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मधुज्वाल

सुमित्रा नन्दन पंत

154 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
5 पाठक
7 मई 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

उनका संपूर्ण साहित्य 'सत्यं शिवं सुन्दरम्' के आदर्शों से प्रभावित होते हुए भी समय के साथ निरंतर बदलता रहा है। जहां प्रारंभिक कविताओं में प्रकृति और सौंदर्य के रमणीय चित्र मिलते हैं वहीं दूसरे चरण की कविताओं में छायावाद की सूक्ष्म कल्पनाओं व कोमल भावनाओं के और अंतिम चरण की कविताओं में प्रगतिवाद और विचारशीलता के। उनकी सबसे बाद की कविताएं अरविंद दर्शन और मानव कल्याण की भावनाओं से ओतप्रोत हैं ' हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है। निसर्ग के उपादानों का प्रतीक वबिम्ब के रूप में प्रयोग उनके काव्य की विशेषता रही। उनका व्यक्तित्व भी आकर्षण का केंद्र बिंदु था। 

madhujwal

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पुस्तक के भाग

1

प्रिय बच्चन को

30 अप्रैल 2022
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जीवन की मर्मर छाया में नीड़ रच अमर, गाए तुमने स्वप्न रँगे मधु के मोहक स्वर, यौवन के कवि, काव्य काकली पट में स्वर्णिम सुख दुख के ध्वनि वर्णों की चल धूप छाँह भर! घुमड़ रहा था ऊपर गरज जगत संघर्षण,

2

रे जागो, बीती स्वप्न रात!

30 अप्रैल 2022
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रे जागो, बीती स्वप्न रात! मदिरारुण लोचन तरुण प्रात करती प्राची से पलक पात! अंबर घट से, साक़ी हँसकर, लो, ढाल रहा हाला भू पर, चेतन हो उठा सुरा पीकर, स्वर्णिम शाही मीनार शिखर!

3

खोल कर मदिरालय का द्वार

30 अप्रैल 2022
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खोलकर मदिरालय का द्वार प्रात ही कोई उठा पुकार मुग्ध श्रवणों में मधु रव घोल, जाग उन्मद मदिरा के छात्र! ढुलक कर यौवन मधु अनमोल शेष रह जाय नहीं मृद् मात्र ढाल जीवन मदिरा जी खोल लबालब भर ले उर का प

4

प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर

30 अप्रैल 2022
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प्रीति सुरा भर, साक़ी सुन्दर, मोह मथित मानस हो प्रमुदित! स्वप्न ग्रथित मन, विस्तृत लोचन, मर्त्य निशा हो स्वर्ग उषा स्मित! प्रणय सुरा हो, हृदय भरा हो, लज्जारुण मुख हो प्रतिबिंबित, पी अधरामृत हों

5

हाय, कोमल गुलाब के गाल

30 अप्रैल 2022
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हाय, कोमल गुलाब के गाल झुलस दे ऊष्मा का अभिशाप? प्रथम यौवन, कलियों के जाल स्वयं कुम्हला जाएँ चुपचाप! विजन वन कुंजों में भर प्यार तरुण बुलबुल गाती थी गान, आज उसके उर के उद्गार किधर हो गए विलीन अ

6

मदिराधर कर पान

30 अप्रैल 2022
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मदिराधर कर पान नहीं रहता फिर जग का ज्ञान! आता जब निज ध्यान सहज कुंठित हो उठते प्राण! जाग्रत विस्मृत साथ सतत जो रहता, वह अविकार! वृद्ध उमर भी माथ नवाता उसे सखे, साभार!

7

वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम

30 अप्रैल 2022
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वह अमृतोपम मदिरा, प्रियतम, पिला, खिला दे मोह म्लान मन, अपलक लोचन, उन्मद यौवन, फूल ज्वाल दीपित हो मधुवन! जंगम यह जग, दुर्गम अति मग, उर के दृग, प्रिय साक़ी, दे रँग! मदिरारुण मुख हो दृग सन्मुख रुक

8

बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास

30 अप्रैल 2022
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बैठ, प्रिय साक़ी, मेरे पास, पिलाता जा, बढ़ती जा प्यास! सुनेगा तू ही यदि न पुकार मिलेगा कैसे पार? स्वप्न मादक प्याली में आज डुबादे लोक लाज, जग काज, हुआ जीवन से, सखे, निराश, बाँध, निज भुज मद पाश!

9

वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण

30 अप्रैल 2022
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वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण आज जी खोल करें मधुपान! नीलिमा का नीलम का जाम भरा ज्योत्स्ना से फेन ललाम! इंदु की यह सलज्ज मुसकान रहेगी जग में चिर अम्लान, हमारा पर न रहेगा ध्यान, व्यर्थ फिर कल की चि

10

मदिराधर कर पान, सखे!

30 अप्रैल 2022
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मदिराधर कर पान, सखे, तू न धर न जुमे का ध्यान, लाज स्मित अधरामृत कर पान! सभी एक से तिथि, मिति, वासर, जुमा, पीर, इतवार, शनीचर! नीति-नियम निःसार! धर्म का यह इज़हार, ख़ुदा है ख़ुदा, न वह तिथि वार!

11

राह चलते चुभता जो शूल

30 अप्रैल 2022
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राह चलते चुभता जो शूल वही उसके स्वभाव अनुकूल! कामिनी की वह कुंचिक अलक कभी था कुटिल भृकुटि, चल पलक! खड़े जो सुंदर सौध विशाल सुनो उनकी ईंटों का हाल, सचिव की उँगली थे वे गोल, शाह के रत्न शीष अनमोल

12

सुरालय हो मेरा संसार

30 अप्रैल 2022
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सुरालय हो मेरा संसार, सुरा-सुरभित उर के उद्गार! सुरा ही प्रिय सहचरि सुकुमार, सुरा, लज्जारुण मुख साकार! उमर को नहीं स्वर्ग की चाह, सुरा में भरा स्वर्ग का सार! सुरालय राह स्वर्ग की राह, सुरालय द्

13

मदिराधर रस पान कर रहस

30 अप्रैल 2022
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मदिराधर रस पान कर रहस त्याग दिया जिसने जग हँस हँस, उसको क्या फिर मसजिद मंदिर सुरा भक्त वह मुक्त अनागस! हृदय पात्र में प्रणय सुरा भर जिसने सुर नर किए प्रेम वश, पाप, पुण्य, भय, उसे न संशय, वह मदि

14

हंस से बोली व्याकुल मीन

30 अप्रैल 2022
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हंस से बोली व्याकुल मीन करुणतर कातर स्वर में क्षीण, ‘बंधु, क्या सुन्दर हो’ प्रतिवार लौट आए जो बहती धार!’ हंस बोला, ‘हमको कल व्याध भून डालेगा, तब क्या साध? सूख जाए; बह जाए धार बने अथवा बिगड़े सं

15

ज्ञानोज्वल जिनका अंतस्तल

30 अप्रैल 2022
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ज्ञानोज्वल जिनका अंतस्तल उनको क्या सुख-दुःख, फलाफल? मदिरालय जिसका उर तन्मय, उसको क्या फिर स्वर्ग-नरक-भय? वह मानस जिसमें मदिरा रस उसे वसन क्या? टाट कि अतलस! अवश पलक पाएँ न प्रिय झलक जब तक, तकिया

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मदिर अधरों वाली सुकुमार

30 अप्रैल 2022
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मदिर अधरों वाली सुकुमार सुरा ही मेरी प्रिया उदार! मौन नयनों में भरे अपार तरुण स्वप्नों का नव संसार! चूमता मुख मैं बारंबार गया ज्यों पान पात्र भी हार! उमर मदिरा बन एकाकार गए दोनों दोनों पर वार!

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अधर मधु किसने किया सृजन

30 अप्रैल 2022
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अधर मधु किसने किया सृजन? तरल गरल! रची क्यों नारी चिर निरुपम? रूप अनल! अगर इनसे रहना वंचित यही विधान, दिए विधि ने तप संयम हित न क्यों दृढ़ प्राण?

