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रागविराग

सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

47 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
2 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

यह उन कविताओं का संग्रह है जिनमें जितना आनन्द का अमृत है, उतना ही वेदना का विष। कवि चाहे अमृत दे, चाहे विष, इनके स्रोत इसी धरती में हों तो उसकी कविता अमर है। … जैसे 'उड़ि जहाज को पंछी फिरि जहाज पर आवै', निराला की कविता आकाश में चक्कर काटने के बाद इसी धरती पर लौट आती है। 

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पुस्तक के भाग

1

रँग गई पग-पग धन्य धरा

12 अप्रैल 2022
1
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रँग गई पग-पग धन्य धरा, हुई जग जगमग मनोहरा । वर्ण गन्ध धर, मधु मरन्द भर, तरु-उर की अरुणिमा तरुणतर खुली रूप - कलियों में पर भर           स्तर स्तर सुपरिसरा । गूँज उठा पिक-पावन पंचम खग-कुल-कलर

2

सखि, वसन्त आया

12 अप्रैल 2022
1
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सखि वसन्त आया । भरा हर्ष वन के मन, नवोत्कर्ष छाया । किसलय-वसना नव-वय-लतिका मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका, मधुप-वृन्द बन्दी पिक-स्वर नभ सरसाया । लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर, बही पवन बंद मंद मंदतर

3

नयनों के डोरे लाल

12 अप्रैल 2022
1
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नयनों के डोरे लाल गुलाल-भरी खेली होली ! प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली, एक वसन रह गई मंद हँस अधर-दशन अनबोली कली-सी काँटे की तोली ! मधु-ऋतु-रात मधुर अधरों की पी मधुअ सुधबुध खो ली, खुले

4

ज़ुही की कली

12 अप्रैल 2022
1
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विजन-वन-वल्लरी पर सोती थी सुहाग-भरी--स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल- कोमल -तनु तरुणी--जुही की कली, दृग बन्द किये, शिथिल--पत्रांक में, वासन्ती निशा थी; विरह-विधुर-प्रिया-संग छोड़ किसी दूर देश में था पवन

5

बादल-राग-6

12 अप्रैल 2022
1
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तिरती है समीर-सागर पर अस्थिर सुख पर दुःख की छाया जग के दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव की प्लावित माया यह तेरी रण-तरी भरी आकांक्षाओं से, घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर उर में पृथ्वी के, आशाओं से

6

हताश

12 अप्रैल 2022
2
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जीवन चिरकालिक क्रन्दन । मेरा अन्तर वज्रकठोर, देना जी भरसक झकझोर, मेरे दुख की गहन अन्ध तम-निशि न कभी हो भोर, क्या होगी इतनी उज्वलता इतना वन्दन अभिनन्दन ? हो मेरी प्रार्थना विफल, हृदय-कमल-के

7

ध्वनि

12 अप्रैल 2022
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अभी न होगा मेरा अन्त अभी-अभी ही तो आया है मेरे वन में मृदुल वसन्त अभी न होगा मेरा अन्त हरे-हरे ये पात, डालियाँ, कलियाँ कोमल गात! मैं ही अपना स्वप्न-मृदुल-कर फेरूँगा निद्रित कलियों पर जगा

8

हिन्दी के सुमनों के प्रति पत्र

12 अप्रैल 2022
1
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मैं जीर्ण-साज बहु छिद्र आज, तुम सुदल सुरंग सुवास सुमन, मैं हूँ केवल पतदल--आसन, तुम सहज बिराजे महाराज। ईर्ष्या कुछ नहीं मुझे, यद्यपि मैं ही वसन्त का अग्रदूत, ब्राह्मण-समाज में ज्यों अछूत मैं र

9

सच है

12 अप्रैल 2022
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यह सच है तुमने जो दिया दान दान वह, हिन्दी के हित का अभिमान वह, जनता का जन-ताका ज्ञान वह, सच्चा कल्याण वह अथच है यह सच है! बार बार हार हार मैं गया, खोजा जो हार क्षार में नया, उड़ी धूल, तन सार

10

प्याला

12 अप्रैल 2022
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मृत्यु-निर्वाण प्राण-नश्वर कौन देता प्याला भर भर? मृत्यु की बाधाएँ, बहु द्वन्द पार कर कर जाते स्वच्छन्द तरंगों में भर अगणित रंग, जंग जीते, मर हुए अमर। गीत अनगिनित, नित्य नव छन्द विविध श्रॄं

11

रे, न कुछ हुआ तो क्या ?

12 अप्रैल 2022
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रे, कुछ न हुआ, तो क्या ? जग धोका, तो रो क्या ? सब छाया से छाया, नभ नीला दिखलाया, तू घटा और बढ़ा और गया और आया; होता क्या, फिर हो क्या ? रे, कुछ न हुआ तो क्या ? चलता तू, थकता तू, रुक-रुक फिर

12

कौन तम के पार ?

