shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

आराधना

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

18 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
0 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

आराधना के गीत निराला काव्य के तीसरे चरण में रचे गए हैं, मुख्यतया 24 फरवरी 1952 से आरंभ करके दिसम्बर 1952 के अंत तक। इन गीतों से यह भ्रम हो सकता है कि निराला पीछे की ओर लौट गए हैं। वास्तविकता यहा है कि धर्म-भावना निराला में पहले भी थी, वह उसमें अंत-अंत तक बनी रही। 

aaradhana

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

गोरे अधर मुस्काई

12 अप्रैल 2022
0
0
0

गोरे अधर मुस्काई हमारी वसन्त विदाई । अंग-अंग बलखाई हमारी वसन्त विदाई । परिमल के निर्झर जो बहे ये, नयन खुले कहते ही रहे ये जग के निष्ठुर घात सहे ये, बात न कुछ बन पाई, कहाँ से कहाँ चली आई ।

2

पद्मा के पद को पाकर हो

12 अप्रैल 2022
0
0
0

पद्मा के पद को पाकर हो सविते, कविता को यह वर दो। वारिज के दृग रवि के पदनख निरख-निरखकर लहें अलख सुख; चूर्ण-ऊर्मि-चेतन जीवन रख हृदय-निकेतन स्वरमय कर दो। एक दिवस के जीवन में जय, जरा-मरण-क्षय हो नि

3

यह संसार सभी बदला है

12 अप्रैल 2022
0
0
0

ऊँट-बैल का साथ हुआ है; कुत्ता पकड़े हुए जुआ है। यह संसार सभी बदला है; फिर भी नीर वही गदला है, जिससे सिंचकर ठण्डा हो तन, उस चित-जल का नहीं सुआ है। रूखा होकर ठिठुर गया है; जीवन लकड़ी का लड़का

4

दुख भी सुख का बन्धु बना

12 अप्रैल 2022
0
0
0

दुख भी सुख का बन्धु बना पहले की बदली रचना । परम प्रेयसी आज श्रेयसी, भीति अचानक गीति गेय की, हेय हुई जो उपादेय थी, कठिन, कमल-कोमल वचना । ऊँचा स्तर नीचे आया है, तरु के तल फैली छाया है, ऊपर उ

5

सीधी राह मुझे चलने दो

12 अप्रैल 2022
0
0
0

सीधी राह मुझे चलने दो   अपने ही जीवन फलने दो।  जो उत्पात, घात आए हैं, और निम्न मुझको लाए हैं, अपने ही उत्ताप बुरे फल, उठे फफोलों से गलने दो। जहाँ चिन्त्य हैं जीवन के क्षण, कहाँ निरामयता, सं

6

मरा हूँ हज़ार मरण

12 अप्रैल 2022
0
0
0

मरा हूँ हजार मरण पाई तब चरण-शरण । फैला जो तिमिर जाल कट-कटकर रहा काल, आँसुओं के अंशुमाल, पड़े अमित सिताभरण । जल-कलकल-नाद बढ़ा अन्तर्हित हर्ष कढ़ा, विश्व उसी को उमड़ा, हुए चारु-करण सरण ।

7

अरघान की फैल

12 अप्रैल 2022
0
0
0

अरघान की फैल, मैली हुई मालिनी की मृदुल शैल। लाले पड़े हैं, हजारों जवानों कि जानों लड़े हैं; कहीं चोट खाई कि कोसों बढ़े हैं, उड़ी आसमाँ को खुरीधूल की गैल अरघान की फैल। काटे कटी काटते ही रहे

8

दुखता रहता है अब जीवन

12 अप्रैल 2022
0
0
0

दुखता रहता है अब जीवन; पतझड़ का जैसा वन-उपवन । झर-झर कर जितने पत्र नवल कर गए रिक्त तनु का तरुदल, हैं चिह्न शेष केवल सम्बल, जिनसे लहराया था कानन । डालियाँ बहुत-सी सूख गईं, उनकी न पत्रता हुई