18

उमर दिवस निशि, काल और दिशि

30 अप्रैल 2022
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उमर दिवस निशि काल और दिशि रहे एक सम, जब कि न थे हम! फिरता था नभ सूर्य चंद्र प्रभ, देख मुग्ध छवि गाते थे कवि! चंद्र वदनि की सी अलकावलि लहराती थी लोल शैवलिनि! कोमल चंचल धरणी श्यामल किसी मृग नयनि

19

छूट जाएँ जब तन से प्राण

30 अप्रैल 2022
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छूट जावें जब तन से प्राण सुरा में मुझे कराना स्नान! सुरा, साक़ी, प्याली का नाम सुनाना मुझे उमर अविराम! खोजना चाहे कोई भूल मुझे मेरे मरने के बाद, पांथशाला की सूँघे धूल, दिलाएगी वह मेरी याद! 

20

अधर घट में भर मधु मुसकान

30 अप्रैल 2022
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अधर घट में भर मधु मुस्कान मूर्ति बोली, ‘ऐ निष्ठावान, तुझे क्यों भाया यह उपचार भजन, पूजन, दीपन, शृंगार!’ भक्त बोला, ‘जिसने अनजान दिए हम दोनों को दो रूप, उसी ने मुझे उपासक, प्राण! बनाया तुम्हें उ

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तुम ऋतुपति प्रिय सुघर कुसुम चय

30 अप्रैल 2022
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तुम ऋतुपति प्रिय सुघर कुसुम चय हम कंटक गण! स्वाति स्वप्न सम मुक्ता निरुपम तुम, हम हिम-कण! निठुर नियति छल हो कि कर्म फल यह चिर अविदित, चख मदिरा रस, हँस रे परवश, त्याग हिताहित!

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यहाँ नीलिमा हँसती निर्मल

30 अप्रैल 2022
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यहाँ नीलिमा हँसती निर्मल, कँपता हरित तृणों का अंचल, गाता फेन ग्रथित जल कल कल! अरे त्याग तप संयम में रत! किस मिथ्या ममता हित ये व्रत? यह विराग क्यों भग्न मनोरथ? बंकिम दृग, रक्तिम मदिराधर, यह सुर

23

सुनहले फूलों से रच अंग

30 अप्रैल 2022
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सुनहले फूलों से रच अंग सलज लाला सा मुख सुकुमार, सुरा घट सा दे मादक रंग शिखर तरु सा उन्नत आकार! न जाने तुमने क्यों, करतार, भरी प्राणों में तरुण उमंग, बुना क्यों स्वप्न मधुर संसार हृदय सर में भर

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इस जीवन का भेद

30 अप्रैल 2022
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इस जीवन का भेद जिसे मिल गया गभीर अपार, रहा न उसको क्लेद मरण भी बना स्वर्ग का द्वार! करले आत्म विकास, खोज पथ, जब तक दीपक हाथ, मरने बाद, निराश, छोड़ देगा प्रकाश भी साथ!

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फेन ग्रथित जल हरित शष्प दल

30 अप्रैल 2022
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फेन ग्रथित जल, हरित शष्प दल, जिससे सरित पुलिन आलिंगित, उस पर मत चल, वह चिर कोमल ललना की रोमावलि पुलकित! गुल लाला सम मुख छबि निरुपम उस मृग नयनी की थी सस्मित, वह मुकुलित तन आज धूलि बन हुआ कूल दूर

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हृदय जो सदय प्रणय आगार

30 अप्रैल 2022
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हृदय जो सदय, प्रणय आगार, भक्त, उस उर पर कर अधिकार! न मंदिर मसजिद के जा द्वार न जड़ काबे पर तन मन वार! अगर ईश्वर को कुछ स्वीकार हृदय जो सदय, प्रणय आगार! हृदय पर यदि न तुझे अधिकार भक्त, पी अमर प्

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चपल पलक से कुटिल अलक से

30 अप्रैल 2022
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चपल पलक से कुटिल अलक से बिंध बँध कर होना हत मूर्छित, सतत मचलना, वृत्ति बदलना हृदय, तुम्हारा यदि स्वभाव नित! फिर अंतिम क्षण तजना प्रिय तन प्राण, तुम्हारा अगर यही प्रण, विधि ने क्यों कर तो प्रिय स

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चपल पलक से कुटिल अलक से

30 अप्रैल 2022
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चपल पलक से कुटिल अलक से बिंध बँध कर होना हत मूर्छित, सतत मचलना, वृत्ति बदलना हृदय, तुम्हारा यदि स्वभाव नित! फिर अंतिम क्षण तजना प्रिय तन प्राण, तुम्हारा अगर यही प्रण, विधि ने क्यों कर तो प्रिय स

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भला कैसे कोई निःसार

30 अप्रैल 2022
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भला कैसे कोई निःसार स्वप्न पर जाए जग के वार? हँस रही जहाँ अश्रुजल माल विभव सुख के ओसों की डार! अथक श्रम से सुख सेज सँवार लेटता जब तू शोक बिसार, बज्र स्वर में कहता द्रुत काल अरे उठ, ग़ाफ़िल, चल

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रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान

30 अप्रैल 2022
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रम्य मधुवन हो स्वर्ग समान, सुरा हो, सुरबाला का गान! तरुण बुलबुल की विह्वल तान प्रणय ज्वाला से भर दे प्राण! न विधि का भय, न जगत का ज्ञान, स्वर्ग की स्पृहा, नरक का ध्यान, मदिर चितवन पर दूँ जग वार

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वन माला में जो गुल लाला

30 अप्रैल 2022
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वनमाला में जो गुल लाला लहरा रहा अनल ज्वाला सम, रुधिर अरुण था किसी तरुण वह तरुण तुल्य नृप सुत का निरुपम! नील नयन में फँसा रहा मन फूल बनफ़शा जो चिर सुंदर, वह मयंक में चारु अंक सा तिल निशंक था तरु

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उमर दो दिन का यह संसार

30 अप्रैल 2022
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उमर दो दिन का यह संसार लबालब भर ले उर भृंगार! क्षणिक जीवन यौवन का मेल, सुरा प्याली का फेनिल खेल! देख, वन के फूलों की डाल ललक खिलती, झरती तत्काल! व्यर्थ मत चिन्ता कर, नादान, पान कर मदिराधर कर पा

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मधुऋतु चंचल, सरिता ध्वनि कल

30 अप्रैल 2022
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मधुऋतु चंचल, सरिता ध्वनि कल, श्यामल पुलिन ऊर्मि मुख चुंबित, नवल वयस बालाएँ हँस हँस बिखरातीं स्मिति पंखड़ियाँ सित! स्वप्निल पलक सुरा, साक़ी, चख, मदिराधर मद से रहे छलक! मंदिर भय, मसजिद का संशय जा

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उमर कर सब से मृदु बर्ताव

30 अप्रैल 2022
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उमर कर सब से मृदु बर्ताव, न रख तू शत्रु मित्र का भाव! प्रेम से ले निज अरि को जीत, नम्र बन, रख सबसे अपनाव! मधुर बन, निर्भय, सरल, विनीत, बना हाला बाला को मीत! छाँह सी भावी, स्वप्न अतीत, मात्र मदि

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लज्जारुण मुख बैठी सम्मुख

30 अप्रैल 2022
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लज्जारुण मुख, बैठी सम्मुख, प्रेयसि कंपित कर से उत्सुक भर ज्वाला रस, हाला हँस-हँस उमर पिलाए, हृदय हो अवश! हृदय हीन कह लें मलीन, मैं मधु वारिधि का मुग्ध मीन! अपवर्ग व्यर्थ : केवल निसर्ग संगीत, सु

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मधुर साक़ी, भर दे मधु पात्र

30 अप्रैल 2022
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मधुर साक़ी, भर दे मधुपात्र, प्रणय ज्वाला से उर का पात्र! सुरा ही जीवन का आधार, मर्त्य हम, केवल क्षर मृन्मात्र! पुष्प के प्याले भर भर आज लुटाता यौवन मधु ऋतु राज, उमर तज भजन, यजन, उपचार; भजन से ई

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पंचम पिकरव, विकल मनोभव

30 अप्रैल 2022
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पंचम पिकरव, विकल मनोभव, यौवन उत्सव! मधुवन गुंजित, नीर तरंगित, तीर कल ध्वनित! हँसमुख सुन्दर प्रिय सुख-सहचर, प्रिया मनोहर, पी मदिराधर सखे, निरन्तर, जीवन क्षण भर!