12 अप्रैल 2022
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कौन तम के पार ?-- (रे, कह) अखिल पल के स्रोत, जल-जग, गगन घन-घन-धार--(रे, कह) गंध-व्याकुल-कूल- उर-सर, लहर-कच कर कमल-मुख-पर, हर्ष-अलि हर स्पर्श-शर, सर, गूँज बारम्बार !-- (रे, कह) उदय मेम तम-भे

13

अस्ताचल रवि

12 अप्रैल 2022
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अस्ताचल रवि, जल छलछल-छवि, स्तब्ध विश्वकवि, जीवन उन्मन; मंद पवन बहती सुधि रह-रह परिमल की कह कथा पुरातन । दूर नदी पर नौका सुन्दर दीखी मृदुतर बहती ज्यों स्वर, वहाँ स्नेह की प्रतनु देह की बिना गे

14

दे, मैं करूँ वरण

12 अप्रैल 2022
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दे, मैं करूँ वरण जननि, दुखहरण पद-राग-रंजित मरण । भीरुता के बँधे पाश सब छिन्न हों, मार्ग के रोध विश्वास से भिन्न हों, आज्ञा, जननि, दिवस-निशि करूँ अनुसरण । लांछना इंधन, हृदय-तल जले अनल, भक्ति-नत

15

अनगिनित आ गए शरण में

12 अप्रैल 2022
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अनगिनित आ गए शरण में जन, जननि, सुरभि-सुमनावली खुली, मधुऋतु अवनि ! स्नेह से पंक-उर हुए पंकज मधुर, ऊर्ध्व-दृग गगन में देखते मुक्ति-मणि ! बीत रे गई निशि, देश लख हँसी दिशि, अखिल के कण्ठ की उठ

16

पावन करो नयन

13 अप्रैल 2022
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रश्मि, नभ-नील-पर, सतत शत रूप धर, विश्व-छवि में उतर, लघु-कर करो चयन ! प्रतनु, शरदिन्दु-वर, पद्म-जल-बिन्दु पर, स्वप्न-जागृति सुघर, दुख-निशि करो शयन !

17

वर दे वीणावादिनी वर दे !

13 अप्रैल 2022
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वर दे, वीणावादिनि वर दे! प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव              भारत में भर दे! काट अंध-उर के बंधन-स्तर बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर; कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर         जगमग जग कर दे! नव

18

बन्दूँ, पद सुन्दर तव

13 अप्रैल 2022
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 बन्दूँ, पद सुंदर तव,  छंद नवल स्वर-गौरव । जननि, जनक-जननि-जननि, जन्मभूमि-भाषे ! जागो, नव अम्बर-भर, ज्योतिस्तर-वासे ! उठे स्वरोर्मियों-मुखर दिककुमारिका-पिक-रव । दृग-दृग को रंजित कर अंजन भर

19

भारति, जय, विजय करे

13 अप्रैल 2022
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भारति, जय, विजयकरे ! कनक-शस्य-कमलधरे ! लंका पदतल शतदल गर्जितोर्मि सागर-जल, धोता-शुचि चरण युगल स्तव कर बहु-अर्थ-भरे । तरु-तृण-वन-लता वसन, अंचल में खचित सुमन, गंगा ज्योतिर्जल-कण धवल धार हार

20

जग का एक देखा तार

13 अप्रैल 2022
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जग का एक देखा तार । कंठ अगणित, देह सप्तक, मधुर-स्वर झंकार । बहु सुमन, बहुरंग, निर्मित एक सुन्दर हार; एक ही कर से गुँथा, उर एक शोभा-भार । गंध-शत अरविंद-नंदन विश्व-वंदन-सार, अखिल-उर-रंजन निरंजन

21

टूटें सकल बंध

13 अप्रैल 2022
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टूटें सकल बन्ध कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध। रुद्ध जो धार रे शिखर-निर्झर झरे मधुर कलरव भरे शून्य शत-शत रन्ध्र । रश्मि ऋजु खींच दे चित्र शत रंग के, वर्ण-जीवन फले, जागे तिमिर अन्ध ।

22

बुझे तृष्णाशा-विषानल

13 अप्रैल 2022
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बुझे तृष्णाशा-विषानल झरे भाषा अमृत-निर्झर, उमड़ प्राणों से गहनतर छा गगन लें अवनि के स्वर । ओस के धोए अनामिल पुष्प ज्यों खिल किरण चूमे, गंध-मुख मकरंद-उर सानन्द पुर-पुर लोग घूमे, मिटे कर्षण से धरा

