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आह्वान

29 अप्रैल 2022

11 बार देखा गया 11

बरसो हे घन!

निष्फल है यह नीरव गर्जन,

चंचल विद्युत् प्रतिभा के क्षण

बरसो उर्वर जीवन के कण

हास अश्रु की झड़ से धो दो

मेरा मनो विषाद गगन!

बरसो हे घन!


हँसू कि रोऊँ नहीं जानता,

मन कुछ माने नहीं मानता,

मैं जीवन हठ नहीं ठानता,

होती जो श्रद्धा न गहन,

बरसो हे घन!


शशि मुख प्राणित नील गगन था

भीतर से आलोकित मन था

उर का प्रति स्पंदन चेतन था,

तुम थे, यदि था विरह मिलन

बरसो हे घन!


अब भीतर संशय का तम है

बाहर मृग तृष्णा का भ्रम है

क्या यह नव जीवन उपक्रम है

होगी पुनः शिला चेतन?

बरसो हे घन!


आशा का प्लावन बन बरसो

नव सौन्दर्य रंग बन बरसो

प्राणों में प्रतीति बन हरसो

अमर चेतना बन नूतन

बरसो हे घन!

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रचनाएँ
स्वर्णधूलि
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सुमित्रानंदन पंत की कुछ अन्य काव्य कृतियाँ हैं - छायावादी काव्य की सम्पूर्ण कोमलता और कमनीयता इनके काव्य में साकार हो उठी है। प्रकृति के हरे-भरे वातावरण में बैठकर जब ये कल्पना लोक में खो जाते थे तो प्रकृति की सुन्दरता का सृजन स्वयं ही मूर्त हो उठता और मानवता के मंगलमय उन्नयन के स्वर गूंज उठते। हिंदी के नवीन धारा के प्रवर्तक कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। इस दौर की उनकी कविताएं वीणा में संकलित हैं। वे १९५० से १९५७ तक आकाशवाणी से जुडे रहे और मुख्य-निर्माता के पद पर कार्य किया। उनकी विचारधारा योगी अरविन्द से प्रभावित भी हुई जो बाद की उनकी रचनाओं 'स्वर्णकिरण' और 'स्वर्णधूलि' में देखी जा सकती है।
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मुझे असत से

29 अप्रैल 2022
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मुझे असत् से ले जाओ हे सत्य ओर मुझे तमस से उठा, दिखाओ ज्योति छोर, मुझे मृत्यु से बचा, बनाओ अमृत भोर! बार बार आकर अंतर में हे चिर परिचित, दक्षिण मुख से, रुद्र, करो मेरी रक्षा नित!

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स्वर्णधूलि

29 अप्रैल 2022
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स्वर्ण बालुका किसने बरसा दी रे जगती के मरुथल मे, सिकता पर स्वर्णांकित कर स्वर्गिक आभा जीवन मृग जल में! स्वर्ण रेणु मिल गई न जाने कब धरती की मर्त्य धूलि से, चित्रित कर, भर दी रज में नव जीवन ज्वाला

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पतिता

29 अप्रैल 2022
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रोता हाय मार कर माधव वॄद्ध पड़ोसी जो चिर परिचित, ‘क्रूर, लुटेरे, हत्यारे... कर गए बहू को, नीच, कलंकित!!’ ‘फूटा करम! धरम भी लूटा!’ शीष हिला, रोते सब परिजन, ‘हा अभागिनी! हा कलंकिनी!’ खिसक रहे ग

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परकीया

29 अप्रैल 2022
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विनत दृष्टि हो बोली करुणा, आँखों में थे आँसू के घन, ‘क्या जाने क्या आप कहेंगे, मेरा परकीया का जीवन!’ स्वच्छ सरोवर सा वह मानस, नील शरद नभ से वे लोचन कहते थे वह मर्म कथा जो उमड़ रही थी उर में ग

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ग्रामीण

29 अप्रैल 2022
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‘अच्छा, अच्छा,’ बोला श्रीधर हाथ जोड़ कर, हो मर्माहत, ‘तुम शिक्षित, मैं मूर्ख ही सही, व्यर्थ बहस, तुम ठीक, मैं ग़लत! ‘तुम पश्चिम के रंग में रँगे, मैं हूँ दक़ियानूसी भारत,’ हँसा ठहाका मार मनोहर,

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सामंजस्य

29 अप्रैल 2022
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भाव सत्य बोली मुख मटका ‘तुम - मैं की सीमा है बंधन, मुझे सुहाता बादल सा नभ में मिल जाना, खो अपनापन! ये पार्थिव संकीर्ण हृदय हैं, मोल तोल ही इनका जीवन, नहीं देखते एक धरा है, एक गगन है, एक सभी जन!