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सुरा पान से, प्रीति गान से

30 अप्रैल 2022
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सुरा पान से, प्रीति गान से आज पांथशाला है गुंजित, मधु निकुंज सी खग पिक कूजित! कोटि प्रतिज्ञा तोड़, अवज्ञा धर्म कर्म की मैंने की नित, पी पी प्रेयसि का अधरामृत! उमर कलुषमय, प्रभु करुणामय, करुणा औ

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अधर सुख से हों स्पंदित प्राण

30 अप्रैल 2022
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अधर सुख से हों स्पंदित प्राण, बहे या विरह अश्रु जल धार, फूल बरसें, या कंटक, वाण, मुझे प्रभु की इच्छा स्वीकार! तुम्हारी रुचि मेरी रुचि नाथ, गहो या गहो न मेरा हाथ, छोड़ दो जीर्ण तरी मँझधार लगाओ य

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अंगों में हो भरी उमंग

30 अप्रैल 2022
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अंगों में हो भरी उमंग, नयनों में मदिरालस रंग, तरुण हृदय में प्रणय तरंग! रोम रोम से उन्मद गंध छूटे, टूटें जग के बंध, रहे न सुख दुख से सम्बन्ध! कोमल हरित तृणों से संकुल मेरी निभृत समाधि से अतुल

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बंधु, चाहता काल

30 अप्रैल 2022
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बंधु, चाहता काल तोड़ दे हमें, छोड़ कंकाल! यही दैव की चाल, जगत स्वप्नों का स्वर्णिम जाल! जब तक सुरा रसाल काल भी मोहित : साक़ी, ढाल, ढाल सुरा की ज्वाल, मृत्यु भी पी, जी उठे निहाल!

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पूछते मुझसे, ऐ खैयाम

30 अप्रैल 2022
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पूछते मुझसे, ‘ए ख़ैयाम, तुझे क्यों भाया मधु व्यापार?’ सुनो, ‘मैंने धर्मों को छान किया इस मदिर दृगी से प्यार! स्वर्ग सुख मदिराधर पर वार! ‘न मैं नास्तिक, न नीति मर्याद तोड़ता, करता वाद विवाद; रहे

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कल कल छल छल सरिता का जल

30 अप्रैल 2022
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कल कल छल छल सरिता का जल बहता छिन छिन! मर्मर सन सन वन्य समीरण से जाते दिन! कल का क्या दुख? आज से विमुख मत हो अंतर! हृदय द्विधा हर, प्रणय सुधा कर पान निरंतर!

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उमर मत माँग दया का दान

30 अप्रैल 2022
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उमर मत माँग दया का दान, जगत छल का मत कर विश्वास! चाहता विभव-भोग, सम्मान? ओस जल से कब बुझती प्यास! धीर बन, सुख दुख में रह शांत, विश्व मरुथल, सुख मृग जल भ्रांत! पान कर, मदिराधर कर पान, इसी में स्

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प्रणय लहरियों में सुख मंथर

30 अप्रैल 2022
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प्रणय लहरियों में सुख मंथर बहे हृदय की तरी निरन्तर, जीवन सिन्धु अपार! इसका कहीं न ओर छोर रे, यह अगाध है, तू विभोर रे, वृथा विमर्ष विचार! यौवन की ज्योत्स्ना में चंचल प्रणय उर्मियों में बहता चल,

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पाप न कर खै़याम

30 अप्रैल 2022
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पाप न कर ख़ैयाम, पाप कर मत कर पश्चाताप! व्यर्थ ग्लानि संताप न इससे मिटता उर का ताप! पापी, दुर्गुण ग्राम ईश से पाते क्षमाऽभिराम; प्रभु चिर करुणावान, पाप-भय से रे फिर क्या काम?

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सरिता से बहते जाते

30 अप्रैल 2022
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सरिता से बहते जाते चंचल जीवन पल, आदि अंत अज्ञात, ज्ञात बस फेनिल कल कल! हार गए सब खोज, मिली पर थाह न निस्तल, डूब गया जो, पाया उसने भेद, वह सफल!

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दुख से मथित व्यथित यदि तू चित

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दुख से मथित, व्यथित यदि तू नित क्षुब्ध न हो रे, विधि गति अविदित! पर से निज दुख बदल, यही सुख, व्यर्थ न रो रे, पी मदिरामृत! हृदय पात्र भर, प्रणय क्षात्र बन, विस्मृति में कर सुख दुख मज्जित, स्वप्न

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मदिराधर चुंबन प्रसन्न मन

30 अप्रैल 2022
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मदिराधर चुंबन, प्रसन्न मन, मेरा यही भजन औ’ पूजन! प्रकृति वधू से पूछा मैंने प्रेयसि, तुझको दूँ क्या स्त्री-धन? बोली, प्रिय, तेरा प्रसन्न मन मेरा यौतुक, मेरा स्त्री धन! 

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स्तुत्य यदि तेरे काम

30 अप्रैल 2022
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स्तुत्य यदि तेरे काम, न तेरे गुण से वे, सच जान! निन्द्य यदि तू अघ ग्राम, न तेरा दोष, व्यर्थ अभिमान! छोड़ सदसद् अविचार, बंधु, ईश्वर सब का करतार! उसी के सब व्यापार, तुझे क्यों भय, मिथ्याहंकार! 

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अपना आना किसने जाना

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अपना आना किसने जाना? जग में आ फिर क्या पछताना? जो आते वे निश्वय जाते, तुझको मुझको भी है जाना! बाँध कमर, ओ साक़ी सुंदर, उठ, कंपित कर में प्याली धर, प्रीति सुधा भर, भीति द्विधा हर, चिर विस्मृति म

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मद से कंपित मदिराधर स्मित

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मद से कंपित मदिराधर स्मित साक़ी, पी दिन रात! भुला दे जग के अखिल अभाव, सुरा प्रेयसि से कर न दुराव! जीवन सागर, साक़ी, दुस्तर, दुख की झंझावात उठे यदि, तू निज डगमग पाँव बढ़ा दे, सुरा नूह की नाव!

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कितने ही कल चले गये छल

30 अप्रैल 2022
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कितने ही कल चले गए छल, रहा दूर नित मृग जल! हा दुख, हा दुख, कह कह सब सुख हुआ स्वप्नवत् ओझल! अब का पल मत खो रे दुर्बल, पान पात्र भर फेनिल, तुहिन तरल जीवन न जाय ढल, प्रणय ज्वाल पी ग़ाफ़िल!

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प्रिये, गाओ बहार के गान

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प्रिये, गाओ बहार के गान मिला स्वर में सलज्ज मुस्कान, करूँ मैं मदिराधर मधु पान! सराहूँगा मैं उसके भाग सुरा से जिसे मर्म अनुराग, हृदय में जिसके मादक आग! उमर को नहीं और कुछ काम संग हो प्रेयसि मधुर

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मुझे यदि मिले स्वर्ग का द्वार

30 अप्रैल 2022
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मुझे यदि मिले स्वर्ग का द्वार विनय हो मेरी बारंबार, मदिर अधरों वाली सुकुमारि पिलाए मुझे प्रणय मधु धार! नहीं मुझमें ऐसा तप त्याग मिले मुझको दुर्लभ अपवर्ग, हृदय में जो साक़ी की आग सुरा की घूँट मु

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चंचल शबनम सा यह जीवन

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चंचल शबनम सा यह जीवन, गिरा न दे कल काल समीरण! मत थम, निरुपम प्रणय सुरा भर, हाला ज्वालामय हो अंतर! क्षण क्षण यह मन नव तृष्णाकुल, जग का मग काँटों से संकुल! जीवन के क्षण मत खो, मूरख, साधक, मादक मद

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कहाँ वह करुणा करुणागार

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कहाँ वह करुणा, करुणागार, विषय रस में रत मेरे प्राण! पीठ पर लदा मोह का भार, कहाँ वह दया, करे जो त्राण! मुझे यदि मिला स्वर्ग का द्वार, उमर जप तप कर या दे दान, उपार्जन होगा वह, उपहार न करुणा का, प

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हे मेरे अमर सुरावाहक

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हे मेरे अमर सुरा वाहक, निज प्रणय ज्वाल सी सुरा लाल तुम भरो हृदय घट में मादक! चिर स्नेह हीन मेरा दीपक दीपित न करोगे तुम जब तक कैसे पाऊँगा दिव्य झलक? अधरों पर धर निज मदिराधर तुम जिसे पिलाते हो क्

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उमर रह धीर वीर बन रह

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उमर रह, धीर वीर बन रह, सुरा के हित अधीर बन रह! प्रेम का मंत्र याद कर रह, न व्यर्थ विवाद वाद कर रह! प्रणय की पंथ धूल बन रह, सदा हँस, गंध फूल बन रह! किसी की मधुर चाह बन रह, यार के लिए राह बन रह!

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राह में यों मत चल खै़याम

30 अप्रैल 2022
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राह में यों मत चल, ख़ैयाम, डरें सब, करें सलाम! न मसजिद ही में तुझे इमाम बनाएँ, सुनें कलाम! न सब में बन तू स्वयं प्रधान, खड़े हो दें सम्मान; मधुर बन, विनयी बन, मतिमान, सभी को समझ समान!

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तरुण साक़ी भी हो जो साथ

30 अप्रैल 2022
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तरुण साक़ी भी हो जो साथ अधर पर धरे मधुर मुसकान, सुरा के रँग की भी अविराम मदिर जो वृष्टि करें भगवान! स्वर्ग की हूरें स्वयं उतर सुनाएँ भी जो अश्रुत गान, नहीं यदि प्रेमोन्मत्त हृदय स्वर्ग भी है तब

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उमर पी साँस साँस में चाह

30 अप्रैल 2022
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उमर पी साँस साँस में चाह, सतत कर हास विलास, गले में डाल प्रिया की बाँह, पान कर मुख उच्छ्वास! सांत जीवन, अनंत सुख भोग, सखे, क्षण क्षण अनमोल, गँवा मत मधुर स्वर्ण संयोग, अधर मधु पी जी खोल!

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विरह व्यथित मन साक़ी तत्क्षण

30 अप्रैल 2022
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विरह व्यथित मन, साक़ी, तत्क्षण अधरामृत पी होता विस्मृत, कलुषित अंतर रति से घुल कर बनता पूत, सुरा समाधि स्थित! शोक द्रवित होता आनंदित मादक मदिराधर कर चुंबित, उसे न सुख दुख, वह नित हँसमुख, स्वर्ग

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ढालता रहता वह अविराम

30 अप्रैल 2022
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ढालता रहता वह अविराम, उमर पात्रों में मदिराधार, सुनहले स्वप्नों का मधु फेन हृदय में उठता बारंबार! डूबते हम से तुम से, प्राण, सहस्रों उसमें बिना विचार! भरा रहता साक़ी का जाम, बिगड़ते बनते शत संस

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श्यामल दूर्वा पुलकित भूतल

30 अप्रैल 2022
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श्यामल, दूर्वा दल स्मित भूतल, रंग भरा फूलों का अंचल, यह क्या कुछ कम? उस पर शबनम कँपती पंखड़ियों पर चंचल! चुवा चुवा नव कुसुमों का रँग साक़ी, हाला से भर अंतर, फिर न रहेगी यह बहार, हम तुम, तृण, शब

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मीना की ग्रीवा से झर झर

30 अप्रैल 2022
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मीना की ग्रीवा से झरझर गाती हो मदिरा स्वर्णिम स्वर, गान निरत उर, वाद्य रव मधुर, नूपुर ध्वनि हरती हो अंतर! हाला के रँग में तन मन लय, मुग्धा बाला हो सँग सहृदय! फिर सुरपुर सम हो जग निरुपम, विधि से

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चंचल जीवन स्रोत

30 अप्रैल 2022
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चंचल जीवन स्रोत बहता व्याकुल वेग, पुलिन-फेन-परिप्रोत सुख दुख, हर्षोद्वेग! ले बहु भाव तरंग भंगुर बुद्बुद् गान मिलता वारिधि संग एक रूप हो, प्राण!

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यह जग मेघों की चल माया

30 अप्रैल 2022
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यह जग मेघों की चल माया, भावी, स्वप्नों की छल छाया! तू बहती सरिता के जल पर देख रहा अपनी प्रतिछबि नर! उठे रे, कल के दुख से व्याकुल, जीवन सतरँग वाष्पों का पुल! कल का दुख केवल पागलपन, पल पल बहता स्

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प्रेम के पांथ वास में आज

30 अप्रैल 2022
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प्रेम के पांथवास में आज मस्त का पहना मैंने ताज! आत्म विस्मृति, मदिराधर पान यही मेरा जप-ज्ञान! विश्वमय का जो विशद निवास व्याप्त उसमें मेरे चिर प्राण, उच्च मस्तक मेरा आकाश, गात्र ब्रह्मांड महान!

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स्वर्गिक अप्सरि सी प्रिय सहचरि

30 अप्रैल 2022
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स्वर्गिक अप्सरि सी प्रिय सहचरि हो हँसमुख सँग, मधुर गान हो, सुरा पान हो, लज्जारुण रँग! कल कल छल छल बहता हो जल तट हो कुसुमित, कोमल शाद्वल चूमे पद तल, साक़ी हो स्मित! इससे अतिशय स्वर्ग न सुखम

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विरह मंथित उर का आमोद

30 अप्रैल 2022
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विरह मंथित उर का आमोद मधुर मदिरामृत पान, शून्य जीवन का मात्र प्रमोद सुरा, साक़ी, प्रिय गान! प्रणय रस भरा हृदय का जाम, विरह व्याकुल चिर प्राण, उमर को रे किससे क्या काम सुरा में कर, मन, स्नान!

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सुरा में दुरा स्वर्ग का सार

30 अप्रैल 2022
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सुरा में दुरा स्वर्ग का सार, भले हो उमर ख़ुमार! सुमन उर में सौरभ उद्गार, भले तन छेदे ख़ार! प्रेयसी का उर प्रणयागार वश्यता भी स्वीकार! मिलन में मर्मोल्लास अपार, विरह का भी यदि भार!

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विश्व वीणा का जो कल गान

30 अप्रैल 2022
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विश्व वीणा का जो कल गान, प्रेम वह गान! तरुण पिक की जो मादक तान, प्रेम वह तान! कहाँ नारी के कोमल प्राण? प्रेम में प्राण! हृदय करता नित किसका ध्यान? प्रेम का ध्यान! रूप के मधुवन का जो फूल, प्

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प्रणय का हो उर में उन्मेष

30 अप्रैल 2022
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प्रणय का हो उर में उन्मेष सुरा पर यदि विश्वास! सफल हो जीवन का आवेश हृदय में यदि उल्लास! श्वास हो जब तक अंतिम शेष सखे, कर हास विलास! मिटा हाला से जग के क्लेश, प्रिया सँग कर सहवास!