23

प्रात तब द्वार पर

13 अप्रैल 2022
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प्रात तव द्वार पर, आया, जननि, नैश अन्ध पथ पार कर । लगे जो उपल पद, हुए उत्पल ज्ञात, कंटक चुभे जागरण बने अवदात, स्मृति में रहा पार करता हुआ रात, अवसन्न भी हूँ प्रसन्न मैं प्राप्तवर प्रात तव द्वा

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सरोज स्मृति (भाग 1)

13 अप्रैल 2022
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ऊनविंश पर जो प्रथम चरण तेरा वह जीवन-सिन्धु-तरण; तनये, ली कर दृक्पात तरुण जनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नाम वर लिया अमर शाश्वत विराम पूरे कर शुचितर सपर्याय जीवन के अष्टादशाध्याय,

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सरोज स्मृति (भाग 2)

13 अप्रैल 2022
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पार्श्व में अन्य रख कुशल हस्त गद्य में पद्य में समाभ्यस्त।  देखें वे; हसँते हुए प्रवर, जो रहे देखते सदा समर, एक साथ जब शत घात घूर्ण आते थे मुझ पर तुले तूर्ण, देखता रहा मैं खडा़ अपल वह शर-क्षेप,

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सरोज स्मृति (भाग 3)

13 अप्रैल 2022
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पर संपादकगण निरानंद वापस कर देते पढ़ सत्त्वर दे एक-पंक्ति-दो में उत्तर। लौटी लेकर रचना उदास ताकता हुआ मैं दिशाकाश बैठा प्रान्तर में दीर्घ प्रहर व्यतीत करता था गुन-गुन कर सम्पादक के गुण; यथाभ्या

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सरोज स्मृति (भाग 4)

13 अप्रैल 2022
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आयेंगे कल।" दृष्टि थी शिथिल, आई पुतली तू खिल-खिल-खिल हँसती, मैं हुआ पुन: चेतन सोचता हुआ विवाह-बन्धन। कुंडली दिखा बोला -- "ए -- लो" आई तू, दिया, कहा--"खेलो।" कर स्नान शेष, उन्मुक्त-केश सासुजी रह

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सरोज स्मृति (भाग 5)

13 अप्रैल 2022
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वे जो यमुना के-से कछार पद फटे बिवाई के, उधार खाये के मुख ज्यों पिये तेल चमरौधे जूते से सकेल निकले, जी लेते, घोर-गंध, उन चरणों को मैं यथा अंध, कल ध्राण-प्राण से रहित व्यक्ति हो पूजूं, ऐसी नहीं श

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राम की शक्ति पूजा (भाग 1)

13 अप्रैल 2022
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रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर आज का तीक्ष्ण शर-विधृत-क्षिप्रकर, वेग-प्रखर, शतशेलसम्वरणशील, नील नभगर्ज्जित-स्वर, प्रतिपल - परिवर्तित - व्यूह - भेद कौशल समू

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राम की शक्ति पूजा (भाग 2)

13 अप्रैल 2022
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फिर देखी भीम मूर्ति आज रण देखी जो आच्छादित किये हुए सम्मुख समग्र नभ को, ज्योतिर्मय अस्त्र सकल बुझ बुझ कर हुए क्षीण, पा महानिलय उस तन में क्षण में हुए लीन; लख शंकाकुल हो गये अतुल बल शेष शयन, खिंच

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राम की शक्ति पूजा (भाग 3)

13 अप्रैल 2022
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कितना श्रम हुआ व्यर्थ, आया जब मिलनसमय, तुम खींच रहे हो हस्त जानकी से निर्दय! रावण? रावण लम्पट, खल कल्म्ष गताचार, जिसने हित कहते किया मुझे पादप्रहार, बैठा उपवन में देगा दुख सीता को फिर, कहता रण की

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राम की शक्ति पूजा (भाग 4)

13 अप्रैल 2022
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कुछ समय तक स्तब्ध हो रहे राम छवि में निमग्न, फिर खोले पलक कमल ज्योतिर्दल ध्यान-लग्न। हैं देख रहे मन्त्री, सेनापति, वीरासन बैठे उमड़ते हुए, राघव का स्मित आनन। बोले भावस्थ चन्द्रमुख निन्दित रामचन्द्

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राम की शक्ति पूजा (भाग 5)

13 अप्रैल 2022
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कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक, ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक। ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन जिस क्षण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय, काँपा

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नर्गिस

13 अप्रैल 2022
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बीत चुका शीत, दिन वैभव का दीर्घतर डूब चुका पश्चिम में, तारक-प्रदीप-कर स्निग्ध-शान्त-दृष्टि सन्ध्या चली गई मन्द मन्द प्रिय की समाधि-ओर, हो गया है रव बन्द विहगों का नीड़ों पर, केवल गंगा का स्वर सत्