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आज़ाद

29 अप्रैल 2022
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पैगंबर के एक शिष्य ने पूछा, ‘हज़रत बंदे को शक है आज़ाद कहाँ तक इंसाँ दुनिया में पाबंद कहाँ तक?’ ‘खड़े रहो’ बोले रसूल तब, ‘अच्छा, पैर उठाओ ऊपर,’ ‘जैसा हुक्म!’ मुरीद सामने खड़ा हो गया एक पैर पर!

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लोक सत्य

29 अप्रैल 2022
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बोला माधव, ‘प्यारे यादव जब तक होंगे लोग नहीं अपने सत्वों से परिचित जन संग्रह बल पर भव संकृति हो न सकेगी निर्मित! आज अल्प हैं जीवित जग में औ’ असत्य उत्पीड़ित लौह मुष्टि से हमें छीननी होगी सत्ता नि

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स्वप्न निर्बल

29 अप्रैल 2022
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‘तुम निर्बल हो, सबसे निर्बल!’ बोला माधव! ‘मैं निर्बल हूँ औ’ युग के निर्बल का संबल,’ बोला यादव, यह युग की चेतना आज जो मुझमें बहती, बुद्धिमना अति प्राण मना यह सब कुछ सहती! एक ओर युग का वैभव है एक

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गणपति उत्सव

29 अप्रैल 2022
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 कितना रूप राग रंग कुसुमित जीवन उमंग! अर्ध्य सभ्य भी जग में मिलती है प्रति पग में! श्री गणपति का उत्सव, नारी नर का मधुरव! श्रद्धा विश्वास का आशा उल्लास का दृश्य एक अभिनव! युवक नव युवती सुघर

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आशंका

29 अप्रैल 2022
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यदि जीवन संग्राम नाम जीवन का, अमृत और विष ही परिणाम उदधि मंथन का सृजन प्रथा तब प्रगति विकास नहीं है बुद्धि और परिणति ही कथा सही है! नित्य पूर्ण यह विश्व चिरंतन पूर्ण चराचर, मानव तन मन, अंतर्वा

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जन्म भूमि

29 अप्रैल 2022
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जननी जन्मभूमि प्रिय अपनी, जो स्वर्गादपि चिर गरीयसी! जिसका गौरव भाल हिमाचल स्वर्ण धरा हँसती चिर श्यामल ज्योति मथित गंगा यमुना जल, बह जन जन के हृदय में बसी! जिसे राम लक्ष्मण औ’ सीता सजा गए पद धू

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जाति मन

29 अप्रैल 2022
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सौ सौ बाँहें लड़ती हैं, तुम नहीं लड़ रहे, सौ सौ देहें कटती हैं, तुम नहीं कट रहे, हे चिर मृत, चिर जीवित भू जन! अंध रूढिएँ अड़ती हैं, तुम नहीं अड़ रहे, सूखी टहनी छँटती हैं, तुम नहीं छँट रहे, जीवन

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युगागम

29 अप्रैल 2022
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आज से युगों का सगुण विगत सभ्यता का गुण, जन जन में, मन मन में हो रहा नव विकसित, नव्य चेतना सर्जित! आ रहा भव नूतन जानता जग का मन स्वर्ण हास्य मय नूतन भावी मानव जीवन, आनता अंतर्मन! जा रहा प

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क्षण जीवी

29 अप्रैल 2022
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रक्त के प्यासे, रक्त के प्यासे! सत्य छीनते ये अबला से बच्चों को मारते, बला से! रक्त के प्यासे! भूत प्रेत ये मनो भूमि के सदियों से पाले पोसे अँधियाली लालसा गुहा में अंध रूढियों के शोषे! मरन