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तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम

30 अप्रैल 2022
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तुम्हारा रक्तिम मुख अभिराम, भरा जामे जमशेद! घिरा मदिरा का फेन ललाम, बदन पर रति सुख स्वेद! निछावर करना तुम पर प्राण तोड़ जीवन के बंध, प्रतीक्षा में रहना प्रतियाम यही स्वर्गिक आनंद! तुम्हारे

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मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र

30 अप्रैल 2022
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मधुर साक़ी, उर का मधु पात्र प्रीति से भर दे तू प्रति बार, जन्म जन्मों की मेरी साध सुरा हो मेरी प्राणाधार! मुझे कर मधु स्वप्नों में लीन, मृत्यु हो मेरी मदिराधीन! बनूँ मैं वन मृग, हाला बीन, यही

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यह हँसमुख मृदु दूर्वादल है

30 अप्रैल 2022
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यह हँसमुख मृदु दूर्वादल है आज बना क्रीड़ा स्थल! इसने मेरे हित फैलाया श्यामल पुलकित अंचल! मेरे तन की रज पर कल यह दूब खिलेगी कोमल, कोई सुंदर साक़ी उस पर खेलेगा फिर कुछ पल!

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उस हरी दूब के ऊपर

30 अप्रैल 2022
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उस हरी दूब के ऊपर छाया जो बादल सुंदर, वह बरस पड़ा अब झर झर, वह चला गया हँस-रोकर! अह, भरा हुआ यह जीवन ज्यों अश्रु भरा सावन घन, साक़ी के मधु अधरों पर झर झर हो जाय निछावर!

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मनुज कुछ धन में जिनके प्राण

30 अप्रैल 2022
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मनुज कुछ, धन में जिनके प्राण, जिन्हें निज नृप कुल का अभिमान! उमर कुछ वे, जो विद्यावान, चाहते यश पूजन सम्मान! व्यक्ति ऐसे भी, जिनका ध्यान स्वर्ग पर, करते जप तप दान, हटेगा आँखों से व्यवधान, सभी य

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जिसके प्रति अपनाव

30 अप्रैल 2022
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जिसके प्रति अपनाव वही अपना ख़ैयाम! जिसमें है दुर्भाव ग़ैर है उसका नाम! विष दे जीवन दान सुधा वह बने ललाम, मधु अहि-दंश समान न विस्मृति दे यदि जाम!

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यदि तेरा अंचल वाहक

30 अप्रैल 2022
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यदि तेरा अंचल वाहक मैं भी बन सकता, प्रियतम! भर देती उर घावों को तेरी करुणा की मरहम! उस निस्तल मधु सागर से पीते जिससे जड़ चेतन, साक़ी, मैं भी पा जाता तब एक बूँद उर मादन!

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इस पल पल की पीड़ा का

30 अप्रैल 2022
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इस पल पल की पीड़ा का कह, मोल कहाँ है, साक़ी! यह स्वर्ग मर्त्य से बढ़कर अनमोल दवा है, साक़ी! भर दे फिर उर का प्याला छबि की हाला से सुन्दर, जग के देशों से उसका है एक बूँद श्रेयस्कर! अपनी चिर उन्

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वह प्याला भर साक़ी सुन्दर

30 अप्रैल 2022
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वह प्याला भर साक़ी सुंदर, मज्जित हो विस्मृति में अंतर, धन्य उमर वह, तेरे मुख की लाली पर जो सतत निछावर! जिस नभ में तेरा निवास पद रेणु कणों से वहाँ निरंतर तेरी छबि की मदिरा पीकर घूमा करते कोटि दि

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पान करना या करना प्यार

30 अप्रैल 2022
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पान करना या करना प्यार उमर यदि हो अपराध, साधुवर, क्षमा करो, स्वीकार न मुझको वाद विवाद! करो तुम जप पूजन उपचार, नवाओ प्रभु को माथ; सुरा ही मुझे सिद्धि साकार, मधुर साक़ी हो साथ!

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अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर

30 अप्रैल 2022
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अंबर फिर फिर क्या करता स्थिर, यह चिर अविदित! छीन स्वप्न सुख, देता क्यों दुख वह सब को नित! बीते युग-क्षण करते चिन्तन स्थिर न हुआ चित, किया क्या उमर, गँवा दी उमर, रहा अनिश्चित!

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हुआ इस जग में ऐसा कौन

30 अप्रैल 2022
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हुआ इस जग में ऐसा कौन विषय रस किया न जिसने पान? मिला ऐसा निर्मल न स्वभाव रहा अघ से जो चिर अनजान! अगर हों वृद्ध उमर में दोष न साक़ी, करना उस पर रोष! घात के प्रति करना आघात तुम्हारा रहा न कभी विध

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अगर साक़ी तेरा पागल

30 अप्रैल 2022
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अगर साक़ी, तेरा पागल न हो तुझमें तन्मय, तल्लीन, उमर वह मृत्यु दंड के योग्य भले हो वह मंसूर नवीन! सुरा पीकर हो वह विस्मृत, भजन पूजन में हो कि प्रवीण, नहीं वह दया क्षमा के योग्य भक्ति श्रद्धा से

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स्नेहमय हुआ हृदय का दीप

30 अप्रैल 2022
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स्नेहमय हुआ हृदय का दीप प्रिया की रूप शिखा धर मौन! प्रेम के हित दे निज बलिदान नहीं जी उठा सखे, वह कौन? दीप का करना यदि गुण गान, शलभ से कहो, जिसे अपनाव; उमर यह है निगूढ़ कुछ बात, जलों पर पड़ता अ

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उमर क्यों मॄषा स्वर्ग की तृषा

30 अप्रैल 2022
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उमर क्यों मृषा स्वर्ग की तृषा? कल्पना मात्र शून्य अपवर्ग, धरा पर ही यह जीवन स्वर्ग! स्वर्ग का नूर सुरा, प्रिय हूर, सुरा सुंदरी यहाँ कब दूर? गान, मधु पान पात्र भरपूर! हरित वन तीर, तरंगित नीर, सु

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जब तुम किसी मधुर अवसर पर

30 अप्रैल 2022
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जब तुम किसी मधुर अवसर पर मिलो कहीं हे बंधु, परस्पर, एक दूसरे पर हो जाओ तुम अपने को भूल निछावर! जब हँसमुख साक़ी आ सुंदर अधरों पर धर दे मदिराधर, वृद्ध उमर को भी तब क्षण भर कर लेना तुम याद दया कर!

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बाला सुन्दर हाला घट भर

30 अप्रैल 2022
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बाला सुंदर, हाला घट-भर, उमर हमारे प्रिय सहचर नित! उर का सुख दीपक बन हँसमुख सुहृद् सभा करता आलोकित! प्रेम अशन, आनन्द वसन, तन पुलक-अंकुरित, हृदय-उल्लसित, जो कुछ प्रियतर, सुखद मनोहर सखे, हमारे लिए

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तंद्रित तरुतल छाया शीतल

30 अप्रैल 2022
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तन्द्रित तरुतल, छाया शीतल, स्वप्निल मर्मर! हो साधारण खाद्य उपकरण, सुरा पात्र भर! गाओ जो तुम प्रेयसि निरुपम, गीत मनोहर, फिर यह निर्जन स्वर्ग सदन सम हो चिर सुखकर!

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मुख छवि विलोक जो अपलक

30 अप्रैल 2022
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मुख छबि विलोक जो अपलक रह जायँ न, वे क्या लोचन? विरहानल में जल जल कर गल जाय न जो, वह क्या मन! तुझको न भले भाता हो प्रेमी का यह पागलपन, उर उर में दहक रहा पर तेरे प्रेमानल का कण!

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प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल

30 अप्रैल 2022
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प्रिया तरुणी हो, तटिनी कूल, अरुण मदिरा, बहार के फूल; मधुर साक़ी हो, विधि अनुकूल, दर्द दिल जावे अपना भूल! खुली हो मदिरालय की राह, छलकता हो नभ घट से माह; मदिर नयनी की हो बस चाह, उमर जग से हो लापर

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जगत छलना की उन्हें न चाह

30 अप्रैल 2022
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जगत छलना की उन्हें न चाह, धीर जो नर, धीमान्! सुरा का बहता रहे प्रवाह, डूब जाएँ तन प्राण! सुराही से हो सुरा प्रपात, दर्द से दिल बेताब! मूर्ख वे, खाते ग़म दिन रात, उमर पीते न शराब!

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मेरी मधुप्रिय आत्मा प्रभुवर

30 अप्रैल 2022
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मेरी मधुप्रिय आत्मा प्रभुवर, नित्य तुम्हारे ही इंगित पर चलती है मधु विस्मृत होकर! मेरा कार्य कलाप तुम्हारा, धर्म वंचकों से मैं हारा, पाप पुण्य में मैं प्रभु अनुचर! निखिल लालसाएँ जब उर में, भरते

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पान पात्र था प्रेम छात्र

30 अप्रैल 2022
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पान पात्र था प्रेम छात्र! प्रेयसि के कुंचित अलकों में उलझा था, बंदी पलकों में! ग्रीवा पर थी मूँठ सुघर मृदु बाँह, मधुर आलिंगन सुख लेती थी प्रेयसि का उत्सुक!

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वह हृदय नहीं

30 अप्रैल 2022
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वह हृदय नहीं जिसमें प्रियतम की चाह नहीं! वह प्रणय नहीं जिसमें विरहानल दाह नहीं! वह दिवस नहीं यदि अविरत सुरा प्रवाह नहीं! वह वयस नहीं जो बाला के गल बाँह नहीं!

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अगर हो सकते हमको ज्ञात

30 अप्रैल 2022
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अगर हो सकते हमको ज्ञात नियति के, प्रिये, रहस्य अपार, जान सकते हम विधि का भेद, विश्व में क्यों चिर हाहाकार! चूर्ण कर जग का यह मृद् पात्र उड़ा देते अनंत में धूल, और फिर हम दोनों मिल, प्राण, उसे ग

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चाँद ने मार रजत का तीर

30 अप्रैल 2022
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चाँद ने मार रजत का तीर निशा का अंचल डाला चीर, जाग रे, कर मदिराधर पान, भोर के दुख से हो न अधीर! इंदु की यह अमंद मुसकान रहेगी इसी तरह अम्लान, हमारा हृदय धूलि पर, प्राण, एक दिन हँस देगी अनजान!

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छलक नत नीलम घट से मौन

30 अप्रैल 2022
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छलक नत नीलम घट से मौन मुसकुराती आती जब प्रात, स्फटिक प्याली कर में धर, बंधु, ढाल मदिरा का फेन प्रपात! लोग कहते, सुनता ख़ैयाम, सत्य कटु होता, यह प्रख्यात! सुरा कड़वी है सबको ज्ञात, पान करना ही स

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गगन के चपल तुरग को साध

30 अप्रैल 2022
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गगन के चपल तुरग को साध कसी जब विधि ने ज़ीन लगाम, ज्वलित तारों की लड़ियाँ बाँध गले में डाली रास ललाम! उसी दिन मानव के हित, प्राण, रचा स्रष्टा ने चिर अज्ञान, अहर्निश कर मदिराधर पान, उसे मिल सके म

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मधु के दिवस, गंधवह सालस

30 अप्रैल 2022
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मधु के दिवस, गंधवह सालस डोल रहा वन में भर मर्मर! सकरुण घन फूलों का आनन धुला रहा, बरसा जल सीकर! गाती बुलबुल, भीरु कुसुमकुल, खोलो मधुपायी, मदिराधर! खिल जाए मन, रँग जाए तन, पीलो, पीलो मदिरा की झर!

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सलज गुलाबी गालों वाली

30 अप्रैल 2022
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सलज गुलाबी गालों वाली हाला मेरी चिर सहचर, बिना मादनी का जग जीवन बिना चाँदनी का अंबर! वे कहते हैं विधि वर्जित है इस जीवन में मदिरा पान! मुझे सुलभ वह यहाँ, स्वर्ग में पिएँ मूढ़ अपना अनुमान!

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कितने कोमल कुसुम नवल

30 अप्रैल 2022
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कितने कोमल कुसुम नवल कुम्हलाते नित्य धरा पर झर झर, यह नभ अब तक सुन प्रिय बालक, मिटा चुका कितने मुख सुंदर! मान न कर चंचल यौवन पर यह मदिरा का बुद्बुद अस्थिर, सरिता का जल, जीवन के पल लौट नहीं आते

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नवल हर्षमय नवल वर्ष यह

30 अप्रैल 2022
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नवल हर्षमय नवल वर्ष यह, कल की चिन्ता भूलो क्षण भर; लाला के रँग की हाला भर प्याला मदिर धरो अधरों पर! फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय स्वप्न पाश सी रहे कंठ में, निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण प्रेयसि, जीवि

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फूलों के कोमल करतल पर

30 अप्रैल 2022
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फूलों के कोमल करतल पर ओसों के कण लगते सुंदर, मुग्धा का मदिरालस आनन उमर मुग्ध कर लेता अंतर! ओ रे, कल के मोह से मलिन, बीत गया अब वह कल का दिन! उठ, अब हँस कर पान पात्र भर, चूम प्रेयसी के मदिराधर!

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मादक स्वप्निल प्याला फेनिल

30 अप्रैल 2022
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मादक स्वप्निल प्याला फेनिल साक़ी, फिर फिर भर अंतर का आलोकित जिनका उर निश्चित पीते वे मधु मदिराधर का! जग के तम से, संशय भ्रम से मोह मलिन जिनका मन मंदिर, उनके भीतर जीवन-भास्वर जलता दीप न साक़ी का

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मधु के घन से, मंद पवन से

30 अप्रैल 2022
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मधु के घन से, मंद पवन से गंध उच्छ्वसित अब मधु कानन, निज मर्माहत मृदु उर का क्षत विस्मृति से तू भर ले कुछ क्षण! सघन कुंज तल छाया शीतल, बहती मंथर धारा कल कल, फलक ताकता ऊपर अपलक, आज धरा यौवन से चं

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सरित पुलिन पर सोया था मैं

30 अप्रैल 2022
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सरित पुलिन पर सोया था मैं मधुर स्वप्न सुख में तल्लीन, विधु वदनी बैठी थी सन्मुख कर में मधु घट धरे नवीन! झलक रहा था मदिर सुरा में प्रेयसि का मुख बिम्ब तरल, रजत सीप में मुक्ता जैसे प्रातः सर में र

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निभृत विजन में मेरे मन में

30 अप्रैल 2022
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निभृत विजन में मेरे मन में हुआ एक दिन स्वप्नाभास, मुग्ध यौवना गीत गुनगुना बैठी है ज्यों मेरे पास! मेरा मन खो गया विहग बन नयन नीलिमा में तत्काल, वैभव सुख की, सुत के मुख की रही न फिर मुझको अभिलाष

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उमर तीर्थ यात्री ज्यों थककर

1 मई 2022
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उमर तीर्थ यात्री ज्यों थक कर करते क्षण भर को विश्राम, नगर प्रांत के पास खोज कर मर्मर तरु छाया अभिराम! नव परिचित सुहृदों से करते बैठ घड़ी भर स्नेहालाप, उसी तरह हम जीवन पथ के पांथ जुटे जग में क्ष

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तू प्रसन्न रह महाकाल यह

1 मई 2022
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तू प्रसन्न रह, महाकाल यह है अनंत, विधि गति अनिवार, नक्षत्रों की मणियों से नित खचित रहेगा गगन अपार! वे ईंटें जो तेरे तन की मिट्टी से होंगी तैयार, किसी शाह के रंग महल की सखे, बनेंगी वे दीवार!

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मेरे नयनों के आँसू का

1 मई 2022
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मेरे नयनों के आँसू का एक बूँद यह पारावार, क्रीड़ा की प्रिय सामग्री का एक सीप यह व्योम उभार! मेरे शोकानल का केवल एक अग्नि कण नरक प्रचंड, उर के सुख के एक दिवस का एक मधुर क्षण स्वर्ग अपार!

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यदि मदिरा मिलती हो तुझको

1 मई 2022
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यदि मदिरा मिलती हो तुझको व्यर्थ न कर, मन, पश्चाताप, सौ सौ वंचक तुझको घेरे करें भले ही आर्त प्रलाप! ऐसे समय सुहाता किसको नीरस मनस्ताप, ख़ैयाम, फाड़ रही जब कलिका अंचल, बुलबुल करती प्रेमालाप!

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छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि

1 मई 2022
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छोड़ काज, आओ मधु प्रेयसि, बैठो वृद्ध उमर के संग, क़ैक़ुवाद औ’ केख़ुसरू का छेड़ो मत प्राचीन प्रसंग! हुआ धराशायी चिर रुस्तम जीत जगत जीवन संग्राम, रहा न हातमताई का भी सांध्य भोज का अब रस रंग!

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वह मनुष्य जिसके रहने को

1 मई 2022
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वह मनुष्य जिसके रहने को जो छोटा आँगन, गृह-द्वार, खाने को रोटी का टुकड़ा, पीने को मदिरा की धार! जो न किसी का सेवक शासक, हँसमुख हों जिसके सहचर, कहता उमर सुखी है वह नर, स्वर्ग उसे है यह संसार!

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तूस और क़ाऊस देश से

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तूस और क़ाऊस देश से एक बूँद मदिरा सुंदर, क़ैक़ुवाद के सिंहासन से सुघर प्रिया के मदिराधर! मधुपायी जो नाला करता उमर नित्य उठ प्रातःकाल सौ मुल्लाओं के अजान से वह प्रभु को प्रिय है बढ़कर!

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बिन्दु सिन्धु से उमर विलग हो

1 मई 2022
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बिन्दु सिन्धु से उमर विलग हो करता सतत रुदन कातर, हँस हँस कर नित कहता सागर मैं ही हूँ तेरे भीतर! निखिल सृष्टि में व्याप्त एक ही सत्य, न कुछ उसके बाहर, फिर अखंड बन जाएगा तू अगर पी सके मदिराधर!

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वीणा वंशी के दो स्वर जब

1 मई 2022
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वीणा वंशी के दो स्वर जब हो जाते आपस में लय, प्रिये, हमारा मधुर मिलन भी हो सकता सुखमय निश्वय! मदिरा की विस्मृति में जब दो हृदयों का होता विनिमय, उन्हें न बिछुड़ा सकता कोई, इसमें नहीं तनिक संशय!

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सुरापान को, प्रणय गान को

1 मई 2022
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सुरा पान को, प्रणय गान को सखे, समझते जो अपराध, जो रूखे सूखे साधू हैं, भाता जिनको वाद विवाद; स्वर्ग लोक जाकर वे उसको कर देंगे नीरस, छबि हीन, स्वर्ग प्राप्ति से तब क्या फल? हम यहीं सुरा पी हरें व

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प्रिये, तुम्हारी मृदु ग्रीवा पर

1 मई 2022
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प्रिये, तुम्हारी मृदु ग्रीवा पर झूल रही जो मुक्ता माल, वे सागर के पलने में थे कभी सीप के हँसमुख बाल! झलक रहे प्रिय अंगों पर जो मणि माणिक रत्नालंकार, वे पर्वत के उर प्रदेश के कभी सुलगते थे उद्गा

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हे मनुष्य, गोपन रहस्य यह

1 मई 2022
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हे मनुष्य, गोपन रहस्य यह स्वर्ग लोक से हुआ प्रकाश, मात्र तुम्हारे अंतर से ही निखिल सृष्टि का हुआ विकास! तुम्हीं देवता हो, तुम दानव, हिंसक पशु, स्नेही मानव, तुम्हीं साधु खल, स्वर्ग दूत दुष्कृती

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बाहर भीतर ऊपर नीचे

1 मई 2022
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बाहर भीतर ऊपर नीचे जुटा अनंत समाज, मायामय की रंग भूमि में छाया-अभिनय आज! इंद्रजाल का खेल हो रहा, दीप सूर्य, ग्रह, चाँद, स्वप्नाविष्ट खेलते सब जन यहाँ सहर्ष विषाद!

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तेरा प्रेम हृदय में जिसके

1 मई 2022
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तेरा प्रेम हृदय में जिसके हुआ अंकुरित, बना विभोर, उसे मर्म में छिपा, अश्रु से सींचेगा वह, प्रिय, निशि भोर! भले परीक्षा मिस या छल से झटके तू अपना अंचल कभी न छोड़ेगा वह दामन फिरे न जब तक करुणा को

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लाओ हे लज्जास्मित प्रेयसि

1 मई 2022
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लाओ, हे लज्जास्मित प्रेयसि, मदिर लालिमा का घट सुंदर, मधुर प्रणय के मदिरालस में आज डुबाओ मेरा अंतर! ज्ञानी, रसिक, विमूढ़ों को जो बंदी कर निज प्रीति पाश में विस्मृत कर देती क्षण भर को, लाओ वह मधु

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मदिर नयन की, फूल वदन की

1 मई 2022
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मदिर नयन की, फूल वदन की प्रेमी को ही चिर पहचान, मधुर गान का, सुरा पान का मौजी ही करता सम्मान! स्वर्गोत्सुक जो, सुरा विमुख जो क्षमा करे, उनको भगवान, प्रेयसि का मुख, मदिरा का सुख प्रणयी के, मद्यप

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उस गुलवदनी को पाकर भी

1 मई 2022
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उस गुलवदनी को पाकर भी पा न सकोगे उसका प्यार, जब तक क्रूर विरह का कंटक सखे, न कर देगा उर पार! कंघी को लो, तार तार जब तक न हुआ था उसका गात, फेर सकी वह नहीं उँगलियाँ प्रेयसि अलकों पर सुकुमार!

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अंधकार में लिखा हुआ जो

1 मई 2022
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अंधकार में लिखा हुआ जो कौन पढ़ सका उसका भेद? इस निगूढ़ जग का रहस्य चिर अविदित, सखे, करो मत खेद! जिसे सुधार सके न पार कर ज्ञानी, गुणी, यती, धीमान् उसी अंध बीथी का क्या तुम आज करोगे अनुसंधान! आओ

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आतप आकुल मृदुल कुसुम कुल

1 मई 2022
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आतप आकुल मृदुल कुसुम कुल हरने मर्म तृषा निज, प्राण ऊपर उठकर हृदय पात्र भर करता स्वर्ग सुधा का पान! तू भी जग कर अमर सुरा भर सुज्ञ सुमन बन हे अनजान, उसी फूल-से सभी धूल से उपजे हम बालक नादान! एक

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उमर न कभी हरित होगा फिर

1 मई 2022
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उमर न कभी हरित होगा फिर पलित वयस का गलित लिबास, मेरे मन अनुकूल फिरेगा भाग्य चक्र, यह व्यर्थ प्रयास! पान पात्र भर ले मदिरा से शोक न कर, मदिरा कर पान, कभी सुराही टूट, सुरा ही रह जाएगी, कर विश्वास

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अंध मोह के बंध तोड़कर

1 मई 2022
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अंध मोह के बंध तोड़कर तु स्वच्छंद सुरा कर पान, क्षण भर मधु अधरों का मिलना, यह जीवन विधि का वरदान! स्वप्नों के सुख में बह बेसुध, मदिर गंध से भर ले प्राण, उमर कहाँ से आए हम, जाएँगे कहाँ, नहीं कुछ

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जिसके उर का अंध कूप

1 मई 2022
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जिसके उर का अंध कूप हो उठा प्रीति जल से परिप्लावित, हँसने रोने में न गँवाता वह अमूल्य जीवन क्षण निश्चित! प्रिय चरणों पर उमर निछावर चखता स्वतः स्फुरित मदिरामृत, लाला के रँग की हाला भर पीता बाला

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साक़ी ईश्वर है करुणाकर

1 मई 2022
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साक़ी, ईश्वर है करुणाकर, उसकी कृपा अपार क्षमामय; दुष्कृत से फिर तू क्यों वंचित, सब के लिए समान सुरालय! दान पुण्य फल यदि करुणांचल, न्याय दया में तब क्या अंतर? छोड़ कलुष भय, हो निः संशय, पाप दया