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वसन्त की परी के प्रति

13 अप्रैल 2022
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आओ, आओ फिर, मेरे बसन्त की परी छवि-विभावरी; सिहरो, स्वर से भर भर, अम्बर की सुन्दरी छबि-विभावरी; बहे फिर चपल ध्वनि-कलकल तरंग, तरल मुक्त नव नव छल के प्रसंग, पूरित-परिमल निर्मल सजल-अंग, शीतल-मुख

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अपराजिता

13 अप्रैल 2022
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हारीं नहीं, देख, आँखें परी नागरी की; नभ कर गंई पार पाखें परी नागरी की। तिल नीलिमा को रहे स्नेह से भर जगकर नई ज्योति उतरी धरा पर, रँग से भरी हैं, हरी हो उठीं हर तरु की तरुण-तान शाखें; परी नागरी

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वन-बेला

13 अप्रैल 2022
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वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठे उरोज मंजु पर्वत निरुपम किसलयों बँधे, पिक भ्रमर-गुंज भर मुखर प्राण रच रहे सधे प्रणय के गान, सुन कर सहसा प्रखर से प्रखरतर हुआ तपन-यौवन सहसा ऊर्जित,भास्वर पुलकित शत शत

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तोड़ती पत्थर

13 अप्रैल 2022
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वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बंधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती ब

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उक्ति

13 अप्रैल 2022
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कुछ न हुआ, न हो मुझे विश्व का सुख, श्री, यदि केवल पास तुम रहो! मेरे नभ के बादल यदि न कटे चन्द्र रह गया ढका, तिमिर रात को तिरकर यदि न अटे लेश गगन-भास का, रहेंगे अधर हँसते, पथ पर, तुम हाथ यदि गह

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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो

13 अप्रैल 2022
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लू के झोंकों झुलसे हुए थे जो, भरा दौंगरा उन्ही पर गिरा। उन्ही बीजों को नये पर लगे, उन्ही पौधों से नया रस झिरा। उन्ही खेतों पर गये हल चले, उन्ही माथों पर गये बल पड़े, उन्ही पेड़ों पर नये फल फले

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उत्साह

13 अप्रैल 2022
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बादल, गरजो! घेर घेर घोर गगन, धाराधर जो! ललित ललित, काले घुँघराले, बाल कल्पना के-से पाले, विद्युत-छबि उर में, कवि, नवजीवन वाले! वज्र छिपा, नूतन कविता फिर भर दो बादल, गरजो! विकल विकल, उन्मन थे उ

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खुला आसमान

13 अप्रैल 2022
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बहुत दिनों बाद खुला आसमान! निकली है धूप, खुश हुआ जहान! दिखी दिशाएँ, झलके पेड़, चरने को चले ढोर--गाय-भैंस-भेड़, खेलने लगे लड़के छेड़-छेड़ लड़कियाँ घरों को कर भासमान! लोग गाँव-गाँव को चले, को

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मरण-दृश्य

13 अप्रैल 2022
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कहा जो न, कहो ! नित्य - नूतन, प्राण, अपने गान रच-रच दो ! विश्व सीमाहीन; बाँधती जातीं मुझे कर कर व्यथा से दीन ! कह रही हो--"दुःख की विधि यह तुम्हें ला दी नई निधि, विहग के वे पंख बदले, किया ज

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मैं अकेला

13 अप्रैल 2022
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मैं अकेला; देखता हूँ, आ रही मेरे दिवस की सान्ध्य बेला । पके आधे बाल मेरे हुए निष्प्रभ गाल मेरे, चाल मेरी मन्द होती आ रही, हट रहा मेला । जानता हूँ, नदी-झरने जो मुझे थे पार करने, कर चुका हू

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स्नेह-निर्झर बह गया है

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स्नेह-निर्झर बह गया है ! रेत ज्यों तन रह गया है । आम की यह डाल जो सूखी दिखी, कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी नहीं जिसका अर्थ- जीवन दह गया है ।" "दिये हैं मैन

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गहन है यह अन्ध कारा

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गहन है यह अण्ध कारा; स्वार्थ के अवगुण्ठनों से हुआ है लुण्ठन हमारा । खड़ी है दीवार जड़ की घेरकर, बोलते हैं लोग ज्यों मुँह फेरकर, इस गगन में नहीं दिनकर, नहीं शशधर, नहीं तारा । कल्पना का ही अप

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मरण को जिसने वरा है

13 अप्रैल 2022
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मरण को जिसने वरा है उसी का जीवन भरा है परा भी उसकी, उसी के अंक सत्य यशोधरा है । सुकृत के जल से विसिंचित कल्प-किंचित विश्व-उपवन, उसी की निस्तन्द्र चितवन चयन करने को हरा है । गिरीपताक उपत्यक

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