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काले बादल

29 अप्रैल 2022
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सुनता हूँ, मैंने भी देखा, काले बादल में रहती चाँदी की रेखा! काले बादल जाति द्वेष के, काले बादल विश्‍व क्‍लेश के, काले बादल उठते पथ पर नव स्‍वतंत्रता के प्रवेश के! सुनता आया हूँ, है देखा, काले

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मनुष्यत्व

29 अप्रैल 2022
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छोड़ नहीं सकते रे यदि जन जाति वर्ग औ’ धर्म के लिए रक्त बहाना बर्बरता को संस्कृति का बाना पहनाना तो अच्छा हो छोड़ दें अगर हम हिन्दू मुस्लिम औ’ ईसाई कहलाना! मानव होकर रहें धरा पर जाति वर्ण धर्मों

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चौथी भूख

29 अप्रैल 2022
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भूखे भजन न होई गुपाला, यह कबीर के पद की टेक, देह की है भूख एक! कामिनी की चाह, मन्मथ दाह, तन को हैं तपाते औ’ लुभाते विषय भोग अनेक चाहते ऐश्वर्य सुख जन चाहते स्त्री पुत्र औ’ धन, चाहते चिर प्

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नरक में स्वर्ग

29 अप्रैल 2022
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(१) गत युग के जन पशु जीवन का जीता खँडहर वह छोटा सा राज्य नरक था इस पृथ्वी पर। कीड़ों से रेंगते अपाहिज थे नारी नर मूल्य नहीं था जीवन का कानी कौड़ी भर! उसे देख युग युग का मन कर उठता क्रंदन हाय व

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भावोन्मेष

29 अप्रैल 2022
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पुष्प वृष्टि हो, नव जीवन सौन्दर्य सृष्टि हो, जो प्रकाश वर्षिणी दृष्टि हो! लहरों पर लोटें नव लहरें लाड़ प्यार की पागलपन की नव जीवन की, नव यौवन की! मोती की फुहार सी छहरें प्राणों के सुख की, भ

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अतिम पैगम्बर

29 अप्रैल 2022
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दूर दूर तक केवल सिकता, मृत्यु नास्ति सूनापन! जहाँ ह्रिंस बर्बर अरबों का रण जर्जर था जीवन! ऊष्मा झंझा बरसाते थे अग्नि बालुका के कण, उस मरुस्थल में आप ज्योति निर्झर से उतरे पावन! वर्ग जातियों में

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छायाभा

29 अप्रैल 2022
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छाया प्रकाश जन जीवन का बन जाता मधुर स्वप्न संगीत इस घने कुहासे के भीतर दिप जाते तारे इन्दु पीत। देखते देखते आ जाता, मन पा जाता, कुछ जग के जगमग रुप नाम रहते रहते कुछ छा जाता, उर को भाता जीवन

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दिवा स्वप्न

29 अप्रैल 2022
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मेघों की गुरु गुहा सा गगन वाष्प बिन्दु का सिंधु समीरण! विद्युत् नयनों को कर विस्मित स्वर्ण रेख करती हँस अंकित हलकी जल फुहार, तन पुलकित स्मृतियों से स्पंदित मन हँसते रुद्र मरुतगण! जग, गंधर्व

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सावन

29 अप्रैल 2022
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झम झम झम झम मेघ बरसते हैं सावन के छम छम छम गिरतीं बूँदें तरुओं से छन के। चम चम बिजली चमक रही रे उर में घन के, थम थम दिन के तम में सपने जगते मन के। ऐसे पागल बादल बरसे नहीं धरा पर, जल फुहार बौछार

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आह्वान

29 अप्रैल 2022
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बरसो हे घन! निष्फल है यह नीरव गर्जन, चंचल विद्युत् प्रतिभा के क्षण बरसो उर्वर जीवन के कण हास अश्रु की झड़ से धो दो मेरा मनो विषाद गगन! बरसो हे घन! हँसू कि रोऊँ नहीं जानता, मन कुछ माने नहीं म

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परिणति

29 अप्रैल 2022
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स्वप्न समान बह गया यौवन पलकों में मँडरा क्षण! बँध न सका जीवन बाँहों में, अट न सका पार्थिव चाहों में, लुक छिप प्राणों की छाहों में व्यर्थ खो गया वह धन, स्वप्नों का क्षण यौवन! इन्द्र धनुष का

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ताल कुल

29 अप्रैल 2022
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संध्या का गहराया झुट पुट भीलों का सा धरे सिर मुकुट हरित चूड़ कुकड़ू कूँ कुक्कुट एक टाँग पर तुले, दीर्घतर पास खड़े तुम लगते सुन्दर नारिकेल के हे पादप वर! चक्राकार दलों से संकुल फैलाए तुम करत

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क्रोटन की टहनी

29 अप्रैल 2022
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कच्चे मन सा काँच पात्र जिसमें क्रोटन की टहनी ताज़े पानी से नित भर टेबुल पर रखती बहनी! धागों सी कुछ उसमें पतली जड़ें फूट अब आईं निराधार पानी में लटकी देतीं सहज दिखाई! तीन पात छींटे सुफ़ेद सोए चित्र

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नव वधू के प्रति

29 अप्रैल 2022
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दुग्ध पीत अधखिली कली सी मधुर सुरभि का अंतस्तल दीप शिखा सी स्वर्ण करों के इन्द्र चाप का मुख मंडल! शरद व्योम सी शशि मुख का शोभित लेखा लावण्य नवल, शिखर स्रोत सी, स्वच्छ सरल जो जीवन में बहता कल कल!

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छाया दर्पण

29 अप्रैल 2022
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यह मेरा दर्पण चिर मोहित! जीवन के गोपन रहस्य सब इसमें होते शब्द तरंगित! कितने स्वर्गिक स्वप्न शिखर माया की प्रिय घाटियाँ मनोरम, इसमें जगते इन्द्रधनुष से कितने रंगों के प्रकाश तम! जो कुछ होता

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मर्म कथा

29 अप्रैल 2022
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बाँध दिए क्यों प्राण प्राणों से! तुमने चिर अनजान प्राणों से! गोपन रह न सकेगी अब यह मर्म कथा, प्राणों की न रुकेगी बढ़ती विरह व्यथा, विवश फूटते गान, प्राणों से! यह विदेह प्राणों का बंधन,

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प्रणय कुंज

29 अप्रैल 2022
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तुम प्रणय कुंज में जब आई पल्लवित हो उठा मधु यौवन मंजरित हृदय की अमराई। मलय हुआ मद चंचल लहराया सरसी जल अलि गूँज उठे पिक ध्वनि छाई। अब वह स्वप्न अगोचर मर्म व्यथाऽ, मथित करती अंतर प्राणों के दल झ

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शरद चाँदनी

29 अप्रैल 2022
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शरद चाँदनी! विहँस उठी मौन अतल नीलिमा उदासिनी! आकुल सौरभ समीर छल छल चल सरसि नीर, हृदय प्रणय से अधीर, जीवन उन्मादिनी! अश्रु सजल तारक दल, अपलक दृग गिनते पल, छेड़ रही प्राण विकल विरह वेणु वा

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मर्म व्यथा

29 अप्रैल 2022
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प्राणों में चिर व्यथा बाँध दी! क्यों चिर दग्ध हृदय को तुमने वृथा प्रणय की अमर साध दी! पर्वत को जल दारु को अनल, वारिद को दी विद्युत चंचल फूल को सुरभि, सुरभि को विकल उड़ने की इच्छा अबाध दी!  

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गोपन

29 अप्रैल 2022
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मैं कहता कुछ रे बात और! जग में न प्रणय को कहीं ठौर! प्राणों की सुरभि बसी प्राणों में बन मधु सिक्त व्यथा, वह नीरव गोपन मर्म मधुर वह सह न सकेगी लोक कथा। क्यों वृथा प्रेम आया जग में सिर पर काँ

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स्वप्न बंधन

29 अप्रैल 2022
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बाँध लिया तुमने प्राणों को फूलों के बंधन में एक मधुर जीवित आभा सी लिपट गई तुम मन में! बाँध लिया तुमने मुझको स्वप्नों के आलिंगन में! तन की सौ शोभाएँ सन्मुख चलती फिरती लगतीं सौ सौ रंगों में, भावों