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हाय, कहीं होता यदि कोई

1 मई 2022
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हाय, कहीं होता यदि कोई बाधा हीन निभृत संस्थान मर्म व्यथा की कथा भुलाकर जहाँ जुड़ा सकता मैं प्राण! वहीं कहीं छिप उमर अकिंचन करता क्षण भर को विश्राम, जीवन पथ की श्रांति क्लांति हर करता इच्छित मदि

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हाय, कहीं होता यदि कोई

1 मई 2022
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हाय, कहीं होता यदि कोई बाधा हीन निभृत संस्थान मर्म व्यथा की कथा भुलाकर जहाँ जुड़ा सकता मैं प्राण! वहीं कहीं छिप उमर अकिंचन करता क्षण भर को विश्राम, जीवन पथ की श्रांति क्लांति हर करता इच्छित मदि

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प्रिये, तुम्हारे बाहु पाश के

1 मई 2022
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प्रिये, तुम्हारे बाहुपाश के सुख में सोया मैं उस बार किसी अतीन्द्रिय स्वप्न लोक में करता था बेसुध अभिसार! सहसा आकर प्रात वात ने बिखरा ज्यों हिमजल की डार छिन्न कर दिया मेरे स्वर्गिक स्वप्नों के स

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शीतल तरु छाया में बैठे

1 मई 2022
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शीतल तरु छाया में बैठे हरते थे निज क्लांति पांथ जन, कंपित कर से पान पात्र भर, देख सुरा का रक्तिम आनन! हँसमुख सहचर मधुर कंठ से गाते थे मदिरालस लोचन, बोला हँसकर एक पात्र भर उमर बीत जाएँगे ये क्षण

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मेरी आत्मा जो कि तुम्हारी

1 मई 2022
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मेरी आत्मा जो कि तुम्हारी प्रीति सुरा की पीती धार, भटक रही किस रोष दोष वश वह इस जग में बारंबार! पहले तुमने कभी न ऐसा नाथ, किया निर्मम व्यवहार, भोग रही वह आज दंड क्यों, वहन कर रही जीवन भार!

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तेरे करुणांबुधि का केवल

1 मई 2022
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तेरे करुणांबुधि का केवल एक झाग यह नीलाकाश, तेरे आँगन के कोने में, सौ सजीव काबों का वास! तदि मैं तेरे दया द्वार तक पहुँच सकूँ, जीवन हो धन्य, थक कर मग ही में रह जाऊँ तो न व्यर्थ हो वह आयास!

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तेरी क़ातिल असि से मेरा

1 मई 2022
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तेरी क़ातिल असि से मेरा साक़ी, जो कट जाए सर नयनों के घन भी बरसाएँ रुधिर अश्रुओं की जो झर! रोम रोम मेरे शरीर का यदि जी उठे पृथक् तन धर, एक एक कर करूँ न तुझ पर अगर निछावर, मैं कायर!

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इस जग की चल छाया चित्रित

1 मई 2022
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इस जग की चल छाया चित्रित रंग यवनिका के भीतर छिप जाएँगें जब हम प्रेयसि, जीवन का छल अभिनय कर! रंग धरा पर हास अश्रु के दृश्य रहेंगे इसी प्रकार हम न रहेंगे, मायामय का पर न रुकेगा खेल, उमर!

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निस्तल यह जीवन रहस्य

1 मई 2022
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निस्तल यह जीवन रहस्य, यदि थाह न मिले, वृथा है खेद! सौ मुख से सौ बातें कहलें लोग भले, तू रह अक्लेद! सूक्ष्म हृदय इस मुक्ताफल का कभी न कोई पाया बेध, गोपन सत्य रहा नित गोपन, भेद रहा चिर अविदित भेद

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सौ सौ धर्मांधों से बढ़ कर

1 मई 2022
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सौ सौ धर्मान्धों से बढ़कर पूत एक मदिरा का जाम, चीन देश से भी अमूल्य रे मधु का फैला फेन ललाम! निखिल सृष्टि की प्रिया सुरा यह, जीवों के प्राणों की सार, सौ सौ गुलवदनों से मादक गुलनारी मदिरा, ख़ैया

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बुझता हो जीवन प्रदीप का

1 मई 2022
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बुझता हो जीवन प्रदीप जब उसको मदिरा से भरना, मृत्यु स्पर्श से मुरझाए पलकों को मधु से तर करना! द्राक्षा दल का अंगराग मल ताप विकल तन का हरना, स्वप्निल अंगूरी छाया में क़ब्र बना, मुझको धरना!

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सुनता हूँ रमजान माह का

1 मई 2022
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सुनता हूँ रमजान माह का उदय हुआ अब पीला चाँद, मदिरालय की गलियों में अब फिर न सकूँगा कर फ़रियाद! मैं जी भर शाबान महीने पीलूँगा मदिरा इतनी, पड़ा रहूँ अलमस्त ईद तक रहे न रोज़ों की भी याद!

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मधु बाला के साथ सुरा पी

1 मई 2022
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मधु बाला के साथ सुरा पी, उमर विजन में कर तू वास, जग से दूर, जहाँ जीवन के तापों का न मिले आभास! दो दिन का साथी यह जीवन ज्यों वन फूलों का आमोद, गुलवदनों से, मधु अधरों से करे ले कुछ क्षण हास विलास

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लताद्रुमों खग पशु कुसुमों में

1 मई 2022
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लता द्रुमों, खग पशु कुसुमों में सकल चराचर में अविकार भरी लबालब जीवन मदिरा उमर कह रहा सोच विचार! पान पात्र हों भले टूटते मदिरालय में बारंबार लहराती ही सदा रहेगी जग में बहती मदिराधार!

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यहाँ उमर के मदिरालय में

1 मई 2022
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यहाँ उमर के मदिरालय में कोई नहीं दुखी या दीन, सब की इच्छा पूरी करती सुरा, बना सबको स्वाधीन! जब तक आशा श्वासा उर में सखे, करो मदिराधर पान, क्षण भर को भी रहे न मानस जग की चिन्ता में तल्लीन!

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आह, समापन हुई प्रणय की

1 मई 2022
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आह, समापन हुई प्रणय की मर्म कथा, यौवन का पत्र! सुख स्वप्नों का नव वसंत भी हुआ शिशिर सा शून्य अपत्र! मनोल्लास का स्वर्ण विहग वह था किशोरपन जिसका नाम, उमर हाय, जाने कब आया और उड़ गया कब अन्यत्र!

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सतत यत्न कर सुख हित कात

1 मई 2022
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सतत यत्न कर सुख हित कातर जर्जर प्राण, जीर्ण अब वेश, श्रीहत तन, निर्वेद युक्त मन, कुंठित यौवन का आवेश! तलछट मात्र रही अब मदिरा रिक्त प्राय साक़ी का जाम, ज्ञात नहीं पर वृद्ध उमर के वर्ष आयु के कि

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हाय, चुक गया अब सारा धन

1 मई 2022
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हाय, चुक गया अब सारा धन, रिक्त हो गया जीवन कोष! बुझा चुका यह काल समीरण कितने प्राण दीप निर्दोष! लौट नहीं आ पाया कोई जाकर फिर जग के उस पार, उमर पूछ कर हाल वहाँ के पथिकों का करता संतोष!

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धर्म वंचकों को यदि मुझसे

1 मई 2022
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धर्म वंचकों को यदि मुझसे कभी मित्रता हो स्वीकार वे मेरे दुःखों के बदले इतना मात्र करें उपकार, मेरे मरने बाद देह की रज से ईंटें कर तैयार चुनवा दें वे मदिरालय के खँडहर की टूटी दीवार!

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दो शब्दों में कह दूँ तुमसे

1 मई 2022
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दो शब्दों में कह दूँ तुमसे उमर अंत में सच्ची बात, उसके विरहानल में जल कर पाएगी यह राख नजात! और उसी की प्रीति सुरा से दीप शिखा सी उठ तत्काल पुनः जी उठेगी, ज्योतित कर महामृत्यु की काली रात!

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