरस्कार हूँ ,
तो किसी के लिए बस आशा का संसार हूँ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
मैं एक शरीर में अनेकों किरदार को जीती हूँ ,
किसी के लिए अच्छी, तो कभी बुरी होती हूँ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
कभी कर्जदार तो कभी मालिक होती हूँ ,
एक ही वक्त! कमजोर व ताकतवर दोनों होती हूँ ,
पर क्या करुँ? मैं तो बस एक इंसान हूँ ,
बस एक इंसान की तरह जीती हूँ l
शालिनी गुप्ता प्रेमकमल 🌸
(स्वरचित)