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स्वप्न देही

29 अप्रैल 2022
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स्वप्न देही हो प्रिये हो तुम, देह तनिमा अश्रु धोई! रूप की लौ सी सुनहली दीप में तन के सँजोई! सेज पर लेटी सुघर सौन्दर्य छाया सी सुहाई काम देही स्वप्न सी स्मृति तल्प पर तुम दी दिखाई! कल्पना क

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हृदय तारुण्य

29 अप्रैल 2022
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आम्र मंजरित, मधुप गुंजरित गंध समीरण मंद संचरित! प्राणों की पिक बोल उठी फिर अंतर में कर ज्वाल प्रज्वलित! डाल डाल पर दौड़ रही वह ज्वाल रंग रंगों में कुसुमित नस नस में कर रुधिर प्रवाहित उर में र

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प्रेम मुक्ति

29 अप्रैल 2022
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एक धार बहता जग जीवन एक धार बहता मेरा मन! आर पार कुछ नहीं कहीं रे इस धारा का आदि न उद्गम! सत्य नहीं यह स्वप्न नहीं रे सुप्ति नहीं यह मुक्ति न बंधन आते जाते विरह मिलन नित गाते रोते जन्म मृत्यु

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प्राणाकांक्षा

29 अप्रैल 2022
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बज पायल छम छम छम! उर की कंपन में निर्मम बज पायल छम छम छम! हृदय रक्त रंजित सुंदर नृत्य मुग्ध प्रिय चरणों पर प्राणों की स्वर्णाकांक्षा सम प्रणय जड़ित, चंचल, निरुपम, बज पायल छम छम छम! उद्व

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साधना

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जीवन की साधना असफल जो सफल बना सिद्धि सही चिर तपना! जीवन की साधना! विपदाएँ, दुराशाएँ नष्ट मुझे कर जाए, भ्रष्ट न हो पथ अपना! चूर्ण हुई जो आशा, पूरी न जो अभिलाषा, चूर्ण हुई जो आशा भूषित

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रस स्रवण

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रस बन रस बन, प्राणों में! निष्ठुर जग निर्मम जीवन रस बन रस बन प्राणों में! अंतस्तल में यथा मथित हो, भाग भंगि में ज्ञान ग्रथित हो, गीति छंद में प्रीति रटित हो, क्षण क्षण छन रस बन रस बन प्राण

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आवाहन

29 अप्रैल 2022
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फिर वीणा मधुर बजाओ! वाणी नव स्वर में गाओ! उर के कंपित तारों में झंकार अमर भर जाओ! उन्मेषित हो अंतर स्पंदित प्राणों के स्तर, नव युग के सौन्दर्य ज्वार में जीवन तृषा डुबाओ! ज्योतित हो मानव

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अंतर्लोक

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यह वह नव लोक जहाँ भरा रे अशोक सूक्ष्म चिदालोक! शोभा के नव पल्लव झरता नभ से मधुरव शाश्वत का पा अनुभव मिटता उर शोक, स्वर्ग शांति ओक, रूप रेख जग की लय बनती वर देवालय, श्रद्धा में बिकसित भय,

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स्वर्ग अप्सरी

29 अप्रैल 2022
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सरोवर जल में स्वर्ण किरण रे आज पड़ी वलित चरण! अतल से हँसी उमड़ कर लसी लहरों पर चंचल, तीर सी धँसी किरण वह ज्योति बसी प्राणों में निस्तल! उड़ रहे रश्मि पंख कण जगमगाए जीवन क्षण! सजल मानस मे

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प्रीति निर्झर

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यहाँ तो झरते निर्झर, स्वर्ण किरणों के निर्झर, स्वर्ग सुषमा के निर्झर निस्तल हृदय गुहा में नीरव प्राणों के स्वर! ज्ञान की कांति से भरे भक्ति की शांति से परे, गहन श्रद्धा प्रतीति के स्वर्णिम ज

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मातृ शक्ति

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दिव्यानने, दिव्य मने भव जीवन पूर्ण बने! दिव्यानने! आभा सर लोचन वर स्नेह सुधा सागर! स्वर्ग का प्रकाश हास करता उर तम विनाश, किरणें बरसा कर! भय भंजने, जन रंजने! तुम्हीं भक्ति तुम्ही