9

सुख का दिन डूबे डूब जाए

12 अप्रैल 2022
0
0
0

सुख का दिन डूबे डूबे जाए । तुमसे न सहज मन ऊब जाए । खुल जाए न मिली गाँठ मन की, लुट जाए न उठी राशि धन की, धुल जाए न आन शुभानन की, सारा जग रूठे रूठ जाए । उलटी गति सीधी हो न भले, प्रति जन की दा

10

हे मानस के सकाल

12 अप्रैल 2022
0
0
0

हे मानस के सकाल ! छाया के अन्तराल ! रवि के, शशि के प्रकाश, अम्बर के नील भास, शारदा घन गहन-हास, जगती के अंशुमाल । मानव के रूप सुघर, मन के अतिरेक अमर, निःस्व विश्व के सुन्दर, माया के तमोजाल

11

नील नयन, नील पलक

12 अप्रैल 2022
0
0
0

नील नयन, नील पलक; नील वदन, नील झलक । नील-कमल-अमल-हास केवल रवि-रजत भास नील-नील आस-पास वारिद नव-नील छलक । नील-नीर-पान-निरत, जगती के जन अविरत, नील नाल से आनत, तिर्यक-अति-नील अलक ।

12

हारता है मेरा मन

12 अप्रैल 2022
0
0
0

हारता है मेरा मन विश्व के समर में जब कलरव में मौन ज्यों शान्ति के लिए, त्यों ही हार बन रही हूँ प्रिय, गले की तुम्हारी मैं, विभूति की, गन्ध की, तृप्ति की, निशा की । जानती हूँ तुममें ही शेष है द

13

भग्न तन, रुग्ण मन

12 अप्रैल 2022
0
0
0

भग्न तन, रुग्न मन, जीवन विषण्ण वन । क्षीण क्षण-क्षण देह, जीर्ण सज्जित गेह, घिर गए हैं मेह, प्रलय के प्रवर्षण । चलता नहीं हाथ, कोई नहीं साथ, उन्नत, विनत माथ, दो शरण, दोषरण ।

14

अशरण-शरण राम

12 अप्रैल 2022
0
0
0

अशरण-शरण राम, काम के छवि-धाम । ऋषि-मुनि-मनोहंस, रवि-वंश-अवतंस, कर्मरत निश्शंस, पूरो मनस्काम । जानकी-मनोरम, नायक सुचारुतम, प्राण के समुद्यम, धर्म धारण श्याम ।

15

ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र

12 अप्रैल 2022
0
0
0

ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र, माझ मान मेघ मन्द्र । क्षण-क्षण विद्युत प्रकाश, गुरु गर्जन मधुर भास, कुज्झटिका अट्टहास, अन्तर्दृग विनिस्तन्द्र । विश्व अखिल मुकुल-बन्ध जैसे यतिहीन छन्द, सुख की गत

16

रहते दिन दीन शरण भज ले

12 अप्रैल 2022
0
0
0

रहते दिन दीन शरण भज ले । जो तारक सत वह पद-रज ले । दे चित अपने ऊपर के हित अंतर के बाहर के अवसित उसको जो तेरे नहीं सहित यों सज तू, कर सत की धज ले । जब फले न फल तू हो न विकल, करके ढब करतब को क

17

बात न की तो क्या बन आती

12 अप्रैल 2022
0
0
0

बात न की तो क्या बन आती । नूपुर की कब रिन-रन आती । बन्द हुई जब उर की भाषा, समर विजय की तब क्या आशा, बढ़ी नित्यप्रति और निराशा, बिना डाल कलि क्या तन आती ? बली वारिद के बिना जुआ है, मुख न रहा

18

पार-पारावार जो है

12 अप्रैल 2022
0
0
0

पार-पारावार जो है स्नेह से मुझको दिखा दो, रीति क्या, कैसे नियम, निर्देश कर करके सिखा दो । कौन से जन, कौन जीवन, कौन से गृह, कौन आंगन, किन तनों की छांह के तन, मान मानस में लिखा दो । पठित या

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए