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ख्वाहिशें

19 दिसम्बर 2021

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बहुत अधूरे ख्वाब है, ख्वाहिशें है,
सहलाती रहती हूँ, थपकियाँ देकर,
कोशिशें करती हूँ, उन्हें सुलाने की,
जैसे ही करती हूँ मैं,बंद आँखो को,
पर ख्वाहिशों की आदत बड़ी बुरी है,
रतजगा कर, ख्वाबों में तैर जाने की,

ताकत तो बहुत है, हौसलों में मगर,
पर आदत नहीं है,उन्हें आजमाने की,

ख्वाबों और ख्वाहिशों को अपनी हम,
पूरा कर सकते हैं मगर,आदत नहीं है
मुझे, किसी के अहम् से टकराने की,

वो हराकर मुझे, बड़े खुश हो रहे है,
शायद उन्हें ये पता ही नहीं है,कि मैंने
अपनी आदत बनाली है,हार जाने की,

कर सकती हूँ, हसरतें पूरी मैं अपनी,
बहुत ही आसान है,ये मेरे लिए मगर,पर
आदत पड़ी है,मुश्किलों से जूझ जाने की,

बचपन से सीखा था उन्होंने हक बताना,
और हमने सीखा था,मकाँ को घर बनाना,
तो बस,वो हक जताते रहे जिंदगी भर मुझे,
और मैंने आदत बनाली,ख्वाहिशें भुलाने की,

✍️शालिनी गुप्ता प्रेमकमल🌸
(स्वरचित) सर्वाधिकार सुरक्षित 


sayyeda khatoon

sayyeda khatoon

मगर आदत नहीं मुझे किसी के अहम से टकराने की,,,, वाह बहुत बेहतरीन कविता लिखी है आपने 👌👌👌👌

19 दिसम्बर 2021

शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

शालिनी गुप्ता "प्रेमकमल"

19 दिसम्बर 2021

जी बहुत बहुत धन्यवाद प्रेरित करने के लिए😊❤

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