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प्रणाम

29 अप्रैल 2022
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श्री अरविन्द सभक्ति प्रणाम! स्वर्मानस के ज्योतित सरसिज, दिव्य जगत जीवन के वर द्विज चिदानंद के स्वर्णिम मनसिज ज्योति धाम सज्ञान प्रणाम! विश्वातमा के नव विकास तुम परम चेतना के प्रकाश तुम ज्ञ

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मातृ चेतना

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तुम ज्योति प्रीति की रजत मेघ भरती आभा स्मिति मानस में चेतना रश्मि तुम बरसातीं शत तड़ित अर्चि भर नस नस में! तुम उषा तूलि की ज्वाला से रँग देती जग के तम भ्रम को, वह प्रतिभा, स्वर्णांकित करती सं

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अंतर्विकास

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विभा, विभा जगत ज्योति तमस द्विभा! झरता तम का बादल इंद्रधनुष रँग में ढल ओझल हँस इंद्रधनुष केवल फिर चिर उज्वल विभा! मनस रूप भाव द्विभा! इंद्रियाँ स्वरूप जड़ित, रूप भाव बुद्धि जनित भाव दुख सुख

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प्रतीति

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विहगों का मधुर स्वर हृदय क्यों लेता हर? क्यों चपल जल लहर तन में भरती सिहर? तुमसे! नीला सूना सा नभ देता आनंद अलभ ऊषा संध्या द्वाभा स्वर्ण प्रभ, तुमसे! यह विरोध वारिधि जग शूल फूल सँग प्रत

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सार्थकता

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वसुधा के सागर से उठता जो वाष्प भार बरसता न वसुधा पर बन उर्वर वृष्टि धार, सार्थक होता? तूने जो दिया मुझे अमर चेतना का दान तेरी ओर मेरा प्यार होता न धावमान, सार्थक होता? घुमड़ता छायाकाश ग

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कुंठित

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तुम्हें नहीं देता यदि अब सुख चंद्रमुखी का मधुर चंद्रमुख रोग जरा औ’ मृत्यु देह में, जीवन चिन्तन देता यदि दुख आओ प्रभु के द्वार! जन समाज का वारिधि विस्तृत लगता अचिर फेन से मुखरित हँसी खेल के लि

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आर्त

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आवें प्रभु के द्वार! जो जीवन में परितापित हैं, हतभागे, हताश, शापित हैं, काम क्रोध मद से त्रासित हैं, आवें वे आवें वे प्रभु के द्वार! बहती है जिनके चरणों से पतित पावनी धार! जो भू के मन के वासी

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चेतन

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गगन में इंद्रधनुष, अवनि में इंद्रधनुष! नयन में दृष्टि किरण श्रवण में शरद गगन हृदय के स्तर स्तर में उदित वह भिन्य वपुष! अचित् का चिर जहाँ तम, दुरित जड़ता औ भ्रम जगत जीवन अमा में सुवित वह ज

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मृत्युंजय

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ईश्वर को मरने दो, हे मरने दो वह फिर जी उट्ठेगा, ईश्वर को मरने दो! वह क्षण क्षण गिरता, जी उठता ईश्वर को चिर नव स्वरूप धरने दो! शत रूपों में, शत नामों में, शत देशों में शत सहस्रबल होकर उसे सृजन क

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अविच्छिन्न

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हे करुणाकर, करुणा सागर! क्यो इतनी दुर्बलताओं का दीप शून्य गृह मानव अंतर! दैन्य पराभव आशंका की छाया से विदीर्ण चिर जर्जर! चीर हृदय के तम का गह्वर स्वर्ण स्वप्न जो आते बाहर गाते वे किस भाँति

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चित्रकरी

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जीवन चित्रकरी हे सृजन आनंद परी हे, करो कुसुमित वसुधा पर स्वर्ण की किरण तूलि धर नव्य जीवन सौन्दर्य अमर जग की छबि रेखाओं में रूप रंग भर! सूक्ष्म दर्शन से प्रेरित करो जग जीवन चित्रित मधुर मा

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निर्झर

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तुम झरो हे निर्झर प्राणों के स्वर झरो हे निर्झर! चिर अगोचर नील शिखर मौन शिखर तुम प्रशस्त मुक्त मुखर, झरो धरा पर भरो धरा पर नव प्रभात, स्वर्ग स्नात, सद्य सुघर! झरो हे निर्झर प्राणों के स्वर

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अंतर्वाणी

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निःस्वर वाणी नीरव मर्म कहानी! अंतर्वाणी! नव जीवन सौन्दर्य में ढलो सृजन व्यथा गांभीर्य में गलो चिर अकलुष बन विहँसो हे जीवन कल्याणी, निःस्वर वाणी! व्यथा व्यथा रे जगत की प्रथा, जीवन कथा व्

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ज्योति झर

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बरसो ज्योति अमर तुम मेरे भीतर बाहर जग के तम से निखर निखर बरसो हे जीवन ईश्वर! झरते मोती के शत निर्झर शैल शिखर से झर झर फूटें मेरे प्राणों से भी दिव्य चेतना के स्वर! तन मन के जड़ बंधन टूटें

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मुक्ति बंधन

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क्यों तुमने निज विहग गीत को दिया न जग का दाना पानी आज आर्त अंतर से उसके उठती करुणा कातर वाणी! शोभा के स्वर्णिम पिंजर में उसके प्राणों को बंदी कर तुमने क्यों उसके जीवन की जीव मुक्ति ली पल भर म

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लक्ष्मण

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विश्व श्याम जीवन के जलधर राम प्रणम्य, राम हैं ईश्वर! लक्ष्मण निर्मल स्नेह सरोवर करुणा सागर से भी सुंदर! सीता के चेतना जागरण राम हिमालय से चिर पावन, मेरे मन के मानव लक्ष्मण ईश्वरत्व भी जिन्हें

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१५ अगस्त १९४७

29 अप्रैल 2022
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चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन् जय गाओ सुरगण, आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन! नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण तरुण अरुण सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन! सभ्य हुआ अब विश्व सभ्य धरणी का जीवन, आज खुले भार

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ध्वजा वंदना

29 अप्रैल 2022
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फहराओ तिरंग फहराओ! हिन्द चेतना के जाग्रत ध्वज ज्योति तरंगों में लहराओ! इंद्र धनुष से गर्जन घन में पौरुष से जग जीवन रण में जन स्वतंत्रता के प्रांगण में विजय शिखा से उठ छहराओ! उठते तुम उठते दृग अ

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आर्षवाणी

29 अप्रैल 2022
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दीपशिखा महादेवी को दीपशिखे, तुमने जल जल कर ऊर्ध्व ज्योति की वर्षण, ये आलोक ऋचाएँ तुमको करता सहज समर्पण।

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ज्योति वृषभ

29 अप्रैल 2022
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स्वर्ण शिखर से चतुर्शृंग है उसके शिर पर दो उसके शुभ शीर्ष सप्त रे ज्योति हरत वर! तीन पाद पर खड़ा, मर्त्य इस जग में आकर त्रिधा बद्ध वह वृषभ रँभाता है दिग्ध्वनि भर! महादेव वह सत्य पुरुष औ’ प्रकृति

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अग्नि

29 अप्रैल 2022
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दीप्त अभीप्से मुझको तू ले जा सत्पथ पर यज्ञ कुंड हो मेरा हृदय अग्नि हे भास्वर! प्राण बुद्धि मन की प्रदीप्त घृत आहुति पाकर मेरी ईप्सा को पहुँचा दे परम व्योम पर! तू भुवनों में व्याप्त निखिल देवों क

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काल अश्व

29 अप्रैल 2022
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काल अश्व यह तप शक्ति का रूप चिर अंतर आशा पृष्ठ पर धावमान अति दिव्य वेग भर! महावीय यह सप्त रश्मियों से हो शोभित चला रहा भव को सहस्रधर, प्राण से श्वसित! भुवन भुवन सब घूम रहे चक्रों से अविरत अहा अश्

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देव काव्य

29 अप्रैल 2022
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तरुण युवक वो, कर्मों में था जिसको कौशल रण में अरियों के मद को करता था हत बल, पलित वृद्ध उसको माता हे आज रे निगल मृतक पड़ा वह वीर, साँस लेता था जो कल! इस महत्वमय देव काय को देखो प्रतिपल क्षण भंगुर

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देव

29 अप्रैल 2022
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कर्म निरत जन ही देवों से होते पोषित निरलस रे वे स्वयं अहर्निशि रहते जागृत! दिति पुत्रों को अदिति सुतों के कर चिर आश्रित मैंने अपने को देवों को किया समर्पित! देवों का है तेज गभीर सिन्धु सा विस्तृ

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पुरुषार्थ

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कभी न पीछे हटने वाले ही पाते जय बहिरंतर के ऐश्वर्यों का करते संचय! वह प्रतिजन का हो अथवा सामूहिक वैभव ऐहिक आत्मिक सुख पुरुषार्थी के हित संभव! ठुकरा सकते वीर मृत्यु पद जो पग पग पर, आत्म त्याग, उ

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अंतर्गमन

29 अप्रैल 2022
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दाँई बाँई ओर, सामने पीछे निश्चित नहीं सूझता कुछ भी बहिरंतर तमसावृत! हे आदित्यो मेरा मार्ग करो चिर ज्योतित धैर्य रहित मैं भय से पीड़ित अपरिपक्व चित! विविध दृश्य शब्दों की माया गति से मोहित मेरे

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एकं सत्

29 अप्रैल 2022
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इन्द्रदेव तुम स्वभू सत्य सर्वज्ञ दिव्य मन स्वर्ग ज्योति चित् शक्ति मर्त्य में लाते अनुक्षण! ऋभुओं से त्रय रचित तुम्हारा ज्योति अश्व रथ प्राण शक्ति मरुतों से विघ्न रहित विग्रह पथ! तुम्हीं अग्नि ह

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प्रच्छन मन

29 अप्रैल 2022
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वेद ऋचाएँ अक्षर परम व्योम में जीवित निखिल देवगण चिर अनादि से जिसमें निवसित! जिसे न अनुभव अक्षर परम तत्व का पावन मंत्र पाठ से नहीं प्रकाशित होता वह मन! जिसे ज्ञात वह सत्य वही रे विप्र विपश्चित ज्य

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सृजन शक्तियाँ

29 अप्रैल 2022
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आज देवियों को करता मन भूरि रे नमन चिन्मयि सृजन शक्तियाँ जो करतीं जगत सृजन! माहेश्वरी महेश्वर के संदेश को वहन लक्ष्मी श्री सौन्दर्य विभव को करती वितरण! सरस्वती विस्तार सूक्ष्म करती संपादन काली भरत

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इन्द्र

29 अप्रैल 2022
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इन्द्र सतत सत्पथ पर देवें मर्त्य हम चरण दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण! तुम, उलूक ममता के तम का हटा आवरण वृक हिंसा औ’ श्वान द्वेष का करो निवारण! कोक काम रति येन दर्प औ’ गृद्ध लोभ हर ष

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वरुण

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वरुण मुक्त कर दो मेरे धिक् जीवन बंधन, पाप निवारक हे प्रकाश से भर मेरा मन! ऊपर और खुलें ये पाश गुणों के उत्तम नीचे प्रथम मध्य में हों श्लथ बंधन मध्यम! अंत प्राण मन सत रज तम का ही रूपांतर हम चिर

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सोमपायी

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चिर रमणीय बसंत ग्रीष्म वर्षा ऋतु सुखमय स्निग्ध शरद हेमंत शिशिर रमणीय असंशय! मधु केंद्रों को घेर बैठते ज्यों नित मधुवर ज्ञान इंद्रियों पर स्थित सोम पिपासु निरंतर! ध्यान मग्न होकर जीवन मधु करते सं

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मंगल स्तवन

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अमित तेज तुम, तेज पूर्ण हो जनगण जीवन दिव्य वीर्य तुम वीर्य युक्त हों सबके तम मन! दीप्त औज बल तुम बल ओज करें हम धारण शुद्ध मन्यु तुम, करें मन्यु से कलुष निवारण! तुम चिर सह, हम सहन कर सकें धीर शांत

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सन्यासी का गीत

29 अप्रैल 2022
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छेड़ो हे वह गान अंतत्तोद्भव अकल्प वह गान विश्व ताप से शून्य गह्वरों में गिरि के अम्लान निभृत अरण्य देशों में जिसका शुचि जन्म स्थान जिनकी शांति न कनक काम यश लिप्सा का निःश्वास भंग कर सका जहाँ प्रवा

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